शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

ईरानी के ओएसडी संजय कचरू को लेकर बढ़ा विवाद

कविता जोशी.नई दिल्ली

26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तासीन हुई नई सरकार के गठन के बाद से केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय सबसे चर्चित रहा है। अब नई चर्चा मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के ओएसडी संजय कचरू को लेकर हो रही है। विवाद ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि संजय कचरू की नियुक्ति को नियमित करने से डीओपीटी विभाग ने इंकार कर दिया है। हरिभूमि द्वारा इस मामले को लेकर मंत्रालय में पड़ताल करने पर जानकारी मिली कि संजय कचरू अगले सप्ताह की शुरूआत में सोमवार से आॅफिस जॉइन करेंगे। अभी फिलहाल वो कुछ दिनों से छुट्टी पर हैं।

क्या है पूरा मामला?
पिछले साल 26 मई को नई सरकार बनने के बाद संजय कचरू मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के ओएसडी के रूप में मंत्रालय में नियुक्त किए गए। मंत्रालय में आने से पहले वो एक निजी कॉरपोरेट घराने में किसी बड़े पद पर आसीन थे। डीओपीटी से बिना नियमित नियुक्ति के कचरू मंत्रालय से जुड़ी हर  फाइल देख रहे थे। जबकि आधिकारिक रूप से वो ऐसा नहीं कर सकते हैं। हाल ही में मंत्रालय की ओर से संजय कचरू की नियुक्ति को नियमित करने के लिए डीओपीटी विभाग के पास फाइल भेजी गई। लेकिन डीओपीटी ने इसे मंजूरी देने से इंकार कर दिया है।

बिना अधिकार के फाइलों तक पहुंच गलत
एचआरडी मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी नियुक्ति इतने जिम्मेदारी वाले पद पर की जाती है। वो बिना डीओपीटी के नियुक्ति को नियमित कराए विभाग से संबंधित कोई भी फाइल नहीं दे सकते। जबकि एचआरडी मंत्रालय में स्थिति इसके बिलकुल उलट है। वहां कचरू बिना डीओपीटी से नियमित नियुक्ति पाए मंंत्रालय की सभी फाइलें और कामकाज देख रहे थे। सरकारी नियमों के हिसाब से कोई भ्‍ाी गैर सरकारी अधिकारी जिसकी नियुक्ति को डीओपीटी विभाग ने नियमित न किया हो। वो बिना आरटीआई लगाए मंत्रालय से जुड़ी कोई भी फाइल या सूचना प्राप्त नहीं कर सकता। चर्चाएं यहां तक हैं कि मंत्री के पास जाने वाली और वहां से आने वाली हर फाइल संजय कचरू देखते थे।

हितों में टकराव का मामला
संजय कचरू एचआरडी मंत्रालय जॉइन करने से पहले जिस कोरपोरेट घराने के साथ जुड़े हुए थे उनके साथ वो आज भी जुड़े हैं। ऐसे में हितों के टकराव का भी मामला बनता हुआ नजर आ रहा है। कचरू की नियुक्ति को डीओपीटी द्वारा नियमित न किए जाने को लेकर यह भी चर्चाएं जोरो पर हैं कि ऐसा करने से लोगों के बीच मोदी सरकार की छवि खराब हो रही है। इससे यह भ्‍ाी संकेत जा सकता है कि कॉरपोरेट घरानों पर सरकार हर तरह से मेहरबान बनी हुई है। गौरतलब है कि सरकारों में इस तरह के गैर-प्रशासनिक लोगों की नियुक्ति तो पहले भी की जाती रही है। लेकिन उन्हें उस विभाग का मुखिया यानि मंत्री डीओपीटी से नियमित कराता है। ऐसे ही एक गैर प्रशासनिक अधिकारी की ओएसडी के रूप में नियुक्ति का मामला यूपीए सरकार में एचआरडी मंत्री रहे पल्लम राजू के कार्यकाल में भी देखने को मिला था। लेकिन राजू ने बाद में उन्हें डीओपीटी से नियमित करा लिया था।            
     

       

जल्द ही एयर डिफेंस सिस्टम से लैस होगा ‘विक्रमादित्य’

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
भारत के विमानवाहक युद्धपोत को जल्द ही उसका अपना एयर डिफेंस सिस्टम मिलेगा। इसके लिए नौसेना अपने गोदावरी श्रेणी के पोत से इजराइली बराक मिसाइल सिस्टम को लेकर विक्रमादित्य पर लगाने की योजना बना रही है। यह पोत जल्द ही नौसेना की सेवा से बाहर (डिकमीशंड) होने वाला है। यहां बृहस्पतिवार को नौसेना के एक कार्यक्रम से इतर वाइस एडमिरल ए.वी.सूबेदार (कंट्रोलर आॅफ वॉरशिप प्रोडक्शन एंड एक्युजिशन) ने कहा कि हमारी योजना के मुताबिक हम अपने एक पोत में लगे सिस्टम को विक्रमादित्य में स्थानांतरित कर लगाना चाहते हैं। अभी यह सिस्टम पूरी तरह से कार्य कर रहा (आॅपरेशनल) है। दो साल पहले रूस से भारत पहुंचने के बाद अब तक विक्रमादित्य में अपना आत्मरक्षक हथियार तंत्र नहीं लगाया गया है। जब यह रूस से भारत पहुंचने की समुद्री यात्रा मार्ग पर था तब इसे भारत से गए दो जंगी जहाजों और विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विराट ने सुरक्षा कवच प्रदान किया था।

इस एयर डिफेंस सिस्टम को एक छोटी मरम्मत के साथ नौसेना के नवनिर्मित अड्डे कारवार में लगाया जाएगा। यहां बता दें कि विक्रमादित्य पर कम दूरी पर आने हवाई हमलों का जवाब देने की भी क्षमता मौजूद नहीं है। क्योंकि विमानवाहक युद्धपोत में अपना क्लोज इन वेपन सिस्टम (सीआईडब्ल्यूएस) नहीं है। इस मरम्मत कार्य के दौरान ही गोदावरी श्रेणी के पोत सीआईडब्ल्यूएस सिस्टम विक्रमादित्य में लगाया जाएगा।

गौरतलब है कि विक्रमादित्य की लंबाई 284 मी., बीम 60 मी. है। जहाज में कुल 1600 लोग काम कर रहे हैं। संचालन क्षमता भ्‍ाी विक्रमादित्य की काफी ज्यादा है। इसे रोजाना लाखों में अंडे, 20 हजार लीटर दूध और 16 टन चावल की हर महीने जरूरत होती है। अपने राशन के पूरे स्टॉक के साथ विक्रमादित्य समुद्र में करीब 45 दिन देश की तटीय सीमाओं की मुस्तैदी से सुरक्षा कर सकता है। 

शिथिल पड़ रहे भारत-रूसी रिश्तों में बढ़ेगी गर्मजोशी

मॉस्को विक्ट्री डे परेड में पहली बार मार्च करेगी भारतीय सैन्य टुकड़ी
कविता जोशी.नई दिल्ली

बीते कुछ समय से तेजी से बढ़ रहे भारत-अमेरिका संबंधों के बीच शिथिल पड़ते दिखाई दे रहे भारत और रूस के रिश्तों में एक बार फिर गर्माहट लौटने वाली है। इसके लिए मौका होगा अगले महीने की 9 तारीख को रूस के लाल चौक पर होने वाली ‘मॉस्को विक्ट्री डे परेड’ का। इसमें पहली बार भारतीय सेना की टुकड़ी रूसी रणबांकुरों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए मार्च करती हुई नजर आएगी।

यहां रक्षा मंत्रालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि यह पहला मौका है जब रूसी विक्ट्री डे परेड 2015 में भारतीय सेना की टुकड़ी भाग लेगी। यह टुकड़ी थलसेना की ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट की होगी, जिसके करीब 70 जवान परेड में हिस्सा लेंगे। यहां बता दें कि वर्ष 1779 में बनी ग्रेनेडियर्स ने आजादी से पहले तीन विक्टोरिया क्रॉस जीते थे और आजादी के बाद इस रेजीमेंट के नाम तीन परमवीर चक्र दर्ज हैं। गौरतलब है कि इसी वर्ष के मध्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी रूस का दौरा करेंगे।

राष्ट्रपति भी जाएंगे रूस
परेड में हिस्सा लेने के लिए भारत की ओर से खासतौर पर भारतीय सेनाओं के शीर्ष कमांडर प्रणब मुखर्जी भी रूस के लाल चौक जाएंगे। वर्ष 2010 से पहली बार किसी विदेशी टुकड़ी के इस परेड में हिस्सा लेने की शुरूआत हुई। अब तक इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाड़ा और पोलैंड जैसे देशों की सैन्य टुकड़ियां शामिल हो चुकी हैं। 2015 में यह सम्मान भारतीय सेना को मिलेगा।

नाजी जर्मनी पर जीत का उत्सव
रूस हर साल 9 मई को विक्ट्री डे परेड का आयोजन नाजी जर्मनी पर दूसरे विश्व युद्ध में अपनी जीत के जश्न के रूप में मनाता है। विक्ट्री डे परेड का पहला समारोह 1945 में आयोजित हुआ था। 1945 में 9 मई को ही जर्मन सेना ने रूस के सामने अपने हथियार डाले थे। 20वें (वर्ष 1965) और 40वें (वर्ष 1985) समारोह का छोड़कर बाकी समय कभी भी सैन्य परेड का आयोजन नहीं किया गया था। इस परंपरा की शुरूआत वर्ष 1995 से हुई।

क्रीमिया विवाद से पश्चिमी देशों ने बनाई दूरी
परेड में दुनिया के करीब 26 शीर्ष नेताआें के शिरकत करने की संभावना है। वर्ष 2015 की यह परेड रूस के इतिहास में हुई सबसे भव्य परेड हो सकती है। रूस द्वारा क्रीमिया पर किए गए हमले से नाराज पश्चिम देश इस बार परेड में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं। इन देशों ने वर्ष 2010 में हुई परेड में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल का 10 मई को मॉस्को का पहले से प्रस्तावित दौरा है। लेकिन वो भी विक्ट्री डे परेड के अगले दिन ही मॉस्को पहुंचेंगी।

यूएन शांति मिशन में भारत को हो निर्णय का अधिकार: सुहाग

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

संयुक्त राष्ट्र के तहत दुनिया के हिंसाग्रस्त इलाकों में तनाव खत्म करने के लिए भेजी जाने वाली शांति सेनाओं के मुद्दे पर अब भारत को भी निर्णय लेने का अधिकार मिल सकता है। इस बाबत भारत सरकार की ओर से तैयार एक वृहद प्रस्ताव को हाल ही में सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के समक्ष पेश कर दिया है। जल्द ही यूएन की ओर से इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।

निर्णय में हो भागीदारी
यहां रक्षा मंत्रालय में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने कहा कि बीते मार्च महीने में सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग के न्यूयार्क दौरे में इस बारे में जरूरी तथ्य यूएन के साथ साझा किए गए। जनरल सुहाग ‘चीफ्स आॅफ डिफेंस कांफ्रेंस’ में भाग लेने के लिए 26 और 27 मार्च को यूएन मुख्यालय न्यूयार्क गए थे। उन्होंने सम्मेलन में दिए अपने संबोधन की शुरूआत में ही यूएन शांति मिशन सेना से जुड़े निर्णय संबंधी मामलों से जुड़े विभिन्न मंचों पर भारत की भागीदारी किए जाने का मुद्दा पुरजोर ढंग से उठाया। गौरतलब है कि भारत की एशियाई देशों में संख्याबल के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र शांति सेना मिशन के तहत तेजी जाने वाली फौज के मामले में बड़ी भागीदारी है। लेकिन सेनाओं से जुड़े तमाम मुद्दों पर निर्णय लेने के मामले में बातचीत या इस तरह की अन्य प्रक्रिया में भारत को कोई भागीदारी यूएन की ओर से नहीं दी गई है। अब भारत की ओर से इसकी साफ तौर पर वकालत कर दी गई है।

110 देशों के सेनाप्रमुख हुए शामिल
सूत्र ने कहा कि सम्मेलन में दुनिया के करीब 110 देशों के सेनाप्रमुख शामिल हुए। इसमें अमेरिका, चीन, जर्मनी, फ्रांस, कनाड़ा, रूस शामिल हैं। सम्मेलन में पाकिस्तान के सेनाप्रमुख शामिल नहीं हुए थे। उनकी ओर से ले.जनरल रैंक के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को सम्मेलन में भेजा गया था। भारत इस मिशन के तहत भेजी जाने वाली सेना में सर्वाधिक योगदान करता है। आंकड़ों के हिसाब से भारत ने इन मिशनों के लिए 1 लाख 80 हजार फौज की रवानगी की हुई है। यह लोग यूएन के करीब 12 शांति अभियानों में मुस्तैदी से तैनात हैं। सेनाप्रमुख ने कहा कि भारत, यूएन के सिद्धांतों का पूरी ईमानदारी से पालन करता है। इसमें हिंसाग्रस्त इलाके की गहन पड़ताल के बाद आत्मरक्षा में फौज का इस्तेमाल करना भी शामिल है।

भारत का योगदान
भारत का योगदान पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाद तीसरी सबसे बड़ी फौज के रूप में है। भारत के यूएन शांति मिशन में अभी 7 हजार 200 जवान तैनात हैं। इनमें कांगो, दक्षिणी-सूडान, लेबनान, गोलान हॉइट्स में भारतीय सैनिकों की टुकड़ियां लगी हैं। इराक, आॅइवरी-कोस्ट, सूडान, सोमालिया और पश्चिमी-सहारा में पर्यवेक्षक (आॅब्जर्वर) और स्टॉफ अधिकारी तैनात हैं।


राफेल विमान से जुड़ा पुराना सौदा रद्द

देश की सामरिक जरूरतों को तत्काल पूरा करेंगे 36 राफेल विमान
कविता जोशी.नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर किए गए समझौते के ऐलान के बाद उनकी अपनी ही पार्टी के अंदर मचे घमासान पर सोमवार को रक्षा मंत्री मनोहर ने यह कहकर पूरी तरह से विराम लगा दिया कि प्रधानमंत्री ने यह सौदा देश की सामरिक जरूरतों को तत्काल पूरा करने के तर्क को ध्यान में रखकर किया है जो कि बिलकुल ठीक है। यहां रक्षा मंत्रालय में रक्षा संवाददाताआें से हुई औपचारिक बातचीत में रक्षा मंत्री ने कहा कि इन 36 राफेल विमानों की खरीद का समझौता भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच किया गया है। लेकिन यह सभी विमान वायुसेना के लड़ाकू विमानों के मौजूदा मारक बेड़े की लगातार कुंद पड़ रही रफ्तार को धार देने में सक्षम होंगे। यहां बता दें कि बीते दिनों पीएम मोदी ने जब अपनी फ्रांस यात्रा में 36 राफेल विमान सीधे फ्रांस सरकार से खरीदने की घोषणा की तो उसके तुरंत बाद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राफेल विमानों की गुणवत्ता और मारक क्षमता पर गंभीर सवालिया निशान लगाए। स्वामी की टिप्पणी प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली और रक्षा मंत्रालय द्वारा वायुसेना की जरूरतों को लेकर किए जा रहे फैसलों पर सीधे प्रश्नचिन्ह लगा रही थी। इसका जवाब रक्षा मंत्री ने पत्रकारों से हुई बातचीत के दौरान दिया।  

पर्रिकर ने कहा कि फ्रांसीसी कंपनी डेसाल्ट एवीऐशन से खरीदे जाने वाले 126 एमएमआरसीए विमानों के पूर्ववर्ती सौदे का अब कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि हम किसी एक ठोस विकल्प को लेकर ही आगे बढ़ सकते हैं। दो रास्तों की ओर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। वहीं दूसरी ओर पीएम द्वारा 36 विमानों की सीधी खरीद का निर्णय सौदे की पुरानी प्रक्रिया की धीमा रफ्तार, लगातार दोनों पक्षों के बीच बातचीत का किसी नतीजे पर न पहुंचने और सौदे से जुड़ी अन्य पेचीदिगियों की वजह से उत्पन्न हुआ। सभी 126 विमानों की खरीद वित्तीय आधार पर भी काफी बड़ा सौदा होती। उन्होंने प्रधानमंत्री के इस निर्णय को साहसिक बताते हुए कहा कि इससे देश की रणनीतिक-सामरिक आवश्यकताएं तुरंत पूरी होंगी। 36 राफेल विमानों की ये 2 स्क्वॉड्रन भारतीय वायुसेना को करीब चार सालों में मिल जाएगी।

36 विमानों के बाद मेक इन इंडिया कार्यक्रम के भविष्य को लेकर पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा कि अभी मेक इन इंडिया और शेष विमानों को लेकर रक्षा मंत्रालय की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। अब यह मामला भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच का है। इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर भी आने वाले समय में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल बातचीत करेंगे। जहां तक वायुसेना के लड़ाकू विमानों के मारक बेड़ें की कुल क्षमता यानि 42 स्क्वॉड्रन का मसला है तो उसकी काफी हद तक भरपाई इस सौदे के अलावा वायुसेना को आगामी 6 वर्षों में मिलने वाले लघु (एलसीए-तेजस) और बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों (सुखोई-30, उन्नत मिग-21 लड़ाकू विमान) की बड़ी खेप की आवक से हो जाएगी। रक्षा मंत्री ने कहा कि बीते छह महीने के दौरान वायुसेना के मारक बेड़ें की लगातार गिर रही क्षमता में 7 फीसदी तक का सुधार हुआ है। उन्होंने मंत्रालय द्वारा सशस्त्र सेनाओं के लिए की जाने वाली हथियारों की खरीद से इतर दुनिया की तमाम सरकारों के बीच किए जाने वाले समझौते को एक बेहतर विकल्प बताया।         

साक्षर भारत अभियान के विस्तार में यूपी-बिहार कायम करेंगे मिसाल

कविता जोशी.नई दिल्ली
देश में महिलाओं में साक्षरता की दर को बढ़ाने के लिए शुरू किए गए साक्षर भारत अभियान का वृहद जनसंख्या वाले राज्य उत्तर-प्रदेश और बिहार में बहुत अच्छा रिस्पांस देखने को मिल रहा है। इसमें एक खास बात यह है इन दोनों राज्यों की सरकारों ने अपने यहां योजना को लागू करने को लेकर जमीनी स्तर पर काफी प्रयास किए हैं, जिसकी वजह से यह अभियान तेजी से उनके यहां सफल हुआ। यहां बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि उत्तर-भारत के इन दोनों राज्यों के प्रयास दूसरे राज्यों के लिए भी क्‍या मिसाल कायम कर पाएंगे? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिल जाएगा।

यहां केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में साक्षर भारत अभियान के तहत राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण (एनएलएमए) के महानिदेशक और संयुक्त सचिव डॉ. वाई.एस.के.शेषु कुमार ने कहा कि इस अभियान के तहत साक्षरता का प्रमाणपत्र जारी करने को लेकर शुरू की गई साक्षरता परीक्षा को लेकर उत्तर-प्रदेश और बिहार की सरकारों की ओर से ग्राउंड लेवल पर कई प्रयास किए गए। इन राज्यों में इस कार्यक्रम के सफल होने के पीछे सरकारों की यही सक्रिय भूमिका एक बड़ी वजह बनी।

उत्तर-प्रदेश सरकार इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले परीक्षार्थियों की पेंशन में हर महीने 50 रूपए जमा करवाती है। सरकार को लगता है कि यह आसान तरीका है इस योजना को लोगों के बीच चर्चित कराने का। वहीं बिहार सरकार इस अभियान को बढ़ाने के लिए स्कूली युवाआें को उनकी वार्षिक परीक्षा के रिजल्ट में 10 अतिरिक्त नंबर दे रही है। ये वो युवा हैं जो खाली समय में इस कार्यक्रम के तहत परीक्षा देने के इच्छुक लोगों को पढ़ा रहे हैं।

गौरतलब है कि इस परीक्षा को ग्रामीण भागों में रहने वाले ज्यादातर वो लोग देते हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। या फिर कुछ कक्षाएं पढ़कर बीच में ही स्कूल छोड़ दिया। परीक्षा में बैठने वाले लोगों की उम्र 14 वर्ष से अधिक होती है। साल में दो बार (मार्च-अगस्त महीने में) इस परीक्षा का आयोजन किया जाता है। बीते 15 मार्च को हुई परीक्षा में देश में कुल 85 लाख लोगों ने यह परीक्षा दी। इसमें सबसे ज्यादा 26 लाख लोग यूपी से शामिल हुए। बिहार से 12 लाख लोग परीक्षा देने आए। जल्द ही राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) परीक्षा के परिणाम की जानकारी एचआरडी मंत्रालय को सौंपेगा जिसके बाद परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले लोगों का वास्तविक आंकड़ा मिल पाएगा।

इस कार्यक्रम के जरिए मंत्रालय की योजना साक्षरता की दर को 2017 तक 80 फीसदी करना और साक्षरता में लैंगिग अंतर को कम करके 10 फीसदी तक करना है। खासकर महिलाओं पर केंद्रित इस कार्यक्रम को खासकर उन इलाकों में लागू किया जा रहा है जहां 2001 की जनगणना के हिसाब से वयस्क महिला साक्षरता की दर 50 फीसदी से कम है।   

वायुसेना के इन हवाईअड्डों से कैसे होंगे दुश्मन से दो-दो हाथ

वायुसेना के हवाईअड्डों के पुर्ननिर्माण कार्य पर आॅडिट बम का धमाका

कविता जोशी.नई दिल्ली
देश की हवाई सीमाओं की सुरक्षा में सदैव तत्पर रहने वाली भारतीय वायुसेना के हवाईअड्डों (एयरबेस) की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि अगर आज की तारीख में दुश्मन हमला कर दें तो उससे दो-दो हाथ करना मुश्किल हो जाए। इस तथ्य का खुलासा रक्षा मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2014-15 में उद्घघाटित किए गए आॅडिट के अंशों में हुआ है। आॅडिट के तथ्यों की पड़ताल के दौरान पता चलता है कि वायुसेना के 10 हवाईअड्डों के पुर्ननिर्माण के लिए कार्य का वितरण देरी से हुआ। इसमें खासकर हवाईअड्डों के सबसे महत्वपूर्ण अंग माने जाने वाले रनवे के पुर्ननिर्माण कार्य और ब्लास्ट पैन (यह वो स्थान है जहां लड़ाकू या अन्य विमानों को दुश्मन की पैनी निगाहों से सुरक्षित रखा जाता है) से जुड़े कार्य में बहुत विलंब हुआ। इससे समय की बर्बादी और लागत में कई गुना इजाफा हुआ।  

आॅडिट की टिप्पणियां
रिपोर्ट में वायुसेना के हवाईअड्डों की पुर्ननिर्माण कार्यप्रणाली की सुस्त रफ्तार पर कड़ा प्रहार किया गया है। कार्य के वितरण के बाद अचानक हवाईपट्टी के डिजाइन में बदलाव किए गए जिससे समय और कीमत यानि लागत में सीधे इजाफा हुआ।

तीन हवाईअड्डों के रनवे मरणासन्न
वायुसेना के तीन हवाईअड्डों के रनवे मरणासन्न हालत में हैं। इनकी स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि यहां से लड़ाकू विमानों का आॅपरेट करना नामुकिन हो गया है। यहां बता दें कि वायुसेना के सभी हवाईअड्डों में रनवे की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रनवे से ही वायुसेना के विमान (लड़ाकू, परिवहन, हेलिकॉप्टर) शांतिकाल और युद्धकाल में अपने सभी अभियान चलाते हैं।

वायुसेना की 7 कमांड और 60 हवाईअड्डे
वायुसेना की देश में कुल 7 आॅपरेशनल कमांड हैं, जिनमें से नई दिल्ली स्थित पश्चिमी कमांड सबसे बड़ी कमांड है। इसमें कुल 16 हवाईअड्डे आते हैं। पूर्वी कमांड में वायुसेना के 15 हवाईअड्डे आते हैं। केंद्रीय कमांड में 7 हवाईअड्डे, दक्षिणी-कमांड में 9 हवाई अड्डे और दक्षिणी-पश्चिमी कमांड में 12 हवाईअड्डे आते हैं। पश्चिमी-कमांड में जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिप्र और यूपी का कुछ इलाका आता है। पूर्वी कमांड में पूर्वोत्तर के राज्य आतें हैं। केंद्रीय कमांड में यूपी, मप्र और केंद्रीय भारत के आस-पास का कुछ इलाका आता है। दक्षिणी-कमांड में द.भारतीय राज्यों के अलावा अंडमान-निकोबार के दो हवाईअड्डे भ्‍ाी आते हैं। द.पश्चिमी कमांड में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य आते हैं। द.कमांड में पड़ने वाले हवाईअड्डों की सामरिक महत्ता अन्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। क्योंकि भारत के शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान की नाक के नीचे से सीधे आॅपरेट करते हैं।  
   
गुणवत्ता की कमियों से भरा कार्य
रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि वायुसेना ने रनवे पुननिर्माण कार्य के दौरान जिस कांट्रेक्टर को कार्य वितरित किया गया उसके कार्य की गुणवत्ता दोयम दर्जे की थी। साथ ही इस तमाम कार्य की निगरानी में भी ढिलाई बरती गई।         

पुराने पीएचडी धारकों को एक और मौके की तैयारी

यूजीसी ने एचआरडी मंत्रालय को भेजा सुझाव
मंत्रालय इस दिशा में एक पखवाड़ें में उठाएगा बड़ा कदम 
2009 तक 10 लाख लोगों ने कराया पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन  

कविता जोशी.नई दिल्ली
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय वर्ष 2009 से पहले पीएचडी करने वालों की भविष्य सुरक्षा करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2012 में दिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाने को लेकर फैसला किया जा सकता है। यहां बता दें कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिन लोगों ने 2009 से पहले पीएचडी की है उन्हें लेक्चरर या अस्सिटेंट प्रोफेसर बनने से पहले नेट या जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा।

एचआरडी मंत्रालय के उच्चदस्थ सूत्र ने हरिभूमि से खास बातचीत में कहा कि हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन साथ ही मंत्रालय के लिए उन तमाम लोगों की भविष्य की सुरक्षा करना की जिम्मेदारी बनता है जिन्होंने 2009 से पहले पीएचडी की है। सूत्र ने कहा यूजीसी ने इस बाबत एक सुझाव मंत्रालय को कुछ महीने पहले सौंपा है। मंत्रालय में उस पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस बात की संभावना है कि आगामी एक पखवाड़े के अंदर मंत्रालय इस संबंध में कोई फैसला करे।

यूजीसी के एक वरिष्ठ सूत्र ने हरिभूमि से कहा कि कोर्ट का इस बाबत 2012 में आदेश दिया गया था। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2009 में 10 लाख लोगों ने पीएचडी के लिए रजिस्टर कराया था। ऐसे में कोर्ट के फैसले को लागू कर देने से इन तमाम लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। इन लोगों को मौका दिया जाना चाहिए। यूजीसी ने मंत्रालय को भेजे अपने सुझाव में इस तथ्य का जिक्र किया है। साथ ही यह भी कहा है कि जिन लोगों ने 2009 तक पीएचडी की है। अब 6 साल बीते जाने के बाद 2015 में उनके लिए नेट या जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण करना तर्कहीन नजर आता है। इसके पीछे कारण इस आंकड़ें में कई महिलाओं का शामिल होना भी है जिन पर अब घरेलू जिम्मेदारियों का भार भी हो सकता है। साथ ही कई लोगों उम्र की अधिकता की वजह से भ्‍ाी परीक्षा देने में समर्थ नहीं हो सकते।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वर्ष 2012 में आया था। उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी। लेकिन उनका रवैया इस मुद्दे पर काफी ढीलाढाला रहा। लेकिन नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सत्ता पर काबिज नई सरकार इस मामले को लेकर बेहद संजीदा है और वो इन तमाम लोगों की भविष्य सुरक्षा की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने की ओर बढ़ रही है।

पर्यावरणीय मुद्दों का हल निकालने में बजट नाकाफी

केंद्र सरकार द्वारा बीते शनिवार को लोकसभा में पेश किए गए बजट-2015 में पर्यावरणीय मुद्दों का गंभीरता से निदान निकालने के  कोई उपाय नहीं किए गए। यह कहना है देश के प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठन केंद्रीय विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) का। सीएसई के उप-महानिदेशक चंद्रभूषण का कहना है कि सरकार का पानी की गुणवत्ता, मृदा स्वास्थ्य और आर्गेनिक खेती की ओर ध्यान केंद्रित करना एक अच्छा कदम है। आर्गेनिक खेती और पानी की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए सरकार ने 5 हजार 300 करोड़ रूपए की योजना को मंजूरी दी है। लेकिन इस तरह के कार्यक्रमों की अर्थव्वयस्था के हर क्षेत्र के लिए जरूरत है, जिससे विकास सही मायनों में स्वच्छ और ग्रीन हो।

सीएसई ने अपने एक बयान में कहा कि सरकार द्वारा बजट में कोयले पर सेस लगाने का एलान किया गया है। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए पर्याप्त नहीं है। बढ़ते हुए वायु प्रदूषण के मसले पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। डीजल और एसयूवी कारों पर ना तो कोई अतिरिक्त टैक्स लगाया गया। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से कम से कम 10 साल तक प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। क्लीन गंगा फंड और स्वच्छ भारत अभियान के लिए कोई स्पष्ट रणनीति नहीं बनाई गई। पर्यावरण-वन, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के फंड नहीं बढ़ाए। यह तमाम मुद्दे पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

बजट में नदियों की सफाई के लिए कोई मजबूत प्रस्ताव नहीं रखा गया। इसमें गंगा नदी भी शामिल है। आंकड़ों के हिसाब से हमारी नदियों में शहरों से निकलने वाले 90 फीसदी सीवेज सीधे डाला जाता है। यह प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है। इस काम को करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश की आवश्यकता है। दूसरी ओर स्वच्छ भारत अभियान में 2 फीसदी के हिसाब से स्वच्छ भारत सेस लगाया गया है। शौचालय निर्माण कार्य को बढ़ावा देने की बात कही गई है। लेकिन भारत को शौचालयों के अलावा और भी बहुत कुछ की दरकार है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की बात करें तो इस बार बीते तीन वर्षों में मंत्रालय को सबसे कम बजट दिया गया। यह कटौती ऐसे वक्त में की गई है जब कई गांवों में माइग्रेशन का उलटा चक्र चल रहा है और मनरेगा के तहत ज्यादातर ग्रामीणों को पैसा नहीं मिलने का बैकलॉग भी बना हुआ है।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

आॅपरेशन राहत के नाम से चलेगा यमन अभियान

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

यमन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत की ओर से अभियान तेज कर दिया गया है। सरकार ने इस अभियान को आॅपरेशन राहत का नाम दिया है। नौसेना के दो जंगी जहाज आईएनएस मुंबई (डिस्ट्रायर) और तरकस (स्टेल्थ फ्रिगेट) सोमवार शाम जिबूती बंदरगाह के लिए रवाना हो गए हैं। इसके अलावा नौसेना का एक अन्य जहाज आईएनएस सुमित्रा अदन की खाड़ी में दाखिल होने के लिए वहां के स्थानीय स्तर पर मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहा है। इसके बाद वो अदन के बंदरगाह से होते हुए जिबूती पहुंचकर वहां मौजूद भारतीयों की सुरक्षित वापसी के अभियान का आगाज करेगा। इसके अलावा दो यात्री जहाज कवाराती और कोर्रल्स ने 30 मार्च को कोचीन से अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। यह सभी जहाज अरब सागर में एक जगह पर इकट्टा होकर जिबूती बंदरगाह की ओर संयुक्त अभियान के तहत आगे बढ़ेंगे। यहां बता दें कि बाकी चार जहाज 4 अप्रैल को जिबूती पहुंचेंगे।

योजना के मुताबिक सुमित्रा अदन से करीब 400 लोगों को लेकर जिबूती पहुंचाएगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि नौसेना के आईएनएस मुंबई और तरकस इस बेड़े को सुरक्षा कवच भी प्रदान करेगा। अब तक इस अभियान में कुल 5 जहाज शामिल हो चुके हैं। नौसेना के दो जहाजों आईएनएस मुंबई और तरकस की रवानगी की पुष्टि मंगलवार को उप-नौसेनाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने वाले वाइस एडमिरल पी.मुरूगेशन ने भी पुष्टि की है। यह दोनों जहाज दल में शामिल तीन अन्य जहाजों की समुद्री डाकुआें से भी सुरक्षा करेंगे।

वायुसेना भी यमन में जारी हिंसा के बीच फंसे भारतीयों की सकुशल वापसी के अभियान में शामिल होने को पूरी तरह से मुस्तैद है। उसके दो विशालकाय अत्याधुनिक परिवहन विमान सी-17 ग्लोबमास्टर पालम हवाईअड्डे पर स्टैंडबॉय स्थिति में तैनात है। सरकार की ओर से उड़ान भरने का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद वो जिबूती की ओर अपनी उड़ान शुरू कर देंगे। गौरतलब है कि यमन में करीब 4 हजार भारतीय फंसे हुए हैं। इसमें यमन की राजधानी सना में 3 हजार 500 लोग, अदन में करीब 500 लोग मुसीबत में हैं। फंसे हुए लोगों में आधी संख्या यानि 50 फीसदी महिलाएं हैं। इसके अलावा कुछ लोग यमन के अस्पतालों में भी शरणागत हैं। मुंबई से रवाना दोनों नौसैन्य जहाजों को जिबूती पहुंचने में करीब 4 दिन का समय लगेगा। नौसेना का यह अभियान करीब 4 हजार किमी. के इलाके में चल रहा है।

एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति-सुरक्षा के लिए जापान-भारत दोस्ती जरूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत और जापान के मजबूत संबंधों का लाभ दोनों देशों के राष्ट्रीय हित के लिए ही नहीं बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र से लेकर हिंद महासागर में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह बातें सोमवार को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात के दौरान कही। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के तीन दिवसीय जापान दौरे की शुरूआत हो चुकी है। इसमें सोमवार को पहले दिन उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे और जापान के रक्षा मंत्री जनरल नकातानी से भी मुलाकात की। रक्षा मंत्री 1 अप्रैल को भारत वापस लौटेंगे। यहां बता दें कि भारत, जापान से करीब 12 यूएस-2 एंफीबियस जहाज (जमीन और जल में कार्य करने में सक्षम) खरीदने का सौदा कर सकता है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर भी जापानी अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे।

रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जापानी पीएम ने कहा कि वो भारत के साथ आर्थिक क्षेत्र के अलावा रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भी मजबूत संबंध बनाने के इच्छुक हैं। साथ ही उन्होंने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति-सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी दोनों देशों के संबंधों को महत्वपूर्ण बताया। उधर दोनों रक्षा मंत्रियों ने अपनी मुलाकात के दौरान एक-दूसरे को अपने आसपास की सुरक्षा परिस्थितियों और रक्षा नीतियों से वाकिफ करवाया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिस्थिति के मद्देनजर एशिया-प्रशांत क्षेत्र और हिंद महासागर क्षेत्र के सामरिक परिदृश्य की भी समीक्षा की।

गौरतलब है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के दो महत्वपूर्ण छोरों दक्षिणी-चीन सागर और पूर्वी-चीन सागर में तेजी से बढ़ती चीनी गतिविधियों को लेकर भी जापान बेहद चिंतित है। एक ओर चीन ने द.चीन सागर के सभी द्वीपों पर नौ लघु रेखाएं खींचकर (नाइन डैश लाइंस) अपनी अकेली संप्रभुत्ता घोषित कर दी है, जिससे उसका बू्रनेई, फिलीपींस और ताइवान जैसे देशों के साथ उसका विवाद चल रहा है। वहीं पूर्वी चीन सागर में सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर जापान और चीन के बीच तनातनी चल रही है। इन दोनों इलाकों की सामरिक महत्ता बहुत ज्यादा है। क्योंकि इन जगहों से होकर दुनिया का आधे से अधिक व्यापार होता है। दोनों रक्षा मंत्रियों ने बीते वर्ष सितंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान रक्षा के क्षेत्र में हुए सहयोग
समझौते का भी स्वागत किया। जापानी रक्षा मंत्री अगले वर्ष 2016 में भारत का दौरा करेंगे।

मुलाकात के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद जापान पहला देश है, जिसका उन्होंने दौरा किया है। उन्होंने कहा कि वो रक्षा उपकरणों और तकनीक के मामले में जापान के साथ सशक्त साझेदारी बनाने के इच्छुक हैं।

नौसेना की शीर्ष रणनीतिक पश्चिमी कमांड का दौरा करेंगे पर्रिकर

कविता जोशी.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जापान से लौटने के बाद इस सप्ताह के अंत में रविवार को नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी-कमांड का दौरा करेंगे। उनका यह दौरा एक दिन होगा और वो रविवार शाम को ही दिल्ली वापस लौट आएंगे। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री ने बीते वर्ष नवंबर में मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद सबसे पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी सीमा में पड़ने वाले श्रीनगर का दौरा किया था। यहां थलसेना की महत्वपूर्ण रणनीतिक 15वीं कोर तैनात है जो घाटी के अंदर और बाहर आतंकवादियों के नापाक इरादों को ध्वस्त करने में लगी हुई है। श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी के नाम से भी चर्चित है।

दौरे की खास बातें
यहां रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि रक्षा मंत्री पर्रिकर का नौसेना की किसी कमांड का यह पहला दौरा होगा। इसमें वो इसके मुंबई स्थित हेडक्वार्टर जाकर समूची कमांड और वहां जारी तमाम गतिविधियों का गहराई से निरीक्षण करेंगे। इस दौरे में रक्षा मंत्री रक्षात्मक और सामरिक उपकरण बनाने वाले मुंबई के मझगांव डाकयार्ड लिमिटेड (एमडीएल) भी जाएंगे। एमडीएल में नौसेना की कई अहम परियोजनाआें पर काम चल रहा है। इसमें 14 अल्फा प्रोजेक्ट के तहत 4 जंगी जहाज बनाए जा रहे हैं, 15 ब्रावो प्रोजेक्ट के तहत दो जहाज बनाए जा रहे हैं। इसमें से एक जहाज आईएनएस कोलकात्ता नौसेना को सौंपा जा चुका है। 6 स्कॉर्पीन पनडुब्बियों पर भी एमडीएल में ही काम चल रहा है।

पश्चिमी कमांड का महत्व
देश की सामरिक सुरक्षा और रणनीतिक लिहाज से नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी-कमांड को उसकी बाकी कमांडों की तुलना में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां नौसेना के विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विराट से लेकर नौसेना का विशालकाय जंगी बेड़ा चौबीसों घंटे देश की सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहता है। इसमें दिल्ली क्लास के डिस्ट्रायर (जंगी जहाज) से लेकर तलवार-गोदावरी क्लास के फ्रिगेट समेत बेतवा क्लास का गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट और टेंकर शामिल है। पश्चिमी कमांड में ही नौसेना की एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियां भी तैनात हैं।

नौसेना की कुल कमांड
नौसेना की कुल तीन कमांड हैं। इसमें पश्चिमी कमांड का मुख्यालय मुंबई है। पूर्वी कमांड का मुख्यालय विशाखापट्टनम में और दक्षिणी कमांड का मुख्यालय कोच्चि में है। इनमें रणनीतिक लिहाज से मुंबई स्थित पश्चिमी कमांड को शीर्ष में रखा जाता है।

डीएसी ने दी 8 हजार 365 करोड़ रूपए के रक्षा सौदों को मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की शनिवार को हुई बैठक में 8 हजार 365 करोड़ रूपए के रक्षा सौदों को मंजूरी दी गई। इसमें सबसे बड़ा प्रस्ताव वायुसेना के लिए 2 अवॉक्स टोही विमान ए-330 (एवॉक्स) की खरीद का था जिसे मंजूरी दी गई। इस प्रस्ताव की कुल लागत 5 हजार 113 करोड़ रूपए है। वायुसेना के लिए कुल 6 अवॉक्स टोही ए-330 खरीदे जाएंगे। करीब दो घंटे तक चली यह डीएसी की बैठक सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुई, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने की। बैठक में नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन, वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल अरुप राहा, रक्षा सचिव आर.के.माथुर समेत मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

बैठक के बाद रक्षा मंत्री शाम को अपने तीन दिवसीय जापान दौरे पर रवाना हो जाएंगे। रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने कहा कि बैठक में थलसेना के लिए जमीनी बारूदी सुरंगें हटाने वाले ट्रैक माउंटेड लिफटेड डिवाइस (माइन प्लाऊ) की खरीद के प्रस्ताव को भी स्वीकृति दी गई है। कुल 1 हजार 512 डिवाइस खरीदे जाएंगे जिनकी कुल लागत 710 करोड़ रूपए होगी। यहां बता दें कि अभी तक बीईएमएल से बॉय एंड मेक श्रेणी के तहत इनकी खरीद की जाती थी। लेकिन इस बार मेक इन इंडिया अभियान के तहत इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाए जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

सेना के एक अन्य प्रस्ताव को भी बैठक में मंजूर किया गया है, जिसमें बीईएल द्वारा 30 वैपन लोकेटिंग रडॉर ‘स्वाति’ बनाएगा। इनकी कुल कीमत 1 हजार 605 करोड़ रूपए होगी। भारी वाहनों पर इस रडॉर सिस्टम को लगाया जाएगा। डीएसी ने सेना के लिए 24 करोड़ रूपए की लागत वाले ट्रक माउंटेड लिफटेड डिवाइस (टीएमएलडी) की खरीद के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। यह कुल 220 डिवाइस खरीदे जाएंगे। यहां बता दें कि यह डिवाइस लगभग 1 टन वजनी भार तक उठा सकेगा। डीएसी की बैठक में नौसेना के लिए 22 हारपून (एचडीडब्ल्यू) मिसाइलों की खरीद के प्रस्ताव को भी स्वीकृति दी गई। इस प्रोजेक्ट की कुल कीमत 913 करोड़ रूपए है। डीएसी ने मिसाइलों की खरीद से जुड़े आॅफसेट संबंधी दिशानिर्देंश को भी स्वीकृति दे दी है।

राष्ट्रपति की मंजूरी के इंतजार में आईआईटी निदेशकों की नियुक्ति

कविता जोशी.नई दिल्ली

आईआईटी रोपड़, भुवनेश्वर और पटना में निदेशकों की नियुक्ति को महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी का इंतजार है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की चयन समिति ने इस बाबत तीन नामों की सिफारिश राष्ट्रपति से कर दी है। मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि 22 मार्च को इस बाबत हुई बैठक में कुल 36 लोगों का साक्षात्कार किया गया जिसमें तीन लोगों के नामों को स्वीकृति दी गई है। इसमें आईआईटी कानपुर के मेटलॅर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर राजीव शेखर, आईआईटी मुंबई के कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर पुष्पक भट्टाचार्या और सुदीप्त दास शामिल है।

सूत्र ने कहा कि बीते दिनों तीनों आईआईटी संस्थानों में निदेशकों की नियुक्ति को लेकर जो विवाद हुआ था वो खत्म हो गया है। वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिल काकोड़कर 31 मई तक अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। जहां तक काकोड़कर का 12 मार्च को आईआईटी निदेशकों के पैनल से इस्तीफा देने का मसला है तो उसे एचआरडी मंत्रालय ने वापस ले लिया था। इसके बाद ही यह साफ कर दिया गया था कि काकोड़कर मई महीने तक अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।

22 मार्च की बैठक में निदेशकों की नियुक्ति को लेकर पैनल के कुछ सदस्य अनुपस्थित थे। लेकिन फिर भी नियुक्ति को लेकर जितने कोरम की आवश्यकता थी वो पूरा था। बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने की। सूत्र ने कहा कि निदेशकों की नियुक्ति का चयन पैनल कुल 11 लोगों का होता है, जिसमें में करीब 8 लोग उस दौरान मौजूद थे। इससे साफ है कि कोरम पूरा हो गया और तीनों निदेशकों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई। कोरम में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व महानिदेशक और वर्तमान में नीति आयोग के सदस्य डॉ.वी.के.सारस्वत, आईएसएम धनबाद के अध्यक्ष अशोक मिश्रा मौजूद थे।

न्यूयार्क में नहीं मिलेंगे भारत-पाक के सेनाप्रमुख

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-पाकिस्तान के राष्ट्रप्रमुखों और सेनाप्रमुखों के मेल-मुलाकात की खबरें अखबारों की हैडिंग से लेकर टीवी कैमरों की पहली क्लिक में शामिल रहती हैं। लेकिन शुक्रवार 27 मार्च को न्यूयार्क में होने वाले सेनाप्रमुखों के अंतरराष्टÑीय सम्मेलन में शायद खबरनवीसों को यह शानदार मौका नसीब नहीं होगा। क्योंकि इस सम्मेलन में पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल राहिल शरीफ शामिल नहीं होंगे। भारत की ओर से सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग बैठक में शामिल होने के लिए अमेरिका पहुंच चुके हैं। 28 मार्च को सेनाप्रमुख स्वदेश के लिए रवाना होंगे।

यहां सेना मुख्यालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि ‘चीμस आॅफ डिफेंस कॉंफ्रेंस’ नामक इस सम्मेलन में कई देशों के सेनाप्रमुख हिस्सा लेंगे। इसमें अमेरिका सहित यूरोपीय यूनियन के कई देशों के अलावा दक्षिण-एशिया से भारत और चीन के सेनाप्रमुख शामिल होंगे। पाकिस्तान की ओर से सम्मेलन में लेफ‍िटनेंट जनरल रैंक के अधिकारी शामिल होंगे। सेनाप्रमुख दलबीर सिंह सुहाग 25 मार्च को अमेरिका रवाना हो गए थे। 26 मार्च को उन्होंने दो कार्यक्रमों में भाग लिया। इसमें उनकी पहली मुलाकात संयुक्त राष्ट्र के डिपार्टमेंट आॅफ पीसकीपिंग मिशन आॅपरेशंस के अंडर सेक्रेट्री जनरल हरवे लार्ड्सवडर्स से हुई और दूसरी मुलाकात संयुक्त राष्ट्र के डिपार्टमेंट आॅफ फ ील्ड सपोर्ट के अंडर सेक्रेट्री जनरल अतुल खरे से हुई।

आंकड़ों के हिसाब से देंखें तो दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए भारतीय सेना की संयुक्त राष्ट्र (यूएन) शांति-मिशन में सवार्धिक भागीदारी है। इस वक्त यूएन में भारत के 7 हजार 200 सैनिक अलग-अलग इलाकों में तैनात हैं। कांगों, दक्षिण सूडान, लेबनान और आइवरी-कोस्ट जैसी 4 जगहों पर यह सैन्य तैनाती है। इसके अलावा इराक, आइवरी-कोस्ट, सूडान, सोमालिया और पश्चिमी-सहारा में भारतीय सेना के आॅब्जवर्स और स्टॉफ अधिकारी तैनात हैं। लगभग 2 लाख सैनिक यूएन के शांति मिशन अभियानों में भाग ले चुके हैं, जिनमें से 148 मारे जा चुके हैं। भागीदारी की बात करें तो भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाद संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन सेना में भागीदारी करने वाला दक्षिण-एशिया का तीसरा देश है।

डॉर्नियर विमान हादसे में लापता हरियाणा की बेटी

कविता जोशी.नई दिल्ली

नौसेना के मंगलवार रात दुर्घटनाग्रस्त हुए समुद्री निगरानी विमान डॉर्नियर में लापता दो अधिकारियों में से एक आॅब्जर्वर महिला अधिकारी हरियाणा की रहने वाली हैं। लेफ‍िटनेट रैंक की इस युवा अधिकारी का नाम किरन शेखावत है। इसके अलावा हादसे में लापता दूसरे अधिकारी और विमान में सह-पायलट सब-लेफ‍िटनेंट अनुपम नागौरी हैं। अनुपम राजस्थान के उदयपुर के रहने वाले हैं। दोनों 25 वर्षीय युवा अधिकारियों को ढूंढने के लिए हादसे के तुरंत बाद से नौसेना का राहत एवं बचाव अभियान युद्धस्तर पर चल रहा है। हादसे में सुरक्षित बचे एक अधिकारी कमांडर निखिल कुलदीप जोशी सुरक्षित हैं जो कि विमान के पायलट भी थे। हादसे के बाद उन्हें काफी गंभीर चोटें आई हैं और अभी वो नौसेना के कारवार स्थित पातांजलि अस्पताल में भर्ती हैं। हरियाणा की महिला अधिकारी ले.शेखावत के पति भी नौसेना में अधिकारी हैं।

नौसेना के सूत्रों ने बुधवार को बताया कि इस वक्त खोज अभियान गोवा के तट से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 70 किमी. की दूरी (35 नॉटिकल माइल्स) पर दूर समुद्र में चलाया जा रहा है। इसमें नौसेना के समुद्र के भीतर जांच-पड़ताल करने में सक्षम जहाज (हाइड्रोग्राफिक वेसल) आईएनएस मकर के सोनार रडार ने समुद्र के 60 मीटर अंदर गहरे पानी में लोहे के एक बड़े टुकड़े को पकड़ा है। यही टुकड़ा लापता विमान डॉर्नियर का ही अवशेष है का पता लगाने के लिए नौसेना के एक अन्य जहाज आईएनएस माटंगा ने गोताखोरों और अन्य जरूरी साजो-सामान के साथ इलाके में सर्च अभियान शुरू कर दिया है। यह अभियान दिन-रात बिना किसी रोकटोक के चलेगा।

सूत्र ने कहा कि इस वक्त नौसेना ने आईएनएस माटंगा जहाज की मदद से इस अभियान को दो भागों में बांट दिया है। एक ओर दो-दो करके कुल 50 गोताखोरों का दल दोनों लापता अधिकारियों को ढूंढने के लिए बारी-बारी से समुद्र में उस जगह पर उतर रहा है। वहीं दूसरी ओर आईएनएस माटंगा जहाज की मदद से लोहे के भारी-भरकम टुकड़े को बाहर निकालने की कवायद चल रही है। सूत्र का कहना है कि क्योंकि समुद्र में पानी हमेशा गतिमान रहता है और किसी निश्चित गहराई पर अगर कोई वस्तु पहुंच जाए तो धीरे-धीरे उसके आस-पास कीचड़ जमा होने लगता है। इस लोहे के टुकड़े के आसपास भी काफी मात्रा में कीचड़ जमा हो गया है, जिसकी वजह से उसे बाहर निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

सप्ताह भर चलेगा डॉर्नियर के लापता अधिकारियों को ढूंढने का अभियान

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

मंगलवार रात गोवा से दक्षिण-पश्चिम में करीब 25 नॉटिकल मील दूर दुर्घटनाग्रस्त हुए नौसेना के निगरानी विमान डॉर्नियर से लापता हुए दो अधिकारियों को ढूंढने के लिए आगामी सप्ताह भर तक राहत एवं बचाव अभियान चलेगा। यहां नौसेना मुख्यालय में मौजूद नौसेना के सूत्रों ने बुधवार को कहा कि इस अभियान की समय-सीमा और बढ़ाई जा सकती है। उधर नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन ने गोवा जाकर लापता अधिकारियों को ढूंढने के लिए चलाए जा रहे बचाव एवं राहत अभियान का जायजा लिया और विमान में सवार चालक दल के परिवार के सदस्यों से भी मुलाकात की। इसके बाद एडमिरल धोवन ने दिल्ली लौटने से पहले हादसे में सुरक्षित बचे अधिकारी विमान के कमांडर निखिल कुलदीप जोशी से कारवार स्थित नौसैना के पातांजलि अस्पताल जाकर मुलाकात की।

हादसे से जुड़े कारणों की पड़ताल के लिए नौसेना ने जांच (बोर्ड आॅफ इंक्वारी) शुरू कर दी है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही घटना के वास्तविक कारणों का पता लगेगा और उनके बारे में कोई टिप्पणी की जा सकेगी। गौरतलब है कि नौसेना में यह डॉर्नियर विमान से जुड़ा पहला हादसा है। 1990 के दशक की शुरूआत में यह विमान नौसेना में शामिल हुए थे। इस वक्त नौसेना के पास करीब 40 डॉर्नियर विमान हैं।

यहां बता दें कि यह विमान मंगलवार रात को अपनी नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था। गोवा के नौसैन्य स्टेशन से विमान का संपर्क रात 10 बजकर 08 मिनट पर टूटा। इसके बाद विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ जिसमें दो पॉयलट और एक महिला अधिकारी (आॅबजर्वर) भी सवार थे। हादसे में बचे एक अधिकारी को नौसेना के कारवार स्थित पातांजलि अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हादसे में उन्हें गंभीर चोटें आई हैं। लेकिन फिलहाल उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। कमांडर जोशी को रात में समुद्र में विचरण कर रही मछली पकड़ने वाली नौका में सवार मछुवारे ने बचाया। उसी ने नौसेना के फॉस्ट इंटरसेप्टर क्राफट्स (एफआईसी) को फोन करके इस अधिकारी के बारे में सूचना दी।

यहां बता दें कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद से केंद्र सरकार की ओर से समुद्र तटीय सुरक्षा को पुख्ता करने के कई इंतजाम किए गए हैं, जिसमें से एक में मछुवारों को आपात स्थिति में एफआईसी नौकाओं को तुरंत सूचना देने के लिए 4 अंकों का नंबर दिया गया है। इसके जरिए ही मछुवारे ने फोन करके सूचना दी। कमांडर जोशी एक अनुभवी पॉयलट हैं और उन्हें करीब 4 हजार घंटे की उड़ान का लंबा अनुभव है। सूत्र ने कहा कि नौसेना ने बचाव एवं राहत कार्य के लिए नौसेना के 8 जहाज और 4 विमान तुरंत रवाना कर दिए गए हैं। वर्तमान में 12 जहाज इस कार्य में लगे हुए हैं, जिसमें 2 जहाज तटरक्षकबल के हैं।

साक्षर बनने की जंग फतह करने को निकले 85 लाख

कविता जोशी.नई दिल्ली
देश के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा से जुड़े चंद बुनियादी सवालों का जवाब देकर साक्षर होने का प्रमाणपत्र पाने की जंग जीतने को इस बार कुल 85 लाख लोग अपने घरों से निकले। इनमें सबसे ज्यादा 26 लाख लोग वृहद जनसंख्या वाले राज्य उत्तर-प्रदेश से शामिल हुए। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत गठित राष्टÑीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण (एनएलएमए) के महानिदेशक और संयुक्त सचिव डॉ.वाई.एस.के.शेषु कुमार ने हरिभूमि से खास बातचीत में कहा कि 15 मार्च 2015 को हुई इस परीक्षा में 85 लाख लोगों ने भाग लिया। इसमें उत्तर-प्रदेश से 26 लाख, छत्तीसगढ़ से 3 लाख 51 हजार, मध्य-प्रदेश से 4 लाख 85 हजार और हरियाणा से 60 हजार लोग शामिल हुए। बिहार से 12 लाख और राजस्थान से 7
लाख 10 हजार लोग परीक्षा में बैठे।

एनआईओएस जारी करेगा सर्टिफिकेट
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) की ओर से इन 85 लाख लोगों में से जो भी परीक्षा पास करेंगे उन्हें प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा। अभी एनआईओएस प्रश्न पत्रों की जांच कर रहा है। कुछ राज्यों की ओर से प्रश्नपत्र भेज दिए गए हैं। एक बार सभी के पेपर मिल जाने के बाद परीक्षा परिणाम घोषित किया जाएगा। यहां बता दें कि यह परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाती है, जिसमें एक बार मार्च और दूसरी बार अगस्त में। बीते वर्ष अगस्त 2014 में कुल 41 लाख लोगों ने परीक्षा दी थी।

2017 में साक्षरता का स्तर 80 फीसदी
इस कार्यक्रम के जरिए मंत्रालय की योजना साक्षरता की दर को वर्ष 2017 तक 80 फीसदी तक बढ़ाना और साक्षरता में लैगिंग अंतर को कम करके 10 फीसदी तक करना है। खासकर महिलाओं पर केंद्रित इस कार्यक्रम को उन ग्रामीण इलाकों में लागू किया जा रहा है जहां 2001 की जनगणना के हिसाब से वयस्क महिला साक्षरता की दर 50 फीसदी या उससे कम है। देश के 410 जिलों में फैले 1.53 लाख वयस्क महिला साक्षरता केंद्र इस कार्यक्रम की रीढ़ हैं। इन केंद्रों पर पठन सामग्री 13 भाषाआें, 26 बोलियों के अलावा आॅडियो-वीडियो रूप में मौजूद है। केंद्रों का संचालन जिन्हें प्रेरक कहा जाता है करते हैं।

ऐसे हैं परीक्षा के सवाल
साल में दो बार होने वाली इस परीक्षा में परीक्षार्थी की ऊंची आवाज में पढ़ने की क्षमता, शब्दों की गति को एक सीमा तक समझने की क्षमता, डिक्टेशन लेने, अंकों को पढ़ने और लिखने तथा साधारण गणनाएं करने की क्षमता को परखा जाता है। 2010 में शुरू हुई इस परीक्षा के बाद लगभग 4.33 करोड़ लोगों ने यह परीक्षा दी है। इसमें से 3.13 करोड़ लोगों ने 150 अंकों के इस मूल्याकंन को पास किया है। 40 फीसदी से कम अंक पाने वालों को बी ग्रेड, 60 फीसदी से ज्यादा अंक पाने वालों को ए ग्रेड मिलता है। 40 फीसदी से कम अंक लाने वालों को सी ग्रेड दिया जाता है और उन्हें परीक्षा फिर से देनी पड़ती है।

फ्रांस, भारत को सौंपेगा 2 उन्नत मिराज विमान आज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
फ्रांस बुधवार को भारत को दो उन्नत मिराज-2000 लड़ाकू विमान सौंपेगा। यह दोनों उन कुल 43 मिराज लड़ाकू विमानों के बेड़े का हिस्सा हैं, जिन्हें फ्रांस में उन्नत किया जा रहा है। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इन दोनों विमानों को फ्रांस के पेरिस में एक भव्य समारोह के दौरान भारत को सौंपा जाएगा। उन्नत विमानों में वर्तमान समय की जरूरत की हिसाब ढाला गया है। इसमें मशीनरी से लेकर हर स्तर पर जरूरी बदलाव किए गए हैं। समारोह में भारत की ओर फ्रांस गया वायुसेना का प्रतिनिधिमंडल और फ्रांस में भारतीय दूतावास के अधिकारी मौजूद रहेंगे।

समारोह के बाद दोनों विमान पेरिस से नई दिल्ली की ओर प्रस्थान करेंगे। फ्रांस से दिल्ली पहुंचने में इन दोनों लड़ाकू विमानों को लगभग 7 दिन का समय लग सकता है। यहां बता दें कि भारतीय वायुसेना ने फ्रांस की कंपनी से मिराज-2000 विमानों के उन्नतीकरण को लेकर दो सौदे किए थे। इसमें करीब 3.2 अरब में मिराज विमानों का अपग्रेडेशन किया जाना शामिल है।
सूत्र ने कहा कि 2 विमानों का उन्नतीकरण कार्य फ्रांस में ओईएम द्वारा किया गया है और 2 अन्य विमानों का उन्नतीकरण यहां भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में उन्नतीकरण किया गया। इसमें एचएएल में किया गया विमानों के उन्नतीकरण कार्य की निगरानी ओईएम ने ही की है।

गौरतलब है कि मिराज-2000 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना में 1980 के दशक में शामिल हुए थे। तब से इनका उड़ान एवं सुरक्षा को लेकर रिकॉर्ड अच्छा रहा है। वायुसेना में शामिल होने के बाद वर्ष 2012 में मिराज विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की दूसरी घटना हुई थी। पहली दुर्घटना 30 जनवरी 2012 को चेन्नई में हुई थी।

अब आसान होगी दूर समुद्र में सामरिक सामग्री की सुरक्षा

कविता जोशी.नई दिल्ली

26 नवंबर 2008 को पाक समर्थित आतंकवादियों द्वारा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर किए गए आतंकी हमले के बाद देश की समुद्री सुरक्षा को चाक-चौबंद करना केंद्र और समुद्र तटीय राज्य सरकारों की प्राथमिक्ताओं में से एक है। इस घटना के बाद से लेकर आज 7 साल बीत जाने के बाद भारत ने समुद्र तटीय सीमाओं की सुरक्षा के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। इसके अलावा कई महत्वूपर्ण परियोजनाआें को धरातल पर लाने का काम आज भी तेज गति से चल रहा है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की मामलों की समिति (सीसीएस) ने हाल ही में 80 फास्ट इंटरसेप्शन क्राफट़स (एफआईसी) और 1 हजार सागर प्रहरी बल की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इन कुल 80 एफआईसी का निर्माण शलास मैरिन, श्रीलंका द्वारा किया जा रहा है। इसमें से 40 एफआईसी भारत को मिल चुकी हैं और बाकी 40 आनी बाकी है। इस पूरे प्रोजेक्ट की कीमत करीब 264 करोड़ रूपए है, जिसमें से प्रत्येक एफआईसी बोट की कीमत करीब 3.3 करोड़ रूपए बताई जा रही है। गौरतलब है कि भारत के निकटतम प्रतिद्धंदी चीन द्वारा भारत की समुद्री सीमाआें के लगभग हर ओर घेराबंदी की खबरें मीडिया में छाई रहती है। साथ ही चीन की बढ़ती व्यापारिक महत्वकांक्षाएं जगजाहिर हैं। दक्षिण-चीन सागर से लेकर पूर्वी चीन सागर में चीन का विवाद जारी है। ऐसे में इन जगहों से भारत को अपने जरूरी साजो-सामान की निबार्ध आवाजाही बनाने के लिए प्रयास करने पड़ेंगे।

सूत्र ने कहा कि तेल एवं प्राकृतिक गैस लिमिटेड (ओएनजीसी) ने 23 इंटरमीडिएट सपोर्ट वेसल्स (आईएसवी) का आॅर्डर दिया था। इसमें से 14 एसएचएम शिपकेयर, मुंबई ने बनाई हैं। एसएचएम ने 11 क्रॉफट्स नौसेना को सौंप दी हैं और 3 को दिया जाना बाकी है। शेष बचे 9 क्रॉफट्स का निर्माण अबुधाबी शिपबिल्डर्स (एडीएसबी) ने किया है। इनमें से भी 5 क्रॉफट्स एडीएसबी ने खुद बनाई है और 4 का निर्माण रोडनैम्प, स्पेन के साथ उप-संविदा (सब-कॉंट्रेक्ट) के तहत किया गया है। आईएसवी प्रोजेक्ट की कुल कीमत करीब 253 करोड़ रूपए है। एक आईएसवी वेसल की कीमत 11 करोड़ रूपए है। यहां बता दें कि आईएसवी वेसल का काम भारत के समुद्र से दूर मौजूद सामरिक सामग्री की सुरक्षा करना होगा।

‘मेड इन पाकिस्तान’ लिखे ट्रैक सूट में था आतंकी?

कविता जोशी.नई दिल्ली
बीते सप्ताह जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्‍ट्रीय सीमा (आईबी) पर एक के बाद एक हुए दो आतंकवादी हमलों को लेकर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा उठाए गए सवाल का सोमवार को रक्षा मंत्रालय ने जवाब दिया है। इसमें कहा गया है कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह दोनों हमले पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने ही किए हैं। दरअसल शनिवार को सांबा में हुई घटना के बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर एक ट्वीट करके इन दोनों हमलों को लेकर अस्पष्टता जाहिर की थी। उनके इस ट्वीट से यह सवाल तुरंत उठता हुआ नजर आ रहा था कि यह दोनों घटनाएं वाकई में आतंकवादी द्वारा किए गए हमले थे या कुछ और। हमलों के बाद लश्करे तैयबा आतंकी संगठन ने इनकी जिम्मेदारी भी ले ली थी।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दोनों हमलों में मारे गए चार आतंकवादियों की घटना के बाद चार गीली पेंटें और 4 गीले जूते बरामद किए गए हैं। चारों पेंटें ट्रैक-सूट का हिस्सा थीं। यह सामान पठानकोट के पुलिस स्टेशन के सुपुर्द किया गया है। इन चार पेंटों में से एक पर ‘मेड इन पाकिस्तान’ का लोगो लगा हुआ है। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वो आतंकी पाकिस्तान से आए थे और उन्हें पाक का पूरा-पूरा समर्थन हासिल था।

सूत्रों का कहना है कि घटना के बाद जब्त की गई चार पेंटों में से तीन पर मेड इन फॉरन यानि विदेशी का लोगो लगा हुआ था और एक पेंट पर मेड इन पाकिस्तान का लोगो था। पूरे लोगो में क्रमवार इस तरह से लिखा हुआ था। 80 फीसदी कॉटन, 20 प्रतिशत पॉलिस्टर, मेड इन पाकिस्तान, ओवर फॉर केयर। यह चारों ट्रैक सूट ही थे।

प्रथम विश्व युद्ध की प्रदर्शनी देखने पहुंचे बासित
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
राजधानी के मानेकशॉ सेंटर में प्रथम विश्वयुद्ध को लेकर लगाई गई प्रदर्शनी को देखने के लिए सोमवार को करीब 50 देशों के राजनयिक पहुंचे। इस दल में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित भी मौजूद थे। यहां बता दें कि पहले इस तरह की खबरें आ रही थी कि बासित, मानेकशॉ सेंटर में चल रही प्रदर्शनी को देखने के लिए नहीं जाएंगे। क्योंकि 23 मार्च यानि सोमवार को पाक का राष्ट्रीय दिवस होता है। उसे लेकर भी उन्होंने कार्यक्रम आयोजित किए थे। इस अवसर पर राजधानी में जम्मू-कश्मीर के कई अलगाववादी नेताआें ने भी बासित से मुलाकात की।

प्रथम विश्व के समय देश का बंटवार नहीं हुआ था। उस वक्त ब्रितानी साम्राज्य की रक्षा के लिए भारत की ओर से भेजी गई स्वैच्छिक सेना में कुल 11 शहीदों को उस वक्त का सर्वोच्च सैन्य सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मिला था। इसमें से तीन क्र ॉस आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए और दो नेपाल। 6 भारत के पास रह गए थे। लेकिन मानेकशॉ सेंटर में सभी 11 शहीदों के प्रदर्शनी में स्टेचु लगाए गए हैं। यह प्रदर्शनी 25 मार्च तक चलेगी। 

यूजीसी का छात्र शिकायत निवारण र्पोटल जारी

छात्र जांच सकेंगे शिकायत पर की गई कार्रवाई का स्टेटस
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सोमवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के छात्र शिकायत निवारण र्पोटल का उद्घघाटन किया और कहा कि यह र्पोटल यूजीसी द्वारा छात्रों की शिकायतों का निपटारा करने के लिए उठाए गए नए कदमों में से एक है। इस र्पोटल की खास बात यह है कि इसके जरिए छात्र-छात्राएं ना केवल अपनी तमाम शिकायतें सीधे इस पर भेज सकते हैं। बल्कि अपनी शिकायत पर रिमांडर और यूजीसी द्वारा उस मामले पर की गई कार्रवाई का स्टेटस भी आॅनलाइन जांच सकते हैं। छात्र इस र्पोटल को डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट यूजीसी डाट एनआईसी डाट इन वेबसाइट पर लॉगइन करके देख सकते हैं।
ईरानी ने कहा इस र्पोटल का उद्देश्य दाखिला प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना है। इसके अलावा र्पोटल के जरिए उच्च-शिक्षण संस्थानों में होने वाली तमाम गड़बड़ियों पर रोक लगाने के अलावा विवादों के निपटारे के लिए कारगर व्यवस्था बनाना है। हर विश्वविद्यालय में छात्रों के विवादों को देखने के लिए एक समर्पित नोडल अधिकारी होगा। छात्र शिकायत करने के बाद उस नोडल अधिकारी के ई-मेल के पते से लेकर मोबाइल नंबर और बाकी जानकारी देख सकेंगे। साथ ही नोडल अधिकारी भी छात्रों के बारे में सारी सूचना अपने रिकॉर्ड में रखेंगे। नोडल अधिकारी यूजीसी से प्रमाणित कॉलेजों से जुड़ी शिकायतों के निपटान को लेकर भी जिम्मेदार होगा।
इस र्पोटल के जरिए यूजीसी चाहता है कि छात्रों की शिकायतों का समयबद्ध ढंग से निपटारा हो। प्रत्येक 15 दिन के बाद नोडल अधिकारी के पास एक आॅटोमैटिक रिमांडर जाएगा कि मामले को बंद कर दो। अगर शिकायतकर्त्ता यानी छात्र से कोई बात करनी है या मामले को लेकर कोई स्पष्टीकरण लेना है तो नोडल अधिकारी उससे बात भी करेगा। यूजीसी भी खुद विवादों का स्टेटस जांच सकेगी। उसके प्रशासनिक डेशबोर्ड पर ग्राफिक में शिकायतों और उनके निपटान के अलावा लंबित पड़े मामलों, शिकायतों के प्रकार के बारे में विस्तृत जानकारी आती रहेगी।
शिकायतें कई तरह की हो सकती हैं, जिसमें दाखिला प्रक्रिया से लेकर आरक्षण नीति, प्रोस्पैक्ट्स के प्रकाशन/ गैर-प्रकाशन, जाति, संप्रदाय और वर्ग के आधार पर छात्रों के साथ भेदभाव, परीक्षा का समय से ना होना, परिणाम की घोषणा ना होना, छात्रों के लिए सुविधाओं का अभाव, छात्रवृति और फैलोशिप ना दिया जाना, छात्र का उत्पीड़न और जाति के आधार पर शारिरिक शोषण जैसी शिकायतें शामिल हैं। 

ई-टिकटिंग से तेजी से लाभान्वित होती सेनाएं

कविता जोशी.नई दिल्ली
करीब 6 साल पहले रक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ई-टिकटिंग परियोजना का सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों में तेजी से प्रयोग बढ़ रहा है। इससे जवानों से लेकर अधिकारियों को यात्रा के दौरान अब पहले की तरह वॉरंट का इतंजार करने की जरूरत नहीं होती। बल्कि वो भी ई-टिकटिंग के जरिए समय पर अपनी यात्रा की शुरूआत कर सकते हैं। यहां बता दें कि पहले वॉरंट के बिना सेनाओं के लोगों को रेल यात्रा में खासी मशक्कत और लंबा इतंजार करना पड़ता था। कई बार वॉरंट देर से मिलने की वजह से जरूरी आयोजनों में पहुंचना भी मुश्किल हो जाता था। ई-टिकटिंग सामान्य नागरिक की तरह डीटीएच के जरिए रेलवे की आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर टिकट बुक करके सेनाआें के लोग प्राप्त करते हैं।
यहां रक्षा मंत्रालय में मौजूद सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि वर्ष 2009 में रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने ई-टिकटिंग परियोजना को मौजूदा टिकट के मैनुवल सिस्टम की जगह पर किया गया जिसमें वॉरेंट लेना अनिवार्य होता था। प्रायोगिक परियोजना की तर्ज पर शुरू की गई इस प्रणाली के तहत 2009 में सेनाआें की 20 यूनिटों में इसका प्रयोग किया जा रहा था। इसमें सेना की 14, वायुसेना की 04 और नौसेना की 02 यूनिटें शामिल थीं।
सूत्र ने कहा कि 6 साल बाद तस्वीर बदल गई है। समय की बचत और महत्वपूर्ण आयोजनों में शामिल होने जैसे कारणों के चलते सेनाओं के बीच लोकप्रिय हो रही इस सुविधा का तेजी से विस्तार हुआ है। अभी इस सुविधा का सशस्त्र सेनाआें की 807 यूनिटों में प्रयोग किया जा रहा है। इसमें थलसेना की 745, वायुसेना की 29 और नौसेना की 33 यूनिटें शामिल हैं।
मंत्रालय की योजना इस परियोजना का विस्तार करने की है। इसमें पहले चरण में ई-टिकटिंग शुरूआत की गई है। दूसरे चरण में इसका विस्तार करके इसे अलग-अलग एयरलाइंस के र्पोटल्स के साथ कनेक्ट कर एयर ट्रैवल के साथ जोड़ा जाएगा। इसे ई-टिकटिंग, एयर कहा जाएगा। तीसरे चरण में रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। चौथे चरण में आॅनलाइन टीए/डीए की राशि की भुगतान भी इससे प्राप्त किया जा सकेगा।