शनिवार, 24 जनवरी 2015

शिक्षा को इंडस्ट्री से जोड़कर युवाओं के लिए खुलेंगे रोजगार के रास्ते

कविता जोशी.नई दिल्ली

देश में युवाओं की लगभग 60 फीसदी आबादी है, जिसमें से हर साल बड़ी संख्या में स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके बच्चे अपने सुनहरे भविष्य के सपने आंखों में लिए निकलते हैं। लेकिन इनमें से चंद ही खुशकिस्मत होते हैं जिन्हें अपनी पंसद की नौकरी या काम करने का सौभाग्य मिलता है। बाकी रह जाते हैं भगवान भरोसे। लेकिन अब चिंता करने की कोई बात नहीं है। क्योंकि केंद्र सरकार शिक्षा को रोजगार के साथ जोड़ने की योजना बना रही है, जिससे पढ़ाई खत्म करने के बाद सीधे रोजगार मिल सकेगा।

कॉलेज पाठ्यक्रम में बदलाव की बयार 
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित ना रखने के अलावा अब उसे इंडस्ट्री की जरूरतों के साथ जोड़कर देश के नौजवानों को बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने की तैयारी चल रही है। बीते दिनों इस बाबत एचआरडी मंत्रालय में उच्च-शिक्षा विभाग में अतिरिक्त सचिव अमरजीत सिन्हा ने एक कार्यक्रम में बताया कि आज के दौर में केवल बीएड-एमऐड, बीएसी-बीकॉम करने से ही अच्छी नौकरी नहीं मिलती। इसलिए मंत्रालय चाइस बेस्ड क्रेडिट फ्रेमवर्क सिस्टम के जरिए कैरियर फोक्सड कोर्सेज को स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल करने जा रहा है। इससे बच्चे को पढ़ाई खत्म करने के तुरंत बाद रोजगार मिल सकेगा।

इंडस्ट्री की भी थी डिमांड
उद्योग जगत की ओर से भी इसे लेकर मांग की जा रही थी कि उनके यहां चल रही तमाम विधाओं के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता होती है। अगर वो स्कूल-कॉलेज से ही इसकी ट्रेनिंग लेकर निकलेगा तो हमारे लिए सोने पे सुहागा होगा। अतिरिक्त सचिव ने कहा कि इसमें राज्यों के सहयोग की बेहद आवश्यक्ता है। हमने यूजीसी के जरिए राज्यों को बीते दिसंबर महीने में लिखित में सूचना देने के साथ ही जरुरी दिशानिर्देंश भी जारी कर दिए हैं। राज्य अपने यहां विश्वविद्यालयों में इंडस्ट्री की मांगों के हिसाब से कोर्सेज शुरू करके राज्य में युवाओं के लिए रोजगार के बेहतर विकल्प दे सकते हैं। इन कोर्सेज को शुरू करने के लिए यूजीसी ॅ्न हर कॉलेज को लगभग 8 लाख रुपए की सहायता राशि भी देती है।

पश्चिम के देशों से मिली सीख
इस योजना को लेकर मंत्रालय को दुनिया के उन तमाम विकसित देशों से सबक मिला है जो बहुत पहले से ही उद्योग जगत की मांग के आधार पर अपने विश्वविद्यालयों, कॉलेज और स्कूलों में स्पेशल कोर्सेज को लेकर पाठ्यक्रम चला रहे हैं। इसमें अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, द.कोरिया, स्वीडन जैसे देश शामिल हैं। मंत्रालय के स्तर पर उदाहरण के लिए अमेरिका में साइंस स्ट्रीम से पढ़ने वाला बच्चा फिजिक्स-मैथ्स का पेपर देने के साथ ही अगर बच्चा चाहता है कि वो एक पेपर इलेक्ट्रॉनिक मैनेजमेंट और दूसरा आर्ट का दे तो वो दे सकता है। हम देश में ऐसी व्यवस्था करने जा रहे हैं कि अगर कोई बच्चा अपने कॉलेज से बाहर डेटा मैनेजमेंट करना चाहता है तो उसे चाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम के जरिए सुविधा दी जाएगी। इससे हम इंडस्ट्री को सीधे एम्प्लॉयबल छात्र सीधे दे पाएंगे।

भारत में धीमाी है रफ्तार
भारत में उद्योगों से जोड़कर विशेष कोर्सेज चलाने की रμतार धीमी है, जिसके अगर अगले शैक्षणिक सत्र तक देश के लगभग 5 हजार कॉलेजों में केंद्र-राज्यों की मदद से लागू कर दिया गया तो इंडस्ट्री की शिकायतें काफी हद तक दूर हो जाएगी। यहां बता दें कि भारत में बम्बई, तमिलनाडु, गुजरात में इसे लेकर काफी काम हुआ है। असम की डिब्रूगढ़ यूनीवर्सिटी के बाहर पेट्रोलियम इंडस्ट्री है। यूनिवर्सिटी अपने कैंपस में कई पेट्रोलियम संबंधी कोर्सेज चलाती है, जिससे बच्चों को पास होने के बाद तुरंत रोजगार मिल जाता है। लेकिन राज्यों में शिक्षा मंत्रियों से लेकर राज्य प्रशासन को इसे व्यापक पैमाने पर लागू किए जाने की जरुरत है।

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