शनिवार, 10 जनवरी 2015

मलाला मेरी बेटी, मैं उसका पिता: सत्यार्थी

कविता जोशी.नई दिल्ली

बाल अधिकारों पर लंबे समय से संघर्षरत हालिया नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आज दुनिया के समक्ष किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने करीब 4 दशकों का लंबा संघर्षभरा दौर पार किया और खुद पर आई विपत्तियों से लेकर अपने कई साथियों के बलिदान की पीड़ा को झेलना पड़ा। यह बातें उन्होंने यहां गुरुवार को राजधानी में रक्षा मंत्रालय के कॉंपट्रोलर जनरल आॅफ डिफेंस अकाउंटस (सीजीडीए) विभाग के एक कार्यक्रम में अपने उद्घबोधन में कहीं।

मलाला मेरी बेटी, मैं उसका पिता
हरिभूमि ने कैलाश सत्यार्थी से पाकिस्तान को आपका क्या संदेश है और अमेरिकी राष्टÑपति के अलावा किन अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने आपको लिखित में बधाई संदेश भेजे के जवाब में कहा कि मुझे शांति के लिए पाकिस्तानी लड़की मलाला युसूफजई के साथ संयुक्त रूप से नोबल पुरस्कार मिला है। पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है। मैं वहां करीब 25 वर्षों से काम करता रहा हूं। वहां भी बाल अधिकारों से लड़ने को लेकर मैंने लंबे समय तक काम किया और पेशावर के सैन्य स्कूल पर हुए हमले ने मुझे भी झकझोरा था। मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि मलाला मेरी बेटी है और मैं उसका पिता। इसके आप जो चाहे मायने निकाल लें। सत्यार्थी जी के इस कथन से स्पष्ट होता है कि दुनिया के किसी भी देश में बच्चों पर जुल्म हो, बाल मजदूरी कराना, र्इंट की भट्टियों में काम कराना, वैश्यावृति जैसे कुकृत्यों की ओर धकेलना अमानवीय ही नहीं बेहद निंदनीय है। मानवता की पूरी दुनिया में रक्षा होनी चाहिए। समाज में बच्चों के प्रति सभी को सजग रहना होगा।

ओबामा ने भेजी थी लिखित बधाई
हरिभूमि के दूसरे सवाल के जवाब में नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि जिस दिन मुझे यह पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई। उसके कुछ दिन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने हाथ से लिखकर मुझे बधाई संदेश भिजवाया। उसमें उन्होंने अपने देश के किसी असहाय बच्चे की व्यथा का भी जिक्र किया था। इसके अलावा नार्वे, स्वीडन के राष्ट्राध्यक्षों से लेकर संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थानों और दुनिया में बाल-अधिकारों, मानवाधिकारों पर काम करने वाली संस्थाआें के लिखित बधाई संदेश आए।

सेनाआें के कंधे पर बच्चों की सुरक्षा
मैंने बुधवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अपना नोबल पुरस्कार मेडल राष्ट्र के नाम समर्पित किया है। राष्ट्रपति भवन अब उसे अपने म्युजियम में रखकर आम जनता को प्रदर्शित करेगा। इसके अलावा पुरस्कार की नकद राशि मैंने अंतरराष्ट्रीय नोबेल समिति को दे दी है और उनसे उसे दुनिया भर में पीड़ित बच्चों के विकास में लगाने की अपील की है। जब मैंने अपने मेडल को राष्ट्रपति को सौंपा है, जो कि सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर हैं तो वो आपको (थलसेना, वायुसेना, नौसेना) को समर्पित कर दिया है। अब सेनाओं की भी यह जिम्मेदारी हो गई है कि वो अपने आस-पास बच्चों के अधिकारों के खिलाफ अवाज उठाए। अगर किसी बच्चे का शोषण होता है तो बोले चुप न रहें।

चीनी युद्ध का किया जिक्र
जब वर्ष 1962 में चीन ने आक्रमण किया तब मैं उम्र में कुछ छोटा था। लेकिन मैंने सुना कि हमारे सैनिकों ने डटकर चीनियों का मुकाबला किया। यह भारतीयों की सबसे बड़ी ताकत है कि किसी भी मुद्दे पर पीछे नहीं हटते। जब तक लक्ष्य को पा नहीं लेते तब तक लड़ते-जूझते रहते हैं। मेरी आप सभी से अपील है कि बाल अधिकारों की सुरक्षा को लेकर भी कुछ ऐसी ही पहल देश में होनी चाहिए।

दुनिया में बच्चों की स्थिति
दुनिया में करीब 6 करोड़ बच्चे स्कूल ही नहीं गए। 15 करोड़ बच्चों को बुनियादी शिक्षा हासिल करने से पहले ही स्कूल छोड़ना पड़ा। दुनिया में 17 करोड़ बच्चे र्इंट के भट्टों, पत्थर की खदानों में काम करते हुए गुलामों जैसा जीवन बिता रहे हैं। दुनिया के 1 अरब बच्चे गरीबी में जी रहे हैं और 24 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। सरकार के एनसीआरबी के आंकड़ें बताते हैं कि देश में हर 1 घंटे में 13 बच्चे गायब होते हैं। इन 13 में से 6 बच्चे कभी नहीं मिलेंगे। ऐसे में हम और हमारे बच्चे कहां सुरक्षित में हैं।   

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