रविवार, 22 मार्च 2015

तो सुरक्षित नहीं मध्य-प्रदेश में महिलाओं की असमिता?

कविता जोशी.नई दिल्ली

राजधानी दिल्ली से लेकर समूचे देश में महिलाआें के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाआें की बात करें तो यह तथ्य अब जगजाहिर हो चुका है कि महिलाएं घर और बाहर कहीं पर सुरक्षित नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा जारी किए ताजातरीन आंकड़ों के हिसाब बलात्कार के मामलों में मध्य-प्रदेश की हालत बेहद खराब नजर आ रही है। मप्र बलात्कार के मामलों में महाराष्टÑ के बाद दूसरे नंबर पर है। इसे देखकर यह प्रश्न खड़ा होना लाजमी है क्या मप्र में महिलाओं की असमिता सुरक्षित नहीं है?

महिलाआें के खिलाफ होने वाले अपराधों का रिकॉर्ड रखने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हिसाब से तीन वर्षों (वर्ष 2011 से 2013 तक) का ट्रेंड देखे तो उसमें बलात्कार के मामलों में साल-दर-साल इजाफा देखने को मिल रहा है। वर्ष 2011 में जहां महिलाओं के खिलाफ होने वाले बलात्कार के कुल 75 हजार 744 मामले दर्ज किए गए। इसमें अकले मध्य-प्रदेश में 13 हजार 323 मामले दर्ज किए गए। साल 2012 में बलात्कार के मामलों की बात करें तो इनमें साफ इजाफा देखने को मिला और यह 79 हजार 447 पर पहुंच गया। 2013 आते-आते इन मामलों की संख्या 1 लाख 17 हजार 35 पर पहुंच गई। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।

मंत्रालय द्वारा इस बाबत जारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्टÑ में बलात्कार के सबसे ज्यादा 13 हजार 827 मामले दर्ज किए गए हैं। आंध्र-प्रदेश में बलात्कार के 13 हजार 267 मामले दर्ज किए गए हैं। उधर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि सरकार महिलाआें के खिलाफ होने वाले बलात्कार के मामलों के बढ़ रहे ग्राफ और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है। संशोधित क्रिमिनल कानून 2013 बनने के बाद बलात्कार के मामलों में ज्यादा सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है।

मंत्रालय ने कार्यस्थल पर महिलाआें का शारिरिक उत्पीड़न रोकने के लिए 2013 में कानून बनाया जिसमें सार्वजनिक और निजी जगहों पर काम करने वाली सभी महिलाओं को संरक्षण प्रदान किया जाएगा।

बलात्कार जैसे संगीन अपराध में नहीं घटेगी नाबालिग की उम्र

कविता जोशी.नई दिल्ली

साल 2012 में देश की राजधानी में हुए निर्भया बलात्कार मामले के बाद चारों ओर से इस इस तरह के कुकृत्य में शामिल नाबालिग किशारों की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 करने को लेकर संसद की महिला एवं बाल बाल विकास संबंधी मामलों की संसदीय समिति ने विराम लगा दिया है। समिति ने हाल ही में केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किशारों की उम्र को घटाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। ऐसा करने से इस तरह के अपराधों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगेगी। अब समिति की सिफारिशों के मसौदे को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विभिन्न संबंधित मंत्रालयों को सुझाव देने के लिए भेज दिया है। यह जानकारी यहां महिला प्रेस क्लब में बीते 8 मार्च को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने महिला
पत्रकारों से बातचीत में दी।

आरोपियों को मिलेंगे दो मौके
केंद्रीय मंत्री ने संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसके मुताबिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में संलिप्त किशोर की आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करना समस्या का समाधान नहीं है। समिति ने अपने 71 पृष्ठों के दस्तावेजों में कहा है कि बलात्कार के आरोप में पकड़े गए 16 वर्षीय किशोर को दो मौके दिए जाने चाहिए। पहला अपराध करते हुए उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की समिति के समक्ष पेश किया जाए जिसमें डॉक्टर, मनोचिकित्सक, जज और सामाजिक कार्यकर्त्ता मौजूद होंगे। वो किशोर से प्रश्न करेंगे और उसकी मानसिक स्थिति का समझने की कोशिश करेंगे। इसके बाद उसे बाल सुधार गृह भेज दिया जाएगा। इसके बाद जब वो 21 साल का होगा तो फिर से यही समिति से उससे दुबारा पड़ताल करेगी। अगर इस पड़ताल में उसका व्यवहार, मानसिक स्थिति ठीक रही तो उसे रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन अगर उसकी स्थिति संदेहास्पद लगी तो उसे जेल भेजा जाएगा।

मौजूद सत्र में आएगा विधेयक
बलात्कार जैसे मामलों में पकड़े गए किशारों को लेकर मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए संशोधनों के प्रस्ताव को सभी संबंधित मंत्रालयों से उनके सुझाव मंगाने के लिए भेज दिया गया है। केंद्रीय मंत्री का कहना है कि जल्द ही उन्हें अन्य विभागों की राय भी मिल जाएगी। इसके बाद वो इस संशोधित विधेयक को संसद के मौजूदा बजट सत्र में ही संसद की मंजूरी के पेश करेंगी।

इस आयु सीमा में कम हैं मामले
देश में बलात्कार के मामलों में किशारों की भागादारी का आंकड़ा मात्र 1.2 फीसदी है। अपराधियों से जुड़ा बाकी आंकड़ा इससे अधिक उम्र वालों का है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मात्र 1.2 फीसदी के लिए कानून में बदलाव करना उचित नहीं है। गौरतलब है कि अमेरिका जैसे विकसित देश में भी बलात्कार के मामलों में आरोपी किशोरों को एक बार 12 साल की आयु में और दोबारा 14 वर्ष का होने पर दोबारा पूछताछ की जाती है।

एनजीओ की राय
इस तरह के मामलों पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों की अपनी राय में तीन मुख्य बातें कही हैं। कुछ का कहना है कि बलात्कार के आरोप में शामिल किशोरों को युवा मानकर सजा देनी चाहिए, कुछ संगठनों का कहना है कि माफ कर देना चाहिए जबकि कुछ कहते हैं कि कैटेगिरी बनाकर मामले की पड़ताल की जानी चाहिए।

झज्जर में पूर्व सैनिकों की रैली को संबोधित करेंगे सेनाप्रमुख

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

हरियाणा के झज्जर में सेनाप्रमुख दलबीर सिंह सुहाग शनिवार 14 मार्च को पूर्व सैनिकों की एक बड़ी रैली को संबोधित करेंगे। यह पहला मौका होगा जब सेनाप्रमुख अपने गृह-राज्य हरियाणा जाकर सेना के सेवानिवृत रणबांकुरों से इतने बड़े पैमाने पर सीधे बातचीत करेंगे। यहां राजधानी में थलसेना मुख्यालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि हरियाणा राज्य की सेना में बड़ी भागीदारी है। आंकड़ों के हिसाब से यहां कुल 46 हजार पूर्व सैनिक रहते हैं। रैली का आयोजन झज्जर के न्यू पुलिस लाइंस में किया जाएगा। यहां बता दें कि सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी हरियाणा के झज्जर जिले के बिसान गांव रहने वाले हैं। सेना के सूत्रों ने सेनाप्रमुख के रैली संबंधी कार्यक्रम के दौरान उनके अपने गांव बिसान जाने की योजना की पुष्टि नहीं की है।

सूत्र ने कहा कि सेनाप्रमुख जनरल सुहाग की रैली का आदर्श वाक्य ‘सम्मान, सेहत, सहुलियत और सहायता’ है। 14 मार्च को सुबह 8 बजे से शुरू होने वाली वीर सेनानी रैली में राज्य के लगभग 30 हजार सेवानिवृत फौजियों के आने की संभावना है। इसके अलावा 300 वीर-नारियां, पूर्व सैनिकों की विधवाएं और तमाम निर्भर परिवारों के लोग भी रैली में शामिल हो सकते हैं। रैली में हरियाणा के 9 जिलों से सेवानिवृत सैनिकों के आने की उम्मीद है। इसमें झज्जर, रोहतक, जिंद, सिरसा, हिसार, भिवानी, फत्तेहाबाद, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी शामिल हैं।

रैली में पूर्व सैनिकों, वीर नारियों, शहीदों की विधवाओं से जुड़े मामलों के तत्काल निपटारे के लिए कुछ स्टॉल भी लगाए जाएंगे। इनके जरिए लोगों की समस्याओं का तत्काल निपटारा किया जाएगा। पेंशन से जुड़े मामले, चिकित्सा सुविधा, पूर्व सैनिकों को दी जाने वाली कॉंट्रीब्यूटरी हेल्थ स्कीम (ईसीएचएस) कार्डस और सीएसडी कार्डस शामिल है। इसके अलावा रैली स्थल पर ही एक मेडिकल कैंप भी लगाया जाएगा। इसमें जरूरतमंद रोगियों को देखने के लिए 9 विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे। रैली में 3 हजार वीर नारियों, शहीदों की विधवाओं और सेवानिवृत सैनिकों को सम्मानित किया जाएगा। विधवाओं और सेवानिवृत सैनिकों को वित्तीय सहायता भी दी जाएगी।

दो वर्षों में 35 बार हवा में बंद हुए सुखोई के इंजन

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

बीते दो वर्षों के दौरान कई बार वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई के इंजन में खराबी की खबरों ने रक्षा मंत्रालय के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है। इंजन में इन समस्याआें को लेकर रूस से लगातार विचार-विमर्श किया जा रहा है। यहां मंगलवार को राज्यसभा में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सांसद डॉ.चंदन मित्रा के प्रश्न के जवाब में इस तथ्य को स्वीकार किया कि सुखोई-30 एमकेआई विमानों के बीच हवा में इंजन बंद होने या फिर इंजन संबंधी समस्याआें की बीते जनवरी 2013 से दिसंबर 2014 तक कुल 35 घटनाएं हुई हैं।

विमान के अपने बेस से उड़ान भरने के बाद इंजन में होने वाली समस्याआें से तकनीकी मामलों को नियंत्रित रखने और इनका निराकरण करने के लिए मूल रूसी उपस्कर विनिर्माता (ओईएम) ने कई उपाय शुरू किए हैं। ओईएम ने एरोइंजनों के उपयोग के दौरान एहतियाती-संभावित रखरखाव संबंधी क्रियाकलापों का परामर्श दिया है। पर्रिकर ने सदन को बताया कि ओईएम ने नए एरोइंजनों के उत्पादन में और इंजनों के ओवरहॉल के दौरान कार्यान्वयन के लिए 9 संशोधनों या प्रौद्योगिकीय सुधारों का प्रस्ताव दिया है।

उन्होंने कहा कि बारंबार फेल होने वाले कलपुर्जों के लिए मूल रूसी उपस्कर विनिर्माता के साथ मिलकर प्रचालनात्मक विश्वसनीयता सुधार कार्यक्रम चलाया जा रहा है। प्रचालनात्मक उपयोग के लिए विमानों की उपलब्धता में सुधार करने के लिए वायुसेना ने भी मूल रूसी उपस्कर विनिर्माता के साथ दीर्घकालिक मरम्मत समझौतों को अंतिम रूप दिया है। ओईएम की सलाह के हिसाब से वायुसेना द्वारा एरोइंजनों के उपयोग के दौरान संभावित रखरखाव का कार्यान्वयन किया गया है। इसके अलावा संशोधित प्रौद्योगिकी युक्त 25 नए इंजनों की रूस से अधिप्राप्ति की गई है।

मंगलवार, 17 मार्च 2015

बिना बिजली के चल रहे 5 लाख से अधिक सरकारी स्कूल

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

एक ओर केंद्र सरकार स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च-शिक्षा का तेजी से कायाकल्प करने को लेकर आकर्षक योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में लगी हुई है। वहीं देश में 5 लाख से अधिक सरकारी स्कूल ऐसे हैं जो अंधेरे में चल रहे हैं और वहां बिजली तक नहीं पहुंच पाई है। इस मामले में मध्य-प्रदेश अव्वल है। राज्य के कुल 98 हजार 290 स्कूल बिना बिजली के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। बिजली विहीन स्कूलों के मामले में बड़ी जनसंख्या वाला राज्य उत्तर-प्रदेश भी शामिल है। यहां के 86 हजार 148 स्कूल बिना बिजली के चल रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में सांसद आयनुर मंजूनाथा और विजय जवाहरलाल दर्डा के प्रश्न के लिखित जवाब में दी।

अपने जवाब में ईरानी ने सदन को बताया कि देश के कुल 30 राज्यों में बिना बिजली के 5 लाख 57 हजार 882 सरकारी स्कूल चल रहे हैं। इसमें छत्तीसगढ़ में 22 हजार 427 सरकारी स्कूल बिना बिजली के चल रहे हैं। हरियाणा में यह आंकड़ा 214 है। इसके अलावा बिहार में 68 हजार 976 सरकारी स्कूल बिना बिजली के चल रहे हैं। पश्चिम-बंगाल में बिजली विहीन स्कूलों का आंकड़ा 49 हजार 286 पहुंच गया है। जम्मू-कश्मीर में ऐसे स्कूलों की संख्या 20 हजार 409 है। ओडिशा में 43 हजार 971 स्कूल बिना बिजली के चल रहे हैं। राजस्थान के 51 हजार 933 सरकारी स्कूल बिना बिजली के चल रहे हैं।

नकस्लवाद प्रभावित झारखंड में 37 हजार 96 स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं है। असम में 41 हजार 670 स्कूल ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है। गुजरात में बिजली विहीन स्कूलों का आंकड़ा 100 से नीचे 97 है। केंद्रीय मंत्री का कहना है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के तहत राज्यों को हर साल अपने यहां स्कूलों में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए आर्थिक अनुदान राशि दी जाती है। लेकिन इसके बावजूद इतने स्कूलों में बिजली ना पहुंचना चिंताजनक है।

चार शीर्ष आईआईटी संस्थानों को निर्देशकों की दरकार

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

उच्च-शिक्षा के मामले में सकल नामाकंन दर (जीईआर) बढ़ाने से लेकर सरकार शिक्षा के मामले में चाहे कितनी ही आकर्षक घोषणाआें की झड़ी लगाने की मंशा पाले हो। लेकिन दूसरी ओर एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि देश के तकनीकी शिक्षा के 4 शीर्ष प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में निर्देशकों के पद बीते लगभग सालभर से खाली पड़े हैं। यह जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में सांसद प्यारीमोहन महापात्र के प्रश्न के लिखित जवाब में दी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आईआईटी रोपड में निर्देशक का पद बीते वर्ष 1 जून से खाली है। आईआईटी इंदौर में निर्देशक का पद इसी वर्ष 1 जनवरी से खाली है। इसके अलावा आईआईटी पटना में निर्देशक का पद बीते वर्ष 18 जुलाई और आईआईटी भुवनेश्वर में निर्देशक का पद बीते वर्ष 18 अगस्त से खाली पड़ा हुआ है।

उन्होनें सदन को बताया कि आईआईटी रोपड़, भुवनेश्वर, खड़गपुर और कानपुर में निर्देशक के अलावा रजिस्ट्रार के पद भी खाली पड़े हुए हैं। गौरतलब है कि बीते वर्ष 1 जनवरी से आईआईटी में स्वीकृत फैकेल्टी की संख्या 6 हजार 944 है। इसमें से 4 हजार 308 पद भरे गए हैं और 2 हजार 636 पद खाली पड़े हुए हैं। आईआईटी पटना में भी रजिस्ट्रार नहीं है। लेकिन वहां इस पद को भरे जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। आईआईटी खड़गपुर में रजिस्ट्रार का चयन किया गया है। कानपुर में भी चयन प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

ईरानी ने कहा आईआईटी निर्देशकों की नियुक्ति दो चरणों से होकर गुजरती है। चयन समिति के सामने आवेदन करने वाले निर्देशक के प्रदर्शन का मूल्याकंन किया जाता है। अगर उनका प्रदर्शन संतोषजनक पाया जाता है तो उन्हें एक और सत्र के लिए नियुक्ति दे दी जाती है। यदि प्रदर्शन संतोषजनक ना हो तो पद को विज्ञापित कर चयन प्रक्रिया का दूसरा चरण आरंभ किया जाता है। इस प्रक्रिया को पूरा करने में 6 महीने का समय लगता है। रजिस्ट्रार के मामले में आईआईटी के पास पद को स्वयं भरने का अधिकार है। 

पांच साल में भारत-पाक सीमा पर बनेंगी 41 सड़कें

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत, चीन के साथ करीब 3 हजार किमी. से अधिक लंबी सीमा साझा करता है। इसके पश्चिमी और पूर्वी छोरों पर कई जगहों पर बॉर्डर का स्पष्ट निर्धारण ना होने की वजह से विवाद चल रहा है। भारत ने ताजा घोषणा की है कि आगामी पांच वर्षों (2015-19) में वो चीन के साथ पड़ने वाली अपनी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब कुल 41 सामरिक सड़कों का जाल बिछाएगा। यहां राज्यसभा में मंगलवार को सांसद नरेश गुजराल के प्रश्न के लिखित जवाब में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत-चीन सीमा पर कुल 73 सामरिक सड़कों का निर्माण किया जाना है। इसमें 61 सड़कें सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। बीआरओ ने अब तक 19 सड़कों का निमार्ण कार्य पूरा कर लिया है और 24 सड़कों को कनेक्टिविटी दे दी है। अब बाकी बची 41 सड़कों के निमार्ण कार्य का श्रीगणेश करना है।

रक्षा मंत्री ने उच्च सदन को बताया कि मौजूदा वर्ष 2015 में 16 सामरिक सड़कों का निर्माण किया जाएगा। इसके अगले वर्ष 2016 में 13 सड़कें, 2017 में 9, 2018 में 2 और 2018 के बाद 2 सड़कों को बनाया तय किया गया है। यहां बता दें कि जिन 73 सड़कों का एलएसी के करीब जाल बिछाया जाना है उनकी कुल लंबाई 3 हजार 410 किमी. है। यह निर्माण 2012 तक पूरा किया जाना था। लेकिन निर्माण कार्य में देरी के पीछे सड़क परियोजनाओं को पर्यावरण और वन मंजूरी मिलने में देरी, सख्त चट्टानें, कार्य करने के लिए सीमित मौसम का होना, निर्माण के लिए जरूरी सामग्री का मौजूद ना होना, भूमि अधिग्रहण में देरी के अलावा लेह में 2010 में आई बाढ़, जम्मू-कश्मीर में 2014 में आई बाढ़ और 2011 में सिक्किम में आए भूकंप जैसे कारणों की वजह से बीआरओ के संसाधनों का इस्तेमाल सामरिक सड़कें बनाने के अलावा बाकी कामों में होता रहा।

पर्रिकर ने कहा कि बॉर्डर सड़कों के निर्माण कार्य में तेजी लाने के लिए नई सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं। हमने राज्यों के मुख्य सचिवों की अध्यक्षता में विशेषाधिकार समिति के गठन करने को कहा है, जिसमें संबंधित विभाग के सचिव को सदस्य के रूप में शामिल किया जाए। यह समिति मिलकर भूमि-अधिग्रहण, पर्यावरण और वन मंजूरी समेत अन्य बाधाओं का निपटारा करेगी। पर्यावरण मंत्रालय ने एलएसी के 100 किमी. के दायरे में आने वाले सड़क परियोजनाओं को जनरल अप्रूवल दिया, बीआरओ के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकारों में इजाफा किया गया है। लॉग टर्म रोल आॅन वर्क प्लान (एलटीआरओडब्ल्यूपी) में पुरानी सड़कों के उन्नतीकरण और नए निर्माण कार्य के लिए सेना ने करीब 461 सड़कों का चयन किया है। इस परियोजना के लिए 21 हजार 333 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं।

लड़कियों की शिक्षा का स्तर सुधारेगी ‘डिजीटल एटलस’

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

स्कूली शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी को दुरूस्त करने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने डिजीटल जेंडर एटलस जारी की है। इसमें देश
के हर इलाके में प्राथमिक-माध्यमिक से लेकर उच्च-माध्यमिक स्तर तक लड़कियों की शिक्षा की मौजूद स्थिति का व्यापक विशलेषण दिया गया है। यहां सोमवार को डिजीटल एटलस की विशेषताओं के बारे में बताते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में सचिव वृंदा स्वरूप ने कहा, इस एटलस में देश के सभी भागों में लड़कियों की स्कूली शिक्षा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। एटलस राज्य, ब्लॉक, जिला स्तर तक पहुंचकर लड़कियों की शिक्षा के बारे में बारीक आंकड़ें देती है। इसे मंत्रालय ने संयुक्त राष्टÑ बाल कोष (यूनीसेफ) के साथ मिलकर तैयार किया है। मंत्रालय की वेबसाइट पर जेंडर एटलस का लिंक दिया गया है, जिससे कोई भी इसे आसानी से देख सकता है।

यह एटलस लड़कियों की शिक्षा के मामले में देश में कम प्रदर्शन करने वाले इलाकों के बारे में विस्तार से जानकारी देती है। इसमें पिछड़े हुई जाति-जनजातियों और मुस्लिम अल्पसंख्यकों में शिक्षा का लैंगिग स्तर भी दिखाया गया है। इस एटलस का राज्य सर्वशिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान से लेकर अन्य योजनाओं के लिए अपने यहां के चुनौतिपूर्ण इलाकों का चयन करके केंद्र को बजटीय प्रस्ताव बेहतर ढंग से बनाकर भेज सकते हैं। इसके अलावा राज्यों को इसके जरिए लड़कियों की शिक्षा को लेकर सटीक नीति बनाने में मदद मिलेगी।

एचआरडी मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव रीना रे ने कहा कि इस एटलस के डेटा को हम हर साल अपडेट करेंगे। इसमें एक खास फ फीचर यह है कि राज्यों की कैटेगिरी में जहां कोई राज्य अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। वहीं राज्य का विस्तृत विशलेषण करने पर उसके जिला और ब्लॉक स्तर के सूचक अच्छे नहीं हैं। कुछ राज्यों में जिला स्तर पर सूचक अच्छे हैं तो राज्य स्तर पर लड़कियों की शिक्षा की हालत ठीक नहीं है। एटलस को बनाने में यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजूकेशन (यू-डीआईएसई का 2011-14 का डेटा), 2011 की जनगणना और डिस्ट्रिक्ट लेवल हेल्थ सर्वे 2007-08 के आंकड़ों की मदद ली गई है।

एटलस में लड़कियों की शिक्षा के मामले में सबसे खराब हालत नक्सल प्रभावित झारखंड राज्य की है। एटलस बताती है कि झारखंड के कुल 24 जिलों में से 21 जिले लड़कियों की शिक्षा के मामले में पिछड़े हुए हैं। यह 21 जिले ऐसे हैं जहां लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

हरियाणा में 4 चुनौतिपूर्ण जिले हैं। छग में 12 और मप्र में 21 चुनौतिपूर्ण जिले हैं, जिनमें लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। यहां बता दें कि भारत में प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक स्तर पर स्कूलों में दाखिले की लड़कियों की नामांकन दर अच्छी है। लेकिन उच्च-माध्यमिक स्तर पर यह कम बन हुई है। स्कूली शिक्षा में आधी आबादी लड़कियों की है। लेकिन उसके बाद भी शैक्षणिक स्तर पर उनकी घट रही भागीदारी पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

महिला दिवस पर सम्मनित हुई हरियाणा-मप्र की नारियां

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यहां राजधानी में वितरित किए गए स्त्री शक्ति और नारी शक्ति पुरस्कारों में दो पुरस्कार हरियाणा और मध्य-प्रदेश को मिले हैं। यहां एक कार्यक्रम में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने नारी शक्ति पुरस्कार हरियाणा की लत्तिका थुकराल को दिया। मध्य-प्रदेश की सीमा प्रकाश को नारी शक्ति श्रेणी में केंद्रीय मंत्री ने पुरस्कृत किया। स्त्री शक्ति पुरस्कार मप्र को 1, राजस्थान को 2, केरल को 1, महाराष्ट्र को 1 और गोवा को 1 पुरस्कार मिला है। नारी शक्ति पुरस्कार दिल्ली-तमिलनाडु को 2-2 पुरस्कार, यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड को 1-1-1 पुरस्कार मिला है। दिल्ली की रशमी आनंद और नेहा कीरपल को पुरस्कृत किया गया है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक लत्तिका थुकराल आई एम गुडगांव (आईएमजी) गैर-सरकारी संगठन की सहसंस्थापकों में से एक हैं। इसके अलावा उन्होंने अरावली बॉयोडायवर्सिटी पार्क प्रोजेक्ट, मिलियन ट्रीज गुडगांव और राहगिरी मूवमेंट की शुरूआत की है। आई एम गुडगांव संगठन की 2008 में स्थापना के बाद ही यह लगातार बढ़ रहा है और गुडगांव के लोगों के जीवन से जुड़े हर पहलु पर सकारात्मक ढंग से काम कर रहा है। संगठन की ओर से शुरू किए गए राहगिरी मूवमेंट में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काफी काम किया गया है। सत्तत विकास को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है। पर्यावरण के लिए बेहतर यातायात के संसाधनों के प्रयोग पर यह जोर देता है। आज यह संगठन गुडगांव में बेहद सफल है। बाकी शहरों में इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। लत्तिका ने सिटीबैंक में 18 साल नौकरी करने के बाद अपनी आकर्षक नौकरी
को छोड़कर मानव सेवा की भावना से इस कार्य को शुरू किया और आज उनका यह प्रयास गुडगांव के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान दे रहा है।

मध्य-प्रदेश की सीमा प्रकाश को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने नारी शक्ति श्रेणी में रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया। सीमा प्रकाश मप्र की पिछड़ी हुई कारकू जाति को बचाने के लिए वर्ष 2000 से लगातार काम कर रही हैं। यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है और इनके बच्चों में पोषक आहारों की कमी की वजह से कुपोषण, घरेलू समस्याएं और माइग्रेशन जैसी समस्याएं बहुत ज्यादा देखने को मिलती हैं। सीमा के संगठन स्पंदन समाज सेवा समिति कारकू जाति के लिए बीते एक दशक से अधिक समय से काम कर रही हैं।

उन्होंने आंगनवाड़ी केंद्रों को बच्चों की सुविधाओं के हिसाब से विकसित करने के उद्देश्य से करीब 100 केंद्रों को कपड़े, खिलौने और अन्य जरूरी सामान उपलब्ध करवाया है। इसके अलावा गूंज एनजीओ की मदद से छोटे बच्चों के लिए कारकू भाषा में ही पढ़ाई की सामग्री भी तैयार करवाई हैं। रोजाना मजदूरी करने वाली महिलाओं के लिए 10 सामुदायिक क्रेचों की स्थापना भी सीमा ने की है, जिसमें इनके तीन साल से छोटे बच्चों को रखा जाता है। इन्होंने जाति की अपनी यानि कारकू भाषा में ही पठन सामग्री विकसित करके इनके विकास में सराहनीय योगदान दिया है। सीमा ने जाति के लिए 40 ग्रेन बैंकों की स्थापना भी की है और क्लॉथ फॉर वर्क नामक एक आकर्षक योजना भी शुरू की है।

राष्ट्रपति करेंगे प्रथम विश्वयुद्ध के शताब्दी समारोहों का आगाज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

प्रथम विश्वयुद्ध के शताब्दी समारोहों की सोमवार से भारत में औपचारिक शुरूआत हो जाएगी। यहां सोमवार को सुबह साढ़े ग्यारह बजे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर 100 वर्ष पहले हुए ऐतिहासिक युद्ध में बलिदान देने वाले भारतीय शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि इस अवसर पर प्रथम विश्वयुद्ध में योगदान करने वाले दुनिया के अन्य देशों के राजदूत, उच्चायुक्त, सैन्य-अधिकारी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी मौजूद रहेंगे।

गौरतलब है कि प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सेना एक स्वैच्छिक सेना के तौर पर ब्रिटिश साम्राज्य के अंग के रूप में शामिल हुई थी। क्योंकि उस वक्त देश आजाद नहीं हुआ था। सेना मुख्यालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के हिसाब से भारत से करीब 1.5 मिलियन सैनिक युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से दुनिया के अलग-अलग भागों में लड़ाई लड़ने के लिए भेजे गए थे। इस दौरान लड़ाई में लगभग 74 हजार सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी। इनकी याद में अंग्रेजों ने इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक का निर्माण करवाया था।

आयोजनों की इस कड़ी में मंगलवार को सुबह 9 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। इसके बाद 4 बजे उप-सेनाप्रमुख युद्ध समाधिस्थल बरार स्क्वॉयर, दिल्ली कैंट से सेवानिवृत अधिकारियों की दौड़ को हरिझंडी प्रदान करेंगे। यह दौड़ धौलाकुंआ के पास स्थित मानेकशॉ सेंटर पर आकर खत्म होगी। इसके बाद 6 बजे राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी मानेकशॉ सेंटर युद्ध से जुड़ी प्रदर्शनियों को उद्घघाटन करेंगे। 11 मार्च को प्रदर्शनी को शाम 4 से 6 बजे के बीच आम-पब्लिक के लिए खोला जाएगा। 12 मार्च को प्रदर्शनी को शाम 4 से 7 बजे तक स्कूल और कॉलेज के बच्चों (गैलेंट्री हॉल, सेकरीफाइज हॉल, आॅउटडोर एक्जीबीसन) के लिए खोला जाएगा। 7 से 8 बजे का समय सैन्य अधिकारियों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए तय किया गया है। 13 मार्च को समारोहों के समापन वाले दिन प्रदर्शनियों को आम जनता के अलावा सैन्य अधिकारी, सेवानिवृत
अधिकारी अपने परिवार के सदस्यों के साथ देख सकेंगे। 

विभाजन के बाद पाकिस्तान को मिले तीन विक्टोरिया क्रॉस

कविता जोशी.नई दिल्ली

भारत के निकटतम प्रतिद्वंदी और शत्रु राष्टÑ पाकिस्तान की सेना ने क्या कभी भारतीय सेना के साथ कं धे से कंधा मिलाकर जंग लड़ी थी। सवाल कुछ अजीबो-गरीब सा जरूर जान पड़ता है। लेकिन गलत नहीं है। करीब 100 वर्ष पहले प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौरान ऐसा हुआ था। जब करीब 1.5 मिलियन की स्वैच्छिक भारतीय सेना ब्रिटिश साम्राज्य की आन-बान-शान बचाने के लिए दुनिया के अलग-अलग इलाकों में लड़ी थी। इस 1.5 मिलियन में तत्कालीन भारत और अब के पाकिस्तान दोनों के रणबांकुरों ने अपना सर्वस्व न्यौच्छावर किया था।

तीन विक्टोरिया क्रॉस गए पाकिस्तान
यहां राजधानी में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि प्रथम विश्व युद्ध में आमने-सामने की लड़ाई में शत्रु को दिखाई बहादुरी के लिए 11 भारतीय सैनिकों को उस समय सर्वोच्च सैन्य अलंकरण विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। इनमें से 3 विक्टोरिया क्रॉस विभाजन के बाद पाकिस्तान
चले गए। इनमें 129 वां ड्यूक आॅफ कनॉट्स आॅन बलूचिस के खुदादाद खान (1914 प्रथम विश्व युद्ध), 81 वीं पंजाबी 1916 प्रथम विश्व युद्ध के शाहमाद खान और 55 वीं कोक राइफल्स के मीर दस्त को मिला विक्टोरिया क्रॉस शामिल है। इन तीनों ने बेल्जियम (होलेबेके, विल्टजे), मेसोपोटामिया में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लड़ाईयां लड़ी। 11 में से 2 विक्टोरिया क्रॉस नेपाल चले गए। जिनमें एक 4 प्रिंस आॅफ वेल्स आॅन गोरखा राइफल्स के कुलबीर थापा और 4 प्रिंस आॅफ वेल्स आॅन गोरखा राइफल्स के करण बहादुर राणा को मिला था। युद्ध में शामिल 9 वीं भोपाल 17 पंजाब के रूप में पाकिस्तान चली गई।

सोमवार से भारत में आयोजन शुरू
भारत में आगामी सप्ताह में सोमवार से प्रथम विश्व युद्ध के शताब्दी समारोहों की शुरूआत होगी। 9 मार्च को राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रंद्धाजलि देंगे। इस अवसर पर इंडिया गेट पर फ्रांस के सेनाप्रमुख सहित बेल्जियम, ब्रिटेन, इटली, आॅस्ट्रेलिया, जर्मनी, पाकिस्तान, अफगानिस्तान (उच्चायुक्त), बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल के राजदूत मौजूद रहेंगे। प्रथम विश्व युद्ध में भारत की ओर से कुल 1.5 मिलियन सैनिक भेजे गए। इनमें 74 हजार 362 शहीद हुए। भारत द्वारा ब्रिटेन को दी गई वालंटियर सेना के सैनिकों की संख्या कनाड़ा, आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण-अफ्रीका की ओर से भेजी गई सेनाओं की कुल संख्या के बराबर थी। अंग्रेजों की ओर से लड़ने वाला हर छठा भारतीय उप-महाद्वीप से था।

विक्टोरिया क्रॉस सम्मान
विक्टोरिया क्रॉस प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान आमने-सामने की लड़ाई में शत्रु को दिखाई बहादुरी के लिए भारतीय सैनिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च अलंकरण था। वास्तव में भारतीय सैनिक विक्टोरिया क्रॉस के लिए पात्र नहीं थे। इसके बजाय उन्हें सर्वोच्च अलंकरण के तौर पर ‘इंडियन आॅर्डर आॅफ मेरिट’ का सम्मान दिया जाता था। इसकी स्थापना 1837 में की गई थी। 19 वीं शताब्दी के अंत तक भारतीय सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी तथा 1911 में भारतीय सैनिक इस पुरस्कार के लिए पात्र घोषित हो गए।

तटरक्षकबल के पश्चिमी तट पर एडीजी बसरा की नियुक्ति

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सरकार की ओर से नियुक्त तटरक्षक बल के पश्चिमी तट के अतिरिक्त महानिदेशक एस.पी.एस बसरा ने बुधवार को कार्यभार संभाल लिया है। उन्हें इंपेक्टर जनरल यानि आईजी के पद से प्रोन्नति देकर तटरक्षकबल का एडीजी, पश्चिमी तट बनाया गया है। तटरक्षकबल द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक मौजूदा परिदृश्य में तेजी से बढ़ रही सामुद्रिक चुनौतियों, तटीय सुरक्षा को मजबूत करने, समुद्री गश्त और निगरानी बढ़ाने, प्रदूषण से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने, तटीय सुरक्षा तंत्र के बीच समन्वय स्थापित करने के अलावा भारत के इस तट के आस-पास मौजूद विशिष्ट आर्थिक जोन (ईईजेड) की वृहद निगरानी के लिए इस नए पद का सृजन किया गया है। दूसरे अर्थों में समझे तो सरकार ने समूचे पश्चिमी-तट पर तटरक्षकबल द्वारा की जाने वाली सभी गतिविधियों-अभियानों की अध्यक्षता या जिम्मेदारी एडीजी बसरा को सौंपी है।

एडीजी (पश्चिम) बसरा तटरक्षकबल के इस क्षेत्र में पड़ने वाले तमाम अभियानों की निगरानी करेंगे। बल के पश्चिमी क्षेत्र में महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल जैसे राज्य और एल और एम द्वीप भी शामिल होंगे। इसके अलावा तटरक्षकबल के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में समुद्र से लगे राज्य गुजरात, दमन और दीव की जिम्मेदारी भी एडीजी बसरा संभालेंगे।

गौरतलब है कि बीते वर्ष 31 दिसंबर की देर रात गुजरात तट से करीब 350 किमी. दूर समुद्र में विस्फोस्कों से लदी एक संदिग्ध पाकिस्तानी नौका को पकड़ने और नौका में सवार लोगों द्वारा खुद को विस्फोटकों से उड़ा लेने के मामले में तटरक्षकबल के डीआईजी बी.के.लोशाली जांच का सामना कर रहे हैं। इस अभियान के दौरान उनकी तैनाती तटरक्षकबल के डीआईजी के तौर पर सूरत में थी। लेकिन इस अभियान के कुछ दिन बाद आए उनके विवादित बयान के तुरंत बाद उनका स्थानांतरण तटरक्षकबल के गांधीनगर मुख्यालय में कर दिया गया था। जांच रिपोर्ट आने तक डीआईजी लोशाली वहीं तैनात रहेंगे। अपने बयान में डीआईजी लोशाली ने कहा था कि संदिग्ध पाक नौका को तटरक्षबल द्वारा ही धमाका कर उड़ाया गया। इस बयान के बाद पाकिस्ताान ने भारत की कड़ी आलोचना की थी। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इस बयान से भारत की छवि को गहरा आघात पहुंचा था।

सेना के मारक बेड़े की शान बढ़ाएगी ‘आकाश मिसाइल’

कविता जोशी.नई दिल्ली

थलसेना के बेड़े में जल्द ही एक बेहद अचूक मारक अस्त्र शामिल होने वाला है, जिसे हम मध्यम दूरी की आकाश मिसाइल (एसएएम) के नाम से जानेंगे। इस महीने के अंदर आकाश मिसाइल को सेना में शामिल कर लिया जाएगा। हरिभूमि को मिली जानकारी के मुताबिक सेना को कुल 12 आकाश मिसाइलें मिलेंगी।

पूरी तरह से स्वदेशी
रक्षा मंत्रालय में मौजूद उच्चपदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि आकाश मिसाइल को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारत डॉयनामिक्स लिमिटेड, हैदराबाद (बीडीएल) ने मिलकर तैयार किया है। इस मिसाइल से जुड़े सभी फील्ड परीक्षण पूरे हो गए हैं और अब मार्च महीने के अंदर इसे सेना को सौंपने की तैयारी चल रही है।

आकाश की खुबियां
मध्यम दूरी की आकाश मिसाइल जमीन से हवा (एसएएम) में प्रहार करने वाली मिसाइल है। इसकी मारक क्षमता 25 किमी. है। पहाड़ी युद्धक मोर्चा पर ऊंचाई के हिसाब से यह मिसाइल सतह से 20 किमी. तक ऊपर उठकर दुश्मन के ठिकानों पर सीधे अपने प्राणघातक वार से निशाना लगा सकती है। एयर डिफेंस कवच के लिए जरूरी दुश्मन के साथ लड़ाई के वक्त अपने रडारों, पुलों, सैन्य मुख्यालयों जैसे जरूरी सामरिक-रणनीतिक ठिकानों की हिफाजत के लिए सेना एयर डिफेंस कवच बनाती है। इस कवच में मिसाइलों की बेहद अहम भूमिका होती है। आकाश मिसाइल भी सेना के इसी महत्वपूर्ण एयर डिफेंस कवच का हिस्सा बनेगी।

1996-97 के बाद से नहीं खरीदी मिसाइल
भारत का मिसाइल कार्यक्रम बेहद पुराना है। वर्ष 1996-97 के बाद से लेकर अब तक कोई भी मिसाइल सेना के लिए खरीदी नहीं जा सकी है। सेना एसएएम की चार श्रेणियों को अपने बेड़े में शामिल करने की योजना बना रही है। इसमें बेहद कम दूरी, मध्यम दूरी, कम दूरी और तुरंत प्रतिक्रिया (क्विक रिएक्शन मिसाइल) करने वाली मिसाइलें शामिल हैं। इनमें मध्यम दूरी की आकाश मिसाइल मार्च में सेना में शामिल हो जाएगी। बाकी के प्रशिक्षण चल रहे हैं।

गोपनीय सूचना लीक मामले में रक्षा मंत्रालय ने जारी की एडवाइजरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्रालय से गोपनीय सूचनाआें के लीक को लेकर मचे बवाल के मामले में मंत्रालय ने अपने विभिन्न विभागों के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को एडवाइजरी जारी की है, जिसमें उन्हें टेलिफोन पर कम बोलने से लेकर बातचीत के दौरान बेहद सर्तक रहने को कहा गया है। रक्षा मंत्रालय के विश्वसनीय सूत्र ने हरिभूमि को बताया कि पेट्रोगेट जासूसी मामले में मंत्रालय के एक कर्मचारी की गिरμतारी की घटना के बाद एहतियात के तौर पर यह एडवाइजरी सभी विभागों को जारी की गई है। उधर मंगलवार को एक अंग्रेजी दैनिक में यूपीए सरकार में रक्षा मंत्री रहे ए.के.एंटनी और पूर्व सेनाप्रमुख जनरल बिक्रम सिंह के बीच बीते वर्ष फरवरी में हुई गोपनीय बातचीत के पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को लीक किए जाने की खबर भी दिनभर रक्षा
मंत्रालय में चर्चा का विषय बनी हुई रही।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस बाबत संसद भवन में पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है। उन्होंने यूपीए सरकार में पूर्व रक्षा मंत्री और पूर्व सेनाप्रमुख की बातचीत के मामले से जुड़े तथ्यों की पड़ताल की है, जिसमें कोई तथ्य नहीं मिला है। इसका सीधा सा अर्थ है कि इस तरह की कोई घटना हुई ही नहीं है। इस मामले में किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर पूछे गए प्रश्न के जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा कि जब ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं तो किसी तरह की कार्रवाई का कोई सवाल ही नहीं उठता।

एडवाइजरी के मुताबिक मंत्रालय के तमाम अधिकारियों को लैंडलाइन और मोबाइन फोन के जरिए किसी भी गोपनीय जानकारी के आदान-प्रदान करने पर रोक लगाई गई है। फोन पर किसी से भी टू द पाइंट बात करने को कहा गया है। जिस नंबर से फोन आया है और उस व्यक्ति को कॉलबैक करना बेहद जरूरी है तो पहले रक्षा मंत्रालय की आधिकारिक डॉयरेक्ट्री में उसका नाम और प्रोफाइल जांचना अनिवार्य है। इसके बाद ही उसे कॉल-बैक किया जाएगा। एडवाइजरी में साइबर सिक्योरिटी से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण पहलुओं का ध्यान रखने की भी हिदायत दी गई है। इसमें कंप्युटर सिस्टम्स में पैन ड्राइव, हार्ड-डिस्क इत्यादि के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है।

होली के मौके पर पूर्व सैनिकों को मिलेगी ओआरओपी की सौगात

कविता जोशी.नई दिल्ली

सशस्त्र सेनाओं के पूर्व अधिकारियों को होली के मौके पर सरकार की ओर से समान रैंक-समान पेंशन (ओआरओपी) की सौगात मिल सकती है। इस बाबत रक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए एक वृहद प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय ने अपनी स्वीकृति दे दी है और अब रक्षा मंत्रालय इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए आगामी एक-दो दिन में होने वाली केबिनेट की बैठक में भेजने की तैयारी कर रहा है।

रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि मंत्रालय के वित्त मामलों के विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से इसे मुद्दे पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल ही में विस्तार से चर्चा की। इसके बाद ओआरओपी को लेकर जारी की जाने वाली धनराशि और किस तरह से इसका वितरण किया जाना है जैसी तमाम बारीकियों का खाका तैयार किया गया। यहां बता दें कि रक्षा मंत्रालय की ओर से ओआरओपी के प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय भेजने की खबर को मंगलवार को हरिभूमि ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

13 हजार करोड़ से अधिक की राशि मंजूर
सूत्र ने बताया कि रक्षा मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक ओआरओपी के लिए 13 हजार करोड़ रूपए से अधिक की धनराशि जारी की जा सकती है। मंत्रालय ने अपने नोट में सेनाआें के सेवानिवृत अधिकारियों-जवानों को लेकर दो श्रेणियां बनाई हैं। पहले को ‘एक्स’ समुह नाम दिया गया है और दूसरे को ‘वाई’ समुह बनाया गया है। इसके अलावा देश की सुरक्षा में बलिदान करने वाले शहीदों की विधवाओं को भी ओआरओपी का लाभ दिया जाएगा।

रक्षा मंत्री ने पूरा किया वादा
बीते 28 फरवरी को संसद में आम-बजट पेश करते हुए जब वित्त मंत्री अरूण जेटली ने ओआरओपी के मुद्दे पर एक शब्द अपने भाषण में नहीं कहा तो लंबे समय से इस मुद्दे पर संघर्ष कर रहे इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) ने तुरंत टेलिफोन के जरिए रक्षा मंत्री से बात करके इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। इसके बाद सोमवार को संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री से मुलाकात कर प्रत्यक्ष रूप से भी अपने पक्ष को रखा। इस मुलाकात के दौरान भी रक्षा मंत्री ने ओआरओपी को लेकर अपना वादा पूरा करने की बात कही थी। उनका कहना था कि मंत्रालय इस मुद्दे पर तेजी से काम में लगा हुआ है। जल्द ही हम इस बाबत घोषणा करेंगे।

25 लाख पूर्व सैनिकों को मिलेगा लाभ
ओआरओपी के लिए अगर सरकार जरूरी धनराशि जारी कर देती है तो इससे सीधे सेनाओं के करीब 25 लाख पूर्व कर्मियों को फायदा मिलेगा। यहां बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने बीते वर्ष लोकसभा चुनावों में जारी अपने चुनावी घोषणापत्र में भी कहा था कि वो ओआरओपी को उनकी पार्टी की सरकार बनते ही लागू करेंगे। ओआरओपी को लेकर यूपीए सरकार ने लोकसभा चुनावों से पहले 500 करोड़ रूपए जारी किए थे। इसके बाद 26 मई को नई सरकार के गठन के बाद भी इसे जल्द ही अमलीजामा पहनाने की बात कही गई थी।  

वित्त मंत्रालय की मंजूरी के लिए भेजा गया ओआरओपी प्रस्ताव

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सशस्त्र सेनाओं में समान रैंक-समान पेंशन (ओआरओपी) को लागू करने के लिए एक वृहद प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय की मंजूरी के लिए भेज दिया है। जैसे ही वित्त मंत्रालय की मंजूरी मिल जाएगी। इसे केबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (सीसीपीए) की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। यह बातें यहां राजधानी में सोमवार को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईएएसएम) के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान कही। यहां बता दें कि हरिभूमि ने इस बाबत बीते 28 फरवरी को ऐसे तो पटरी पर नहीं दौड़ेगा सेनाआें की आधुनिकीकरण अभियान शीर्षक से एक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिसमें ओआरओपी पर वित्त मंत्री जेटली द्वारा बजट भाषण में एक भी शब्द ना कहे जाने पर आईएएसएम की ओर नाराजगी जताने का भी जिक्र किया गया था।

रक्षा मंत्रालय और आईएएसएम के सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक रक्षा मंत्री ने दोपहर 2 बजे उनके पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और ओआरओपी को लेकर एनडीए सरकार द्वारा बीते वर्ष लोकसभा चुनाव के दौरान सेनाओं के पूर्व अधिकारियों से किए गए वादे को पूरा करने का भरोसा दिलाया। रक्षा मंत्री ने कहा कि बीते शनिवार यानि 28 फरवरी को वित्त मंत्री अरूण जेटली के बजट भाषण में ओआरओपी पर एक भी शब्द ना कहने का मतलब यह नहीं है कि सरकार अपने वादे को पूरा नहीं करेगी।

पिछले वर्ष 2013-14 के बजट भाषण में ओआरओपी के लिए एक अलग मद का एलान किया जा चुका है। इससे पहले यूपीए के अंतरिम बजट में भी इसे स्वीकृति दी गई थी। ऐसे में अबकी बार फिर से धनराशि की घोषणा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आईएएसएम के सदस्यों ने 28 फरवरी को वित्त मंत्री के बजट भाषण के तुरंत बाद ही रक्षा मंत्री को फोन करके अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी।

उन्होंने कहा कि मंत्रालय ओआरओपी को लेकर एक्सपेंडिचर के मसले पर विचार कर रहा है। इस मुद्दे पर मैंने मंत्रालय के तमाम अधिकारियों से भी बात की है। उनका कहना है कि ओआरओपी सशस्त्र सेनाआें की ओर से आई जायज मांग है। मंत्रालय की ओर से एक्स और वाई समुह के लिए अलग- अलग व्यवस्था की जाएगी। इसमें सेनाओं की सभी रैकों के अलावा शहीदों की विधवाओं को भी शामिल किया जाएगा।

प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई आईएएसएम के अध्यक्ष सेवानिवृत मेजर जनरल सतबीर सिंह से नी। उनके साथ कर्नल कीर्ति जोशीपुरा, कर्नल अनिल कौल, विंग कमांडर सीके शर्मा, ग्रूप कैप्टन वीके गांधी और मेजर डीपी सिंह मौजूद थे। बैठक के बाद आईएएसएम के अध्यक्ष सतबीर सिंह ने कहा कि हमें रक्षा मंत्री के ओआरओपी को लेकर दिए गए स्पष्ट बयान के बाद इस मुद्दे पर किसी तरह का कोई शक नहीं है। उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा पहली बार है जब ओआरओपी का सुरक्षित हाथों में होने और जल्द ही इसे मंजूरी मिलने का हमें भरोसा है। रक्षा मंत्री की ओर से उनकी बात पूरी तरह से सुनी गई और उनकी मांग को पूरा करने का आवश्वासन दिया गया। मूवमेंट जल्द ही रक्षा मंत्री को अपने प्रमुख मुद्दों को लिखित में भेजेगा।

रक्षा विभाग चमकाने को यूजीसी ने मंगवाए प्रस्ताव

कविता जोशी.नई दिल्ली

देश में रक्षा शोध व अनुसंधान का स्तर सुधारने के लिए रक्षा मंत्रालय ने कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए देश के कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में रक्षा और सामरिक मामलों के विभागों को उन्नत बनाने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पांच प्रमुख विश्वविद्यालयों से प्रस्ताव मंगवाए हैं, जिसमें इलाहबाद विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, पुणे विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय शामिल हैं।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के कहा कि यूजीसी ने स्नातक-पूर्व/स्नातकोत्तर और एम फिल/ पीएचडी स्तर पर रक्षा और सामरिक अध्ययन के मौजूदा पाठ्यक्रम की समीक्षा करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की है। यूजीसी ने 12 वीं योजना (2012-17) अवधि के दौरान देश में 10 विश्वविद्यालयों में रक्षा और सामरिक अध्ययनों के विभाग को उन्नत बनाने के लिए सहायता देने का निर्णय भी लिया है। शुरूआत में पांच विश्वविद्यालयों से रक्षा और सामरिक अध्ययन के मौजूदा को उन्नत बनाने के लिए प्रस्ताव मंगाए हैं।

गौरतलब है कि रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) देश में रक्षा और सामरिक अध्ययन के क्षेत्र में विशेषज्ञ शिक्षा प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालयों/अकादमियों के साथ कार्य कर रहा है। इसके अलावा यूजीसी ने कॉलेज स्तरीय पाठ्यक्रमों में रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कैरियर ओरियंटेड कोर्सेज को लागू किया है। इसमें बीए, बीकॉम, बीएससी जैसे कोर्सेज में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और एडवांस डिप्लोमा स्तर के कोर्स शामिल है। जो कॉलेज/विश्वविद्यालय इसे लागू करेंगे उन्हें पांच साल के लिए ह्युमेनिटीज और कॉमर्स कोर्सेज के लिए यूजीसी 7 लाख और साइंस कोर्सेज के लिए 10 लाख का अनुदान देगी। अभी तक 6 विश्वविद्यालयों और 516 कॉलेजों को यूजीसी ने इस योजना के तहत 793 कार्सेज चलाने के लिए मंजूरी दी है।

यूजीसी ने कॉलेजों में कम्युनिटी कॉलेजों के जरिए उद्योगों के साथ टाइअप करके स्किल आधारित वोकेशनल शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए के्रडिट बेस्ड मॉड्यूलर प्रोगाम्स को शुरू किया है। अभी तक दिशानिर्देंशों के मुताबिकों यूजीसी ने 157 संस्थानों को मंजूरी दी है। इस योजना के तहत 76 स्किल क्षेत्रों की आवश्यकताआें की पूर्ति की जा सकती है।

शिक्षा बजट में .40 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी

68 हजार 728 करोड़ से बढ़ाकर 68 हजार 998 करोड़ हुआ।
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

शिक्षा, कौशल और युवा ये तीन शब्द शनिवार को लोकसभा में वित्त मंत्री अरूण जेटली के बजट भाषण 2015-16 में साफ सुनाई दे रहे थे। इससे साफ है कि यह तीनों बिंदु शिक्षा के मामले में सरकार के केंद्र पर हैं। लेकिन शिक्षा क्षेत्र के लिए इस वर्ष में दी गई धनराशि और उसमें बीते वर्ष की तुलना में इजाफे का आकलन करें तो इस बार शिक्षा क्षेत्र के बजट में मात्र .40 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है। बीते वर्ष सरकार ने शिक्षा क्षेत्र का बजट 68 हजार 728 करोड़ रूपए आवंटित किया था। इस वर्ष यह राशि 68 हजार 998 करोड़ रूपए की गई है।

शिक्षा बजट की धनराशि वित मंत्री ने .40 फीसदी बढ़ाकर 68 हजार 998 करोड़ रूपए की है। लेकिन इसका एक आकर्षक बिंदु महिलाआें और खासकर ग्रामीण इलाकों में सस्ती शिक्षा मुहैया पर जोर देने के एलान के साथ किया गया है। बजट में महिला बैंक से लेकर युवाआें में कौशल बढ़ाने के कारक पर ध्यान केंद्रित करने पर भी वित्त मंत्री ने जोर दिया। बजट भाषण में जेटली ने महिला शिक्षा के लिए महिला बैंक एजूकेशन लोन की सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की। इससे लड़कियों और महिलाआें
को एजूकेशन लोन लेने में सुविधा होगी। प्रधानमंत्री विद्या लक्ष्मी योजना के जरिए भी छात्र-छात्राआें को लोन देने की बात कही गई है। ग्रामीण इलाकों में बच्चों को बेहतर शिक्षा सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। वित्त मंत्री ने स्कूलों में शौचालय ना होने की वजह से लड़कियों के बीच में ही स्कूल छोड़ने की समस्या पर कहा कि बीते वित्तीय वर्ष में हमने 50 लाख शौचालय बना लिए हैं। भविष्य में इसे 6 करोड़ करने का हमारा लक्ष्य है। शिक्षा उपकर एवं माध्यमिक एवं उच्च-शिक्षा उपकर शमिल किए जाएंगे।

उच्च और तकनीकी शिक्षा जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), इंडियन इंस्ट्टीट्यूट आॅफ इंफॉरमेंशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) खोलने को लेकर वित्त मंत्री ने अपने बजट पिटारे से कुछ चुनिंदा जगहों के नामों का एलान किया है। इसमें वित्त वर्ष 2015-16 में कर्नाटक में आईआईआईटी और आंध्र-प्रदेश में आईआईएम खोलने की घोषणा की गई है। इसके अलावा जम्मू में भी आईआईएम खोलने की घोषणा की गई है। यहां बता दें कि बीते वर्ष वर्ष वित्त मंत्री ने 5 नए आईआईटी (जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, गोवा, आंध्र-प्रदेश, केरल) और 5 आईआईएम खोलने की घोषणा की थी। जिसमें हिप्र, बिहार, पंजाब, ओडिशा, महाराष्टÑ शामिल हैं। सरकार ने आईएसएम धनबाद को भी आईआईटी में तब्दील करने की घोषणा की है।

युवाआें के लिए शिक्षा को रोजगारोनोमुखी बनाने के लिए कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए नेशनल स्किल मिशन को जारी करने की घोषणा की। इसके अलावा दीन दयाल कौशल विकास योजना का दायरा बढ़ाने का वित्त मंत्री ने एलान किया है। इसके अलावा अटल नवोन्मेष मिशन में शिक्षाविदों को शामिल करने की बात कही है, जिसके लिए वित्त मंत्री ने 150 करोड़ रूपए का प्रावधान बजट में किया है।

ऐसे तो पटरी पर नहीं दौड़ेगा सेनाओं का आधुनिकरण अभियान

ओआरओपी पर वित्त मंत्री की खामोशी से नाराजगी
कविता जोशी.नई दिल्ली

वित्त मंत्री अरूण जेटली के बजट पिटारे से जब शनिवार को लोकसभा में रक्षा बजट 2 लाख 29 हजार करोड़ रूपए से बढ़ाकर 2 लाख 46 हजार करोड़ रूपए करने की घोषणा की गई तो रक्षा मामलों के जानकारों समेत सेना के सेवानिवृत अधिकारियों ने एक स्वर में कहा कि इतनी धनराशि रक्षा क्षेत्र के लिए पर्याप्त नहीं है। जानकार सेनाओं के सेवानिवृत अधिकारियों और जवानों के लिए की जाने वाली एक रैंक एक पेंशन (ओआरओपी) को लेकर वित्त मंत्री द्वारा पूरे बजट भाषण में कोई एलान ना किए जाने से भी खासे नाराज हैं। यहां बता दें कि अगर ओआरओपी पर सरकार घोषणा करती तो सेनाओं के करीब 25 लाख सेवानिवृत अधिकारियों को फायदा पहुंचता।

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ विंग कमांडर (सेवानिवृत) प्रफुल्ल बक्शी ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि रक्षा बजट 2.26 लाख करोड़ से 2.46 करोड़ किया गया है। यह इस क्षेत्र में 7.42 फीसदी का इजाफा है जो कि पर्याप्त नहीं है। जब तक रक्षा बजट हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3 फीसदी नहीं होगा तब तक सेनाओं की आधुनिकीकरण से लेकर चुनौतीपूर्ण युद्धक मोर्चों (पश्चिमी(पाक-चीन से लगी सीमा)-पूर्वी सेक्टर(चीन से लगी सीमा) पर इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से निर्माण और उन्नतिकरण का कार्य पूरा नहीं हो सकता है।

पूर्वोत्तर में रेल-रोड़ का मजबूत ढांचा विकसित करने के अलावा सरकार के सामने पुरानी हवाई पट्टियों क ा अपग्रेडेशन का लक्ष्य सामने खड़ा है। पूर्वोत्तर में चीन से लगी सीमा पर एक नई माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन का कार्य चल रहा है। ऐसे में पानागढ़ (प.बंगाल) से लेकर पश्चिमी सीमा में लेह-लद्दाख तक इंफ्रास्ट्रक्चर की पूरी चेन बनाने के लिए बहुत अधिक धनराशि की आवश्यकता है। भारत की ज्यादातर सैन्य जरूरतें विदेशों से सैन्य उपकरणों आयात करने पर निर्भर है।

इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) के अध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत) सतबीर सिंह ने कहा कि हम वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लेकर बेहद आश्वस्त थे। लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में ओआरओपी पर एक शब्द भी नहीं कहा। इससे हम हैरान और नाराज दोनों हैं। ओआरओपी को लेकर कुछ दिन पहले जब हमारा प्रतिनिधिमंडल रक्षा मंत्री से मिला जिसमें सेनाप्रमुख जनरल सुहाग भी मौजूद थे। रक्षा मंत्री ने उस वक्त कहा था कि मैं वित्त मंत्री से इस बारे में बात करूंगा कि वो ओआरओपी पर 28 फरवरी के बजट में घोषणा करे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हमारी लड़ाई जारी रहेगी। जहां तक सुरक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने का मसला है यह राशि नाकाफी है। जब तक देश की सुरक्षा चाक-चौबंद नहीं होगी विकास कैसे होगा, दूसरे देश निवेश के लिए कैसे आश्वस्त होंगे। यह महत्वपूर्ण सवाल अब भी बने हुए हैं।

रक्षा-सामरिक मामलों के विशेषज्ञ मेजर जनरल अफसर करीम (सेवानिवृत) ने कहा कि देश की सेनाआें की वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए यह बजट नाकाफी है। इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर काम चल सकता है। लेकिन सेनाआें कीआधुनिकीकरण योजना को इस राशि से परवान चढ़ाना मुश्किल है। सैन्य मामलों में जरूरतें पूरा करने के लिए रक्षा बजट को जीडीपी का कम से कम 3 फीसदी से अधिक होना चाहिए। मेक इन इंडिया के जरिए आत्मनिर्भर होने में कम से कम 15 साल का समय लगेगा। ओआरओपी पर कोई घोषणा ना होने से लेकर हमें निराशा हुई हैं।

एवरो रिप्लेसमेंट विमान सौदे को मिल सकती है डीएसी की मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में शनिवार को होने वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में वायुसेना के लिए 56 एवरो विमानों की जगह पर खरीदे जाने वाले नए विमानों के सौदे को मंजूरी दी जा सकती है। एवरो विमानों से जुड़ा एक प्रस्ताव बीते वर्ष दिसंबर 2014 में हुई डीएसी की बैठक में भी रखा गया था। लेकिन उस वक्त परिषद में इस पर सहमति नहीं बन पायी थी और रक्षा मंत्री ने वायुसेना को यह निर्देंश दिया था कि इस मामले में वो जल्द ही विस्तृत विशेषज्ञ समीक्षा के साथ एक प्रेजेंटेशन दें।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक आम बजट के दिन रखी गई डीएसी की यह बैठक दोपहर करीब साढ़े तीन बजे शुरू होगी और इसका समापन करीब 5 बजे के बाद होगा। इसमें सशस्त्र सेनाओं में से वायुसेना के ज्यादा प्रस्तावों को मंजूरी मिल सकती है। यह भी संभावना है कि वायुसेना के लिए पिलाट्स प्रशिक्षु विमानों की खरीद सौदे को भी मंजूरी मिल जाए। बैठक में थलसेना के लिए रेडियो सेटों की खरीद से जुड़े प्रस्ताव को भी मंजूरी दी जा सकती है।

बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर करेंगे। इसके अलावा बैठक में थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन, रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.सी.पति मौजूद रहेंगे। गौरतलब है कि बीते वर्ष 10 नवंबर को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की यह तीसरी डीएसी की बैठक है। उनकी अध्यक्षता में डीएसी की पहली बैठक 22 नवंबर को हुई थी। इसके बाद दूसरी बैठक दिसंबर महीने में हुई जिसमें करीब 4 हजार 446 करोड़ रूपए के रक्षा सौदोंं को मंजूरी दी गई।  

देश में महिलाओं को साक्षर करने की चुनौती बरकरार

पुरूषों की तुलना में कम है महिलाआें में साक्षरता दर
कविता जोशी.नई दिल्ली

बीते वर्ष 26 मई को देश की सत्ता पर काबिज हुई राजग सरकार के वित्त मंत्री अरूण जेटली ने शुक्रवार को लोकसभा में आर्थिक समीक्षा 2014-15 का जो दस्तावेज रखा उसमें पुरूषों की तुलना में महिलाओं में शिक्षा की कमी की चुनौती का बने रहना स्वीकार किया है। दस्तावेज के मुताबिक वर्ष 2011 की जनगणना में देश में कुल 73 फीसदी साक्षरता प्राप्त हुई है। इसमें पुरूषों के 80.9 फीसदी के मुकाबले महिलाओं में साक्षरता की दर 64.6 फीसदी पर बनी हुई है। इन आंकड़ों के हिसाब से पुरूषों और महिलाओं के बीच साक्षरता की दर का अंतर लगभग 20 फीसदी का बना हुआ है।

इससे इतर आर्थिक समीक्षा का एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया है कि पुरूषों में महिलाओं की तुलना में साक्षरता की दर तो अधिक है लेकिन महिलाओं में इसमें ज्यादा तेजी से इजाफा हुआ है। पुरूषों में साक्षरता की दर 5.6 फीसदी के हिसाब से बढ़ी जबकि महिलाओं में यह 10.9 के हिसाब से बढ़ी है। समीक्षा में सरकार शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से बेहतर करने और उच्च-शिक्षा को रोजगारोनोमुखी बनाने के लक्ष्य को साफ तौर पर इंगित करती हुई नजर आ रही है। देश की उच्चतर शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे बड़ी शिक्षा प्रणलियों में से एक है। वर्ष 2013-14 में विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व डिप्लोमा स्तर के संस्थानों की संख्या बढ़कर क्रमश: 713, 36 हजार 739, 11 हजार 343 हो गई है। सरकार चाहती है कि मांग को आपूर्ति के बराबर किए जाने और रोजगार के अवसरों के हिसाब से शिक्षा नीति में बड़े बदलाव लाए जाने की जरूरत है।

भ्रूण हत्या और महिला साक्षरता दर बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा शुरू की गई ‘बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ’ योजना का जिक्र करते हुए कहा है कि इसका उद्देश्य समाज की मानसिकता बदलना व जागरूकता फैलाना है। इससे लड़कियों की शिक्षा व अन्य संबंधित मुद्दों का समाधान हो जाएगा। समीक्षा बताती है कि भारत में शिक्षा प्रणाली के समग्र मानक ग्लोबल मानकों के हिसाब से बेहद नीचे हैं। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर पढ़ने-सीखने और गणितीय दक्षता का एक माहौल बनाने के लिए पढ़े-भारत बढ़े-भारत नामक पहल एक अच्छा कदम है। शिक्षा में कौशल कारक और शैक्षणिक सुधार से जुड़ी तमाम योजनाआें को आर्थिक समीक्षा में शामिल किया गया है।