शनिवार, 13 जून 2015

अब धरातल पर नजर नहीं आएगा ‘राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय’!

कविता जोशी.नई दिल्ली
बीते लोकसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले 23 मई 2013 को यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा हरियाणा के बिनौला (गुडगांव)में ‘भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (इंदु)’ की जो नींव रखी गई थी अब वोे हकीकत में तब्दील नहीं हो सकेगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित नई सरकार के पीएमओ विभाग की ओर से रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर इंदु विश्वविद्यालय के गठन के लिए एक व्यापक कानून बनाने को कहा गया है, जिसके बाद ऐसी किसी परियोजना को हकीकत में अमलीजामा पहनाया जाएगा। पीएमओ की इस टिप्पणी से साफ है अब इंदु विश्वविद्यालय की परियोजना फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है।

ये कहता है पीएमओ का पत्र?
हरिभूमि की पड़ताल में यह जानकारी मिली है कि रक्षा मंत्रालय को भेजे गए पत्र में पीएम ने साफ कहा है कि रक्षा ही नहीं सरकार के किसी भी मंत्रालय को उच्च-शिक्षा से जुड़े किसी भी संस्थान को खोलने के लिए एक व्यापक कानून होना चाहिए। जिसके बाद इस तरह की कोई भी प्रक्रिया आगे बढ़ायी जानी चाहिए। जब तक यह व्यापक-विस्तृत कानून बनता है तब तक विभिन्न मंत्रालयों के ऐसे प्रस्तावों को जिन्हें संसद द्वारा कानून बनाकर स्थापित किया जाना है पर रोक लगी रहेगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि पीएमओ की ओर से यह पत्र मंत्रालय को बीते अप्रैल महीने में प्राप्त हुआ है।

साल के शुरूआत में अलग माहौल
इस वर्ष की शुरूआत यानि मार्च महीने में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज थीं कि इंदु विश्वविद्यालय में इसी साल की शुरूआत से ही पहले शैक्षणिक सत्र 2015-16 की शुरूआत हो जाएगी। लेकिन इसके बाद अप्रैल महीने में पीएमओ की टिप्पणी के बाद अब परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। पीएमओ की टिप्पणी से स्पष्ट है कि अब इंदु की स्थापना और संचालन फिलहाल दूर की कौड़ी बन गया है।

ऐसा होता इंदु का नक्शा
यूपीए सरकार द्वारा स्वीकार किए गए इस प्रस्ताव के मुताबिक गुड़गांव के बिनौला में 200 एकड़ में इंदु विश्वविद्यालय की नींव रखी जानी थी। इसमें देश की रक्षा-सुरक्षा को केंद्र में रखकर पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने थे। डिफेंस मैनेजमेंट, डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एमरजिंग सिक्योरिटी चैलेंजिज जैसे कोर्सेज शामिल किए गए थे। इसके अलावा रक्षा व सामारिक विषयों पर शोध कार्यों का भी खाका खींचा गया था।

प्रस्ताव के मुताबिक वॉर गैमिंग एंड स्मियुलेशन, नेबरहुड स्टडीज, काउंटर इंसरजेंसी एंड काउंटर टेरररिजम, चाइनीज स्टडीज, इवॉलुशन आॅफ स्ट्रेजिक थॉट, इंटरनेशनल सिक्योरिटी इशूज, मेरीटाइम सिक्योरिटी स्टडीज, साइथ ईस्ट एशियन स्टडीज, मैटीरियल एक्यूजीशन, जाइंट लॉजिस्टिक्स एंड नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी इन पीस एंड वॉर जैसे कोर्सेज शामिल थे। विश्वविद्यालय ने पोस्ट ग्रेजुएट और पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च भी छात्रों को कराने की योजना भी बनायी थी।

स्कूली शिक्षा की योजनाआें को लेकर सरकार प्रतिबद्ध

एमडीएम में बजट कटौती को लेकर केंद्र का स्पष्टीकरण
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि वो स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से जुड़ी μलैगशिप योजनाआें को लेकर प्रतिबद्ध है, जिसमें मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी शामिल है। मंत्रालय की तरफ से यह बयान बीते दिनों कुछ अखबारों में एमडीएम को लेकर छपी खबरों के बाद आया है, जिनमें योजना के बजट में केंद्र द्वारा कटौती को लेकर खबरें प्रकाशित की गई थीं। यहां बता दें कि इस योजना पर हरिभूमि ने भी 28 मई को ‘एमडीएम योजना में कटौती का भार उठाएंगे राज्य’ शीर्षक से एक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक एमडीएम योजना के तहत 10.33 करोड़ प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों और स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने वाले विशेष प्रशिक्षण केंद्रों शामिल हैं। राज्य और केंद्र-शासित प्रदेशों में योजना को लेकर समय-समय पर केंद्र द्वारा अनुदान राशि जारी के ढांचे के तहत कार्य किया जाता है। इसके अलावा 14वें वित्त आयोग में राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले केंद्रीय राजस्व में 42 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह आंकड़ा पहले 32 फीसदी था। इसके अलावा योजना के लिए केंद्र सरकार की ओर से मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में 9 हजार 236 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसमें आवश्यकता के हिसाब से इजाफा किया जा सकता है।

केंद्र की ओर से राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों को योजना के उचित क्रियान्वयन के लिए संशोधित दिशानिर्देंश भी जारी किए गए हैं। इसके अलावा केंद्र ने योजना के तहत सूखा प्रभावित राज्यों को 466.70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि देने का निर्णय लिया है। इसका उपयोग एमडीएम योजना के तहत गर्मी की छुट्टियों में प्राथमिक स्कूलों के स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों को मध्याहन भोजन परोसने के लिए किया जाएगा।

दक्षिणी सूडान में भारतीय सैन्य अधिक ारी को लगी गोली, हालत स्थिर

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

दक्षिणी-सूडान के मुल्लाकल इलाके में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में चलाए जा रहे शांति मिशन में बृहस्पतिवार को एक भारतीय सैन्य अधिकारी लेμिटनेंट कर्नल के.दिनाकर गोली लगने से घायल हो गए। लेकिन अब उसकी हालत स्थिर बतायी जा रही है। दरअसल यह घटना 29 मई को संयुक्त राष्टÑ के तत्वाधान में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस से ठीक एक दिन पहले बृहस्पतिवार शाम 6 बजे हुई। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस अधिकारी का संबंध भारतीय सेना की जैकलाई बटालियन से है।

सूत्र ने कहा कि यह घटना उस समय हुई जब यह अधिकारी अपने कमरे में था। तभी बाहर से दरवाजे से होते हुए गोली अंदर आयी और इनके सिर को छूकर निकल गई, जिससे सिर पर जख्म बन गया। यह गोली सूडानी सेना द्वारा विद्रोहियों के खिलाफ रोजाना हवा में की जाने वाली फायरिंग के दौरान अधिकारी के कमरे में घुसी थी। घटना के तुरंत बाद अधिकारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब उनकी हालत फिलहाल स्थिर बतायी जा रही है।

भारतीय सेना की मौजूदगी
यूएन के शांति मिशनों में भारतीय सेना ने वर्ष 1950 से भाग लेना शुरू किया। सबसे पहले 1950 में कोरिया के लिए अभियान में सेना शामिल हुई जिसमें करीब 2 लाख भारतीय सैनिकों शामिल हुए। अब तक संयुक्त राष्टÑ के बैनर तले कुल 16 अभियान चल रहे हैं, जिसमें भारतीय सेना 12 अभियानों में शामिल है। इन 12 अभियानों में कुल 158 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है। सूडान और दक्षिणी सूडान में कुल 1 हजार 950 सैनिक मारे जा चुके हैं।

यूएन के अंतरराष्ट्रीय मिशन 
यूएन के मातहत अब तक 71 शांति अभियान चलाए जा चुके हैं, जिसमें 1 मिलियन से अधिक सैनिकों ने भाग लिया। यह आंकड़ा सेना और पुलिस को मिलाकर है। वर्तमान में जारी 16 अभियान में 1 लाख 25 हजार सैनिक लगे हुए हैं। यूएन के इन शांति अभियानों में 3 हजार 300 लोग मारे जा चुके हैं। इसमें बीते वर्ष 126 सैनिक मारे जा चुके हैं।

राज्य उठाएंगे एमडीएम योजना में कटौती का भार!

कविता जोशी.नई दिल्ली

स्कूल को लेकर बच्चों में रूचि बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) के बजट में कटौती करने के बाद अब केंद्र सरकार का यह कहना है कि इस कटौती का भार राज्यों को खुद उठाना पड़ेगा। मसलन अगर कोई राज्य या केंद्रशासित प्रदेश अपने यहां योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और हेल्परों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय में इजाफा करना चाहते हैं तो इस बढ़ी हुई धनराशि का भुगतान उन्हें खुद ही करना होगा, केंद्र इसमें कोई मदद नहीं करेगा। केंद्र अब केवल एमडीएम योजना की निगरानी और सुरक्षा दिशानिर्देंशों पर ध्यान केंद्रित करेगा जिससे मध्याहन भोजन को लेकर राज्य स्तर पर बरती जाने वाली अनियमितताआें और दुर्घटनाओं पर लगाम लगायी जा सकेगी।

यह जानकारी यहां मंगलवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर वर्ष की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए मंत्रालय में उच्च-शिक्षा विभाग में सचिव एस.एन.मोहंती ने दी। उन्होंने कहा कि मध्याहन भोजन योजना नियमित रूप से चलती रहेगी। बजट में कटौती का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस योजना को केंद्र का संरक्षण लगातार जारी रहेगा। सरकार किसी भी कीमत पर इस योजना को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

आम बजट के आंकड़ों पर नजर डाले तो मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में केंद्र की ओर से एमडीएम के बजट में करीब 30 फीसदी की कटौती की गई है। इस बार योजना के लिए सरकार ने 9 हजार 236.40 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। बीते वर्ष 2014-15 में बजट में एमडीएम को 13 हजार 215 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।

उच्च-शिक्षा सचिव ने कहा कि कई राज्यों की ओर से रसोइयों और हेल्परों को बढ़ाकर मानदेय दिया जा रहा है। बाकी राज्य भी इन राज्यों की तर्ज पर अपने यहां मानदेय बढ़ा सकते हैं। अभी केंद्र और राज्यों के बीच योजना को लेकर धनराशि का आवंटन उत्तर-पूर्व के राज्यों में 90 अनुपात 10 और बाकी राज्यों में 75 अनुपात 25 है। गौरतलब है कि एमडीएम योजना सर्व शिक्षा अभियान का ही हिस्सा है। देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईयों और हेल्परों को इससे रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

मिड-डे-मील की निगरानी को शिक्षकों को जाएगा फोन!

कविता जोशी.नई दिल्ली

देशभर के स्कूलों में चर्चित मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) की रियल टाइम मॉनीटरिंग के लिए केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना से जुड़े शिक्षकों को रोजाना फोन करके जानकारी एकत्रित करेगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एमडीएम मामलों की देखरेख कर रही समिति ने बीते 5 मई को हुई बैठक में यह निर्णय किया है।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2012 से शुरू हुई एमडीएम योजना की रियल टाइम निगरानी को लेकर अब मंत्रालय ने सख्त रूख अख्तियार कर लिया है। इसकी जद में खासतौर पर वो राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के अध्यापक आएंगे जिनके यहां योजना से क्रियान्वयन से जुड़ा इंट्रेक्टिव वाइस रिस्पांस सिस्टम (आईवीआरएस) क्रियान्वित नहीं किया गया है। गौरतलब है कि उत्तर भारत के दो बड़े जनसंख्या वाले राज्यों बिहार और उत्तर-प्रदेश ही देश में ऐसे दो राज्य हैं जिन्होंने आईवीआरएस को लागू किया है।

बैठक की अध्यक्षता करते हुए मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में सचिव वृंदा स्वरूप ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को सुझाव देते हुए कहा कि एमडीएम योजना के बारे में सही जानकारी इकट्टा करने और इसकी उचित निगरानी के लिए संबंधित स्कूलों के सभी शिक्षकों और योजना से जुड़ी अन्य एजेसिंयों के नंबर एकत्रित कि ए जाएं। इन नंबरों पर रोजाना फोन करके शिक्षकों से मध्याहन भोजन बनाने और परोसने के बारे में जानकारी ली जाएगी। उन्होंने राज्यों को कहा कि जुलाई 2015 तक इसका क्रियान्वयन किया जाए। एमडीएम योजना के सर्विस प्रदाता के लिए मंत्रालय ने परामर्श एजेंसी का नाम तय कर लिया है। इसके जरिए अब रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) की पुनरीक्षण किया जाएगा। यहां बता दें कि परामर्श एजेंसी ने पहले 31 मार्च को अपना पहला पुन: संशोधित ड्राμट मंत्रालय को भेजा था।

यहां बता दें कि देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईए और हेल्परों को इस योजना से रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

ओआरओपी: सरकार के रूख से नाखुश हैं पूर्व-सैनिक, तेज होगी आंदोलन की धार

कविता जोशी.नई दिल्ली

वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी)के मुद्दे पर राजग सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी और बैचनी उत्पन्न हो रही है और उनका कहना है कि अगर इस मामले में जल्द ही केंद्र की ओर से किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो अगले महीने के पहले सप्ताह के तुरंत बाद पूर्व सैनिक बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरेंगे और ओआरओपी की मांग को लेकर अपने आंदोलन को तेज करेंगे। इस मामले पर पूर्व उप-सेनाप्रमुख और इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) के अध्यक्ष लेμिटनेंट जनरल राज कादयान ने हरिभूमि से खास बातचीत की।

सवाल-ओआरओपी के मामले पर अब आपका अगला कदम क्या होगा?
जवाब- साल 2009 से लेकर 2014 के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ओआरओपी को पूरा करने की बात कहती रही है। लेकिन आज की बात की जाए तो जमीन पर कुछ होता हुआ दिखायी नहीं दे रहा है। सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी पनप रही है। अगर जल्द ही केंद्र की ओर से इस मुद्दे पर किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो आईईएसएम की ओर से फिर से आंदोलन तेज किया जाएगा। अगले महीने 6 तारीख को हम अपने आंदोलन की पूरी रणनीति पर चर्चा करेंगे।

सवाल- अपनी नाराजगी जताने के लिए क्या मैडल भी वापस करेंगे?
जवाब- इन सब बातों पर हम सोच विचार के बाद निर्णय करेंगे। अभी सरकार के पास हमारे 20 हजार मैडल्स पहले से हैं। मैंने सबसे पहले अपना मैडल 2008 में सरकार को वापस किया था। हम अपना अभियान पूर्ण अनुशासन के साथ चलाएंगे। जिसमें मैडल वापस करना भी शामिल हैं।

सवाल- सशस्त्र सेनाआें को ही क्यों बकियों को क्यों ना मिले ओआरओपी?
जवाब-सीआरपीएफ हमारी प्रतिद्वंदी नहीं है। प्रजातंत्र में कोई भी मांग कर सकता है। लेकिन फौज द्वारा मांगी गई ओआरओपी की मांग को लेकर सरकार भी सहमत है।

सवाल- ओआरओपी से सरकारी खजाने पर बल पड़ेगा?
जवाब-सवाल 8 हजार या 5 हजार करोड़ का नहीं है। अगर देश को इतनी बड़ी सेना की जरूरत है, तो सरकार को उसका ध्यान भी रखना पड़ेगा। सेना कितनी होनी चाहिए हम तय नहीं करते सरकार तय करती है।

सवाल-क्या ओआरओपी की परिभाषा बदल रही है सरकार?
जवाब-हमने सुना है कि सरकार परिभाषा बदल रही है। परिभाषा को तो सरकार ने संसद के मंच पर पहले स्वीकार किया था। अगर उसे बदला तो ठीक नहीं होेगा। वित्त मंत्रालय परिभाषा बदलने के काम में लगा है। अगर ऐसा हुआ तो हम अपना आंदोलन फिर से शुरू करेंगे।

सवाल-आप अपने वोट बैंक के जरिए सरकार पर दवाब बना रहें हैं?
जवाब-हमने अपना आंदोलन राजनीतिक दलों के साथ मिलकर कभी नहीं लड़ा। हम 25 लाख जरूर हैं, लेकिन 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में बटे हुए हैं। लेकिन हमारी ताकत आम जनभावनाएं हैं। अगर पूर्व सैनिकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया तो इससे जनभावनाएं भी जरूर प्रभावित होंगी।

निर्णयों में आयी तेजी लेकिन धरातल पर सन्नाटा!

अगले सप्ताह 26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तासीन एनडीए सरकार को एक साल पूरा हो जाएगा। ऐसे में सरकार के एक बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले रक्षा मंत्रालय के रिपोर्ट-कार्ड पर अगर एक नजर डाले तो यह कहा जा सकता है कि नई सरकार के गठन के बाद इसमें कोई शक नहीं कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में काफी तेजी आयी है लेकिन वास्तविक्ता के इस धरातल पर इन निर्णयों का कोई प्रभाव अब तक दिखायी नहीं पड़ रहा है। मंत्रालय के भीतर भी इसे लेकर अच्छी-खासी चर्चा है। कई अधिकारी दबी जुबान में इस तथ्य को स्वीकार भी कर रहे हैं।

रक्षा मंत्रालय के सालाना कामकाज में जिन अहम परियोजनाआें को त्वरित मंजूरी दी गई लेकिन धरातल में उन्हें लेकर खामोशी बनी है, उसमें सशस्त्र सेनाओं के पूर्व अधिकारियों को दी जाने वाली वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को स्वीकृति दिए तो करीब आठ महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक सरकार ने यह घोषणा नहीं की है कि वो कब से इसका वितरण किया जाएगा या फिर ओआरओपी की मद में कितनी धनराशि वितरित की जाएगी को लेकर भी स्पष्टता नहीं है।

बीते कुछ समय से तो यह मामला रक्षा और वित्त मंत्रालय के बीच ही उलझा हुआ था। अब चर्चा है कि एक निश्चित धनराशि पर दोनों के बीच सहमति बन गई है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि ओआरओपी पर काम चल रहा है लेकिन इसकी घोषणा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय के अन्य फैसलों में राष्टÑीय युद्ध स्मारक बनाने को लेकर भी स्पष्टता नहीं बन पाई है। इसकी फाइल भी एक जगह से दूसरी जगह घूम रही है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं के बीच तमाम मुद्दों को लेकर बेहतर समन्वय बनाने के लिए चीफ आॅफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा तो रक्षा मंत्री काफी समय पहले कर चुके हैं लेकिन कब होगी पर संशय बना हुआ है। इंडियन नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी (इंदू) की स्थापना का मामला भी पेडिंग है।

हालांकि इन 365 दिनों में अगर मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठकों में स्वीकृ त हुए समझौतों की बात करें तो करीब 1 लाख करोड़ रुपए के समझौतों को डीएसी ने मंजूरी दी है। लेकिन हकीकत में इन्हें अमलीजामा कब तक पहनाया जाएगा कहना मुश्किल है। रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि सैन्य-सामरिक समझौतों को मंजूरी मिलने के बाद भी उन्हें हकीकत में पूरा होने लंबा वक्त लगता है।

मोदी सरकार के सालाना जश्न में शामिल होंगी ईरानी?

कविता जोशी.नई दिल्ली

नरेंद्र मोदी की अगवाई वाली राजग सरकार को 26 मई को एक साल पूरा होने के मौके पर सरकार के मंत्री 365 दिनों के कामकाज और उपलब्धियों के बारे में जनता को जागरूक करेंगे। लेकिन मोदी केबिनेट की हिस्सा और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी इस सालाना जश्न में शामिल होंगी या नहीं इस पर सस्पेंस बना हुआ है। शुक्रवार को सरकार के वार्षिक जश्न को लेकर आमजन को जागरूक करने का आगाज केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर दिया है। लेकिन अब तक एचआरडी मंत्रालय की ओर से स्मृति ईरानी की मौजूदगी को लेकर कोई आधिकारिक सहमति केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईएनबी) को नहीं भेजी गई है। दरअसल सूचना-प्रसारण मंत्रालय इस पूरे कार्यक्रम का खाका तैयार करने से लेकर इसकी निगरानी भी कर रहा है।

क्यों नहीं जाएंगी ईरानी?
इस बाबत जब हरिभूमि ने एचआरडी मंत्रालय में पड़ताल की तो पता चला कि मई महीने की शुरूआत में सालाना जश्न के कार्यक्रम को लेकर जब आईएनबी मंत्रालय द्वारा केंद्रीय मंत्रियों की जो सूची तैयार की गई थी उसमें ईरानी का नाम केंद्रीय उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन के साथ 28 मई टाकथॉन के लिए शामिल किया गया था। इसमें दोनों मंत्रियों को सोशल मीडिया के ट्विटर और यू-ट्यूब जैसे माध्यमों के जरिए सरकार की सालाना उपलब्धियों के बारे में लोगों को बताना था। लेकिन बाद में ईरानी का नाम सूची से हटाने की भी बात सामने आई थी। लेकिन कुछ दिन पहले फिर से आईएनबी मंत्रालय ने एचआरडी मंत्रालय के अधिकारियों को फोन करके ईरानी का नाम सूची में बरकरार होने की बात कही है और उन्हें मंत्री की उपस्थिति को आधिकारिक मंजूरी देने को कहा गया है।

विदेश में हैं स्मृति
इस वक्त मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी यूनेस्को के एक अंतरराष्टÑीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन और दक्षिण.कोरिया के दौरे पर हैं। उनकी इस यात्रा की शुरूआत 18 मई से हुई थी और इसका समापन 25 मई को होगा। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि 25 मई को जब मंत्री स्वदेश वापस लौटेंगी तो उन्हें आईआईटी खड़गपुर के दौरे पर भी जाना है। ऐसे में सालाना जश्न में उनकी उपस्थिति होगी या नहीं पर संदेह बना हुआ है। लेकिन सूची में उनका नाम तो बना हुआ है।

विवाद तो नहीं वजह
मंत्रालय में यह चर्चा भी चल रही है कि सरकार सालाना जलसे के मौके पर अपनी कामकाजी यानि विकासवादी छवि और प्रमुख उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाना चाहती है। जिन केंद्रीय मंत्रियों को इस कार्य का जिम्मां सौंपा गया है उनके मंत्रालयों की छवि, कामकाज विकास और उपलब्धियों दोनों के पैमाने पर खरा उतरना चाहिए। इस पैमाने पर एचआरडी मंत्रालय की स्थिति संदेहपूर्ण है। मंत्रालय आए दिन कुछ न कुछ विवादों को लेकर चर्चा में रहता है।

गए थे एवरेस्ट फतह करने, हो गई अच्छी-खासी मानव सेवा

नेपाल में आए भूकंप से एक अप्रैल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतेह करने निकली भारतीय सेना क ी 30 पर्वतरोहियों की टुकड़ी को नेपाल जाकर चोटी फतह करना तो नसीब नहीं हुआ। लेकिन भूकंप से इस ऊंची चोटी के बेस कैंप में मची तबाही ने टीम को मानव सेवा का सुनहरा अवसरा मुहैया करा दिया। मंगलवार 19 मई को यह दल नेपाल से वापस भारत पहुंचा है।

यहां राजधानी में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने बताया कि 26 अपै्रल को जब नेपाल में 7.9 तीव्रता का भूकंप आया तो उसके बाद एवरेस्ट के बेस कैंप पर एक के बाद एक कई बर्फील तूफान आए। जिसने कैंप को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। इस तरह की आपदा से निपटने में सक्षम सैन्य पर्वतारोहियों के दल ने अपने आप को सुरक्षित बचा लिया और जैसे ही तूफान थमा तो यह लोग कैंप में मौजूद लोगों की तीमारदारी में जुट गए। टीम की अगुवाई कर रहे मेजर रनवीर सिंह जामवल ने कहा कि बर्फीले तूफान के वक्त स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई थी। क्योंकि एक ओर बर्फ पश्चिम में और दूसरी ओर नुप्त्से की ओर से सीधे बेस कैंप की ओर तेजी से आ रही थी। ऐसे में हमारी टीम के लिए सुरक्षित जगह पर जाना मुश्किल हो रहा था। यहां तक कि बर्फ की परत लगातार हिल रही थी। जिसमें सीधे खड़ा होना भी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

बेस कैंप में दर्दनाक नजारा था। चारों ओर टूटे हुए टेंट, मदद को पुकारते घायल लोग दिखायी दे रहे थे। इतना ही नहीं कुछ कैंप तो पूरी तरह से तूफान के साथ बह गए थे। सेना का कैंप उसमें शामिल था। बर्फ का जो हिस्सा टूटकर बेस कैंप की ओर आया था उसने करीब दो-तिहाई बेस कैंप को अपनी जद में लेकर उसे पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। इसमें करीब 19 पर्वतारोहियों की मौत हो गई और करीब 80 पर्वतारोही और शेरपा घायल हुए।

मुश्किल घड़ी में सेना के पर्वतारोही दल में शामिल मेडिकल अधिकारी मेजर रितेश गोयल ने पीड़ितों की प्राण रक्षा का जिम्मा उठाया। उन्होंने न केवल घायलों का प्राथमिक उपचार किया। बल्कि 70 पर्वतारोहियों का उपचार कर उन्हें नॉर्मल किया। कुछ के पांव टूटे हुए थे तो कुछ के हाथ। इसके अलावा कुछ लोगों को सिर पर गंभीर चोटें आयी थीं। राहत कार्य खत्म होने के बाद टीम ने निर्णय लिया कि वो चोटी पर चढ़ाई नहीं करेगी। लेकिन उसे साफ करने का जिम्मा उठाएगी।

 एक बार फिर मेजर जांमवाल के नेतृत्व में टीम ने चार दिनों तक एवरेस्ट के पूर्वी ओर खुंबू ग्लेशियर को साफ किया। इसमें नुप्त्से बेस तक बड़ी मात्रा में इकट्टा हुए मलबे को हटाया। दल ने 3 हजार किग्रा. कचरा एकट्टा करके नेपाल की सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति को सौंपा। 4 मई को सेना का यह दल अंतिम दल था जिसने बेस कैंप छोड़ा। लेकिन इसके बाद यह लोग नामचे बाजार में रूके और वहां के नामचे डेंटल क्लिनिक को बचाने और स्थानांतरित करने में मदद पहुंचाई। 12 मई को जब नेपाल में भूकंप के दुबारा झटके आए तो सेना का यह दल वहां स्थानीय लोगों का मानसिक मनोबल बढ़ाने में जुटा रहा।

जम्मू-कश्मीर में सेना की तैयारियों की समीक्षा करेंगे पर्रिकर

कविता जोशी.नई दिल्ली

एक ओर भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उस पार पाक समर्थित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर को दहलाने की साजिश रच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर सूबे में सेना की सैन्य-रणनीतिक तैयारियों की समीक्षा करने जा रहे हैं। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि रक्षा मंत्री 22 मई से जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर जाएंगे। इसमें सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी उनके साथ जाएंगे।

सूत्र ने कहा कि रक्षा मंत्री के दौरे की शुरूआत भारत की सरहदों से चीन की निगरानी करने वाली 14वीं कोर के दौरे से होगी। इसके लिए 22 मई को पर्रिकर लेह जाएंगे। लेह में रक्षा मंत्री को 14वीं कोर के मुखिया (कोर कमांडर) ले.जनरल बी.एस.नेगी सैन्य तैयारियों के बारे में जानकारी देंगे। इसके बाद पर्रिकर श्रीनगर के लिए रवाना होंंगे। यहां सेना की 15वीं कोर के कमांडर ले.जनरल सुब्रत साहा कोर की सैन्य और रणनीतिक तैयारियों के बारे में रक्षा मंत्री को अवगत कराएंगे। अंत में रक्षा मंत्री नगरोटा स्थित सेना की 16वीं कोर का दौरा करेंगे जहां उन्हें राज्य में फैली सेना उत्तरी-कमांड के मुखिया ले.जनरल डी.एस.हुड्डा और 16 कोर के कमांडर ले.जनरल के.एच.सिंह सेना की तैयारियों से जुड़े छोटे-बड़े पहलू के बारे में बताएंगे। रक्षा मंत्री की योजना इस दौरे में जम्मू जाने की भी है।

सूत्र ने कहा कि पर्रिकर अपने दौरे में सेना की तीनों कोरों के अलावा दुर्गम जगहों पर स्थित सेना की कुछ फॉरवर्ड पोस्ट भी देखेंगे और जवानों से मुलाकात कर उनका उत्साहवर्धन करेंगे। यह भी जानकारी मिल रही है कि रक्षा मंत्री की सूबे के मुख्यमंत्री मुμती मोहम्मद सईद से मुलाकात हो सकती है। बीते वर्ष नवंबर में रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के दौरे पर जा रहे हैं।

सेना की तैनाती के लिहाज से जम्मू-कश्मीर बेहद संवेदनशील राज्य माना जाता है। यहां सेना की 3 कोर लगभग ढाई लाख फौज के साथ पाकिस्तानी और चीनी खतरे से मुकाबला करने के लिए दिन-रात मुस्तैद है। गौरतलब है कि रक्षा मंत्री का यह दौरा हाल में खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट आने के तुरंत बाद हो रहा है, जिसमें यह कहा गया था कि पाक अधिकृत कश्मीर में लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन के लगभग 200 आतंकी विशेष प्रशिक्षण ले रहे हैं। आतंकियों को राज्य में आतंक मचाने के लिए प्रमुख सरकारी और सैन्य प्रतिष्ठानों के नक्शों और वीडियो दिखाकर ट्रेंड किया जा रहा है। आतंकी आने वाले दिनों में किन जगहों से घुसपैठ कर सूबे की शांति भंग करेंगे उसका ब्लूप्रिंट भी उन्होंने तैयार कर लिया गया है। यहां बता दें कि इस बाबत ‘दो सौ आतंकी ले रहे ट्रेनिंग’ शीर्षक से खबर को हरिभूमि ने 20 मई को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

.....तो अब हाइवे पर भी लैंड करेंगे लड़ाकू विमान

कविता जोशी.नई दिल्ली

अब तक आपने वायुसेना के लड़ाकू विमानों को अपने हवाईअड्डों से उड़ान भरने और लैंड करने की खबरें सुनी होगी। लेकिन बृहस्पतिवार को बल के एक लड़ाकू विमान मिराज-2000 ने यमुना एक्सप्रेस-वे पर सफलतापूर्वक लैंड कर एक नया इतिहास रच दिया। यहां राजधानी में मौजूद वायुसेना के सूत्रों ने बताया कि मिराज विमान के साथ पायलट विंग कमांडर प्रशांत अरोड़ा ने वायुसेना के ग्वालियर एयरबेस (वायुसेना की केंद्रीय कमांड का हिस्सा) से सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर उड़ान भरी और इसके ठीक 15 मिनट बाद विमान ने 6 बजकर 40 मिनट पर यमुनाएक्सप्रेस-वे पर लैंड किया।

लैडिंग से पूर्व ली अनुमति
एक्सप्रेस-वे पर मिराज विमान की लैडिंग के लिए वायुसेना ने उत्तर-प्रदेश सरकार के अलावा आगरा और मथुरा के जिलाधिकारी, एसपी, यमुना एक्सप्रेस- वे प्राधिकरण, स्थानीय पुलिस और जेपी एंफ्राटेक से अनमुति ली थी। वायुसेना की योजना भविष्य में अन्य हाइवे की पट्टियों को भी इस तरह से विकसित करने की है, जिसके बाद वहां से भी लड़ाकू विमानों को लैंड कराया जा सके।

ऐसे हुई लैंडिंग
मिराज-2000 विमान ने यमुना एक्सप्रेस-वे पर लैंड करने से पहले अपनी ऊंचाई को करके 100 मीटर पर ला दिया और उसके बाद हाइवे पर तैयार की गई पट्टी पर इसे उतारा गया। यह विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल पुराने मिराज-2000 विमानों में से ही एक है। हाल ही में वायुसेना को फ्रांस से 2 उन्नत मिराज-2000 विमान भी मिले हैं, जिनकी तैनाती भी ग्वालियर एयरबेस में ही है। इस वक्त वायुसेना के पास करीब 64 मिराज-2000 विमान हैं, जिनका उन्नतीकरण किया जाना है। लैडिंग से पहले एहतियात जरूरी मिराज या ऐसे अन्य लड़ाकू विमान उतारने से पहले कई एहतियाती कदम वायुसेना को उठाने पड़ते हैं। इसमें हाइवे का लगभग 5 किमी. का इलाका आगे और पीछे पूरी तरह से खाली कर दिया जाता है। इस दौरान लड़ाकू विमान की लैडिंग के समय गति करीब 200 किमी. होती है। वायुसेना लैडिंग साइट यानि हाइवे की पट्टी की चौड़ाई सीधी होनी चाहिए। इसके आसपास किसी तरह की कोई रिहाइश, बिल्डिंग या आबादी न हो, कोई खंबा, पेड़ और साइकिल लेन नहीं होनी चाहिए। वायुसेना के आगरा हवाईअड्डे से मिराज विमान की लैडिंग के लिए तमाम सुरक्षा संबंधी इंतजाम किए गए। विभिन्न स्थानीय एजेंसियों से अनुमति ली गई।

कई देश हैं ऐसी लैडिंग में सक्षम
भारत में लड़ाकू विमानों को हाइवे पर लैंड कराने की शुरूआत आज हुई है। लेकिन दुनिया के विकसित और विकासशील देशों में यह प्रक्रिया लंबे समय से प्रयोग में लायी जाती रही है। इस क्लब में अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, चीन, पाकिस्तान, सिंगापुर, ताइवान जैसे देश शामिल हैं। रक्षा संबंधी जानकार कहते हैं कि इस तरह की लैडिंग की सुविधा युद्ध जैसी आपात स्थिति में खासकर तब बेहद मददगार होती है, जब दुश्मन हवाई हमलों के जरिए हमारे हवाईअड्डों को नष्ट कर दें या उन्हें गंभीर नुकसान पहुंचाए।

तो सतबीर बेदी ही होंगी सीबीएसई की चेयरमैन!

बीते कुछ महीनों से खाली केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को उसका नया चेयरमैन जल्द ही मिल सकता है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सीबीएसई चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर जरूरी सारी प्रक्रिया पूरी कर ली है। अब अधिकारी के नामभर का ऐलान होना ही बाकी है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सीबीएसई चेयरमैन के पद को लेकर कई लोगों ने आवेदन किया था। लेकिन इस दौड़ में सबसे आगे डॉ.सतबीर बेदी का नाम चल रहा है। इस बात पुख्ता संभावना जताई जा रही है कि डॉ.बेदी को ही सीबीएसई का अगला चेयरमैन नियुक्त किया जाएगा। मंत्रालय की ओर से डॉ.बेदी का नाम जल्द ही कै बिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को भेजा जा सकता है।

डॉ.बेदी फ्रंटरनर
सीबीएसई चेयरमैन को लेकर एचआरडी मंत्रालय ने बीते अप्रैल महीने में नियुक्ति प्रक्रिया की शुरूआत की थी। मंत्रालय के पास इसे लेकर 59 आवेदन आए थे। इसमें से कुल 18 प्रत्याशियों के नामों को शार्टलिस्ट किया गया। इस दौड़ में डॉ.बेदी का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। यहां बता दें कि डॉ.बेदी अभी एचआरडी मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में संयुक्त सचिव हैं और सीबीएसई चेयरमैन का कामकाज अस्थायी तौर पर संभाल भी रही हैं। डॉ.बेदी 1986 बैच की यूटी कैडर की आईएएस अधिकारी हैं।

बीते दिसंबर से खाली है पद
सीबीएसई चेयरमैन का पद बीते वर्ष दिसंबर महीने से खाली है। दिसंबर में ही विनीत जोशी ने सीबीएसई चेयरमैन के रूप में अपना बढ़ा हुआ कार्यकाल पूरा किया था। उसके बाद नए चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर सरकार के स्तर पर कवायद तेज हुई। दिसंबर में ही मंत्रालय की ओर से डॉ.बेदी को सीबीएसई का कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया था।

हमारी कार्रवाई से डरकर प्रतिक्रिया दे रहा पाक: पर्रिकर


रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि पाकिस्तान, भारतीय सेना द्वारा म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकी कैंपों को तबाह करने की कार्रवाई से डर गया है, इसलिए ऐसी प्रतिक्रिया दे रहा है। यहां राजधानी में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि जब सोच के तरीके में बदलाव आता है, तब कई चीजें बदल जाती हैं। आपने पिछले दो-तीन दिनों में ऐसा देखा है। म्यांमार में उग्रवादियों के खिलाफ की गई हमारी सेना की एक कार्रवाई ने पूरे देश में सुरक्षा परिदृश्य के बारे में सोच को बदल दिया है। रक्षा खरीद प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए पर्रिकर ने कहा कि इस बारे में सोच में बदलाव की जरूरत है।

म्यांमार में सेना द्वारा चलाए अभियान का विस्तृत ब्यौरा देने से इंकार करते हुए कहा कि जो लोग हमारे रुख से भयभीत हुए हैं उन्होंने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि भारतीय सेना ने म्यांमार के अधिकारियों की जानकारी में सफल कार्रवाई में करीब 40 उग्रवादियों को मार गिराया। यह वही आतंकी थे जो 4 जून को मणिपुर के चंदेल में भारतीय सेना के काफिले पर हमला करने के लिए जिम्मेदार थे। चार जून को किए गए हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे।

भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस अभियान के बाद पाकिस्तान के गृह मंत्री निसार अली खान ने कहा था कि पाकिस्तान, म्यांमार की तरह नहीं है। भारत हमें म्यांमार समझने की गलती न करे। इसके अलावा उन्होंने धमकी भरे लहजे में कहा कि उनका देश सीमापार से आ रही धमकी से न ही डरेगा और न ही उसके सामने झुकेगा। पाकिस्तानी मंत्री का यह बयान सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के उस बयान के बाद आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि मणिपुर में 18 सैनिकों को मारने वाले उग्रवादियों के खिलाफ म्यांमार में की गई कार्रवाई अन्य पड़ोसी देशों के लिए संदेश है। राठौर की यह टिप्पणी पाकिस्तान को चेतावनी के लहजे में कही गई। खान ने कहा कि भारत के सामने यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान, म्यांमार जैसा देश नहीं है। जिनकी पाक के खिलाफ बुरी सोच है, उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि पाकिस्तानी सेना इस तरह की किसी भी कार्रवाई का उसी अंदाज में जवाब देने में सक्षम है।