सोमवार, 29 दिसंबर 2014

चीन द्वारा जलभंडारों पर कब्जे ने बढ़ाई भारत की चिंता

कविता जोशी
यूं तो चीन का भारत के साथ पश्चिमी से लेकर पूर्वी सीमा तक अंतरराष्ट्रीय सीमा का स्पष्ट निर्धारण ना होने की वजह से लंबे समय से विवाद चल रहा है। दुनिया इस विवाद को जमीनी विवाद के नाम से जानती है। लेकिन अब चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति या जिसे हम जमीनी कब्जे की लड़ाई के नाम से भी जानते हैं के रूख को पानी के विशाल भंडारों पर कब्जे की ओर मोड़ना शुरू कर दिया है। पानी के लगभग यह सभी विशाल भंडार चीन के कब्जे वाले तिब्बत में मौजूद हैं। पानी के इन्हीं स्रोतों से भारत की भी बड़ी आबादी का भरण-पोषण होता है। चीन लंबे समय से इस इलाके में बांधों की एक के बाद एक छोटी-बड़ी लड़ियां खड़ी करने में लगा हुआ है, जिससे भारत के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगी हैं। इसके वाजिब कारण भी है क्योंकि चीन (तिब्बती पठार) से निकलने वाली यह नदियां वहां से होकर भारत में प्रवेश करती हैं। भौगोलिक आधार पर इसे समझे तो इस मामले में चीन को नदियों के स्रोत का मालिक (अपर रीपाराइन स्टेट) भी कहा जाता है। अब अगर वो तिब्बत से निकलने वाली प्रमुख नदियों पर बांध बनाएगा तो उससे भारत को नदी के जलप्रवाह में होने वाले बदलाव से लेकर, चीन द्वारा संकट के समय भारत में ज्यादा पानी छोड़े जाने से बाढ़ का खतरा होगा। इसके अलावा भूसस्खलन जैसी विकराल समस्याएं भी तेजी से उठ खड़ी होंगी। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि चीन पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बांध बना रहा है। बह्मपुत्र का उदगम तिब्बत से होता है और इसके बाद यह भारत में प्रवेश कर बांग्लादेश के रास्ते बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसके अलावा भारत के माथे पर बल इसलिए भी पड़ गए हैं कि चीन लगातार बह्मपुत्र नदी पर तो बांध बना ही रहा है। साथ ही यहां से निकलने वाली अन्य नदियों जिनका ज्यादातर इलाका भारत के अन्य पड़ोसी देशों में पड़ता है को भी बांध निर्माण के लिए जरूरी तकनीकी और धन मुहैया करा रहा है। इसकी ताजा मिसाल चीन का पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लेकर म्यांमार और बांग्लादेश में बांध परियोजनाआें को लेकर चल रहा काम मुख्य रूप से शामिल है।

ब्रह्मपुत्र नदी का उदगम और इतिहास
बह्मपुत्र नदी का उदगम तिब्बत में कैलाश पर्वत के निकट जिमा यांगजांग झील है। आरंभ में यह तिब्बत के पठारी इलाके में यार्लुंग सांगपो नाम से लगभग 4 हजार मीटर की औसत ऊंचाई पर, 1700 किलोमीटर तक पूर्व की ओर बहती है। इसके बाद नामचा बर्वा पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की दिशा मेंं मुड़कर भारत के अरूणाचल-प्रदेश में प्रवेश करती है जहां इसे शियांग कहते हैं। ब्रह्मपुत्र मध्य और दक्षिण-एशिया की एक बड़ी नदी है। नदी की अधिकतम गहराई 321 मीटर है। तिब्बत में नदी सबसे गहरी है, यहां इसकी अधिकतम गहराई 321 मीटर है। शेरपुर और जमालपुर में इसकी अधिकतम गहराई 281 मीटर है। ब्रह्मपुत्र की उपनदियों में सुवनश्री, तीस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि शामिल हैं। बह्मपुत्र के किनारे बसे शहरों में डिब्रूगढ़, तेजपुर, गुवाहाटी प्रमुख हैं। यहां एक ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में नदियों के नाम स्त्रीलिंग में होते हैं लेकिन ब्रह्मपुत्र इस मामले में एक अपवाद है। इसका नाम ब्रह्मपुत्र है, जिसका संस्कृत में शाब्दिक अर्थ ब्र्रह्म्मा का पुत्र होता है। ब्रह्मपुत्र नदी की लंबाई करीब 2 हजार 918 किलोमीटर है। बांग्ला भाषा में इसे जमुना कहा जाता है। चीन में यरलुंग जैÞगंबो जियांग, तिब्बत में यार्लुंग सांगपो, अरूणाचल में दिहांग और असम में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। नदी की तिब्बत से शुरू हुई यात्रा में यह ऊंचाई को तेजी से छोड़ मैदान में प्रवेश करती है जहां इसे दिहांग नाम से जाना जाता है। असम में नदी काफी चौड़ी हो जाती है और कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर तक है। डिब्रूगढ़ तथ लखिमपुर जिले के बीच नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। असम में नदी की दो शाखाएं मिलकर मजुली द्वीप बनाती है जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। असम में नदी को लोग प्राय: ब्रह्ममपुत्र के नाम से बुलाते हैं, पर बोडो लोग इसे भुल्लम-बुथुर भी कहते हैं, जिसका अर्थ होता है कल-कल की आवाज निकालना।

चीन की बांध बनाने की क्षमता
इतिहास में चीन के अलावा दुनिया का कोई दूसरा देश नहीं है जो तेजी से बांध निर्माण के मामले में सबसे आगे हो। चीन ने ना केवल दुनिया का सबसे बड़ा थ्री जॉर्जेज बांध का निर्माण किया है। इसके अलावा चीन ने कुल 80 हजार बांधों का निर्माण किया है। यह दुनिया में हुए समूचे बांध निर्माण से भी कहीं ज्यादा है। इस वजह से उसके 23 मिलियन से ज्यादा लोगों को अपना घरबार छोड़ना पड़ा है। इन सबके बावजूद चीन अपनी नदियों के प्रवाह में दो तरीके से बदलाव करने में लगा हुआ है, जिसमें वो आंतरिक से हटकर अंतरराष्ट्रीय नदियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और उनमें बांध बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

चीन की प्रमुख बांध परियोजनाएं
-थ्री जॉर्जेज बांध-इस बांध का निर्माण कार्य वर्ष 2009 में पूरा हो गया था और इसने वर्ष 2012 मेंं काम करना शुरू कर दिया था। शिनलिंग शिया जॉर्ज पर बने इसे बांध की वजह से पूर्व में यांगजे नदी की बाढ़ की समस्या से निजात मिली। इस बांध की बिजली उत्पादन की क्षमता 22 हजार 500 मेगावाट है।

-द साउथ-नार्थ वॉटर ट्रांसफर प्रोजेक्ट (एसएनडब्ल्यूटीपी)-इसे येलो नदी पर बनाया गया है। इसे थ्री एच बेसिन के नाम से भी जाना जाता है। पंरपरागत रूप में इसे हे ही, हुवांग हे, हुई हे भरण-पोषण (बे्रड बॉस्केट) की टोकरी भी कहा जाता है। इसमें यांगजे नदी को तीन दिशाओं से जोड़ने का प्रस्ताव है, जिसे पूर्वी, केंद्रीय और पश्चिमी रूट योजना का नाम दिया गया है। दिसंबर 2002 में इसका काम शुरू हुआ। इससे करीब 44.8 बीसीएम पानी की दिशा बदलने की कोशिश की जाएगी। एक तरह से यह पानी येलो नदी के वार्षिक जलप्रवाह के बराबर है। इस परियोजना पर लगभग 80 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा। इसके पूर्वी और केंद्रीय रूट का काम साल 2014 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके अलावा पश्चिमी रूट अभी शुरू नहीं हुआ है,जिसमें योजना है कि यांगजे, ब्रह्मपुत्र और मीकांग नदी के ऊपरी भाग से पानी को परिवर्तित यानि बदलने की योजना है।

ग्रेट वेस्टर्न रूट वॉटर ट्रांसफर प्रोजेक्ट (जीडब्ल्यूआरडब्ल्यूटीपी)-
भारत की चिंता वेस्टर्न रूट स्कीम के तीसरे चरण को लेकर है, जिसमें ब्रह्ममपुत्र नदी पर बांध बनाया जाएगा। यह निर्माण कार्य ब्रह्मपुत्र नदी पर नामचा बर्वा पर ग्रेट बैंड पर किया जाएगा। इससे बिजली का उत्पादन भी होगा और जीडब्ल्यूआरडब्ल्यूटीपी के लिए नदी के पानी की जलधारा में भी बदलाव होगा। तीसरे चरण में दूसरे चरण द्वारा उत्पादित बिजली का प्रयोग किया जाएगा। इसके पूरे होने के बाद यह एक बड़ा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट होगा जिसकी क्षमता 38 मिलियन किलोवाट होगी जो कि थ्री जॉर्जेज बांध से दोगुना ज्यादा होगी। इसमें नदी के पानी के रूख में बदलाव उत्तर की ओर 800 किलोमीटर तक किया जाएगा। इस परियोजना की अनुमानित लागत 300 बिलियन यूआन (48 बिलियन डॉलर) होगी। इसके अलावा एसएनडब्ल्यूटीपी परियोजना की कुल अनुमानित लागत 500 बिलियन यूआन यानि करीब 80 बिलियन डॉलर होगी। तिब्बती पर्यावरणविद तासी शेरिंग का कहना है कि फिजिक्स के नियमों के हिसाब से इस प्रस्तावित बांध के जरिए नदी के पानी में ऊपर की ओर कोई बदलाव नहीं होगा। इसे केवल हॉइड्रोलॉजिकल उद्देश्श्यों के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है। इसकी पुष्टि सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रोफेसर बी.जी.वर्जीस ने भी की है। वैज्ञानिक तर्क जो भी हों लेकिन अगर जीडब्ल्यूआरडब्ल्यूटीपी सफल होता है तो इसके ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ी हुई भारत की जरूरतों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। खासकर ब्रह्ममपुत्र के ग्रेड बैंड पर बनाए जा रहा बांध भारत को बुरी तरह से प्रभावित करेगा।

यारलुँग सांगपो हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (वाईटीएचईपी)
यह बिलकुल सही है कि यार्लंुग सांगपो का ग्रेट-बैंड पर करीब 200 किमी. हिस्सा आएगा। जिससे दो हिस्सों में बहुत अच्छी हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर मिलेगी। पहले तो यह दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट है, जिससे करीब 70 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। दूसरी ओर यह प्रोजेक्ट ब्रह्ममपुत्र के पानी को हजारों किमी. उत्तर में अपने उत्तर- पश्चिम स्थित दो पहाड़ी इलाकों गांजू और शिनजियांग की प्यास बुझाएगा। मोटयू बांध चीन की योजना ब्रह्ममपुत्र नदी के मेटोग पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध और हाइड्रोपॉवर स्टेशन बनाने की है। यह वो जगह है जहां से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है। यहां नदी के पानी को जलाशय के रूप में एकत्रित करके उससे बिजली बनाई जाएगी। चीन की हाइड्रो चाइना कारपोरेशन द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इसकी क्षमता 38 मेगावाट के करीब होगी।

दादूकुई बांध
वर्ष 2010 में चीन की हाइड्रो चाइनाा कारपोरेशन के मुताबिक दादुकुई बांध बिलकुल भारत की सीमा पर बनाया जाएगा। इसके बड़े आकार की वजह से बिजली उत्पादन के लिए इसके 2 हजार मीटर के गिराव वाले पानी का उपयोग किया जाएगा।

जांगमू बांध
जांगमू बांध चीन वर्ष 2010 से बह्ममपुत्र नदी पर जांगमू बांध बनाने का काम कर रहा है। इसके जांगमू हाइड्रोपॉवर स्टेशन से बिजली उत्पादन शुरू हो गया है। तिब्बती पठार पर बना यह चीन का सबसे बड़ा बांध है। चीन ने इसे कुल 9 हजार 600 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया है। इसकी ऊंचाई 116 मीटर है और यह अगले साल 2015 तक पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा। तिब्बत में बने इस बांध से 510 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा। चीन ने इस परियोजना की शुरूआत में इस बांध को पांच चरणों में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसे वो अगले वर्ष तक पूरा कर लेगा।

नदियों का मालिक है चीन?
चीन के इलाके से 10 नदियां बहती हैं। यह वो नदियां हैं जो चीन के कब्जे वाले इलाके तिब्बत से होकर गुजरती हैं लेकिन करीब 11 देशों की प्यास बुझाने का काम करती हैं। यह भारत समेत वो बाकी देश हैं, जिनके साथ चीन का कुछ ना कुछ विवाद चल रहा है। दुनिया की 46 फीसदी आबादी की पानी की जरूरतें तिब्बती नदियों से ही पूरी होती हैं। इसी वजह से चीन को उसके पड़ोसियों के बीच में नदियों के मालिक (अपर रीपारियन स्टेट) का दर्जा हासिल है। पानी के भंडारों पर कब्जे को लेकर भी ड्रैगन ने अपनी चतुराई दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। उसने अपने किसी पड़ोसी देश के साथ जल संग्रह को लेकर कोई संधि नहीं की है, जिसकी वजह से वो कानूनी तौर पर भारत समेत पड़ोस के अन्य देशों के साथ तिब्बती नदियों पर जो भी गतिविधियां करता है उसमें कोई बाधाा नहीं डाल सकता या फिर सवालिया निशान नहीं लगा सकता है। सामरिक मामलों के जानकार कहते हैं कि चीन की यह नीति रही है कि वो गुपचुप तरीके से अपनी परियोजनाआें पर काम शुरू करता है, काम को तेजी से पूरा करता है, अपनी मौजूदगी को लगातार नकारता है,जिससे पानी और उससे जुड़ी बाढ़ के नुकसान की नैतिक और आर्थिक भरपाई से बचते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

चीन का जल संकट
जलीय आधार (हाइड्रोलॉजीकली) पर देखें तो चीन भी दो हैं। एक तो जलसमृद्ध दक्षिणी चीन है। यहां औद्योगिकीकरण बेहद कम है और दूसरा उत्तरी चीन है जहां उद्योगों का जमावड़ा है। यांगजे नदी इन दोनों क्षेत्रों के बीच की विभाजन रेखा है। साफ पानी के स्रातों के मामले में चीन दुनिया का चौथा बड़ा देश है, लेकिन अपनी बड़ी जनसंख्या की वजह से यह प्रति व्यक्ति उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे छोटा देश है। चीन के ज्यादातर शहरों के पास उनकी जरूरतों को पूरा करने का पानी भी नहीं है। उसका जलस्तर लगातार घट रहा है। कुएं सूख रहे हैं। नदियां, जलधाराएं, झीलें तेजी से गायब हो रही हैं। वर्तमान की बात करें तो चीन के 886 शहरों में से 110 शहर पानी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं।

दक्षिणी चीन जिसमें लगभग 700 मिलियन लोग रहते है। यह चीन के कुल भूभाग का 36.5 फीसदी है। इनके पास पानी का 4/5 भाग आता है। इसके अलावा उत्तरी चीन में जिसकी आबादी 550 मिलियन के करीब है यानि लगभग 63.5 फीसदी के पास पानी का 1/5वां भाग आता है। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो चीन की सीमाओं के भीतर दुनिया की 19.6 फीसदी आबादी रहती है, जिसकी वजह से उसकी पानी की जरूरतें बहुत ज्यादा है। बावजूद इसके चीन की पहुंच वैश्विक पानी के स्रोतों तक केवल 7 फीसदी ही है। उधर चीनी शहरों का 90 फीसदी पानी और नदियों, झीलों का करीब 75 फीसदी पानी प्रदूषित हो चुका है। सतही पानी की बात करें तो अब चीन केवल सतही (सर्फेस) पानी के लिए तिब्बती ग्लेशियरों, नदियों और झीलों पर निर्भर है। इन ग्लेशियरों के पिघलनेसे निकलने वाले पानी से चीन की दो प्रमुख नदियों यांगजे और येलो नदी का जलप्रवाह बने रहने में बेहद मदद मिलती है। वर्ष 1997 से येलो नदी चीन द्वारा डाले जा रहे औद्योगिक कचरे की वजह से सूख रही है।

चीन की पानी की जरूरतें
-चीन पानी के जरिए अपने शिनजियांग, जांझू और मंगोलिया के भीतरी इलाकों के तेजी से मरूस्थल में तब्दील होने की रफ्तार को रोकना चाहता है।
 - येलो नदी को सूखे और प्रदूषण की मार से बचाना चाहता है।
- अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करना चाहता है जो कि वर्ष 2045 तक करीब 1.6 बिलियन तक पहुंच जाएगी।
-कई क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण की वजह से उनकी जलीय आपूर्ति की मांग को पूरा करने के लिए पानी चाहिए।
-बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण के लिए पानी चाहिए।
-कृषि आधारित जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी चाहिए। तिब्बत ही है चीन का असली संकटमोचक
भौगोलिक आधार पर देखे तो मानसूनी बादलों का छोटा का टुकड़ा हिमालय पर्वत के बीच से होते हुए तिब्बत पहुंचता है, जिससे तिब्बत में 2 हजार 300
मिलीमीटर वार्षिक बारिश होती है, तिब्बती पहाड़ पानी को इकट्टा करते हैं और धीरे-तेज होते हुए यहां से निकलने वाली नदियों को नियमित जलप्रवाह
प्रदान करते हैं। इसकी वजह से तिब्बत को बड़े पैमाने पर कई नदियों का घर कहा जाता है। यह नदियां यहां से निकलकर मैदानों में जाकर बहुसंख्यक
आबादी का भरण-पोषण करती हैं। तिब्बत को एशिया का ‘वाटर टावर’ भी कहा जाता है। क्योंकि यहां कई बड़ी नदियां निकलती हैं। इन तमाम कारणों
की वजह से चीन, तिब्बत को उसके जल संकट निदान करने वाला अहम कारक समझता है। भारत में पहुंचने या बहने वाली तीन प्रमुख बड़ी नदियां चीन
से होकर ही भारत में प्रवेश करती हैं, जिसमें ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सतलुझ प्रमुख हैं।

भारत ने चीन के समक्ष जताई चिंता
तिब्बती पठार में चीन द्वारा कराए जा रहे बड़े विशालकाय बांधों के निर्माण के कार्य में कोई बड़ा विरोध आड़े ना आए। इसके लिए चीन ने भारत के विरोध जताने से पहले ही यह कहना शुरू कर दिया है कि उसके द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य की वजह से भारत को कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन फिर भी भारत की चिंता और उसे चीन के समक्ष रखना बेहद जरूरी है। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं सरहदों की दीवार से बेपरवाह होती हैं। जब वो आती हैं तो बड़े पैमाने पर विनाश और बर्बादी साथ होती है। इसकी ताजातरीन मिसाल जम्मू-कश्मीर में हमने देखी है, चिनाब नदी ने भारत में जम्मू-कश्मीर से लेकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में भी भारी तबाही मचाई थी। अब भारत, चीन से यह सुनिश्चित करने को कह रहा है कि नदी के ऊपरी इलाकों की गतिविधियों से निचले इलाके में रहने वाले लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। भौगोलिक आधार पर तिब्बती पठार का इलाका ऊपरी है और भारत इसके नीचे पड़ता है। कमोबेश यही स्थिति पश्चिम में लेह-लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल-प्रदेश तक है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने चीन के सामने रखी अपनी बात जुलाई 2014 में उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी की बीजिंग यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बह्ममपुत्र नदी को लेकर एक समझौता हुआ था। जिसमें चीन ने 15 मई से 15 अक्टूबर तक बह्ममपुत्र नदी के जलस्तर संबंधी आंकड़ों को साझा करने की बात कही थी जो कि काफी नहीं है। इस प्रतिनिधिमंडल के साथ गए पूर्व सेनाप्रमुख और वर्तमान सरकार में विदेश राज्य मंत्री वी.के सिंह ने कहा है कि वो ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का एक विस्तृत अध्ययन तैयार कराएंगे। जिससे चीन से होने वाले जल- प्रवाह के बारे में विस्तार से जानकारी मिल पाएगी। इस स्टडी के जरिए बांधों से होने वाले वास्तविक नुकसान का भी आकलन करने में मदद मिलेगी। एक ओर चीन तिब्बती पठार की नदियों का पानी खींच रहा है तो दूसरी ओर लाओस, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे देशों को बड़े बांध बनाने के लिए धन भी मुहैया करा रहा है।

चीन की तार्किक सफाई
चीन बड़ी चतुराई से अपनी सफाई में कहता है कि बह्ममपुत्र नदी पर बनाए जा रहे बांधों पर बहते पानी से बिजली उत्पादन और जल भंडारण की कोई आवश्यकता नहीं होगी। भारत और चीन के बीच जल उपयोग की कोई संधि नहीं है। इसकी वजह से भारत को चीन की जलविद्युत परियोजनाआें से लेकर उसके क्षेत्र में बहने वाली नदियों के प्रवाह की सीमित निगरानी की ही इजाजत है। यह सर्वविदित तथ्य है कि अगर ऊंचाई पर बड़ी नदियों पर बांध बनाए जाते हैं तो उनसे जल-प्रवाह में निश्चित ही बदलाव आता है। एक बार पानी का जलस्तर बढ़ने से निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बना रहता है।

ब्रह्ममपुत्र पर चीन की नजरें
ब्रह्ममपुत्र नदी पर चीन 27 और बांध बना रहा है। इस नदी का 1 हजार 625 किमी. का इलाका चीन में पड़ता है और लगभग 918 किमी. का इलाका भारत में पड़ता है। इस नदी पर बने जांगमू बांध से हर साल 25 लाख मेगावॉट बिजली पैदा होगी। जांगमू से बड़े 640 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले एक और बांध को बनाने पर चीन काम कर रहा है।

हिमालय पर बांधों की बाढ़
हिमालय की विभिन्न नदियों पर इस वक्त चीन, भारत, बांग्लादेश, पाक, भूटान, नेपाल बांध बना रहे है ं। आंकड़ों के हिसाब से इस इलाके में करीब 400 बांध प्रस्तावित हैं। तिब्बत की 32 में से 28 बड़ी नदियों पर चीन 100 बड़े बांध बना रहा है। दक्षिण पूर्व एशिया तक बहने वाली मीकांग नदी पर ड्रैगन 60 बांध बना रहा है। यह नदी तिब्बत से चीन के तमाम इलाकों से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में बहती है। इसके अलावा भारत-चीन के पड़ोसी देश 129 जल विद्युत परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। भारत छोटे और निचले इलाकों में करीब 292 बांध बना रहा है।

दूसरे देशों को आपत्ति
इरतिश व इली नदियों पर बांध बनाने का कजाकिस्तान पहले ही विरोध जता चुका है। मीकांग नदी पर चीनी बांधों से थाइलैंड, वियतनाम, लाओस और कंबोडिया को आपत्ति है। मीकांग, यांगसे, ब्रह्ममपुत्र और यलो जैसी नदियों का स्रोत तिब्बत ही है।

चीन के इन बांधों पर विश्लेषण
मोटयू बांध और दादूकुई बांधोंं को बनाने के पीछे चीन की योजना ब्रह्मपुत्र के पानी को काफी हद तक उत्तर की ओर मोड़ने की है। यह कदम एक तरह से वेस्टर्न रूट की एसएनडब्ल्यूटीपी परियोजना की पूर्ति के साथ भी जुड़ा हुआ है। एसएनडब्ल्यूटीपी के जरिए नदी के पानी को उत्तर दिशा की ओर मोड़ने से भारत और बांग्लादेश में नदी के पानी में कमी हो सकती है। दूसरे शब्दों में दोनों देशों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। अगर यह बांध भारी मात्रा में पानी को जमा करेंगे तो मानसून के सीजन में कभी भी यह बाढ़ जैसी तबाही आसानी से ला सकते हैं। जून 2000 में यार्लुंग सांगपो नदी के एक बांध टूटने की वजह से आई बाढ़ से भी काफी नुकसान हुआ था। पर्यावरण मामलों के जानकार कहते हैं कि चीनियों द्वारा यह बाढ़ से होने वाली तबाही को मापने का शुरूआती पैमाना भी हो सकता है। इसरो का एक शोध भी चीन के इस विचार की पुष्टि करता है।
इस बात की भी संभावना है कि यार्लुंग सांगपो नदी पर बनाए जा रहे यह बांध भारत के अरूणाचल-प्रदेश में बनाए जा रहे हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को भी नुकसान पहुंचा सकता है। यह परियोजना अभी शुरूआती दौर में हैं।
भारत के लिए सुझाव
भारत को चीन को नदियों के पानी को साझा करने के लिए बातचीत करने के लिए तैयार करना चाहिए जिसमें बांग्लादेश को भी साझीदार बनाना पड़ेगा। क्योंकि ब्रह्मपुत्र पर बांधों से भारत समेत बांग्लादेश को भी नुकसान होगा। इसके अलावा लाओस, थाइलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और म्यांमार जैसे प्रभावित देशों के साथ भी संयुक्त रूप से काम करना होगा। इससे सभी जरूरत के वक्त साझा रूप से अपनी समस्याआें को जब चीन के सामने रखेंगे तो वो आसानी से उनकी अनदेखी नहीं कर पाएगा। भारत समेत ऊपर बताए गए सभी देशों को एक संघ का गठन करना चाहिए जिससे वो अपनी बात को ज्यादा मजबूत ढंग से रख सकेंगे।
जरूरत इस बात की भी है कि भारत, संयुक्त राष्ट्र संधि की शर्तों को स्वीकार करे और इसमें चीन को भी जोड़ने का प्रयास करे। अगर चीन बातचीत के लिए आनाकानी करता है तो भारत को यूएन के बेहद महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंच और संसाधनों का इस्तेमाल चीन पर दवाब बनाने के लिए करना चाहिए जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश उसके साझीदार बन सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच से होने वाली आलोचना को चीन के लिए दरकिनार करना आसान नहीं होगा। भारत इसमें जल संसाधन से लेकर विदेश और रक्षा जैसे संवेदनशील मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को भी इस मसले पर बातचीत में शामिल कर सकता है।

वर्तमान में दो एमओयू हैं जो ब्रह्मपुत्र और सतलुझ के बारे में जलीय यानि हाइड्रोलॉजीकल जानकारी देते हैं। इनका नवीनीकरण वर्ष 2008, 2010 और 2013 में हो चुका है। हमें इन समझौतों का पूरी तरह से उपयोग करके इनके जरिए और भी जानकारियां जुटानी चाहिए। इसमें नदियों से जुड़ी हर छोटी- बड़ी गतिविधि के बारे में तुरंत और विस्तार से जानकारी मिलना सबसे अहम कारक है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिका के बारे में विस्तार से जानकारी मिलनी चाहिए। ब्रह्मपुत्र पर एक एमओयू 2013 में साइन हुआ है, जिसमें नदी के जलस्तर, बहाव और बारिश से नदी में आने वाले पानी के बारे में एक जून और 15 अक्टूबर को साल में दो बार जानकारी दी जाएगी। दूसरा समझौता जो कि नदी के पानी से सिंचाई को लेकर किया गया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इन प्रयासों को इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाने की पहल के रूप में देखे जा सकते हैं।

अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान के साथ भी सिंधु नदी समझौते की समीक्षा की जाए। जिससे भविष्य में पाकिस्तान के साथ की जाने वाली किसी भी संधि में चीन को भी भागीदार बनाने में मदद मिलेगी। अगर चीन किसी संधि के लिए तैयार नहीं होता है तो सिंधु नदी समझौता उस पर दवाब बनाने के लिए एक जरिया बनाया जा सकता है लेकिन इसमें भारत को अपनी सुरक्षा की गारंटी के साथ ही कोई कदम उठाना होगा। इन सबके बीच हम यह भी देख पा रहे हैं कि भारत को त्रिपक्षीय समझौते से ज्यादा लाभ होगा जिसमें उसके साथ दो मैत्रीपरक साझीदार देशों पाक और चीन को शामिल किया जा सकेगा।

चीनी जलसंकट से सबक ले भारत 
भारत को चीन के जलसंकट से सबक लेना चाहिए और उसके हिसाब से अपने जलीय संकट से बचने के उपाय करने चाहिए। राष्ट्रीय नदी जोड़ों योजना (रीवर इंटर-लिकिंग परियोजना) इस दिशा में एक अच्छी पहल कही जा सकती है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी वर्ष 2012 में दिए अपने एक आदेश में केंद्र और राज्य सरकारों को इस मामले पर एक निश्चित समय अवधि के दौरान योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन करने को कहा था।

ऐसे चीन पर दवाब बना सकता है भारत
भारत की योजना अरूणाचल-प्रदेश में करीब 25 बांध बनाने की है। अगर इन बांधों को बनाने का काम चीन के बांध निर्माण कार्य से पहले पूरा हो गया तो भारत चीन पर नदी के पानी के इस्तेमाल को लेकर दवाब बनाने के मामले में बढ़त हासिल कर सकता है। इसके बाद वैधानिक ढंग से भी इस मामले को उठाया जा सकता है। कानूनी तर्क कहता है कि जिस देश ने पहले निर्माण कार्य पूरा किया है वो प्राकृतिक संसाधनों के पहले इस्तेमाल को लेकर पहले हकदार के रूप में अपना दावा ठोंक सकता है बजाय दूसरे के। यह सवाल तब उठ खड़ा होगा जब भारत, चीन से इस मामले में बाजी मार लेगा। इससे पहले चीन ने मीकांग नदी आयोग के समक्ष एक मामले में इस तरह के किसी वैधानिक तर्क और अधिकार को स्वीकार नहीं किया था।

तिब्बत के विश्वास और भावनाआें का दोहन करने के बाद शायद चीन द्वारा वहां के प्राकृतिक संसाधनों के इस शोषण से उनके भार में कुछ कमी आ जाए। लेकिन भारत को इस मामले में बेहद सजग और चौंकन्ना रहना होगा। हमें चीन के खिलाफ अनावश्यक रूप से किसी विवाद को ना बढ़ाने की ओर जोर देना चाहिए। 

रविवार, 21 दिसंबर 2014

अंतरराष्‍टीय मंच पर छाया रहा एचआरडी मंत्रालय!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

इसी साल 26 मई को नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनी नई बीजेपी सरकार का केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय काम को लेकर कम विवादों को लेकर ज्यादा चर्चा में रहा। लेकिन इन सबके बीच एक अच्छी खबर यह रही कि एचआरडी मंत्रालय शिक्षा के मामले में अंतरराष्टीय मंच पर गहरी छाप छोड़ने में कामयाब रहा। साल 2014 के समापन और नववर्ष के आगमन के बीच बचे कुछ दिनों के फासले में अगर अंतरराष्टीय मंच पर भारतीय शिक्षा व इससे जुड़े मुद्दों की पड़ताल करें तो यह काफी असरदार दिखाई दिए। अप्रैल से दिसंबर महीने के आते-आते एचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी भारतीय शिक्षा तंत्र और उसे लेकर दुनिया के देशों से बराबर संवाद बनाए रखने में सफल रही। इनमें जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, जापान, इजराइल के अलावा नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे निकट पड़ोसी देशों से किया गया मेल-मिलाप भी शामिल है।

मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि तेजी से अपने समापन की ओर बढ़ रहे साल 2014 में अक्टूबर महीने में भारत द्वारा ‘द साउथ एशियन एसोशिएसन फॉर रीजनल कॉपरेशन’ (सार्क) के देशों की दूसरी शिक्षा शिखर बैठक की मेजबानी करना एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। बैठक में भारत समेत श्रीलंका, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालद्वीप के शिक्षा मंत्री शामिल हुए। पड़ोसी पाकिस्तान की ओर से अपने उच्च-शिक्षा विभाग के अधिकारी को भेजकर खानापूर्ति की गई। बैठक के अंत में सार्क के तमाम सहयोगी देशों ने क्षेत्रीय स्तर पर शैक्षणिक सुधारों की रफतार बढ़ाने और शिक्षा से जुड़े सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को एकजुट होकर हासिल करने को लेकर अपनी रजामंदी दी।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने सिंगापुर, जापान, मलेशिया के शिक्षा और संस्कृति मंत्रियों से मुलाकात की। इसके अलावा इजराइल, नार्वे, फ्रांस, यूके, भूटान, लातिविया, नामीबिया और जर्मनी के उच्चायुक्तों, राजदूतों से मुलाकात कर शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर भारत की स्पष्ट राय रखी। इसके अलावा 23 से 26 नवंबर को यूनेस्को ने अंतरराष्टीय सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें शारिरिक रूप से विकलांग बच्चों को लेकर सटीक नीति बनाने और इन्हें असमानता के अंधकार से निकालकर समान अधिकार प्रदान करने को लेकर दुनिया के तमाम देशों ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। भारत की ओर से मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस अंतरराष्‍टीय सम्मेलन का सह-आयोजक बना।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

सेना के स्कूलों का बढ़ाया गया सुरक्षा घेरा!

कविता जोशी.नई दिल्ली

बीते 16 दिसंबर को पाकिस्तान के पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए तालिबान समर्थित आतंकी हमले के बाद अब भारत ने भी एहतियातन अपने सैन्य स्कूलों की सुरक्षा बढ़ा दी है। देश में लगभग 275 आर्मी स्कूल हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि पेशावर हमले के बाद हमने सैन्य स्कूलों का सुरक्षा घेरा पुख्ता कर दिया है। देश के अलग-अलग भागों में स्थित सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा भी चाक-चौबंद कर दी गई है। हमले के तुरंत बाद देश में खुफिया एजेंसियों द्वारा जारी हाईअलर्ट में राज्यों की राजधानियों समेत प्रमुख शहरों, मैट्रो स्टेशनों, बस-अड्डों, रेलवे स्टेशनों की सुरक्षा बढ़ाई गई है।

ऐसे होगा सुरक्षा घेरा मजबूत
सैन्य स्कूलों से लेकर मिलिट्री संस्थानों की सुरक्षा पुख्ता करने के लिए सेना द्वारा जारी हाई-अलर्ट में एक खास किस्म के सुरक्षा उपायों को अपनाया गया है। इसमें सैन्य स्कूलों में जरूरी सुरक्षाबलों की संख्या में इजाफा करने, त्वरित कार्रवाई दलों (क्यूआरटी) द्वारा स्कूलों की लगातार निगरानी करना, आस-पास के इलाकों में मोबाइल फोन की ट्रेसिंग, स्कूलों के आस-पास संदिग्ध गतिविधि मिलने पर त्वरित कार्रवाई करने को लेकर इतंजाम किए गए हैं।

मुशरर्फ-हाफिज सईद की धमकी
भारत द्वारा सुरक्षा घेरा बढ़ाने के पीछे पेशावर हमले के ठीक बाद आए पाक के पूर्व राष्टपति और सेनाप्रमुख जनरल परवेज मुशरर्फ और मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले का सरगनाह हाफिज सईद की वो धमकी भी है, जिसमें दोनों ने पेशावर हमले के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया है। हाफिज सईद ने अपने भड़कीले भाषणों में भारत को चेतावनी देते हुए हमले करने की धमकी भी दी है। सेंट्रल जोन का गठन सेना के सूत्रों का कहना है कि भारत ने अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा के 26 जनवरी को परेड में मुख्य अतिथि बनाए जाने की पुष्टि के बाद ही तमाम संस्थानों की सुरक्षा मजबूत कर दी गई थी। सेना एक सेंट्रल जोन के जरिए अपने सभी संस्थानों, संगठनों, प्रतिष्ठानों के साथ सीधे संपर्क में है और लगातार हर गतिविधि की विस्तार से बारीक जानकारी ले रहा है। इस जोन का गठन बाकी जगहों के साथ 24 घंटों समन्वय स्थापित करने के लिए किया गया है।

वियतनाम-फिलीपींस को नौसैन्य उपकरण सौंपेगा भारत!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत इन दिनों अपनी पूर्व की ओर देखो (एक्ट ईस्ट) नीति को तेजी से आगे बढ़ाने में जुटा हुआ है। इसके तहत वियतनाम और फिलीपींस को जल्द ही नौसैन्य जहाज और हल्के युद्धपोत दिए जाएंगे। यह दोनों देश दक्षिण चीन सागर के उस विवादित द्वीपीय इलाके का हिस्सा है, जिसकी सीमाओं पर चीन ने नौ लघु रेखाएं (नाइन डैश) खींचकर अपना अकेला एकाधिकार घोषित किया हुआ है। चीन की इस दादागिरी को लेकर उसका वियतनाम, फिलीपींस,ब्रुनेई और ताइवान जैसे देशों के साथ सीमाई विवाद चल रहा है। ऐसे में भारत द्वारा नौसैन्य उपकरणों का निर्यात से इस जगह की गहमागहमी बढ़ा सकता है।

पूर्व की ओर देखो नीति
भारत ने अपनी पूर्व की ओर देखो नीति के तहत हाल में 1 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन जारी की है, जिसमें इन देशों दिए जाने वाले सैन्य-सामारिक उपकरण भी आएंगे। द.चीन सागर में चल रहे सीमाई विवाद के बीच भारत की नीति अंतरराष्टÑीय समुद्र में किए जाने वाले व्यापार में सरल-सुविधाजनक आवाजाही (फ्रीडम आॅफ नेवीगेशन) की रही है। भारत का इस इलाके से होकर एशिया प्रशांत मार्ग पर 55 फीसदी व्यापार होता है।

ऐसा है वियतनाम का नौसैन्य जहाज
वियतनाम को भारत जो नौसैन्य जहाज दे रहा है वो विशेष एल्युमीनियम हल आधारित फास्ट पेट्रोल जहाज है। इसके लिए कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसई) वियतनाम को तकनीक निविदा सौंपेगा। यह जानकारी जीआरएसई के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक रियर एडमिरल (सेवानिवृत) ए.के. वर्मा ने यहां गुरुवार को राजधानी में आयोजित एक क कार्यक्रम में दी। उन्होंने कहा कि यह सभी जहाज 37 मी. लंबे और भारतीय युद्धपोतों से आकार में 13 मी. छोटे होंगे। वियतनाम ने इस तरह के 8 जहाजों की मांग की है। इसके अलावा भारत की फिलीपींस को हल्के युद्धपोत देने की भी योजना है।

मॉरीशस को सौंपेगा ओपीवी
भारत शानिवार 20 दिसंबर को मॉरीशस को एक समुद्री गश्ती जहाज (ओपीवी) सौंपेगा। यह पहला मौका होगा जब भारत का कोई शिपयार्ड किसी अन्य देश को नौसैन्य जहाज का निर्यात करेगा। आने वाले समय में इसमें तेजी देखने को मिल सकती है। इसे सीजीएस बाराकुडा (मॉरीशस आॅफशोर पैट्रोल वेसल, एमओपीवी) नाम दिया गया है। इस परियोजना पर कुल लागत 58.5मिलियन आई है। जहाज की लं. 74.10 मी., चौ. 11.40मी. है। 1350 टन के इस जहाज की समुद्री गति (स्पीड) 22नॉट्स है। इसका प्रयोग समुद्री चोरी, डैकेती, ड्रग्स की तस्करी रोकने से जुड़े गश्ती अभियानों में किया जाएगा। सर्च एंड रेसक्यु और हेलिकॉप्टर अभियानों, छोटी सैन्य टुकड़ी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए किया जाएगा।

स्कूली शिक्षा सुधारों पर राज्यों से जनवरी में मिलेंगी ईरानी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

स्कूली शिक्षा से जुड़े हर स्तर पर सुधार और बदलाव की ख्वाहिश रखने वाली केंद्र सरकार नए साल की शुरूआत में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों और सचिवों से मुलाकात करेंगी। यह मुलाकात 6 जनवरी को होगी। यह जानकारी लोकसभा में बुधवार को सांसद जी.हरि के पूरक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि स्कूली शिक्षा- माध्यमिक शिक्षा से लेकर उच्च-शिक्षा के मुद्दों पर हम राज्यों के साथ चर्चा करते हैं और उन्हें सलाह भी देते हैं। हम शिक्षा क्षेत्र में सुधार करना चाहते हैं इसलिए हमने राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की 6 जनवरी को बैठक बुलाई है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की समीक्षा के लिए समितियों का गठन किया गया है। यूजीसी के लिए जुलाई महीने में समिति का गठन किया गया था। जिसकी अध्यक्षता यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रो.हरि गौतम कर रहे हैं। यह समिति यूजीसी के पूनर्गठन के मामले को देखेगी। सरकार को ऐसा लगता है कि यूजीसी के पूनर्गठन से वो और अधिक अच्छा काम करेगी। उन्होंने कहा कि यूजीसी के पास निर्देंशों की अनुपालना को देखने और नियामक निर्देंश पर कार्रवाई के संबंध में आगे बढ़ने के विषय को देखने के लिए कोई प्रणाली नहीं है। यूजीसी अधिनियम 1956 की समीक्षा और संशोधन के बाद उच्च-शिक्षा के क्षेत्र में उभरती हुई चुनौतियों से निपटा जा सकता है। मंत्री ने कहा कि कोई भी संस्थान तभी डिग्री दे सकता है जब वो यूजीसी अधिनियम के तहत पंजीकृत हो। इसके अलावा एचआरडी मंत्रालय के सचिव एमके शॉ की अध्यक्षता में एआईसीटीई की समीक्षा के लिए नई समिति का गठन किया गया है। विश् वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी के बारे में ईरानी ने कहा कि इस बारे में राज्य सरकारों से चर्चा की जाती है। शिक्षकों की भर्ती एक सतत प्रक्रिया है।

डीएसी ने दी 4 हजार 446 करोड़ के रक्षा सौदों को मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में बुधवार को हुई रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की बैठक में सशस्त्र सेनाआें के लिए 4 हजार 446 करोड़ रूपए के रक्षा खरीद सौदों को मंजूरी दी गई। वायुसेना के लिए एवरो विमानों के बदले की जाने वाली अन्य विमानों की खरीद के फैसले पर डीएसी ने फिलहाल कोई निर्णय नहीं लिया है। इस मामले पर रक्षा मंत्री ने वायुसेना को कहा है कि इसे मंजूरी दिलाने से पहले इस मामले पर विस्तृत विशेषज्ञ समीक्षा के साथ प्रेजेनटेशन दे।

सेना के लिए मंजूर हुए दो प्रस्ताव
थलसेना के लिए 2 हजार 84 करोड़ रूपए की दो परियोजनाओं को मंजूरी दी गई जिसमें 402 करोड़ रूपए के पी-7 हेवीलिफट पैराशूट प्लेटफॉर्म के अपग्रेडेशन को मंजूरी दी गई है। इसमें प्लेटफॉर्म और उसके नीचे लगने वाले बैग की मियाद बढ़कर 15 साल कर दी जाएगी। लॉर्सन एंड ट्युब्रो कंपनी इसे सेना को सौंपेगी। गौरतलब है कि पहले इस प्लेटफॉर्म का प्रयोग आईएल-76 और एएन-32 जैसे मालवाहक विमानों द्वारा 7 टन वजनी सामग्री (जीप,बुलडोजर) को एक जगह से दूसरी जगह पर उतारने के लिए किया जाता था। इसमें प्लेटफार्म 15 साल और उसके नीचे लगे बैग की अधिकतम उपयोग सीमा 8 साल की थी। बैग ऊपर से सामान उतारने के बाद अक्सर फट जाते हैं।

ऐसे में 8 साल बीत जाने के बाद बैग की मियाद खत्म होते ही प्लेटफॉर्म भी बेकार हो रहा था। अब दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए कंपनी सिस्टम को अपग्रेड करके दोनों की उपयोग सीमा 15 वर्ष करेगी। 15 वर्षों में इस सिस्टम के जरिए 5 बार वजनी सामान की ड्रॉपिंग कराई जा सकती है। सेना के लिए मंजूर किया गया दूसरा प्रोजेक्ट 1682 करोड़ रूपए के समयुक्ता सिस्टम के अपग्रेडशन का है। समयुक्ता सिस्टम पूरी तरह से स्वदेशी एकीकृत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम है। इसका प्रयोग सेना निगरानी, नेटवर्किंग तंत्र को जाम करने के अलावा विश्लेषण के लिए करती है। सिस्टम के कुछ चरणों में बदलाव करके इसकी उपयोग सीमा को 10 साल के लिए बढ़ाया जाएगा। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) इसके अपग्रेडेशन का काम करेगा।

नौसेना-तटरक्षकबल के प्रस्ताव
डीएसी ने नौसेना के लिए 4 सर्वे वेसल्स (जहाज) के 2 हजार 324 करोड़ रूपए के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इसमें सर्वे जहाजों के प्लेटफॉर्म पर उतारे जाने वाले एएलएच हेलिकॉप्टरों (धु्रव) के लिए जहाज में कुछ बदलाव किए जाएंगे। तटरक्षक-बल के आॅफशोर गश्ती जहाजों (ओपीवी) के लिए 36 करोड़ रूपए के इंजनों की खरीद प्रस्ताव को मंजूर किया गया है। यह इंजन डीजल चालित होगा। डीएसी की बैठक करीब दो घंटे तक चली और इसमें थलसेना थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग,वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा और नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन और रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.सी.पति समेत मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। गौरतलब है कि 10 नवंबर को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की यह दूसरी डीएसी की बैठक थी। बीते 22 नवंबर को उनकी अध्यक्षता में हुई पहली डीएसी की बैठक में 22 हजार करोड़ रुपए के रक्षा सौदों को मंजूरी दी गई थी।

डीएसी की बैठक में एवरो विमान सौदे पर बनेगी सहमति!

कविता जोशी.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में बुधवार को होने वाली रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की अहम बैठक में पुराने एवरो विमानों की जगह पर नए परिवहन विमान सौदे को मंजूरी दी जा सकती है। यह सौदा वायुसेना के लिए किया जाना है, जिसमें कुल 56 विमानों की खरीद की जानी है। सौदे की अनुमानित कीमत लगभग 2 अरब डॉलर है। यह सौदा अभी सिंगल वेंडर की वजह से अटका हुआ है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक रक्षा मंत्री इस प्रोजेक्ट के लिए सामने आए सिंगल वेंडर टाटा-एयरबस को ही विमानों को बनाने की अनुमति दे सकते हैं। इसके अलावा एक तर्क यह भी है कि सौदे के लिए अन्य आवेदक कंपनियों का इंतजार करने का निर्णय लिया जाए जिसमें और अधिक समय की दरकार होगी। उधर ज्यादा संभावना इस बात की है कि मंत्रालय इस सौदे के लिए निविदा (आरएफपी) की दौड़ में शामिल हुई सिंगल टेंडर कंपनी टाटा-एयरबस का ही इसके लिए चुनाव करे। इसके अलावा डीएसी के बैठक में नौसेना के लिए माइनस्वीपर जहाजों की खरीद से जुड़े सौदे को भी मंजूरी दी जा सकती है। माइनस्वीपर वो जहाज होते हैं जो युद्धकाल और शांतिकाल के दौरान दुश्मन द्वारा नौसैन्य तटों और सामरिक लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले बंदरगाहों के ईद-गिर्द बिछाई गई समुद्री बारूदी सुरंगों को हटाने का काम करते हैं।

बैठक में रक्षा मंत्री के अलावा थलसेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा और नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन और रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.सी.पति समेत मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे। यहां ध्यान रहे कि 10 नवंबर को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की यह दूसरी डीएसी की बैठक होगी। उन्होंने 22 नवंबर को पहली डीएसी की बैठक की अध्यक्षता की थी जिसमें उन्होंने 22 हजार करोड़ रुपए के रक्षा सौदों को मंजूरी दी थी।

ऐसे पुख्ता होगी भारत के सैन्य-सुरक्षा प्रतिष्ठानों की सुरक्षा!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
देश में अगले महीने 26 जनवरी का आयोजन करीब है और इससे पहले पाकिस्तान और आॅस्टेलिया जैसे देशों में एक के बाद एक हुए आतंकी-फिदायीन हमलों ने भारत की भी नींद उड़ा दी है। सुरक्षा एजेंसियों को ज्यादा चिंता इस बात को लेकर भी है कि 26 जनवरी को इस बार गणतंत्र दिवस परेड समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा भारत के मेहमान होंगे। बावजूद सुरक्षा एजेंसियां पहले से हाई-अलर्ट पर हैं और किसी भी तरह की घटना से निपटने को पूरी तरह से तैयार हैं। इन सबके बीच एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भारत के सैन्य-सुरक्षा प्रतिष्ठान आतंकियों हमलों को लेकर महफूज हैं? इसका शत-प्रतिशत हां में जवाब नहीं हो सकता लेकिन कुछ सटीक सुरक्षात्मक उपायों को अपनाकर इस तरह के हमलों के वक्त उनसे होने वाले नुकसान के दायरे को कम किया जा सकता है।
ये हैं वो जरूरी सुरक्षात्मक उपाय
रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने हरिभूमि को बताया कि दुनिया में बढ़ रही आतंकी हमलों की घटनाआें से सबक लेकर भारत अपने सैन्यसुरक्षा प्रतिष्ठानों की इन उपायों के जरिए सुरक्षा कर सकता है। इसमें सबसे पहले इस तरह के हमले के वक्त क्विक रिएक्शन टीमों का गठन किया जाना चाहिए जिनमें मेडिकल स्टाफ से लेकर मनोचिकित्सक, वार्ताकार समेत बंधक संकट (होस्टेज क्राइसेस) को दूर करने जैसे मामलों से निपटने वाले विशेषज्ञ होने चाहिए। दूसरा महत्वपूर्ण कार्य देश में चल रही सोशल नेटवर्किंग साइट्स जिनमें फेसबुक और ट्विटर पर चल रहे खातों की लगातार निगरानी की जानी चाहिए। हाल में कई देशों में हुए आतंकी हमलों के पीछे यही संचार माध्यम मुख्य प्रेरणास्रोत के रूप में उभरकर सामने आए हैं। भारत के कुछ राज्यों से सोशल मीडिया के जरिए युवाआें ने भी कुख्यात अंतरराष्टीय आतंकी संगठनों की राह पकड़ी है। इसके अलावा मोबाइल फोन की ट्रेसिंग की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। इसमें सबसे पहले संदिग्ध लगने वाले मोबाइल या लैंडलाइन नंबरों की ट्रेसिंग होनी चाहिए जिससे किसी अनहोनी को रोकने में काफी मदद मिलेगी।
रक्षा मंत्री का बयान
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पाक-आस्ट्रेलिया आतंकी हमलों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जिन जगहों पर यह घटनाएं हुई हैं, उनके हालात भारत से काफी अलग हैं। लेकिन फिर भी हमें विश्वास है कि हम इस तरह की किसी भी घटनाआें से निपट सकते हैं।
हमले पूरी तरह से रूकना नामुमकिन
भारत अपने पश्चिमी से लेकर पूवी मोर्चे पर लंबे समय से आतंकवाद से प्रभावित रहा है और आज भी इससे जूझ रहा है। लेकिन पड़ोसी पाक और आॅस्टेलिया में हुए हमले हमारी चिंता बढ़ाते जरूर हैं। इनसे निपटने के लिए पूर्व में सुरक्षा तैयारियां की जा सकती हैं, जिनसे इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। इन हमलों पर पूरी तरह से रोक पाना नामुमकिन है। पाक में आर्मी स्कूल में हुए आतंकी हमले 124 छात्रों समेत 126 लोगों की मौत हुई है और आॅस्ट्रेलिया में कई निर्दोंष लोग मारे गए।

क्रिसमस पर रहेगा स्कूलों में अवकाश

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

आगामी 25 दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी की ओर से मनाए जाने वाले सुशासन दिवस को लेकर अब स्कूली बच्चों को कोई परेशानी नहीं होगी। उन्हें उनकी 25 तारीख यानी क्रिसमस की छुट्टी मिलेगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोमवार को एक बयान जारी करके कहा कि 25 दिसंबर को निबंध प्रतियोगिता का आयोजन आॅनलाइन किया जाएगा और छात्र-छात्राआें की इसमें भागीदारी अनिवार्य नहीं बल्कि स्वैच्छिक होगी। सीबीएसई का कोई भी स्कूल और केंद्रीय विद्यालय समेत नवोदय विद्यालयों में इस दिन अवकाश रहेगा। इससे पहले सीबीएसई को प्रस्तावित निर्देंश यह कहा गया था कि वो स्कूलों में 24 और 25 तारीख को स्वैच्छिक आधार पर आनलाइन निबंध प्रतियोगिता का आयोजन करवाए।

मंत्रालय द्वारा इस बाबत दिए गए स्पष्टीकरण में कहा गया है कि अगर कोई छात्र निबंध प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है तो वो अपनी इच्छा से घर पर या किसी अन्य जगह से अपना निबंध भेज सकता है। इसके लिए सीबीएसई के किसी अधिकारी की विशेष तौर पर ड्यूटी नहीं लगाई गई है। गौरतलब है कि इस बाबत हाल में मीडिया में इस तरह की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी कि केंद्र सरकार 25 दिसंबर को क्रिसमस का अवकाश रद्द करके उस दिन देश के तमाम स्कूलों में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन करवाने जा रही है। लेकिन इसका खंडन करते हुए मंत्रालय ने इन तमाम खबरों को तथ्यविहीन बताते हुए कहा है कि इस तरह की कोई योजना नहीं है। इसे लेकर राज्य सरकारों को भी कोई दिशानिर्देंश या सर्कुलर जारी नहीं किया गया है।

परमाणु पनडुब्बी अरिहंत के समुद्री परीक्षणों का हुआ आगाज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

स्वदेश में निर्मित देश की पहली परमाणु चालित पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के समुद्री परीक्षणों को सोमवार को केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने विशाखापट्टनम (शिपबिल्डिंग सेंटर) से हरीझंडी दे दी है। उनके साथ राष्‍टृीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवाल और नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन भी मौजूद थे। हरिभूमि को मिली जानकारी के मुताबिक बैलेस्टिक मिसाइल से दुश्मन पर वार करने की क्षमता रखने वाली अरिहंत पनडुब्बी के समुद्री परीक्षणों को नौसेनाप्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से हरीझंडी दिलवाना चाहते थे। लेकिन संसद सत्र और प्रधानमंत्री की तमाम अन्य व्यस्तताआें के चलते वो इस कार्यक्रम के लिए उपस्थित नहीं हो सके।

समुद्री परीक्षण के मुख्य बिंदु
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि अभी तक अरिहंत के हार्बर (बंदरगाह) परीक्षण हुए हैं और सोमवार से इसके समुद्री परीक्षणों की शुरूआत हो गई है। अभी पनडुब्बी का परमाणु रिएक्टर पूरी तरह से आॅपरेशनल स्थिति में है और उसके साथ ही पनडुब्बी का सतह और पानी के भीतर विचरण करने का दौर शुरू हो गया है। समुद्री ट्रायल में नेवीगेशन (दिशा का ज्ञान) से लेकर कम्युनिकेशन सिस्टम, पनडुब्बी में लगे हुए रडारों और हथियारों का परीक्षण होगा। इस कार्य में लगभग एक वर्ष का समय लगेगा और इसके बाद अगले वर्ष के अंत तक या वर्ष 2016 की शुरूआत में अरिहंत को आधिकारिक रूप से नौसेना में कमीशन यानि शामिल कर लिया जाएगा।

रोचक इतिहास से पनडुब्बी का नाता
अरिहंत पनडुब्बी निर्माण परियोजना की सांकेतिक शुरूआत 25 जुलाई 2009 को पाक के खिलाफ लड़े गए करगिल युद्ध की जीत के 10 साल पूरे होने के मौके पर विशाखापट्टनम से की गई थी और आज इसके सबसे महत्वपूर्ण समुद्री परीक्षणों की शुरूआत भी भारत द्वारा पाकिस्तान के विरूद्ध जीते गए एक अन्य महत्वपूर्ण युद्ध की विजय के ठीक एक दिन पहले की जा रही है। याद रहे कि 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाक को विभाजित कर अलग राष्ट बांग्लादेश का निर्माण कराया था। वर्ष 2013 में अरिहंत के 83 मेगावाट के परमाणु रिएक्टर ने काम करना शुरू कर दिया था।

नौसेनाध्यक्ष का बयान
नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन ने बीते 3 दिसंबर को नौसेना दिवस के पूर्व में राजधानी में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि बीते वर्षों में हम यह कहते रहे हैं कि अरिहंत पनडुब्बी के समुद्री परीक्षण जल्द शुरू होंगे। लेकिन इस बार मैं कहूंगा कि इसके समुद्री परीक्षणों की बहुत जल्द ही शुरूआत होगी। नौसेनाप्रमुख के इस बयान के ठीक 12 दिन बाद अरिहंत ने अपने परीक्षणों का आगाज कर दिया है। इसके बाद हम दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शुमार होंगे जहां विमानवाहक युद्धपोत से लेकर परमाणु पनडुब्बी तक बनाई जाएंगी। पनडुब्बी का वजन 6 हजार टन है। इसकी श्रेणी (क्लास) एसएसबीएन है, लंबाई 111 मी., चौ. (बीम) 15 मी., ड्राफट 11 मी. है विशिष्ट देशों के क्लब में भारत अभी भारत के पास एक परमाणु चालित पनडुब्बी आईएनएस चक्र है जो रूस से वर्ष 2012 में दस वर्ष के लिए लीज पर ली गई है। लेकिन अरिहंत के निर्माण के साथ ही भारत दुनिया के उन 6 देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास परमाणु चालित पनडुब्बियां बनाने और उनके संचालन की क्षमता मौजूद है। यहां बता दें कि अभी यह तकनीक और संचालन क्षमता अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों के पास मौजूद है।

रविवार, 14 दिसंबर 2014

एचआरडी मंत्रालय को जल्द मिलेगा नया स्कूली शिक्षा सचिव!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

26 मई को केंद्र की सत्ता पर नई सरकार के काबिज होने के बाद सरकारी कामकाज की परिपाटी में तेजी से परिवर्तन का दौर शुरू हो गया है। कहीं पुराने अधिकारी रिटायर हो रहे हैं, तो नई भर्तियां के साथ दनादन तबादलों का सिलसिला चल रहा है। ऐसे में सरकार के एक बेहद महत्वपूर्ण समझे जाने वाले केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक अदद स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग में सचिव की दरकार है। अभी इस पद पर वर्ष 1978 बैच के आंध्र-प्रदेश कॉडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉ.आर भट्टाचार्या कार्यरत हैं।

यहां राजधानी दिल्ली के शास्त्री भवन स्थित एचआरडी मंत्रालय के आॅफिस के कोरिडोरों में इन दिनों चल रही चर्चाआें में नए सचिव (स्कूली शिक्षा और साक्षरता) के रूप में मंत्रालय में विशेष सचिव वृंदा स्वरूप का नाम शीर्ष पर है। मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक डॉ.भट्टाचार्या 31 दिसंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं। ऐसे में उनकी सेवानिवृति से पहले हर हाल में एचआरडी में नए सचिव की नियुक्ति की जानी है। हरिभूमि की पड़ताल में मिली जानकारी के मुताबिक अभी तक इस पद के लिए मंत्रालय के इसी विभाग में विशेष सचिव के रूप में कार्यरत वृंदा स्वरूप का नाम सबसे आगे चल रहा है। इसके अलावा एचआरडी मंत्रालय और सरकार पर यदा-कदा लगने वाले शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों के बीच बाहर से किसी संगठन या संस्था की ओर से इस पद के लिए किसी व्यक्ति-विशेष के नाम का कोई सुझाव केंद्रीय शिक्षा मंत्री के आॅफिस को नहीं मिला है। वृंदा स्वरूप के नाम को लेकर ज्यादा गहमा-गहमी इसलिए भी है। क्योंकि वो पहले से ही स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग में ही कार्यरत हैं और इससे जुड़े हर छोटे-बड़े मसले से भली-भांति परिचित भी हैं। गौरतलब है कि डॉ. भट्टाचार्या की इस पद पर नियुक्ति वर्ष 2012 में हुई थी। वृंदा स्वरूप वर्ष 1981 बैच की उत्तर-प्रदेश कॉडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं।

स्वच्छ भारत अभियान का पटरी पर दौड़ाना दूर की कौड़ी!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली नई सरकार को सत्ता संभाले आधा वर्ष बीत चुका है। लेकिन शुरूआती दौर में उनके द्वारा घोषित की गई बड़ी-बड़ी योजनाएं यर्थाथ के धरातल से आज भी कोसों दूर बनी हुई हैं। इनमें से एक ‘स्वच्छ भारत अभियान’ है जिसे लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से दिए अपने संबोधन में कहा था कि इस अभियान के जरिए देश के कौने-कौने में स्वच्छता की अलक जगाई जाएगी और हर सरकारी स्कूल में शौचालय का निर्माण किया जाएगा। इन सबके उलट हकीकत पर नजर डाली जाए तो अब तक 2 लाख से ज्यादा सरकारी स्कूलों में शौचालय नहीं है। ऐसे में इन स्कूलों में स्वच्छता और शिक्षा को लेकर शासकीय गंभीरता के पैमाने को आसानी से मापा जा सकता है। हालांकि सरकार ने शौचालय निर्माण की इस योजना के लिए सार्वजनिक व निजी क्षेत्र से गुहार लगाई है। इसमें एक वर्ष के अंदर सभी स्कूलों में शौचालय उपलब्ध कराने के राष्टीय आवाहन के बाद अब तक निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कारपोरेटों ने 1 लाख 58 हजार 503 शौचालय बनाने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। ऐसे में शेष बचे 6 महीनों में शौचालय निर्माण का यह सपना दूर की कौड़ी बनता हुआ नजर आ रहा है।

सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत 73 हजार 746 शौचालय और आरएमएसए के तहत 2 हजार 477 शौचालय स्वीकृत किए हैं। लोकसभा में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में सांसद के.सी.वेणुगोपाल और अरविंद सावंत के प्रश्न के जवाब में इस बात की तस्दीक करते हुए कहा कि एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) 2.13-14 के हिसाब से 2.03 लाख सरकारी स्कूलों में शौचालय सुविधा नहीं है। 54 हजार 553 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधाएं नहीं है और 5.57 लाख स्कूलों में बिजली कनेक्टिविटी नहीं है। इन सुविधाआें की कमी वाले स्कूलों में छत्तीसगढ़ के 10 हजार 214 स्कूलों में शौचालय नहीं है, 22 हजार 427 में बिजली की कमी है, 2 हजार 271 स्कूलों में पानी की सुविधा नहीं है। हरियाणा में 905 स्कूलों में शौचालय, 214 में बिजली और 29 में पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। मध्य-प्रदेश में 16 हजार 307 स्कूलों में शौचालय का पता नहीं, 98 हजार 290 में बिजली का कोई सुराग नहीं है और 4 हजार 953 में पीने के पानी की सुविधा नहीं है।

अब चीनी मीडिया भी करता पीएलए की घुसपैठ की पुष्टि!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत-चीन के बीच जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक फैली हजारों किमी. लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सेना द्वारा की जाने वाली घुसपैठ को लेकर आमतौर पर यह धारणा है कि इन घटनाआें को केवल भारतीय मीडिया ही सतर्क रहता है और इस तरह की खबरों को बढ़-चढ़कर प्रकाशित करता है जबकि चीनी मीडिया इन खबरों को खास तरजीह नहीं देता है। इसके पीछे तर्क रहता है चीन की सत्ता पर सैन्य शासन का काबिज होना। लेकिन शुक्रवार को संसद में ना सिर्फ इस मिथ्या धारणा का पटाक्षेप हुआ बल्कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भारत-चीन द्वारा साझा की जाने वाली पश्चिमी-सीमा के सटे इलाकों का चीन की पीएलए सेना के उच्च-अधिकारियों द्वारा समय-समय पर दौरा किए जाने की भी पुष्टि की है। सीमा के इस इलाके को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहता है, जिसकी वजह से इसे विवादित समझा जाता है। अकसर यहां घुसपैठ और उससे जुड़े विवाद को लेकर खबरें आती रहती हैं।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने लोकसभा में सांसद जी.हरि के प्रश्न के जवाब में कहा कि चीन में प्रकाशित होने वाली मीडिया रिपोर्टों में जानकारी दी गई है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य और चीन के केंद्रीय सैन्य कमीशन के उपाध्यक्ष जियु क्लियांग ने इसी वर्ष जुलाई महीने में एलएसी के करीब झिंनजांग, तिब्बत में पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी और पीपल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स की टुकड़ियों का निरीक्षण किया। इसके अलावा रक्षा मंत्री ने कहा कि चीनी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने होटन, अली और ल्हासा क्षेत्रों में भी सैन्य टुकड़ी यूनिटों का दौरा किया।

गौरतलब है कि चीनी सेना ने एलएसी पर 300 से ज्यादा बार घुसपैठ कर भारतीय सीमा में प्रवेश किया है। इस दौरान उन्होंने उस इलाके को अपना बताया और कई दिनों तक टेंटों और अन्य सैन्य साजो-सामान के साथ वहां डटे रहे। उधर जुलाई में चीनी अधिकारियों के इस दौरे के ठीक एक महीने बाद सितंबर में चीनी सेना ने लद्दाख के चुमार इलाके में भारतीय सीमा में घुसपैठ की। इस मसले पर करीब दोनों देशों के बीच 16 दिनों की जद्दोजहद के बाद विवाद का निपटारा हुआ था। इसमें खास बात यह है कि यह घुसपैठ उस मौके पर की गई थी जब चीनी राष्टपति शी जिनपिंग भारत के आधिकारिक दौरे पर नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने और व्यापार को गति देने जैसे मुद्दों पर गंभीर बातचीत कर रहे थे। 

रक्षा मंत्री ने लिया जम्मू में सुरक्षा हालात का जायजा

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने गुरूवार को जम्मू-कश्मीर का दौरा कर विस चुनावों के दौरान वहां के सुरक्षा हालातों की जानकारी ली। रक्षा मंत्री के तौर पर पर्रिकर का यह पहला जम्मू-कश्मीर का दौरा है। सुबह करीब नौ बजे श्रीनगर पहुंचने के बाद रक्षा मंत्री को सेना की उत्तरी कमांड के प्रमुख ले.जनरल डी.एस.हुड्डा ने सूबे के मौजूदा सुरक्षा हालात की विस्तार से जानकारी दी। रक्षा मंत्री के साथ उनके इस दौरे में सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी मौजूद थे। रक्षा मंत्री ने बदामी बाग स्थित सैन्य शिविर में श्रंद्धाजलि भी दी।

यहां मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में नियंत्रण रेखा (एलओसी) और उसके आसपास के इलाकों (हिंटरलैंड)में घुसपैठ से जुड़ी हुई गतिविधियों के प्रवाह, आतंकवादियों से हालिया पकड़े गए हथियारों के बारे में जानकारी ली। पर्रिकर ने चुनाव के दौरान आतंकियों के हौसले पस्त करने को लेकर चलाए गए स्थानीय प्रशासन और सुरक्षाबलों के संयुक्त अभियान की सराहना की जिसे सेना के अलावा जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीएपीएफ ने मिलकर चलाया था। इस दौरान उन्होंने जवानों की हौसलाअफजाई भी की। रक्षा का यह एक दिवसीय राज्य का दौरा था और वो शाम करीब 4 बजकर 30 मिनट पर वापस दिल्ली लौट आए।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

अंतिम चरण में जम्मू-कश्मीर में बढ़ेगी आतंकी घुसपैठ!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में अब चौथे और पांचवे चरण को मिलाकर चुनाव के दो आखिरी चरण बचे हैं। राज्य में चुनावों के आगाज के साथ आतंकियों की घुसपैठ और हिंसा की घटनाआें का आगाज हो चुका है। लेकिन खुफिया ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट की माने तो आने वाले दिनों में पाक के साथ जम्मू में लगने वाली अंतरराष्टीय सीमा (आईबी) और कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर आतंकवादियों की घुसपैठ की वारदातों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसका मकसद चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में आतंकी हिंसा की घटनाआें को अंजाम देकर सूबे का माहौल खराब करना है। इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा संख्या में आतंकियों का सीमा पार कराकर मतदान केंद्रों से लेकर अलग-अलग दलों के नेताआें की रैलियों में हिंसक वारदातों को अंजाम देना है। चौथे चरण का मतदान 14 दिसंबर और पांचवे व अंतिम चरण का मतदान 20 दिसंबर को होना है। चौथे चरण में अनंतनाग, शोपियां जैसे संवेदनशील इलाकों में वोट डाले जाएंगे और 20 तारीख को जम्मू से लगे ज्यादातर इलाकों में मतदान होगा।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बीते अक्टूबर महीने से लेकर नवंबर तक जम्मू-कश्मीर में सीमा लांघने की कोशिश करने वाले 36 आतंकवादियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। आंकड़ों के हिसाब से 65 बार आतंकियों ने इस दौरान सीमा पार करने की कोशिश की। आतंकियों द्वारा घुसपैठ के ज्यादातर प्रयास नियंत्रण रेखा के केरन और टूथमारी गली (समशाबारी रिज के उत्तर में स्थित) जैसी जगहों से किए गए। दोनों इलाके एलओसी से बेहद करीब हैं। इसके अलावा अंतरराष्टीय सीमा पर जम्मू, हीरानगर जैसे इलाकों से घुसपैठ की कोशिशें हुई। आने वाले दिनों में आतंकी घुसपैठ की घटनाआें में और इजाफा होने के संकेत मिले हैं।

थलसेना के सूत्रों का कहना है कि आतंकियों ने घुसपैठ के दौरान अपने पहनावे और हथियारों में काफी बदलाव किया है। इसमें आईईडी से लेकर जीपीएस, मल्टी लेयर विंटर क्लोदिंग का इस्तेमाल जैसे बदलाव किए गए हैं। आईईडी का वजन बढ़ाकर 8 किग्रा. कर दिया गया है। तीन चरणों वाले सर्दी के पहनावे का उपयोग किया जा रहा है। इसमें कंटीले तारों के बाड़ को पार करने के लिए खास किस्म के रबर पैडिंग का प्रयोग आतंकी कर रहे हैं। उधर इस वर्ष 2014 में नियंत्रण रेखा से लेकर अंतरराष्टीय सीमा पर पाक सेना ने करीब 555 बार संघर्षविराम समझौते का उल्लंधन कर भारतीय सेना की चौकियों पर गोलीबारी की। इसमें एलओसी पर 150 बार और आईबी पर 405 बार संघर्षविराम समझौते का उल्लंधन किया गया।

किसी को अनुचित ढंग से नुकसान नहीं होगा: ले.जनरल हुड्डा

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर स्थित सेना की उत्तरी-कमांड के प्रमुख लेμिटनेंट जनरल डी.एस.हुड्डा ने अपने अधीनस्त वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से लेकर तमाम डिवीजन प्रमुखों से कहा है कि सेना में किसी को अनुचित ढंग से कोई नुकसान नहीं होगा। उनका कहना है कि गलतियां होंगी लेकिन मैं आपको इस बात के लिए आवश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं भी उन चुनौतियों और मुश्किल हालातों के बारे में पूरी जानकारी और समझ रखता हूं जिनमें हम काम करते हैं। इसे जानते हुए मैं यह कह सकता हूं कि किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं होगा। इस स्पष्ट संदेश को सभी यूनिटों में भेजा जाए। ले.जनरल हुड्डा का यह पत्र छत्तरगाम आॅपरेशन में सेना की गलती स्वीकारने के उनके बयान के कुछ समय बाद आया है।

यह वाक्य ले.जनरल हुड्डा के उस पत्र के हैं जो उन्होंने बीते सप्ताह उत्तरी-कमांड के तहत आने वाली 14, 15 और 16वीं कोर के प्रमुखों से लेकर इस इलाके में तैनात सेना की तमाम डिवीजन मुख्यालयों को भेजा है। यहां बता दें कि ले.जनरल हुड्डा वहीं अधिकारी हैं जिन्होंने बीते 3 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के बड़गाम जिले के छत्तरगाम में सेना के आॅपरेशन को गलत बताते हुए सार्वजनिक तौर पर मीडिया के समक्ष माफी मांगी थी। उनकी इस टिप्पणी से सेना सीधे तौर पर कठघरे में खड़ी हुई। इतना ही नहीं राज्य में सेना की मौजूदगी और कई दशकों से बेरोकटोक चलाए जा रहे शांति बहाली के प्रयासों पर भी गंभीर सवालिया निशान लगे। गौरतलब है कि सेना के आॅपरेशन में दो कश्मीरी युवकों की मौत हो गई थी। इस पर कोर्ट आॅफ इंक्वारी चल रही है। लेकिन सैन्य अदालत की जांच पूरी होने से पहले जनरल हुड्डा ने इस पूरे प्रकरण पर माफी मांगी ली थी और सेना की कार्रवाई को गलत बताया था।

जनरल हुड्डा के इस पत्र की एक प्रति हरिभूमि के पास मौजूद है। यह पत्र आधिकारिक रूप से उन्होंने ही लिखा है। इसकी पुष्टि हरिभूमि ने अपने सूत्रों से की है। उन्होंने लिखा है कि उत्तरी-कमांड में अलग तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसमें एक ओर जहां हम इस बात के प्रतिबद्ध रहना होता है कि देश सेना के बारे में क्या विचार रख रहा है और दूसरी ओर यह देखना बेहद जरूरी है कि हम अपने बारे में क्या विचार रखते हैं। उन्होंने सभी कोर के प्रमुखों को लिखा है कि वो अधिकारियों और जवानों की ट्रेनिंग और शिक्षण पर ध्यान दें जिसमें उन परिस्थितियों का जिक्र हो जिसमें हम काम करते हैं। उस दौरान उन्हें सेना के मापदण्ड़ों के हिसाब से प्रतिक्रिया करने के बारे में जानकारी दी जाए। मैं किसी को अलग से संबोधित नहीं कर रहा हूं। मैं जानता हूं कि आप सभी अलग-अलग परिस्थितियों में काम करते हैं लेकिन आप सभी वरिष्ठ और अनुभवी हैं और यह जानते हैं कि कैसे सही दिशा पकड़नी है।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

मालद्वीप को साफ पानी देने में मदद करेंगी सेनाएं

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

मालद्वीप में साफ पानी की सप्लाई (विलवणीकरण) करने वाले प्लांट के जनरेटर में आग लगने से आई विपदा में सशस्त्र सेनाएं एकजुट होकर मदद देने के काम में लग गई हैं। मालद्वीप सरकार के आग्रह पर की जा रही इस मदद में वायुसेना के 3 बड़े आईएल-76 और सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे विशाल परिवहन विमानों ने माले में कुल 100 टन साफ पानी बोतलों के जरिए पहुंचा दिया है। शुक्रवार रात को वायुसेना के दो अन्य परिवहन विमानों के जरिए माले में 44 टन पानी बोतलों के जरिए पहुंचाया जाएगा। नौसेना के आईएनएस सुकन्या जहाज अपने साथ 35 टन साफ पानी लेकर गया है। इसके अलावा जहाज में मौजूद पानी को साफ करने वाले तंत्र (आरओ प्लांट) की क्षमता 20 टन साफ पानी रोजाना निकालने की है।

गौरतलब है कि मालद्वीप हिंद महासागर का एक द्वीपीय देश है। यहां के लोगों के पास प्राकृतिक पानी को कोई स्रोत मौजूद नहीं है। इसलिए वो केवल समुद्री पानी को साफ करके उसका इस्तेमाल करते हैं। आईएनएस सुकन्या जहाज एक ओपीवी है। यह अपने सामान्य गश्त के लिए कोच्चि जा रहा था। इस घटना के बाद नौसेना ने जहाज को मालद्वीप प्रशासन को मदद पहुंचाने के लिए माले रवाना कर दिया।

अब संगठित होकर हमलों की अंजाम देंगे आतंकी!

कविता जोशी.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में सेना के मोहुरा कैंप सहित अन्य जगहों पर हुए आतंकी हमलों के बाद खुफिया एजेंसियों को खबर मिली है कि विधानसभा चुनावों के बाकी बचे तीन चरणों में आतंकी बेहद समन्वित अंदाज में हमले करके बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाने की तैयारी कर रहे हैं। जिन जगहों पर शुक्रवार को हमले किए गए हैं उनमें 9, 14 और 20 दिसंबर को अंतिम चरण में मतदान होना है। सूबे में और उससे बाहर (पीओके) लंबे अर्से से सक्रिय आतंकी संगठनों की योजना आने वाले दिनों में बेहद सधे हुए अंदाज में संगठित होकर हमलों को अंजाम देने की होगी। जिससे बड़ी संख्या में सैन्यबलों का मनोबलों तोड़ने के अलावा लोगों को भी मतदान से दूर रहने की धमकी देना है।

संगठित हमलों की रणनीति
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अभी जम्मू-कश्मीर में लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अलबदर और अलकायदा जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इसके अलावा पाक समर्थित आतंकी संगठन भी नियंत्रण रेखा लांघकर लगातार हमले करते रहते हैं। मोहुरा कैंप उत्तरी-कश्मीर के उरी (बारामूला जिला) में पड़ता है। उरी में 9 दिसंबर को तीसरे चरण के दौरान मतदान होना है। इसके अलावा तराल (अनंतनाग से बेहद करीब) और शोपियां को आतंकियों ने निशाना बनाया है। उसमें बारामूला, तराल में 9 दिसंबर और 14 दिसंबर यानि चौथे चरण में शोपियां, अनंतनाग और अंतरराष्टीय सीमा (आईबी) से लगे सांबा, विजयनगर में मतदान होगा। इन जगहों पर हमला करके आतंकी लोगों को चुनाव में वोट डालने से रोकना चाहते हैं। 20 दिसंबर को अंतिम चरण में जम्मू की कठुआ, आर.एस.पुरा और अखनुर सीटों के लिए मतदान होगा।

इसके पीछे की वजह
आतंकियों ने संगठित होने की रणनीति इसलिए बनाई है। क्योंकि बीते दिनों किए गए हमलों में वो सेना को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाए और राज्य में मतदान का प्रतिशत भी काफी अच्छा रहा। अब उनकी योजना है कि चुनाव के शेष तीन चरणों के दौरान उनके पास मौजूद हथियारों और विस्फोटकों का भारी मात्रा में उपयोग करके नुकसान का स्तर बढ़ाया जाए।

सेना ने तोड़ा आतंकियों का मनोबल
चुनावों की शुरूआत से पहले ही राज्य में आतंकी हिंसा की घटनाआें में तेजी के संकेत मिलने लगे थे। इसे देखते हुए सेना ने अपनी पूरी ताकत इन्हें रोकने और शांतिप्रिय चुनाव संपन्न कराने की दिशा में झोंक दी। इसका नतीजा यह हुआ कि मौजूदा साल 2014 में सेना ने 103 आतंकियों को मार गिराया। बीते वर्ष यह आंकड़ा 65 था। वर्ष 2014 में सूबे में आतंकी हिंसा की कुल 60 घटनाएं हो चुकी हैं जबकि बीते वर्ष 2013 में इस तरह की 80 घटनाएं हुई थी।

बंदरगाहों पर जारी चीनी गतिविधियों पर नौसेना की नजर!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

चीन की भारत के पड़ोसी देशों के बंदरगाहों और तटों पर लगातार बढ़ रही इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण और सामरिक गतिविधियों पर नौसेना पैनी नजर रखे हुए हैं। इनके कई तरह के प्रभाव हो सकते हैं, जिसकी वजह से हम इनकी निगरानी करते रहते हैं। यहां राजधानी में नौसेना दिवस के पूर्व में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन ने कहा कि चीन का इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण तेजी से बढ़ रहा है। नौसेना को इस बात की जानकारी है कि चीन, भारत के तटों के करीब मौजूद पड़ोसी देशों के बंदरगाहों पर इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से निर्माण कर रहा है। नौसेना उसकी गतिविधियों की सूक्ष्म दृष्टि से निगरानी कर रही है।

नौसेनाप्रमुख ने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने का यह कार्य किस दिशा में आगे बढ़ता है उसे लेकर हम बेहद सतर्क हैं और उस पर पूरी नजर बनाए हुए हैं। क्योंकि इस निर्माण कार्य के कई तरह के प्रभाव हो सकते हैं। यहां बता दें कि चीन ने हाल के समय में भारत के निकट पड़ोसी देश पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से लेकर बांग्लादेश के चिटगांव और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से लेकर मतारा अंतरराष्टीय हवाईअड्डे का निर्माण किया है। इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित के अलावा चीन की उसके तटों के आसपास बढ़ रही सैन्य गतिविधियां भी चिंता का सबब हैं। बीते सितंबर महीने में राष्टपति प्रणब मुखर्जी की वियतनाम यात्रा के दौरान चीन ने श्रीलंका के कोलंबो और त्रिनकोमाली बंदरगाहों पर अपनी पनडुब्बी को सतह पर लाया जिसमें श्रीलंका ने उसे खुला समर्थन दिया था। भारत ने इसका दबी जुबान में विरोध किया जिसका श्रीलंका पर कोई असर नहीं पड़ा। उलटा उसने भारत को आंकड़ेबाजी के ऐसे जाल में उलझाया कि भारत उलझ कर ही रह गया।

श्रीलंका का तर्क था कि उसके तट या बंदरगाहों पर किसी अन्य देश की पनडुब्बी या युद्धपोत का नजर आना अंतरराष्टीय स्तर पर की जाने वाली सामान्य गतिविधि का हिस्सा है। इससे पहले 2010 तक श्रीलंका के कोलंबो तट पर दुनिया के कई देशों के 230 युद्धपोत र्इंधन भरने के लिए, खाने-पीने के लिए और गुडविड विजिट के लिए रूकते रहे हैं। लेकिन भारत इस तरह की गतिविधि को उसकी सुरक्षा और अखंडता को गहरा आघात पहुंचता है।

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

छोटी नौकाओं को पकड़ने की जद्दोजहद बरकरार?

कविता जोशी.नई दिल्ली

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा अपनी समुद्र तटीय सुरक्षा को पूरी तरह से चाक-चौबंद में अभी कुछ समय और लगेगा। इस दिशा में नौसेना सहित अन्य एजेंसियों ने काम शुरू कर दिया है। यहां राजधानी में बुधवार को नौसेना दिवस के पूर्व में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में इस बाबत हरिभूमि द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन ने कहा कि 26/11 आतंकी हमले के बाद हमने तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें 46 कोस्टल रडॉरों को तटों पर लगाया जा चुका है। यह रडार भारत की 7 हजार किमी. से लंबी समुद्री तटीय सीमा की निगरानी के काम में लगे हुए हैं। इसके अलावा हमने इलेक्ट्रो आप्टिकल डिवाइस भी लगाए हैं, जिससे समुद्र में घूमते जहाजों और नौकाओं को देखा जा सकता है। एडमिरल धोवन ने 20 मीटर से छोटी आकार वाली नौकाआें को पकड़ने को लेकर संतोष जाहिर करते हुए कहा कि भारत की तटीय रेखा के ईदगिर्द घूमने वाली ढाई लाख नौकाआें पर ट्रांसपॉंडर लगाने का काम शुरू हो चुका है। लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म होने में अभी कुछ समय और लगेगा। इस काम के पूरा होने से पहले अगर इस तरह की नौका का आतंकी हमले के लिए इस्तेमाल हुआ तो नौसेना उससे कैसे निपटेगी के जवाब में एडमिरल खामोश रहे। मुंबई आतंकी हमले में 164 लोगों की जान गई और 600 के करीब लोग घायल हुए थे।

एक्शन प्लान पर चुप्पी
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल में गुडगांव में आईएमएसी केंद्र के उद्घघाटन के वक्त भी छोटी नौकाआें और तटीय रेखा के कुछ इलाकों का रडार की जद में ना आने को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की और समुद्री सीमा में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी के तहत काम करने पर जोर दिया था। क्योंकि 6 साल पहले मुंबई पर हुए आतंकी हमले में पाक समथित आतंकियों ने इस तरह की छोटी नौका का ही प्रयोग किया था। नौसेनाप्रमुख ने 300 टन से बड़े जहाजों और भारतीय मछुवारों की छोटी नौकाआें पर ट्रांसपॉंडर लगाने की परियोजना का जिक्र तो किया। लेकिन दुश्मन की ओर से लाई जानी वाली खुद की छोटी नौका को लेकर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। यह वो नौकाएं हो सकती हैं जो आकार में 20 मी. से छोटी होंगी और उनपर एआईएस और ट्रांसपॉंडर जैसे आधुनिक संचार उपकरण ना लगे होने की वजह से आईमैक या रडॉरों की मदद से दूर समुद्र में इनकी स्पष्ट गतिविधि को पकड़ पाना दूर की कौड़ी साबित हो सकता है। इस चुनौती को लेकर नौसेनाध्यक्ष ने रक्षा मंत्रालय को कोई एक्शन प्लान फिलहाल नहीं सौंपा है।

भारत की तटीय सीमा
भारत की 7 हजार 516.16 किमी.लंबी तटरेखा है जो कि पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिमी में अरब सागर से लगती है। तट रेखा के दायरे में देश की पूर्वी और पश्चिमी सीमा को मिलाकर कुल 9 राज्य और 4 केंद्र-शासित प्रदेश आते हैं। इसमें गुजरात, महाराष्ट, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, पश्चिम-बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं। इसके अलावा दमन और दीव, लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह जैसे केंद्र-शासित प्रदेश भी तटरेखा का हिस्सा हैं।

द.चीन सागर में बढ़ते चीनी दबदबे से निपटने में भारत असक्षम?

कविता जोशी.नई दिल्ली

प्रशांत महासागर के दो महत्वपूर्ण छोरों दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर पर बीते कुछ समय से चीन की गतिविधियां बढ़ गई हैं। द.चीन सागर पर वो अपना अकेला प्रभुत्व जता रहा है और दूसरे छोर पर सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर उसका जापान के साथ गतिरोध चल रहा है। यह दोनों इलाके भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि द.चीन सागर से होकर एशिया प्रशांत मार्ग पर भारत का 55 फीसदी समुद्री व्यापार होता है। ऐसे में इन जगहों पर स्थिति बिगड़ने के मद्देनजर नौसेना ने क्या अतिरिक्त तैयारियां की हैंं का बड़ा सवाल खड़ा होता है? नौसेना की प्रशांत महासागर में चल रही समुद्री गतिविधियों पर नजर है। लेकिन किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए घटना से पूर्व में उसकी कोई तैयारी नहीं है। इससे उक्त इलाके को लेकर नौसेना की गंभीरता और सक्षमता को लेकर सवालिया निशान उठना स्वभाविक है।

आपात स्थिति पर रखेंगे नजर
यहां राजधानी में बुधवार को नौसेना दिवस के पूर्व में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जब हरिभूमि ने इस बाबत नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि चीन के हिसाब से दक्षिणी चीन सागर, चीनी समुद्र का इलाका है। जहां तक बात हमारे सामरिक-व्यापारिक हितों की है। भारत हमेशा से ही अंतरराष्टीय व्यापार में समुद्री मार्गों पर स्वतंत्र आवाजाही के सिद्धांत (फ्रीडम आॅफ नेवीगेशन) का पक्षधर रहा है। अगर इन इलाकों में तनाव बढ़ता है तो भारत के व्यापारिक-सामरिक जहाजों की स्वतंत्र आवाजाही भी प्रभावित होगी। एडमिरल धोवन ने कहा अगर दोनों जगहों पर चीन की वजह से स्थिति तनावपूर्ण बनती है तो हम उस पर नजर रखेंगे। चीन की बढ़ रही गतिविधियों को लेकर सतर्कता के आधार पर
किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए अपनी समुद्री सीमा या उससे बाहर नौसेना ने फिलहाल किसी जंगी जहाज या अन्य रक्षात्मक उपकरणों की तैनाती नहीं की है। यहां बता दें कि चीन प्रशांत महासागर से लेकर हिंद महासागर और उसके आसपास भी अपनी गतिविधियां लगातार बढ़ा रहा है। हाल में उसने श्रीलंका के तट पर अपने जंगी जहाज और पनडुब्बी को पानी से समुद्री सतह पर ला दिया था। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान,नेपाल में भी चीन तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा हुआ है जो कि भारत के लिए खतरे की घंटे है।

द. और पूर्वी चीन सागर का सामरिक महत्व
द.चीन सागर में मौजूद सभी द्वीपों पर चीन ने नौ लधु रेखाएं (नाइन डैश) खींचकर अपनी अकेली संप्रभुत्ता घोषित कर दी है। इस इलाके से दुनिया का एक तिहाई और भारत का 55 फीसदी व्यापार होता है। चिंता की बात यह है कि इस इलाके पर बु्रनेई, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम भी अपना दावा करते हैं। चीन की बढ़ती गतिविधियों की वजह से इन देशों ने अपने नौसैन्य बजट और ताकत में इजाफा करना शुरू कर दिया है जो कि अपने आप में चिंतनीय है। वियतनाम के फूखान्ह बेसिन में भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड कंपनी तेल शोधन के काम में लगी हुई है। इस काम पर कंपनी ने 11 करोड़ डॉलर की राशि खर्च कर दी है लेकिन चीन द्वारा इस इलाके को विशेष आर्थिक जोन घोषित किए जाने की वजह से जो विवाद खड़ा हुआ है उसकी वजह
से यहां अभी तक कोई काम शुरू नहीं हो पाया है। पूर्वी चीन सागर पर सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर चीन-जापान के साथ उलझा हुआ है, जिससे भारत के व्यापारिक हित प्रभावित हो रहे हैं। बदलते वैश्विक सामरिक गठजोड़ में भारत अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में पूर्वी चीन सागर पर विवाद उपजने के दौरान भारत का पक्ष खासी महत्ता रखेगा। इसे लेकर भारत द्वारा जापान का विरोध ना किए जाने की संभावनाएं भी बनती हुई नजर आ रही हैं।

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

अब कश्मीर से पूर्वोत्तर तक गूंजेगा ‘डिजिटल आर्मी’ का नारा

कविता जोशी.नई दिल्ली

चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगे दो प्रमुख युद्धक मोर्चों पर जल्द ही थलसेना अनोखे डिजिटल अंदाज में नजर आएगी। इसमें इन दोनों जगहों पर लगाए जा रहे संचार के आधुनिक मोबाइन सेल्युलर कम्युनिकेशन सिस्टम (एमसीसीएस) की अहम भूमिका होगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि एमसीसीएस देश में बनाया गया है, जिसमें किसी भी परिस्थिति में सेना के बीच आपसी संवाद से लेकर फोटो और वीडियो को तत्काल भेजा जा सकेगा। सेना का यह सिस्टम स्वदेशी होने के साथ ही संचार की आधुनिक्ता लिए हुए हैं, जिससे यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ की पहल को पूरी तरह से चरितार्थ करता हुआ नजर आता है।

एलओसी के करीब लग चुका है सिस्टम
सेना ने इस सिस्टम को सबसे पहले जम्मू-कश्मीर से लगाने की शुरूआत की है। क्योंकि यहां पाक संग लगने वाली नियंत्रण रेखा है और आए दिन आतंकी घुसपैठ और हिंसा से जुड़ी घटनाएं होती रहती हैं। यहां भारत- पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब तैनात थलसेना की 16वीं कोर में यह सिस्टम पूरी तरह से लगा दिया गया है। इस कोर का मुख्यालय नगरोटा में है। इस सिस्टम को लगाने में करीब 300 करोड़ रूपए का खर्च आया है। श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर में सिस्टम लगाने का 70 फीसदी काम पूरा कर लिया गया है।

एमसीसीएस की खूबियां
सेना ने एमसीसीएस को ऊंची पहाड़ियों पर लगाया है, जिससे बाढ़ के वक्त इसे नुकसान न पहुंचे। यह देखने में एक मोबाइल फोन के आकार का है और सीडीएमए सिस्टम पर काम करता है। इसके जरिए सेना घटना स्थल से अपने मुख्यालय से लेकर अन्य जरूरी जगहों तक आतंकी अभियानों से लेकर घुसपैठ, प्राकृतिक आपदा की तत्काल सूचना भेज सकेगी। जिससे वक्त रहते मदद पहुंचाने में आसानी होगी। इससे पहले सेना में बड़े आकार के मोबाइल सेटों और साधारण मोबाइल-लैंडलाइन फोन का प्रयोग किया जाता था। मोबाइल सेट वजन में काफी भारी होते थे और उनमें केवल बातचीत की ही सुविधा थी।

जम्मू-कश्मीर के बाद पूर्वोत्तर की बारी
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने इस सिस्टम को तैयार किया है। एक कोर में इसे लगाने में 5 साल का समय लगता है। जम्मू-कश्मीर के बाद सेना की तैयारी इसे पूर्वोत्तर में लगाने की है। यहां ध्यान रहे कि पूर्वोत्तर की सीमा भारत के सबसे बड़े प्रतिद्धंदी चीन के साथ लगती है। यहां तैनात सेना की 3, 4 और 33 कोर के लिए बजटीय प्रावधानों के लिए रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी सेना के इसी सिस्टम की मदद से राज्य का अन्य भागों के साथ संचार संपर्क कायम रहा था। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों के पास ज्यादा उन्नत सिस्टम हैं क्योंकि उनकी भौगोलिक स्थिति भारत से काफी अलग है। इसके अलावा उनके पास पूर्ण समर्पित रक्षा संबंधी सेटेलाइट हैं जो किसी भी घटना
का सूचना तत्काल ग्राउंड से सीधे भेज देते हैं।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों का टोटा.....

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

देश के प्रमुख 39 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के 1244 पद रिक्त पड़े हुए हैं। ऐसे में केंद्र द्वारा उच्च-शिक्षा में सकल नामाकंन दर (जीईआर) को बढ़ावा देने की योजना धरातल में साकार होती हुई दिखाई नहीं देती। हालांकि कु छ महीने पहले सत्ता पर काबिज हुई केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों में किसी भी कीमत पर गुणवत्ता प्रभावित ना होने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। इतने सारे पदों का रिक्तता के पीछे कई लोगों का एकसाथ सेवानिवृत होना भी बड़ा कारण बनकर उभरा है। इसके अलावा इन पदों को एक तय सीमा तक भरने की कोई तारीख का ना होने से भी संकट गहरा गया है। यह जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सोमवार को राज्यसभा में सांसद संजय सिंह के प्रश्न के जवाब में दी। उन्होंने कहा कि इन रिक्तियों के पीछे सही उम्मीदवारों का ना मिलना, 11वीं योजना के विस्तार के तहत प्रोफेसरों के अतिरिक्त पदों की दी गई स्वीकृ ति, छात्रों की संख्या में इजाफा होना जैसे कारण शामिल हैं। इसके अलावा कई राज्यों द्वारा नई नियुक्तियों को भरने को लेकर लगाया गया प्रतिबंध भी इसके लिए जिम्मेदार है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने इन रिक्तियों को भरने के लिए केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की सेवानिवृति की उम्र 62 से 65 वर्ष कर दी है। यूजीसी द्वारा सभी संस्थानों को जल्द से जल्द खाली पदों को भरने को कहा गया है। शिक्षकों को सेवानिवृति के बाद कांट्रेक्ट के आधार पर 70 वर्ष की आयु तक शिक्षकों की नियुक्ति करने को कहा गया है। गेस्ट फेकेल्टी और कांट्रेक्ट के आधार पर नियुक्तियों को भी स्वीकृति दी गई है। इसके अलावा विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा और शोध को बढ़ावा देने के लिए शोध अनुदान राशि में इजाफा किया गया है। अंतरराष्टीय सम्मेलनों में शोधपत्र प्रस्तुत करने के लिए अनुदान देना, शोध को बढ़ावा देने के लिए अनुदान राशि में इजाफा करना भी शामिल है। राज्यों के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में फेकेल्टी की ज्यादा समस्या है। इससे निपटने के लिए केंद्र ने राष्टीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) अभियान को मंजूरी दी थी। इसमें 12वीं योजना में नई फेकेल्टी के लिए 5 हजार करोड़ रूपए का आवंटन किया जाएगा।

सेना में बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अपने घरबार से कोसो दूर सरहद पर देश की दिन-रात रक्षा में जुटे सेना के रणबांकुरों में आत्महत्या के मामलों में इजाफा देखने को मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से बीते चार वर्षों में थलसेना में आत्यहत्या के कुल 353 मामले सामने आए हैं। इसमें बीते 30 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के शोपियां में 62 राष्टीय राइफल (आरआर) के जवान द्वारा की गई आत्महत्या का मामला भी शामिल है। सेना के सूत्रों ने कहा कि जवान ने तड़के सुबह चार बजे अपनी बंदूक से अपनी ठुड्डी में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। सेना ने घटना की जांच (कोर्ट आॅफ इंक्वारी) के आदेश दे दिए हैं। जवान के नाम के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। लेकिन उसकी उम्र 28 साल बताई जा रही है और वो हिमाचल-प्रदेश के कांगड़ा का रहने
वाला है। उधर सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग सोमवार को दो दिनों के जम्मू-कश्मीर के दौरे पर रवाना हो गए हैं, जिसमें वो श्रीनगर, उधमपुर से लेकर भारत-पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब सेना की फारवर्ड पोस्टों का दौरा करेंगे। सेनाप्रमुख मंगलवार शाम दिल्ली लौटेंगे। उनकी इस यात्रा का मकसद राज्य में चल रहे विस चुनावों के दौरान सुरक्षा हालातों का विस्तार से विश्लेषण करना है।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने लोकसभा में सांसद ओम बिरला के प्रश्न के लिखित जवाब में सेना में बढ़ रहे आत्महत्या के मामलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि थलसेना में आत्महत्या के सर्वाधिक 105 मामले साल 2011 में देखने को मिले। इसके अगले साल 2012 में 95, 2013 में 86 और मौजूदा साल में 21 नवंबर तक आत्महत्या के 76 मामले सामने आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि जवानों द्वारा अपने ही परिजनों की हत्या यानि फ्रेक्ट्रीसाइड के बीते चार वर्षों में 10 मामले सामने आए हैं। इसके अलावा वायुसेना में बीते चार सालों में आत्महत्याओं के 76 और नौसेना में 11 मामले सामने आ चुके हैं। वायुसेना में फ्रेक्ट्रीसाइड का 1 मामला सामने आया है। रक्षा मंत्री ने कहा कि इन घटनाओं के पीछे व्यक्तिगत से लेकर घरेलू, वित्तीय,पारिवारिक, सामाजिक दवाब, दवाब झेलने की क्षमता का खत्म होना, वैवाहिक और मानसिक जैसे कारण जिम्मेदार हैं।

रक्षा मंत्री ने सदन को बताया कि सरकार इन घटनाआें को रोकने के लिए कई कदम उठा रही है। इसमें जवानों को रहने और काम करने के लिए बेहतर वातावरण और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराना, परिवार के लिए अतिरिक्त व्यवस्था, छुट्टियों की सुविधा, विवादों के निपटारा करने के लिए उचित तंत्र बनाना, काउंसलरों द्वारा जवानों को काउंसलिंग दिया जाना शामिल है। इसके अलावा जवानों की यूनिटों में योगा और मेडिटेशन जैसी गतिविधियों का आयोजन किया जाना शामिल है।