रविवार, 17 मई 2015

पर्रिकर ने तेजपुर में सेना की रणनीतिक तैयारियों की समीक्षा की

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के उत्तर-पूर्व के दौरे की शुक्रवार को आधिकारिक शुरूआत हो गई। वहां पहुंचने पर सबसे पहले उन्होंने थलसेना की पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टीनेंट जनरल एमएमएस राय और तेजपुर में पड़ने वाली चौथी कोर के कमांडर ले जनरल शरत चंद से मुलाकात की। दोनों अधिकारियों ने रक्षा मंत्री को पूर्वोत्तर में सेना की सैन्य-रणनीतिक तैयारियों और चुनौतियों के बारे में विस्तार से रूबरू कराया। रक्षा  मंत्री के साथ उनके दो दिवसीय पूर्वोत्तर दौरे में गृह राज्य मंत्री किरिन रिजिजू भी गए हैं। शुक्रवार को ही चीन से लगी पश्चिमी-सीमा के चुशूल पर चीनी सेना के अधिकारियों ने सेना के अधिकारियों के साथ अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के मौके पर मुलाकात की।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि शनिवार को रक्षा मंत्री अरूणाचल-प्रदेश के तवांग के लिए रवाना होंगे। तवांग उनके दौरे का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। क्योंकि सामरिक-रणनीतिक लिहाज यह सेना के लिए बेहद महत्वपूर्ण ठिकाना है। पर्रिकर तवांग युद्ध स्मारक देखेंगे और सेना की वास्तविक नियंत्रण रेखा के बेहद करीब पड़ने वाली फॉरवर्ड पोस्ट भी जाकर जवानों से मुलाकात करेंगे। रक्षा मंत्री का बूमला जाने का भी कार्यक्रम है।

यहां बता दें कि बूमला भारत और चीन के बीच उत्तर-पूर्व में पड़ने वाला बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) करने का स्थान है। यहां सालाना मौकों से लेकर सीमा पर एक-दूसरे के साथ विवाद की स्थिति में भी बैठक की जाती है। यहां से रक्षा मंत्री ईटानगर के लिए रवाना होंगे और वहां अरूणाचल-प्रदेश के गर्वनर से लेफटीनेंट जनरल निर्भय शर्मा से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वो जोरहाट होते हुए दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे। उधर लद्दाख के चुशूल में दोनों सेनाओं के बीच हुई बीपीएम की बैठक में सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने पर जोर दिया गया। विवादपूर्ण स्थितियों का हल बातचीत से निकालने पर जोर दिया गया। बैठक में भारत की ओर से ब्रिगेडियर जेके.एस विजिसविक्र के नेतृत्व में सैन्य अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने अपने चीनी समकक्ष वरिष्ठ कर्नल फैं्र नजुन की अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की।

पूर्वोत्तर में सेना-वायुसेना के ठिकाने
पूर्वोत्तर में थलसेना की पूर्वी कमांड है, जिसका मुख्यालय पश्चिम-बंगाल में है। इस कमांड के तहत तीन अहम रणनीतिक कोर आती हैं। इनमें 3, 4 और 33 कोर चीनी खतरे से सीधे मुकाबले के लिए तैनात की गई हैं। आंकड़ों के हिसाब से यह करीब ढाई लाख फौज होती है। 3 कोर का मुख्यालय नागालैंड के दीमापुर में है, 4 कोर का मुख्यालय असम के तेजपुर में और 33 कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के सिलिगुड़ी में है। पूर्वोत्तर में वायुसेना की पूर्वी कमांड भी तैनात है। इसमें तवांग में हेलिकॉप्टरों के उतरने के लिए हैलीपैड है। तेजपुर, जोरहाट में एयरफील्ड है और रंगिया में हैलिपैड है। यह वो इलाके हैं जहां रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान जाएंगे।

पूर्वोत्तर में कमजोर है भारत?
पूर्वोत्तर में चीन से लगी सीमा पर अगर दोनों देशों के बीच सैन्य-रणनीतिक स्तर पर तुलना की जाए तो भारत के मुकाबले चीन बेहतर स्थिति में है। भारत की यहां सेना की 3 कोर और 10 डिवीजन तैनात हैं। इस आंकड़ें में लद्दाख की एक डिवीजन भी शामिल है। इसकी तुलना में अगर लड़ाई के हालात बनते हैं तो चीन एकसाथ लद्दाख से लेकर अरूणाचल सीमा तक अपनी सेना की कुल 32 डिवीजन ला सकता है। चीन का रेल-रोड़ संपर्क भारत की मुकाबले कई गुना सुदृढ़ है। जबकि हमारा निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है।
बारामूला-त्राल में बड़े हमले की तैयारी में आतंकी
एलओसी के उस पर से घुसपैठ की फिराक में आतंकी
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
अप्रैल के खत्म होते-होते जम्मू-कश्मीर की फिजा धीरे-धीरे अशांत होने की ओर बढ़ने लगी है। इसके पीछे पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने को एक बड़ी वजह माना जाता है। यह आतंकियों के लिए सीमा पार कर सूबे में घुसने का सुनहरा समय होता है। सरकार के खुफिया ब्यूरो के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर के बारामुला और त्राल में बड़े आतंकवादी हमले हो सकते हैं। इसके लिए घाटी के अंदर और बाहर मौजूद आतंकियों ने रणनीति बनाना शुरू कर दिया है।

यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि आने वाला समय कश्मीरियों के लिए घाटी के अंदर से लेकर बाहर से संकटभरा रह सकता है। एक ओर आतंकवादी बारामूला और त्राल में बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर भारत और पाकिस्तान के बीच पड़ने वाली नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सटे इलाकों से बड़ी तादाद में आतंकी राज्य में प्रवेश कर बड़े हमले की जुगत लगाए बैठे हैं।

सूत्र ने कहा कि एलओसी के उस पार (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका) से आतंकवादी कृष्णा घाटी, बींबर गली और छंब-जरिया जैसे राज्य के इलाकों में घुसपैठ करने के लिए घात लगाए बैठे हैं। इन जगहों पर आतंकियों के करीब 3 समुह मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक में 8 से 10 लोग शामिल हैं। यह संख्या आतंकियों और उनके सहायकों को मिलाकर है। समुह में 5 आतंकी और 1 हैंडलर, 1 गाइड, 1 सामान उठाने वाला व्यक्ति होता है। त्राल में आतंकी हमले के पीछे मंशा हाल ही में सेना द्वारा मारे गए युवक की मौत का बदला लेना हो सकता है। इस युवक को सेना ने आतंकवादी बताकर मारा था। जिसके बाद घाटी में हालात काफी तनावपूर्ण हो गए थे। कई जगहों पर पत्थरबाजी की घटनाएं भी हुई थीं।

गौरतलब है इस साल आतंकवादियों ने बीते तीन महीने के दौरान एलओसी पार कर राज्य में घुसपैठ करने की 3 बार कोशिश की है। इसमें वो नाकाम रहे। सुरक्षाबलों ने उन्हें वापस खदेड़ दिया। वर्ष 2010 से लेकर 2014 तक कुल 425 आतंकी घुसपैठ के दौरान सफल हुए हैं। इस दौरान सुरक्षाबलों ने कुल 536 आतंकियों को मार गिराया। इसी दौरान आतंकियों से मुकाबला करते हुए कुल 127 सुरक्षाबलों की मौत हुई है। पश्चिमी-सीमा पर भारत और चीनी सेना की अहम बैठक होगी। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री पूर्वोत्तर से पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी-सीमा का दौरा कर चुके हैं। वहां वो श्रीनगर गए थे।


चीन से लगी पश्चिमी-पूर्वी सीमा पर हलचलों भरा रहेगा शुक्रवार

कविता जोशी.नई दिल्ली

दक्षिण-एशिया में भारत के मुख्य प्रतिद्वंदी चीन से लगी पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर शुक्रवार तेज हलचलों वाला दिन रहेगा। एक ओर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल से लगी चीनी सीमा पर चल रही सैन्य-सामरिक तैयारियों का जायजा लेंगे तो दूसरी ओर लद्दाख के चुशूल में चीन से लगी पश्चिमी-सीमा पर भारत और चीनी सेना की अहम बैठक होगी। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री पूर्वोत्तर से पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी-सीमा का दौरा कर चुके हैं। वहां वो श्रीनगर गए थे।

ऐसा होगा पूर्वोत्तर का दौरा
रक्षा मंत्रालय के उच्चदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि रक्षा मंत्री का यह पहला दो दिवसीय (1-2 मई) पूर्वोत्तर का दौरा है। इसकी शुरूआत वो अरूणाचल-प्रदेश के सामरिक लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण ठिकाने तवांग से करेंगे। तवांग के बाद रक्षा मंत्री रंगिया भी जाएंगे और अंत में जोरहाट होते हुए 2 मई को दिल्ली लौटेंगे। तवांग जाने से पहले रक्षा मंत्री असम के तेजपुर में 1 मई की रात को रुकेंगे। अगले दिन तवांग के लिए रवाना होंगे। चीन के साथ भारत 3 हजार किमी. से ज्यादा लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) साझा करता है। बीते वर्ष नवंबर में रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद उनका यह पहला पूर्वोत्तर का दौरा है।
पूर्वोत्तर में सेना-वायुसेना के ठिकाने पूर्वोत्तर में थलसेना की पूर्वी कमांड है, जिसका मुख्यालय पश्चिम-बंगाल में है। इस कमांड के तहत तीन अहम रणनीतिक कोर आती हैं। इनमें 3, 4 और 33 कोर चीनी खतरे से सीधे मुकाबले के लिए तैनात की गई हैं।

आंकड़ों के हिसाब से यह करीब ढाई लाख फौज होती है। 3 कोर का मुख्यालय नागालैंड के दीमापुर में है, 4 कोर का मुख्यालय असम के तेजपुर में और 33 कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के सिलिगुड़ी में है। पूर्वोत्तर में वायुसेना की पूर्वी कमांड भी तैनात है। इसमें तवांग में हेलिकॉप्टरों के उतरने के लिए हैलीपैड है। तेजपुर, जोरहाट में एयरफील्ड है और रंगिया में हैलिपैड है। यह वो इलाके हैं जहां रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान जाएंगे।

चुशूल में होगी सेनाओं की बैठक
लद्दाख के चुशूल में भारत और चीनी सेनाओं की 1 मई को अंतरराष्टÑीय मजदूर दिवस के मौके पर बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) होगी। इस बार बैठक का आयोजन चीन की ओर से किया गया है। इसमें भारत की ओर से करीब 12 सैन्य अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल बैठक में शरीक होगा। जिसकी अगुआई बिग्रेडियर स्तर के सैन्य अधिकारी करेंगे। उधर बैठक में चीन की ओर से आने वाले प्रतिनिधिमंडल की अगुआई वरिष्ठ कर्नल स्तर के अधिकारी करेंगे। यहां बता दें कि बीपीएम बैठकों का आयोजन भारत और चीन द्वारा सालाना कई मौकों पर किया जाता है। इसमें भारत 26 जनवरी,15 अगस्त को बीपीएम बैठकों का आयोजन करता है। जबकि चीन 1 मई को बीपीएम का आयोजन करता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई महीने के दूसरे सप्ताह में चीन के दौरे पर जाने वाले हैं। इससे पहले रक्षा मंत्री अरूणाचल-प्रदेश से लगी पूर्वोत्तर की सीमा का जायजा लेंगे।

पूर्वोत्तर में कमजोर है भारत?
पूर्वोत्तर में चीन से लगी सीमा पर अगर दोनों देशों के बीच सैन्य-रणनीतिक स्तर पर तुलना की जाए तो भारत के मुकाबले चीन बेहतर स्थिति में है। भारत की यहां सेना की 3 कोर और 10 डिवीजन तैनात हैं। इस आंकड़ें में लद्दाख की एक डिवीजन भी शामिल है। इसकी तुलना में अगर लड़ाई के हालात बनते हैं तो चीन एकसाथ लद्दाख से लेकर अरूणाचल सीमा तक अपनी सेना की कुल 32 डिवीजन ला सकता है। चीन का रेल-रोड़ संपर्क भारत की मुकाबले कई गुना सुदृढ़ है। जबकि हमारा निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है।

‘वन स्टॉप सेंटर योजना’ को लेकर जारी हुई गाइडलाइंस

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए जाने वाले आपराधिक मामलों का त्वरित निपटान करने के लिए देश में खोले जाने वाले वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर योजना का क्रियान्वयन तेज हो गया है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस बाबत दिशानिर्देंशों का खाका तैयार कर लिया है। इन्हीं के मार्फत अब देशभर में इन केंद्रों को खोलने से लेकर इनसे जुड़ा हर छोटा-बड़ा काम किया जाएगा। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि इन दिशानिर्देंशों के हिसाब से राज्य सरकार मंत्रालय के पास केंद्र खोलने को लेकर अपने प्रस्ताव भेजेंगी। इन प्रस्तावों का मूल्यांकन प्रोग्राम अपूवल बोर्ड (पैब) करेगा जिसकी अध्यक्षता मंत्रालय के सचिव स्तर के अधिकारी करेंगे।

पैब की स्वीकृति के बाद ही किसी प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। पैब में सचिव के अलावा मंत्रालय से वित्तीय सलाहकार, विभाग के अतिरिक्त सचिव/संयुक्त सचिव, विभाग के निदेशक, राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसके अलावा कोई अन्य विशेषज्ञ/ सांविधिक निकाय या आमंत्रित व्यक्ति बोर्ड का अध्यक्ष हो सकता है। यहां बता दें कि देश में कुल 36 क्राइसिस मैनेजमेंट केंद्र खोले जाने हैं। इस योजना का क्रियान्वयन 1 अप्रैल से शुरू हो गया है।

वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर एक ऐसा केंद्र होगा जहां पर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं से लेकर यौन उत्पीड़न, मारपीट, अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर प्रताड़ित करने के अलावा महिलाआें से जुड़े हुए हर तरह के अपराधों की एक छत के नीचे पड़ताल की जाएगी। केंद्र की खास बात यह है कि इसमें दूर-दराज के इलाकों से आने वाली महिलाओं के लिए इस केंद्र में कुछ समय तक रुकने की भी व्यवस्था होगी। यहां पर पीड़ित महिला मनोचिकित्सक, डॉक्टर, वकील और पुलिस की सुविधा एकसाथ मिलेंगी।

गाइडलाइंस के हिसाब से ही केंद्र-राज्य सरकारें और तमाम सहयोगी एजेंसियां, विभाग मिलकर काम करेंगे। इनमें योजना के तहत दी जाने वाली सुविधाआें, अलग-अलग स्तरों पर क्रियान्वयन की निगरानी के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया, अनुदान राशि के वितरण की व्यवस्था, रिर्पोटिंग के अलावा केंद्र में न्याय पाने की उम्मीद लेकर पहुंची पीड़ित महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाना है को लेकर मानकों (स्टैंडर्ड आॅपरेंटिंग प्रोसिजर) का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

गौरतलब है कि मंत्रालय की योजना हर राज्य में एक वन स्टॉप सेंटर खोलने की है। इसकी शुरूआत छत्तीसगढ़ के रायपुर से की जाएगी। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने हाल ही में पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि शुरूआत में हर राज्य में एक केंद्र खोला जाएगा। लेकिन बाद में इनकी संख्या में इजाफा किया जाएगा। हम चाहते हैं कि हर ब्लॉक में एक केंद्र हो। दिशानिर्देंशों में स्पष्ट है कि निर्भया फंड की धनराशि का इस्तेमाल इन केंद्रों के लिए किया जाएगा।

भूकंप प्रभावित पूर्व सैनिकों का दिल्ली में होगा मुफ्त इलाज

नेपाल में अभी 1.25 लाख पूर्व सैनिक परिवार सहित रह रहे हैं।
दिल्ली में आरआर और बेस अस्पतालों में होगा इलाज
कविता जोशी.नई दिल्ली

नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद बुधवार को सेना ने ऐलान किया कि वो इस आपदा में प्रभावित हुए अपने पूर्व-सैनिकों और गोरखाआें को यहां दिल्ली लाकर मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान करेंगे। अभी नेपाल में 1.25 लाख पूर्व सैनिक और 38 हजार गोरखा अपने परिवारों के साथ रहते हैं। भूकंप में ये इन्हें भी काफी नुकसान हुआ है। यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने बताया कि हमने यह निर्णय लिया है कि इस प्राकृतिक आपदा में प्रभावित हुए थलसेना के पूर्व सैनिकों यानि रणबांकुरों और गोरखाआें को यहां राजधानी दिल्ली लाकर सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल (आरआर) और बेस अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा दी जाएगी। इससे इन लोगों को बड़े निजी अस्पतालों के चक्कर लगाने से भी निजात मिल जाएगी।

सेना ने बचाई 82 भारतीयों की जान
सेना की एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए गए पर्वतारोहियों में 82 भारतीयों की जान बचाई है। सेना के हेलिकॉप्टरों की मदद से इन्हें बुधवार को इन लोगों को कैंप 1 और 2 से निकालकर बेस कैंप से नीचे लुकला में सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। अब सेना अपने संचार माध्यमों जैसे फेसबुक और ट्विटर हैंडल के जरिए इनके अपनों को इनकी सलामती की सूचना देगी। जिसके बाद वो इनसे संपर्क कर सकेंगे। गौरतलब है कि बेस कैंप, पर्वतारोही द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के दौरान पड़ने वाला सबसे पहला पड़ाव है। इसके बाद कैंप 1 और 2 आते हैं। इसके बाद अंत में सीधे चोटी तक चढ़ाई की जाती है।

सेना के सूत्रों का कहना है कि इन लोगों को हमने कैंप 1, 2 से सुरक्षित निकाला है। भूकंप के बाद आए बर्फीले तूफान के बाद यहां अब तक पहुंचना असंभव बना हुआ था। बर्फील तूफान का सबसे ज्यादा प्रभाव बेस कैंप 1 और 2 पर ही पड़ा था। इनके नीचे मौजूद बेस कैंप से आपदा के शुरूआत में ही प्रभावितों को निकालने का सिलसिला चल रहा है। लुकला लाने के बाद इन लोगों की इनके परिजनों से बात नहीं हो पाई। क्योंकि संचार संपर्क नेपाल में भूकंप आने के बाद से ठप पड़ा हुआ है। ऐसे में इन लोगों ने सेना से गुहार लगाई कि वो अपने संचार सूत्रों के जरिए इनकी इनके परिजनों से बात कराएं और इनके सुरक्षित होने की सूचना दें। सेना ने इन लोगों के परिजनों तक इनकी सलामती की सूचना देने के लिए अपने फेसबुक और ट्विटर हैंडल का प्रयोग करने का निर्णय लिया है।

सोशल-मीडिया के इन सबसे तेज माध्यमों पर इन लोगों की जानकारी डाली जाएगी जिसके बाद इनके परिजन इनसे संपर्क कर सकेंगे। उधर सेना का अभियान आॅपरेशन मैत्री बेरोकटोक जारी है। अब सड़क मार्ग खुलने के बाद इसके जरिए लोगों को निकालने और प्रभावितों तक मदद पहुंचाने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है।

जल्द खुलेंगे 5 नए आईआईटी और 6 आईआईएम!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्र की सत्ता पर बीते वर्ष मई महीने में काबिज हुई नई सरकार द्वारा खोले जाने वाले 5 आईआईटी और 6 आईआईएम संस्थानों के जल्द खुलने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकारों ने इनके लिए जमीन की व्यवस्था कर ली है। अब उस पर केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि 5 आईआईटी संस्थान छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू, आंध्र-प्रदेश और केरल में खोले जाने हैं। इसके अलावा 6 आईआईएम हिमाचल-प्रदेश, पंजाब, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र में खोले में जाने हैं। तकनीकी शिक्षा के इन शीर्ष संस्थानों के लिए राज्य-सरकारों ने 500-600 एकड़ जमीन की व्यवस्था की है। संस्थानों के जमीन का चयन करने से पहले राज्य सरकारों को इन बिंदुआें पर खास ध्यान पड़ता है जैसे जमीन ऐसी जगह पर होनी चाहिए जिस पर कोई विवाद न हो, पहले से अदालती मामला न चल रहा हो, जगह हर तरह के यातायात मार्गों से जुड़ी हुई हो।

मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में सरकार ने इन संस्थानों के लिए 1 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। सूत्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने आईआईटी के स्थाई कैंपस के लिए दुर्ग (भिलाई) और अस्थाई कैंपस के लिए नया रायपुर में जमीन की व्यवस्था की है।

आईआईटी छत्तीसगढ़ का सलाहकार संस्थान (मैंटोर) आईआईटी हैदराबाद होगा। जम्मू में राज्य सरकार ने आईआईटी के स्थाई कैंपस के लिए सांबा और कठुआ में संस्थान खोलने के लिए जमीन दी है। साइट सलेक्शन कमिटी (एसएससी) ने साइट का दौरा कर लिया है। अब केवल उनकी रिपोर्ट आनी बाकी है। आंध्र सरकार ने चित्तूर जिले के मरलापक्का में जमीन दी है। साइट की पड़ताल कर एसएससी ने उसके लिए केंद्र को सिफारिश कर दी है। केरल ने पलाकड़ जिले के पुडुसरी में जमीन दी है और गोवा ने दारगालिम में जमीन की व्यस्था की है।

बिहार आईआईएम के लिए बोधगया, ओडिशा ने भुवनेश्वर, महाराष्टÑ ने नागपुर, पंजाब ने अमृतसर, हिप्र ने सिरमौर और आंध्र-प्रदेश ने विशाखापट्टनम में कैंपस खोलने के लिए जमीन की व्यवस्था की है। विशाखापट्टनम, सिरमौर और नागपुर में ली गई जमीन पर केंद्र सरकार ने अपनी सहमति दे दी है। इसी वर्ष 17 जनवरी को विशाखापट्टनम का शिलान्यास किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि साइट सलेक्शन समिति की सिफारिश के बाद ही इन्हें अंतिम मंजूरी दी जाएगी।

नेपाल में बेरोकटोक चलता रहेगा राहत-बचाव अभियान

हरियाणा सरकार ने भेजी प्रभावितों को राहत सामग्री
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सशस्त्र सेनाओं का कहना है कि नेपाल में आम-जनजीवन सामान्य होने तक उनके द्वारा चलाया जा रहा राहत एवं बचाव अभियान बेरोकटोक गति से चलता रहेगा। हरियाणा सरकार की ओर से भी भूकंप प्रभावितों के लिए राहत सामग्री भेजी गई है। इसमें खाने-पीने का सामान और जरूरी राशन शामिल है। यहां बता दें कि नेपाल में बीते शनिवार को 7.9 तीव्रता का भूकंप आया था। इससे जानमाल का काफी नुकसान हुआ है। नेपाल के साथ-साथ भूकंप के झटके भारत के आधे से ज्यादा राज्यों में महसूस किए गए। कई लोग मारे भी गए हैं। सेना के अतिरिक्त महानिदेशक (मिलिट्री आॅपरेशन) मेजर जनरल रनबीर सिंह ने मंगलवार को यहां राजधानी में पत्रकारों से बातचीत में कहा हमने इस राहत अभियान को लेकर कोई समय सीमा निधार्रित नहीं की है। लेकिन जब तक नेपाल चाहेगा हम उनकी मदद करते रहेंगे।

उन्होंने कहा कि सेना, नेपाल के दूरदराज के इलाकों में पहुंचकर भूकंप प्रभावितों की मदद कर रही है। एक 45 बेड का अस्पताल, 3 फील्ड अस्पताल 18 लोगों की मेडिकल टीम राहत कार्य में लगी हुई है। सेना के डॉक्टर नेपाल के सिविल अस्पतालों में पीड़ितों के इलाज में मदद पहुंचा रहे हैं। सेना के 12 इंजीनियरिंग कार्यबलों को नेपाल में सड़कों को खोलने के लिए रवाना किया गया है। प्रत्येक कार्यबल में कुल 70 लोग हैं। सेना नेपाल में भूकंप के केंद्र रहे बारपाक में भी पहुंच गई है और प्रभावितों को हर संभव मदद पहुंचा रही है।

एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई के लिए गए 70 पर्वतारोहियों को सेना के रितेश गोयल ने काफी मदद पहुंचाई। यह सभी भूकंप के बाद हिमालय पर आए बर्फील तूफान की चपेट में आ गए थे। 28 वर्षीय रितेश ने इन सभी क ा प्राथमिक उपचार कर इनके जीवन की रक्षा की। इनमें से कुछ के हाथ-पांव टूटे हुए थे तो करीब 8 पर्वतारोहियों को सिर में गंभीर चोटें लगी थीं। इन्हें हेलिकॉप्टर की मदद से बेस कैंप से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। दरअसल रितेश सेना के उस 30 सदस्यीय पर्वतारोहियों के दल में शामिल थे जो एवरेस्ट की चोटी फतह करने के लिए निकले थे। इससे पहले वो सियाचिन में भी तैनात रह चुके हैं। बेस कैंप की ऊंचाई 17 हजार 500 फीट है।

वायुसेना के विमानों उड़ान जारी
वायुसेना के करीब 7 विमानों के जरिए 41 टन खाद्य सामग्री, पानी,1100 कंबल और टेंट नेपाल भेजे गए हैं। इसके अलावा टूटे-फूटे सड़क मार्ग को दुरुस्त करने के लिए सेना के 2 इंजीनियर्स कार्यबलों को भी वायुसेना ने अपने विमानों से भेजा है। विमानों में 2 सी-17 ग्लोबमास्टर-3, 2 सी-130 जे सुपर हरक्युर्लिस, 2 आई-76 और 1 एएन-32 परिवहन विमान के जरिए राहत सामग्री भेजी जा रही है। नेपाल से वापसी में यह विमान वहां मौजूद प्रभावितों को भारत लाने के काम में भी जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि 25 अप्रैल से राहत अभियान में जुटी वायुसेना ने अब तक कुल 2 हजार 865 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है। वायुसेना के विमानों द्वारा 36 बार भरी गई उड़ानों में 238.5 किग्रा वजन सामान नेपाल पहुंचाया गया। इस समय वायुसेना के 8 हेलिकॉप्टर नेपाल में तैनात हैं। इनमें 6 काठमांडू और 2 पोखरा में हैं। हेलिकॉप्टर के जरिए 250 लोगों को बचाया जा चुका है और 25 टन राहत सामग्री पहुंचाई गई है। मेडिकल और इंजीनियर कार्यबल के 100 लोगों को नेपाल में उतारा जा चुका है। 350 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।

नौसेना भी अभियान में शामिल
नौसेना भी नेपाल में भूकंप प्रभावितों की मदद को लेकर चलाए जा रहे अभियान में शामिल हो गई है। नौसेना की 16 सदस्यीय मेडिकल टीम मंगलवार रात को नेपाल के लिए रवाना होगी। इसमें 6 डॉक्टर और 10 मेडिकल स्टॉफ शामिल होगा। नौसेना के सूत्रों ने कहा कि इस दल में शामिल 6 डॉक्टरों में एक सर्जन, 1 एनस्थिसिया का डॉक्टर, 1 मेडिकल स्पेशलिस्ट, 2 ग्राउंड ड्यूटी मेडिकल आॅफिसर, 1 कम्युनिटी मेडिकल आॅफिसर शामिल हैं। इसके अलावा 10 मेडिकल अस्सिटेंट में 1 आॅपरेशन रूम अस्सिटेंट, 6 लैब एंड ग्राउंड ड्यूटी अस्सिटेंट, 2 हाइजीन स्पेशलिस्ट, 1 बीटीए शामिल है।

21 जाली विश्वविद्यालयों को लेकर यूजीसी सख्त, छात्र न लें दाखिला

कविता जोशी.नई दिल्ली

देश में चल रहे 21 जाली विश्वविद्यालयों को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सख्त हो गया है और उसने छात्रों से इनमें दाखिला न लेने को कहा है। उच्च-शिक्षा देने के मकसद से खोले गए इन संस्थानों को लेकर यूजीसी का कहना है कि ये विश्वविद्यालय यूजीसी के वर्ष 1956 के कानून का सीधा उल्लंधन कर रहे हैं। इसके अलावा ये स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों के जरिए छात्र-छात्राओं को डिग्रियां भी जारी कर रहे हैं। वास्तक में इन संस्थानों को डिग्री जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि इनकी स्थापना केंद्र-राज्य के कानून के अलावा यूजीसी के कानून के तहत नहीं की गई है।

यूजीसी की वेबसाइट पर मौजूद इस सूची में मध्य-प्रदेश का केसरवानी विद्यापीठ, जबलपुर भी शामिल है। इस सूची में दिल्ली के 5 विश्वविद्यालय भी हैं, जिनमें कर्मशियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर-सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्ट्टीट्यूट आॅफ साइंस एंड इंजीनियरिंग शामिल है। उत्तर-प्रदेश के सर्वाधिक 9 जाली विश्वविद्यालय भी यूजीसी की सूची में हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, पश्चिम-बंगाल, तमिलनाडु, केरल और बिहार का एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय इसमें शामिल है। यहां बता दें कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी इस मामले पर काफी सख्त है। हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस बाबत राज्यसभा में सांसदों को अवगत कराया था।

यूजीसी ने इस मामले पर छात्रों/ अभिभावकों और पब्लिक को इस बारे में अवगत कराने के लिए जारी विश्वविद्यालयों की सूची अपनी वेबसाइट पर जारी की है। इस तरह के विश्वविद्यालयों के खिलाफ यूजीसी कानून और भारतीय दंड संहित के तहत कार्रवाई की जाएगी। कुछ विश्वविद्यालयों और संस्थानों को लेकर यूजीसी ने न्यायालयों में मामले भी दर्ज कराए हैं। जहां तक इस तरह के संस्थानों को बंद करने का मामला है तो इसके लिए संबंधित राज्य सरकार को कार्रवाई करने का अधिकार है। आयोग ने इन 21 विश्वविद्यालयों के कुलपति, निदेशकों और प्रमुखों को इन्हें बंद करने को लेकर लिखित में जानकारी दे दी है। राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिवों को उनके एकाधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले विश्वविद्यालयों-संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर रिमांडर भेजे जा चुके हैं।

भूकंप के समय जाम हुई टेलिफोन लाइनें!

वायुसेना ने शुरू किया बचाव अभियान
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

राजधानी दिल्ली समेत समूचे देश में शनिवार सुबह महसूस किए गए भूकंप के तेज झटकों से हर तरफ अफरातफरी का माहौल बन गया। जो जहां था वहीं थम गया। कुछ देर के लिए टेलिफोन और मोबाइल फोन की लाइनें जाम हो गई। हर कोई एक-दूसरे के अपनों के सुरक्षित होने के बारे में जानकारी लेने लगा। भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर 7.9 आंकी गई और इसका केंद्र नेपाल के काठमांडु में था। भूकंप का प्रभाव नेपाल समेत भारत के उत्तर, केंद्रीय और पूर्वी भारत के राज्य में देखने को मिला। नेपाल में भूकंप से मरने वालों का आंकड़ा 876 तक पहुंच गया है।

उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोपहर 3 बजे हुई आपात बैठक के बाद आए निर्देंश के तुरंत बाद वायुसेना ने युद्धस्तर पर राहत एवं बचाव अभियान शुरू कर दिया। रक्षा मंत्रालय द्वारा ट्विटर पर दी गई जानकारी के मुताबिक नेपाल में राहत एवं बचाव अभियान मेंदोपहर बाद राजधानी दिल्ली से सटे हिंडन वायुसैनिक अड्डे से रवाना हुआ वायुसेना का विशालकाय मालवाहक विमान सी-130जे सुपर हरक्यूर्लिस 39 लोगों की राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) की टीम और 3.5 टन वजनी राहत सामग्री के साथ काठमांडु पहुंच चुका है। इसके अलावा शाम में वायुसेना के 2 मालवाहक मी-17 हेलिकॉप्टरों ने उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर से नेपाल के लिए उड़ान भरी। इसके अलावा वायुसेना भूकंप के दौरान मदद पहुंचाने के लिए 2 विशालकाय परिवहन विमानों सी-17 को हिंडन से और 1 आईएल-76 परिवहन विमान को पंजाब के भटिंडा से नेपाल भेजा गया है। उधर थलसेना नेपाल में राहत एवं बचाव अभियान में मदद पहुंचाने के लिए स्टैंडबॉय की स्थिति में है। जैसे की सरकार की ओर से ग्रीन सिग्नल मिलेगा सेना शामिल हो जाएगी।

गौरतलब है कि दिल्ली भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन-4 में आती है। इसके ज्यादातर इलाकों में ऊंची बिल्डिंगों और भवनों का निर्माण बिना किसी पूर्व योजना के किया गया है। खासकर पूर्वी दिल्ली में यमुना नदी के तट के आस-पास काफी कंस्ट्रक्शन हुआ है। इसे भूकंप का तेज झटका एक बार ही तहस-नहस कर सकता है।

तो प्रथम विश्वयुद्ध में साथ लड़े थे आॅस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड!

एनजेक डे पर दोनों के उच्चायुक्तों के साथ सेनाप्रमुख देंगे श्रद्धांजलि
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

वर्तमान में भारत-पाकिस्तान की तरह एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी कभी एक राष्ट्र ‘आॅस्टेलिया’ की रक्षा के लिए एकजुट होकर लड़े थे। मौका था प्रथम विश्व युद्ध का जिसमें एक राष्ट्र के रूप में इन दोंनो के सैनिक केवल एक आॅस्ट्रेलियाई योद्धा के रूप में शामिल हुए थे। 25 अप्रैल को आॅस्ट्रेलिया ने तुर्की में विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए अपनी सेनाओं को उतारा था। शनिवार को इसकी वर्षगांठ के मौके पर यहां राजधानी स्थित वॉर सिमेट्री में आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त, तुर्की के राजदूत और थलसेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग उन अमर शहीदों को पौ फटते ही (सुर्योदय के साथ) श्रंद्वाजलि देंगे। गौरतलब है कि न्यूजीलैंड इस दिन को तुर्की में सैनिकों को उतारने की घटना के तौर पर याद करता है तो आस्ट्रेलिया उन सभी न्यूजीलैंड के वीर योद्धाओं को याद करता है, जिन्होंने एकजुट होकर उनके राष्ट्र के लिए युद्ध में अतुलनीय योगदान दिया।

 प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने ब्रिटिश सेना के हिस्से के तौर पर बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसमें फ्रांस, जर्मनी, से लेकर तुर्की और कई अन्य जगहों पर लड़ाई के लिए सैनिक भारत से शामिल हुए। मौजूदा वर्ष प्रथम विश् व युद्ध के शताब्दी वर्ष के रूप में दुनिया भर में मनाया जा रहा है। भारत में बीते मार्च महीने में इसे लेकर कई आयोजन कर शहीदों को याद किया गया था।

क्या है एनजेक डे
एनजेक डे को वर्ष 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के समय जब आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सेनाआें ने एकसाथ तुर्की के गेलीपोली में कदम रखा था की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल इन दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां भी उस संयुक्त दस्ते का हिस्सा थी जिसे गेलीपोली प्रायद्वीप पर कब्जा करना था। 8 महीने तक इस अभियान में न्यूजीलैंड के करीब 3 हजार सैनिक मारे गए थे। एनजेक डे पर न्यूजीलैंंड में वर्ष 1921 से पब्लिक हालिडे रहता था। लेकिन 1921 आते-आते न्यूजीलैंड की सरकार ने इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने के लिए एक बिल संसद से पास करवाया।

पाकिस्तान की नाक के नीचे राजस्थान में सेना का अभ्यास शुरू

25 अप्रैल से 27 अप्रैल तक चलेगा ब्रह्मशिरा अभ्यास।
थलसेना के साथ वायुसेना भी होगी शामिल।
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से महज 20 किमी. की दूरी पर सूरतगढ़ में थलसेना अपने सबसे प्रचंड युद्ध अभ्यास ब्रह्मशिरा का शनिवार से आगाज करने जा रही है। इसमें खरगा स्ट्राइक कोर के 20 हजार जवान अपने पूरी विध्वंसक क्षमता के साथ दुश्मन के दांत खट्टे करने का हर दांव आजमाते हुए नजर आएंगे। यहां बता दें कि यह अभ्यास राजस्थान में पड़ने वाली भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्‍ट्रीय सीमा से मात्र 20 किमी. की दूरी पर यानि सीधे पाक की नाक के नीचे होगा। खरगा स्ट्राइक कोर को 2 कोर के नाम से भी जाना जाता है। यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने बताया कि यह अभ्यास से 25 अप्रैल से 27 तक चलेगा। अभ्यास को देखने के लिए सेना की पश्चिमी कमांड के मुखिया (जीओसी-इन-सी) लेफ्टीनेंट जनरल केजे सिंह भी आएंगे। खरगा कोर सेना की पश्चिमी कमांड का हिस्सा है।

थलसेना के इस अभ्यास में वायुसेना भी शामिल होगी। वायुसेना के इसमें शामिल होने से इस अभ्यास में ज्यादा पैनापन आ जाएगा। एक ओर राजस्थान के रेतीले रण में सेना के जवानों के पैदल दस्ते से लेकर टी-72 और टी-90 टैंकों की युद्ध की रणभेरी बजाने वाली वाली भरभराहट का नजारा होगा तो दूसरी ओर आसमान में वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर और यूएवी अपनी युद्धक क्षमता से दुश्मन को चारों खाने चित करने की अपनी कुशल रणनीति के साथ खुले आसमान में उड़ान का आगाज करेंगे। अभ्यास के दौरान दोनों सेनाएं मिलक र बुद्धिमानी, निगरानी और सूचना तंत्र की परखेंगे।

ब्रह्मशिरा अभ्यास में सेना का बड़ा लाव-लशकर भाग लेगा। इसमें आॅमर्ड से लेकर सेना का इंफेंट्री, मैकेनाइज, एवीऐशन और यूएवी दस्ता शामिल होगा। इसमें टैंकों में टी-90, टी-72 टैंक शमिल होंगे, हेलिकॉप्टरों में मी-35, चीता, चेतक और धु्रव हेलिकॉप्टर भी अपनी क्षमता के जलवे बिखेरेंगे। गौरतलब है कि इस अभ्यास का आयोजन हर दो साल में किया जाता है। इससे पहले इस अभ्यास को पंजाब और गुजरात में किया गया था। लेकिन इस बार राजस्थान का अभ्यास के लिए चयन किया गया है।

शुक्रवार, 15 मई 2015

आम आदमी के विचारों के समावेश से बनती राष्ट्रीय शिक्षा नीति

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का निर्माण आम-जन की भागीदारी के साथ किया जा रहा है। हम चाहते हैं कि इसे अंतिम रूप देने से पहले ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य-राष्ट्रीय स्तर पर लोग अपने-अपने विचार शिक्षा के बारे में रखें। उसके बाद सरकार उस पर अपनी रजामंदी की मुहर लगाएगी। वे आज यहां राष्ट्रीय शिक्षा के लोगो, स्लोगन और टैगलॉइन को जारी करते हुए पत्रकारों से मुखातिब हुई। केंद्रीय मंत्री ने कहा हम चाहते हैं नीति बनाने से पहले हम लोगों की राय लें। इसमें किसी नौकरशाह, पीआर कंपनी, विज्ञापन एजेंसी की कोई भूमिका नहीं है। यह सीधे लोगों की सहभागिता से तैयार की जा रही है।

बीते 21 मार्च को इस बाबत हमने सभी राज्यों के साथ बैठक कर उनकी राय ली थी। इसे
एक आम नागरिक ने बनाया है। इसमें सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। नवाज की सराहना करते हुए ईरानी ने कहा कि इन्होंने अपने प्रयास से सिस्टम में रहते हुए सिस्टम को बदलने का प्रयास किया है। यह अपनी तरह का एक युद्ध है, जिसे इन्होंने लड़ा है। नीति को लेकर एचआरडी मंत्रालय ने डब्ल्यूसीडी, सामाजिक-न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय के साथ भी मंथन किया और उद्योग जगत के लोगों के साथ भी बातचीत की है।

एचआरडी मंत्रालय के पास एनईपी के लोगो, स्लोगन और टैगलाइन के लिए कुल 3 हजार आवेदन आए थे। इसमें से तीन विजेताआें का चयन करके उन्हें पुरस्कृत किया गया है। इसमें से स्लोगन के लिए पुरस्कार पाने वाले विजेता महाराष्ट्र (पुणे) के नवाज शेख ने कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए व्यक्ति का वास्तविक विकास होता है। शिक्षा नीति बनाने के लिए शिक्षक और माता-पिता की भागीदारी होनी चाहिए, गांव से शहर तक लोग इससे जुड़े, शिक्षा के लिए माहौल देना बेहद जरुरी है। एक साधारण ग्रामीण परिवार में पैदा होने के बाद नवाज पीएचडी की डिग्री हासिल करने जा रहे हैं,जिसमें उनका कहना है कि शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। पढ़ाई के अलावा अपनी रूचि के मुताबिक तालीम हासिल करने पर नवाज खास जोर देते हैं
और बच्चों को शिक्षा लेते वक्त अपने परिवार के सभी सदस्यों का साथ मिलना चाहिए। पुरस्कार की राशि 10 हजार रुपए है। शिक्षा नीति के लिए चयन किए गए स्लोगन के लिए हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले विनोद कुमार महेश्वरी को 10 हजार रुपए का पुरस्कार दिया गया।

उनका बनाया स्लोगन है ‘नई शिक्षा नीति करे साकार’, ‘ज्ञान, योग्यता और रोजगार’। इसके अलावा ‘एजूकेट, एनकरेज, एनलॉइटन’ नामक टैगलॉइन बनाने के लिए केरल के विपिथा देवी, परावरूर को 10 हजार रुपए का पुरस्कार दिया गया है। लोगो के केंद्र में बच्चे का चित्र है जिसके बारे में बताते हुए नवाज कहते हैं कि यह लड़का-लड़का दोनों पर केंद्रित है। इसके नीचे खुली किताब कह रही है कि अगर अपनी शिक्षा हासिल करते है तो आपका जीवन भी इसी किताब की तरह खुल जाएगा और उसका विकास होगा। इसके अलावा लोगो में बनाए गए छोटे-छोटे स्टार एचआरडी मंत्रालय की चुंनिदा नीतियों के बारे में दर्शाने के लिए बनाए गए हैं।

उन्नत मिराज विमान ग्वालियर बेस पर पहुंचेंगे आज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
फ्रांस द्वारा उन्नत किए गए 2 मिराज-2000 लड़ाकू विमान शुक्रवार को अपने आधिकारिक वायुसैनिक अड्डे ग्वालियर पहुंचेंगे। अभी यह दोनों विमानगुजरात के जामनगर वायुसैनिक अड्डे पर हैं। यहां राजधानी में मौजूद वायुसेना के सूत्रों ने कहा कि 17 अप्रैल को इन दोनों विमानों ने फ्रांस से भारत पहुंचने की यात्रा की शुरूआत की थी।

सात दिन में पहुंचे भारत
भारत पहुंचने में दोनों को सात दिन का समय लगा। उड़ान के दौरान दोनों विमान ग्रीस, इजिप्ट और कतर होते हुए 22 अप्रैल को गुजरात के जामनगर वायुसैनिक अड्डे पर पहुंचे। यहां से यह दोनों अपनी ग्वालियर यात्रा की शुरूआत करेंगे। यहां बता दें कि मिराज-2000 विमानों की आधिकारिक तैनाती वायुसेना के ग्वालियर एयरबेस पर ही है। यही से देश के भीतर और बाहर अपनी तमाम आॅपरेशनल-सामरिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

उड़ान को लेकर विमानों का अच्छा रिकॉर्ड
मिराज-2000 विमान वायुसेना में 1980 के दशक में शामिल हुए थे। तब से इनका उड़ान और सुरक्षा का रिकॉर्ड अच्छा रहा है। वर्ष 2012 में मिराज विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की दूसरी घटना हुई थी। पहला हादसा 30 जनवरी 2012 को चेन्नई में हुआ था। भारत ने फ्रांसीसी कंपनियों से मिराज विमानों के उन्नतीकरण के लिए दो सौदे किए थे। इसमें क रीब 3.2 अरब में विमानों का अपग्रेडेशन किया जाना शामिल है।

विमानों बने आधुनिक-तकनीक संपन्न
दोनों विमानों के उन्नतीकरण का कार्य फ्रांस में थेल्स एयरोपोटर्स सिस्टम्स एंड डेसाल्ट एवीऐशन ने मिलकर किया है। इसमें विमान में लगी तमाम सामग्री को आधुनिक्ता प्रदान की गई है। हथियार प्रणाली दुरुस्त की गई है। अब विमान मारक क्षमता व आधुनिक्ता के लिहाज से पहले से ज्यादा उन्नत हो गया है। आंकड़ों के हिसाब से कुल 43 मिराज विमान हो सकते हैं।

दो और विमान एचएएल में होंगे उन्नत
वायुसेना ने शुरूआत में दो विमानों का उन्न्नतीकरण फ्रांस में कराया है। यह दोनों विमान अपने तय समय से भारत पहुंचे हैं। अब दो और मिराज विमानों को यहां भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में फ्रांसीसी कंपनियों की निगरानी (ओईएम, ओरिजनल इक्यूपमेंट मैन्युफैक्चर) में उन्नत किया जा रहा है। इस कार्य के पूरा होने के बाद एचएएल बिना मिराज विमान निर्माता कंपनियों की निगरानी के विमानों का उन्नतीकरण कार्य करेगी।

सामान्य से कम बारिश का अनुमान, लेकिन सरकार पूरी तैयार

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अप्रैल के महीने में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से त्रस्त किसानों को अब मानसून की बेरुखी का सामना भी करना पड़ सकता है। लेकिन सरकार का कहना है कि इसे लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है। क्योंकि कम मानसून से निपटने के लिए हमारी तैयारी पूरी है। यहां राजधानी में बुधवार को जून से सितंबर महीने के दौरान होने वाली मानसूनी बारिश का दीर्धावधि पूर्वानुमान (एलटीए) जारी करते हुए केंद्रीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने कहा कि इस साल मानसून सामान्य से कम रहेगा। लेकिन इसे लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि सरकार ने मानसून की कमी से निपटने के लिए पूरे इंतजाम कर रखे हैं। उन्होंने कहा कि मानसून सीजन में औसत से कम बारिश होने के पीछे अल-नीनो का कारक जिम्मेदार हो सकता है।

मानसून का मिजाज
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस बार सामान्य की तुलना में 93 (एलटीए) फीसदी बारिश होने की संभावना है। आंकड़ों के हिसाब से यह 35 फीसदी रहेगी। सामान्य बारिश होने की उम्मीद 28 फीसदी है। इस अनुमान में 5 फीसदी कम या ज्यादा रहने की संभावना रहती है। गौरतलब है कि मौसम विभाग ने बीते वर्ष 2014 में मौसम विभाग ने मानसून में सामान्य से 95 फीसदी कम बारिश होने का पूर्वानुमान लगाया गया था। लेकिन वास्तविक बारिश 88 फीसदी के करीब रही।

क्या है अल-नीनो?
वैज्ञानिक अल-नीनो के दौरान समुद्र की सतह पर होने वाली गतिविधि को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि इसमें समुद्र की सतह का पानी काफी गर्म हो जाता है। दूसरे शब्दों में सतही जल का तामपान बढ़ने लगता है, जिससे पानी समुद्र की सतह पर ही रह जाता है इस क्रम में समुद्र के नीचे का पानी ऊपर आने के प्राकृतिक क्रम में भी रूकावट पैदा होती है। यहां बता दें कि अल-नीनो दस साल में दो बार आता है। कभी-कभी यह प्रक्रिया तीन बार भी घटित होती है। अल-नीनो का एक प्रभाव यह भी देखा गया है कि इससे बारिश के पैटर्न में बदलाव देखने को मिलता है, जिसमें कम बारिश वाले क्षेत्रों में ज्यादा बारिश और ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम बारिश देखने को मिलती है। कभी-कभार परिस्थितियां बिलकुल बदली हुई नजर आती हैं।

अगला अनुमान जून में
मानसून को लेकर मौसम विभाग की ओर से अगला अनुमान जून महीने में जारी किया जाएगा। इसमें केरल में मानसून की दस्तक से लेकर इसकी आगे की दिशा के बारे में जानकारी दी जाएगी। विभाग मानसून से संबंधित एक व्यापक रिपोर्ट को अगले महीने 15 मई को जारी करेगा।

जम्मू-कश्मीर में बढ़ सकते हैं आतंकी हमले

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी मसर्रत आलम की गिरμतारी से उपजे तनाव और पत्थरबाजी की लगातर जारी घटनाओं के बीच सेना ने यह अलर्ट जारी किया है कि आने वाले दिनों में आतंकी सूबे की शांति भंग करने को लेकर जी-जान से जुट सकते हैं। इसमें बीते मार्च महीने के दौरान सांबा में हुए आतंकी हमलों की पुनरावृति हो सकती है। सेना की श्रीनगर स्थित 16 वीं कोर के मुखिया ले.जनरल के.एच.सिंह ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि इन हमलों में आतंकी सैन्य प्रतिष्ठानों के अलावा सुरक्षा बलों के ठिकानों को निशाना बना सकते हैं।

यहां बता दें कि मसर्रत की गिरफ्तारी के बाद से घाटी में तनाव पसरा हुआ है। उधर सीमा के उस पार मौजूद आतंकियों के सरगना और 26/11 आतंकी हमलों के मास्टरमांइड हाफिज सईद ने राज्य में आतंक का खूनी खेल खेलने के प्रपंच में आतंकियों के साथ पाक सरकार और सेना की खुली मिलीभगत का एेलान किया है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस वर्ष आतंकियों द्वारा भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर राज्य में प्रवेश करने की 3 बार जनवरी में कोशिश की गई। लेकिन हर बार उन्हें मूंह की खानी पड़ी और अपने नापाक इरादों के साथ ही वापस लौटना पड़ा। वहीं कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे सेना के आतंकवाद रोधी अभियानों में जनवरी में 10 आतंकवादी मारे गए। फरवरी में 6 और मार्च में 4 आतंकियों को सेना ने मार गिराया।

16वीं कोर के मुखिया (जीओसी) ने तराल में हुई हालिया घटना को लेकर कहा कि सेना द्वारा मारे गए युवक के पास से जांच के दौरान हथियार मिले हैं, जिससे यह साफ हो जाता है कि वो आतंकवादी ही होगा। आॅर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (आॅफस्पा) को लेकर उन्होंने कहा कि घाटी के इलाकों में शांति स्थापित हो रही है, लेकिन अभी भी कुछ अराजक तत्व मौजूद हैं।

आतंकवादी वर्ष 2012 में संख्याबल के हिसाब से सबसे अधिक घुसपैठ करने में सफल हुए हैं। 2012 में 121 आतंकियों ने घुसपैठ की। 2013 में यह संख्या 97, 2014 में 60 हो गई। घसपैठ के प्रयासों के दौरान सबसे ज्यादा 238 आतंकी 2010 में मारे गए। 2014 में यह आंकड़ा 65 था। इन अभियानों में 2010 से लेकर 2014 तक कुल 127 सुरक्षाबल शहीद हुए हैं।

....तो पाकिस्तान पर फिर मेहरबान हुआ चीन!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
यूं तो चीन और पाकिस्तान की दोस्ती जगजाहिर है। लेकिन भारत में बीते वर्ष 26 मई को नई सरकार के गठन के बाद तेजी से बदल रहे भू-राजनैतिक परिदृश्य में दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने की चर्चाएं ज्यादा होने लगी हैं। सोमवार 20 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग पाकिस्तान के दो दिवसीय दौरे पर जाने वाले हैं, जिसमें चीन की ओर से पाकिस्तान को करीब 51 अरब डॉलर की आर्थिक मदद की सौगात दी जाएगी।

पाक पर चीनी मेहरबानियां
सरकार के आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति पाकिस्तान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में मदद का भारी-भरकम पिटारा खोलने वाले हैं। इसमें रक्षा क्षेत्र में खासतौर से पाकिस्तान को चीन 8 डीजल चालित परंपरागत पनडुब्बियां देगा। इनकी कुल अनुमानित कीमत 5 बिलियन डॉलर होगी। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में ड्रैगन 12 बिलियन डॉलर की मदद पाकिस्तान को करेगा। ऊर्जा के लिए 34 बिलियन डॉलर की धनराशि दी जाएगी।

भारत से ज्यादा पाक के पास परमाणु हथियार कुछ समय पहले आई स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्ट्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा परमाणु हथियारों का जखीरा है। आंकड़ों के हिसाब से पाकिस्तान के पास 100 से 120 परमाणु हथियार होने की संभावना है। इसकी तुलना में भारत के पास 90 से 100 परमाणु हथियार हैं। सिपरी की रिपोर्ट के हिसाब से भारत-पाक की तुलना में चीन के परमाणु हथियारों का जखीरा दोगुना यानि करीब 250 होने का अनुमान है। वहीं अमेरिका और रूस 7 हजार से 9 हजार परमाणु हथियारों के साथ शीर्ष पर हैं। सिपरी दुनिया के नौ
परमाणु हथियार संपन्न देशों के हथियारों के आधुनिकीकरण और उनके भंडारण पर नजर रखती है।

कुछ महीने से जारी है ये जुगलबंदी
चीन के पाकिस्तान की ओर बढ़ते झुकाव के पीछे बीते कुछ समय से तेजी से विस्तारित हो रहे भारत-अमेरिका संबंध भी हैं। अमेरिका की भारत के जरिए समूचे दक्षिण-एशिया में बढ़ती दखलंदाजी की काट चीन, पाकिस्तान में बढ़-चढ़कर निवेश के जरिए निकालने की ओर बढ़ रहा है। इसमें एक रोचक तथ्य यह है कि चीन ने पाक के साथ रूस को अपने गुट में मिलाने के लिए कवायदें तेज कर दी हैं। हाल में रूस ने चीन को मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 दिया है।

पाक दिवस पर गए जिनपिंग
बीते महीने 23 मार्च को पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मुख्य अतिथि बनाया गया था। इस मौके पर पाकिस्तान ने एक भव्य सैन्य परेड का आयोजन भी किया था। इस परेड का आयोजन पाकिस्तान की ओर से सात साल बाद किया गया। उधर हाल ही में पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने भी चीन का दौरा कर वहां की सरकार के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की थी।

...तो सरकार के साथ बदल गर्इं देश की सामरिक जरूरतें!

कविता जोशी.नई दिल्ली
केंद्र की सत्ता पर नई सरकार को काबिज हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है। लेकिन उसके एक ताजातरीन फैसले से ऐसा लगता है कि सरकार बदलते ही देश की सामरिक जरूरतें भी बदल गईं हैं। मामला यूपीए सरकार के कार्यकाल में पूर्वोत्तर सीमा पर चीन से दो-दो हाथ करने के लिए तैनात की जाने वाली माउंटेन स्ट्राइक कोर (पहाड़ी इलाकों में लड़ाई में सक्षम) के गठन का है। इसके आकार में नई सरकार ने फंड की कमी का हवाला देकर कटौती करने का फरमान सुना दिया है। सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग इस मामले को सोमवार से राजधानी में शुरू हो रहे साप्ताहिक सैन्य कमांडर सम्मेलन में जोर-शोर से उठाने वाले हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सेनाप्रमुख इस मसले पर सेना की सभी कमांडों के प्रमुखों के साथ विस्तार से चर्चा करेंगे। सेना की कुल 6 कोर हैं, जिसमें शिमला स्थित ट्रेनिंग कमांड भी शामिल है। इन सभी का मुख्यालय राजधानी में स्थित है। सम्मेलन का उद्घघाटन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर करेंगे।

पुराने प्रस्ताव में कटौती
यूपीए के पुराने प्रस्ताव के हिसाब से 88 हजार करोड़ रुपए क ी लागत से माउंटेन स्ट्रॉइक कोर के भारी-भरकम ढांचे को खड़ा किया जाना था। इस कोर में 70 हजार जवानों की तैनाती भी प्रस्तावित थी। लेकिन कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री ने यह ऐलान किया कि सरकार कोर के आकार में कटौती करने जा रही है। इसमें कोर पर आने वाली कुल लागत को 88 हजार करोड़ रुपए से घटाकर 38 हजार करोड़ रुपए और जवानों की संख्या को 70 हजार से घटाकर 35 हजार किया जाएगा। गौरतलब है कि नई सरकार के गठन से पहले अपनी चुनावी रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की रक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहते थे कि उसके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। सत्ता संभालने के बाद भी देश की सामरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की कोई कमी न होने देने के बयान दिए जाते थे।

पूर्वोत्तर में भारत की ताकत
इस कोर के गठन के पीछे योजना यह थी कि इसके जरिए अरूणाचल से लगी पूर्वोत्तर सीमा में चीन की चुनौती का आसानी से मुकाबला किया जा सकेगा। रक्षा संबंधी जानकारों के मुताबिक पूर्वाेत्तर में ड्रैगन भारत को आंख दिखाने के लिए या युद्ध जैसी स्थिति में अपनी 30 सैन्य डिवीजन एक साथ लद्दाख से अरूणाचल-प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब ला सकता है। ऐसे में उसकी चुनौती का जवाब देने के लिए भारत के पास भी बराबरी की न सही बल्कि ठीक-ठाक सैन्य ताकत होनी चाहिए। भारत की पूर्वोत्तर में अभी केवल तीन सैन्य कोर तैनात हैं, जिसमें 6 डिवीजन भी शामिल हैं। इसके अलावा लद्दाख में 1 सैन्य डिवीजन है। एक डिवीजन में करीब 15 हजार जवान होते हैं। अभी स्ट्रॉइक कोर की दो डिवीजन गठित की
जा चुकी हैं। कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के पानागढ़ में बनाया जाना है।