शनिवार, 13 जून 2015

अब धरातल पर नजर नहीं आएगा ‘राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय’!

कविता जोशी.नई दिल्ली
बीते लोकसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले 23 मई 2013 को यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा हरियाणा के बिनौला (गुडगांव)में ‘भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (इंदु)’ की जो नींव रखी गई थी अब वोे हकीकत में तब्दील नहीं हो सकेगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित नई सरकार के पीएमओ विभाग की ओर से रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर इंदु विश्वविद्यालय के गठन के लिए एक व्यापक कानून बनाने को कहा गया है, जिसके बाद ऐसी किसी परियोजना को हकीकत में अमलीजामा पहनाया जाएगा। पीएमओ की इस टिप्पणी से साफ है अब इंदु विश्वविद्यालय की परियोजना फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है।

ये कहता है पीएमओ का पत्र?
हरिभूमि की पड़ताल में यह जानकारी मिली है कि रक्षा मंत्रालय को भेजे गए पत्र में पीएम ने साफ कहा है कि रक्षा ही नहीं सरकार के किसी भी मंत्रालय को उच्च-शिक्षा से जुड़े किसी भी संस्थान को खोलने के लिए एक व्यापक कानून होना चाहिए। जिसके बाद इस तरह की कोई भी प्रक्रिया आगे बढ़ायी जानी चाहिए। जब तक यह व्यापक-विस्तृत कानून बनता है तब तक विभिन्न मंत्रालयों के ऐसे प्रस्तावों को जिन्हें संसद द्वारा कानून बनाकर स्थापित किया जाना है पर रोक लगी रहेगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि पीएमओ की ओर से यह पत्र मंत्रालय को बीते अप्रैल महीने में प्राप्त हुआ है।

साल के शुरूआत में अलग माहौल
इस वर्ष की शुरूआत यानि मार्च महीने में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज थीं कि इंदु विश्वविद्यालय में इसी साल की शुरूआत से ही पहले शैक्षणिक सत्र 2015-16 की शुरूआत हो जाएगी। लेकिन इसके बाद अप्रैल महीने में पीएमओ की टिप्पणी के बाद अब परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। पीएमओ की टिप्पणी से स्पष्ट है कि अब इंदु की स्थापना और संचालन फिलहाल दूर की कौड़ी बन गया है।

ऐसा होता इंदु का नक्शा
यूपीए सरकार द्वारा स्वीकार किए गए इस प्रस्ताव के मुताबिक गुड़गांव के बिनौला में 200 एकड़ में इंदु विश्वविद्यालय की नींव रखी जानी थी। इसमें देश की रक्षा-सुरक्षा को केंद्र में रखकर पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने थे। डिफेंस मैनेजमेंट, डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एमरजिंग सिक्योरिटी चैलेंजिज जैसे कोर्सेज शामिल किए गए थे। इसके अलावा रक्षा व सामारिक विषयों पर शोध कार्यों का भी खाका खींचा गया था।

प्रस्ताव के मुताबिक वॉर गैमिंग एंड स्मियुलेशन, नेबरहुड स्टडीज, काउंटर इंसरजेंसी एंड काउंटर टेरररिजम, चाइनीज स्टडीज, इवॉलुशन आॅफ स्ट्रेजिक थॉट, इंटरनेशनल सिक्योरिटी इशूज, मेरीटाइम सिक्योरिटी स्टडीज, साइथ ईस्ट एशियन स्टडीज, मैटीरियल एक्यूजीशन, जाइंट लॉजिस्टिक्स एंड नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी इन पीस एंड वॉर जैसे कोर्सेज शामिल थे। विश्वविद्यालय ने पोस्ट ग्रेजुएट और पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च भी छात्रों को कराने की योजना भी बनायी थी।

स्कूली शिक्षा की योजनाआें को लेकर सरकार प्रतिबद्ध

एमडीएम में बजट कटौती को लेकर केंद्र का स्पष्टीकरण
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि वो स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से जुड़ी μलैगशिप योजनाआें को लेकर प्रतिबद्ध है, जिसमें मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी शामिल है। मंत्रालय की तरफ से यह बयान बीते दिनों कुछ अखबारों में एमडीएम को लेकर छपी खबरों के बाद आया है, जिनमें योजना के बजट में केंद्र द्वारा कटौती को लेकर खबरें प्रकाशित की गई थीं। यहां बता दें कि इस योजना पर हरिभूमि ने भी 28 मई को ‘एमडीएम योजना में कटौती का भार उठाएंगे राज्य’ शीर्षक से एक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक एमडीएम योजना के तहत 10.33 करोड़ प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों और स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने वाले विशेष प्रशिक्षण केंद्रों शामिल हैं। राज्य और केंद्र-शासित प्रदेशों में योजना को लेकर समय-समय पर केंद्र द्वारा अनुदान राशि जारी के ढांचे के तहत कार्य किया जाता है। इसके अलावा 14वें वित्त आयोग में राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले केंद्रीय राजस्व में 42 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह आंकड़ा पहले 32 फीसदी था। इसके अलावा योजना के लिए केंद्र सरकार की ओर से मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में 9 हजार 236 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसमें आवश्यकता के हिसाब से इजाफा किया जा सकता है।

केंद्र की ओर से राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों को योजना के उचित क्रियान्वयन के लिए संशोधित दिशानिर्देंश भी जारी किए गए हैं। इसके अलावा केंद्र ने योजना के तहत सूखा प्रभावित राज्यों को 466.70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि देने का निर्णय लिया है। इसका उपयोग एमडीएम योजना के तहत गर्मी की छुट्टियों में प्राथमिक स्कूलों के स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों को मध्याहन भोजन परोसने के लिए किया जाएगा।

दक्षिणी सूडान में भारतीय सैन्य अधिक ारी को लगी गोली, हालत स्थिर

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

दक्षिणी-सूडान के मुल्लाकल इलाके में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में चलाए जा रहे शांति मिशन में बृहस्पतिवार को एक भारतीय सैन्य अधिकारी लेμिटनेंट कर्नल के.दिनाकर गोली लगने से घायल हो गए। लेकिन अब उसकी हालत स्थिर बतायी जा रही है। दरअसल यह घटना 29 मई को संयुक्त राष्टÑ के तत्वाधान में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस से ठीक एक दिन पहले बृहस्पतिवार शाम 6 बजे हुई। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस अधिकारी का संबंध भारतीय सेना की जैकलाई बटालियन से है।

सूत्र ने कहा कि यह घटना उस समय हुई जब यह अधिकारी अपने कमरे में था। तभी बाहर से दरवाजे से होते हुए गोली अंदर आयी और इनके सिर को छूकर निकल गई, जिससे सिर पर जख्म बन गया। यह गोली सूडानी सेना द्वारा विद्रोहियों के खिलाफ रोजाना हवा में की जाने वाली फायरिंग के दौरान अधिकारी के कमरे में घुसी थी। घटना के तुरंत बाद अधिकारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब उनकी हालत फिलहाल स्थिर बतायी जा रही है।

भारतीय सेना की मौजूदगी
यूएन के शांति मिशनों में भारतीय सेना ने वर्ष 1950 से भाग लेना शुरू किया। सबसे पहले 1950 में कोरिया के लिए अभियान में सेना शामिल हुई जिसमें करीब 2 लाख भारतीय सैनिकों शामिल हुए। अब तक संयुक्त राष्टÑ के बैनर तले कुल 16 अभियान चल रहे हैं, जिसमें भारतीय सेना 12 अभियानों में शामिल है। इन 12 अभियानों में कुल 158 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है। सूडान और दक्षिणी सूडान में कुल 1 हजार 950 सैनिक मारे जा चुके हैं।

यूएन के अंतरराष्ट्रीय मिशन 
यूएन के मातहत अब तक 71 शांति अभियान चलाए जा चुके हैं, जिसमें 1 मिलियन से अधिक सैनिकों ने भाग लिया। यह आंकड़ा सेना और पुलिस को मिलाकर है। वर्तमान में जारी 16 अभियान में 1 लाख 25 हजार सैनिक लगे हुए हैं। यूएन के इन शांति अभियानों में 3 हजार 300 लोग मारे जा चुके हैं। इसमें बीते वर्ष 126 सैनिक मारे जा चुके हैं।

राज्य उठाएंगे एमडीएम योजना में कटौती का भार!

कविता जोशी.नई दिल्ली

स्कूल को लेकर बच्चों में रूचि बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) के बजट में कटौती करने के बाद अब केंद्र सरकार का यह कहना है कि इस कटौती का भार राज्यों को खुद उठाना पड़ेगा। मसलन अगर कोई राज्य या केंद्रशासित प्रदेश अपने यहां योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और हेल्परों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय में इजाफा करना चाहते हैं तो इस बढ़ी हुई धनराशि का भुगतान उन्हें खुद ही करना होगा, केंद्र इसमें कोई मदद नहीं करेगा। केंद्र अब केवल एमडीएम योजना की निगरानी और सुरक्षा दिशानिर्देंशों पर ध्यान केंद्रित करेगा जिससे मध्याहन भोजन को लेकर राज्य स्तर पर बरती जाने वाली अनियमितताआें और दुर्घटनाओं पर लगाम लगायी जा सकेगी।

यह जानकारी यहां मंगलवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर वर्ष की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए मंत्रालय में उच्च-शिक्षा विभाग में सचिव एस.एन.मोहंती ने दी। उन्होंने कहा कि मध्याहन भोजन योजना नियमित रूप से चलती रहेगी। बजट में कटौती का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस योजना को केंद्र का संरक्षण लगातार जारी रहेगा। सरकार किसी भी कीमत पर इस योजना को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

आम बजट के आंकड़ों पर नजर डाले तो मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में केंद्र की ओर से एमडीएम के बजट में करीब 30 फीसदी की कटौती की गई है। इस बार योजना के लिए सरकार ने 9 हजार 236.40 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। बीते वर्ष 2014-15 में बजट में एमडीएम को 13 हजार 215 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।

उच्च-शिक्षा सचिव ने कहा कि कई राज्यों की ओर से रसोइयों और हेल्परों को बढ़ाकर मानदेय दिया जा रहा है। बाकी राज्य भी इन राज्यों की तर्ज पर अपने यहां मानदेय बढ़ा सकते हैं। अभी केंद्र और राज्यों के बीच योजना को लेकर धनराशि का आवंटन उत्तर-पूर्व के राज्यों में 90 अनुपात 10 और बाकी राज्यों में 75 अनुपात 25 है। गौरतलब है कि एमडीएम योजना सर्व शिक्षा अभियान का ही हिस्सा है। देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईयों और हेल्परों को इससे रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

मिड-डे-मील की निगरानी को शिक्षकों को जाएगा फोन!

कविता जोशी.नई दिल्ली

देशभर के स्कूलों में चर्चित मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) की रियल टाइम मॉनीटरिंग के लिए केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना से जुड़े शिक्षकों को रोजाना फोन करके जानकारी एकत्रित करेगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एमडीएम मामलों की देखरेख कर रही समिति ने बीते 5 मई को हुई बैठक में यह निर्णय किया है।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2012 से शुरू हुई एमडीएम योजना की रियल टाइम निगरानी को लेकर अब मंत्रालय ने सख्त रूख अख्तियार कर लिया है। इसकी जद में खासतौर पर वो राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के अध्यापक आएंगे जिनके यहां योजना से क्रियान्वयन से जुड़ा इंट्रेक्टिव वाइस रिस्पांस सिस्टम (आईवीआरएस) क्रियान्वित नहीं किया गया है। गौरतलब है कि उत्तर भारत के दो बड़े जनसंख्या वाले राज्यों बिहार और उत्तर-प्रदेश ही देश में ऐसे दो राज्य हैं जिन्होंने आईवीआरएस को लागू किया है।

बैठक की अध्यक्षता करते हुए मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में सचिव वृंदा स्वरूप ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को सुझाव देते हुए कहा कि एमडीएम योजना के बारे में सही जानकारी इकट्टा करने और इसकी उचित निगरानी के लिए संबंधित स्कूलों के सभी शिक्षकों और योजना से जुड़ी अन्य एजेसिंयों के नंबर एकत्रित कि ए जाएं। इन नंबरों पर रोजाना फोन करके शिक्षकों से मध्याहन भोजन बनाने और परोसने के बारे में जानकारी ली जाएगी। उन्होंने राज्यों को कहा कि जुलाई 2015 तक इसका क्रियान्वयन किया जाए। एमडीएम योजना के सर्विस प्रदाता के लिए मंत्रालय ने परामर्श एजेंसी का नाम तय कर लिया है। इसके जरिए अब रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) की पुनरीक्षण किया जाएगा। यहां बता दें कि परामर्श एजेंसी ने पहले 31 मार्च को अपना पहला पुन: संशोधित ड्राμट मंत्रालय को भेजा था।

यहां बता दें कि देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईए और हेल्परों को इस योजना से रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

ओआरओपी: सरकार के रूख से नाखुश हैं पूर्व-सैनिक, तेज होगी आंदोलन की धार

कविता जोशी.नई दिल्ली

वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी)के मुद्दे पर राजग सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी और बैचनी उत्पन्न हो रही है और उनका कहना है कि अगर इस मामले में जल्द ही केंद्र की ओर से किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो अगले महीने के पहले सप्ताह के तुरंत बाद पूर्व सैनिक बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरेंगे और ओआरओपी की मांग को लेकर अपने आंदोलन को तेज करेंगे। इस मामले पर पूर्व उप-सेनाप्रमुख और इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) के अध्यक्ष लेμिटनेंट जनरल राज कादयान ने हरिभूमि से खास बातचीत की।

सवाल-ओआरओपी के मामले पर अब आपका अगला कदम क्या होगा?
जवाब- साल 2009 से लेकर 2014 के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ओआरओपी को पूरा करने की बात कहती रही है। लेकिन आज की बात की जाए तो जमीन पर कुछ होता हुआ दिखायी नहीं दे रहा है। सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी पनप रही है। अगर जल्द ही केंद्र की ओर से इस मुद्दे पर किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो आईईएसएम की ओर से फिर से आंदोलन तेज किया जाएगा। अगले महीने 6 तारीख को हम अपने आंदोलन की पूरी रणनीति पर चर्चा करेंगे।

सवाल- अपनी नाराजगी जताने के लिए क्या मैडल भी वापस करेंगे?
जवाब- इन सब बातों पर हम सोच विचार के बाद निर्णय करेंगे। अभी सरकार के पास हमारे 20 हजार मैडल्स पहले से हैं। मैंने सबसे पहले अपना मैडल 2008 में सरकार को वापस किया था। हम अपना अभियान पूर्ण अनुशासन के साथ चलाएंगे। जिसमें मैडल वापस करना भी शामिल हैं।

सवाल- सशस्त्र सेनाआें को ही क्यों बकियों को क्यों ना मिले ओआरओपी?
जवाब-सीआरपीएफ हमारी प्रतिद्वंदी नहीं है। प्रजातंत्र में कोई भी मांग कर सकता है। लेकिन फौज द्वारा मांगी गई ओआरओपी की मांग को लेकर सरकार भी सहमत है।

सवाल- ओआरओपी से सरकारी खजाने पर बल पड़ेगा?
जवाब-सवाल 8 हजार या 5 हजार करोड़ का नहीं है। अगर देश को इतनी बड़ी सेना की जरूरत है, तो सरकार को उसका ध्यान भी रखना पड़ेगा। सेना कितनी होनी चाहिए हम तय नहीं करते सरकार तय करती है।

सवाल-क्या ओआरओपी की परिभाषा बदल रही है सरकार?
जवाब-हमने सुना है कि सरकार परिभाषा बदल रही है। परिभाषा को तो सरकार ने संसद के मंच पर पहले स्वीकार किया था। अगर उसे बदला तो ठीक नहीं होेगा। वित्त मंत्रालय परिभाषा बदलने के काम में लगा है। अगर ऐसा हुआ तो हम अपना आंदोलन फिर से शुरू करेंगे।

सवाल-आप अपने वोट बैंक के जरिए सरकार पर दवाब बना रहें हैं?
जवाब-हमने अपना आंदोलन राजनीतिक दलों के साथ मिलकर कभी नहीं लड़ा। हम 25 लाख जरूर हैं, लेकिन 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में बटे हुए हैं। लेकिन हमारी ताकत आम जनभावनाएं हैं। अगर पूर्व सैनिकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया तो इससे जनभावनाएं भी जरूर प्रभावित होंगी।

निर्णयों में आयी तेजी लेकिन धरातल पर सन्नाटा!

अगले सप्ताह 26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तासीन एनडीए सरकार को एक साल पूरा हो जाएगा। ऐसे में सरकार के एक बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले रक्षा मंत्रालय के रिपोर्ट-कार्ड पर अगर एक नजर डाले तो यह कहा जा सकता है कि नई सरकार के गठन के बाद इसमें कोई शक नहीं कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में काफी तेजी आयी है लेकिन वास्तविक्ता के इस धरातल पर इन निर्णयों का कोई प्रभाव अब तक दिखायी नहीं पड़ रहा है। मंत्रालय के भीतर भी इसे लेकर अच्छी-खासी चर्चा है। कई अधिकारी दबी जुबान में इस तथ्य को स्वीकार भी कर रहे हैं।

रक्षा मंत्रालय के सालाना कामकाज में जिन अहम परियोजनाआें को त्वरित मंजूरी दी गई लेकिन धरातल में उन्हें लेकर खामोशी बनी है, उसमें सशस्त्र सेनाओं के पूर्व अधिकारियों को दी जाने वाली वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को स्वीकृति दिए तो करीब आठ महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक सरकार ने यह घोषणा नहीं की है कि वो कब से इसका वितरण किया जाएगा या फिर ओआरओपी की मद में कितनी धनराशि वितरित की जाएगी को लेकर भी स्पष्टता नहीं है।

बीते कुछ समय से तो यह मामला रक्षा और वित्त मंत्रालय के बीच ही उलझा हुआ था। अब चर्चा है कि एक निश्चित धनराशि पर दोनों के बीच सहमति बन गई है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि ओआरओपी पर काम चल रहा है लेकिन इसकी घोषणा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय के अन्य फैसलों में राष्टÑीय युद्ध स्मारक बनाने को लेकर भी स्पष्टता नहीं बन पाई है। इसकी फाइल भी एक जगह से दूसरी जगह घूम रही है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं के बीच तमाम मुद्दों को लेकर बेहतर समन्वय बनाने के लिए चीफ आॅफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा तो रक्षा मंत्री काफी समय पहले कर चुके हैं लेकिन कब होगी पर संशय बना हुआ है। इंडियन नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी (इंदू) की स्थापना का मामला भी पेडिंग है।

हालांकि इन 365 दिनों में अगर मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठकों में स्वीकृ त हुए समझौतों की बात करें तो करीब 1 लाख करोड़ रुपए के समझौतों को डीएसी ने मंजूरी दी है। लेकिन हकीकत में इन्हें अमलीजामा कब तक पहनाया जाएगा कहना मुश्किल है। रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि सैन्य-सामरिक समझौतों को मंजूरी मिलने के बाद भी उन्हें हकीकत में पूरा होने लंबा वक्त लगता है।

मोदी सरकार के सालाना जश्न में शामिल होंगी ईरानी?

कविता जोशी.नई दिल्ली

नरेंद्र मोदी की अगवाई वाली राजग सरकार को 26 मई को एक साल पूरा होने के मौके पर सरकार के मंत्री 365 दिनों के कामकाज और उपलब्धियों के बारे में जनता को जागरूक करेंगे। लेकिन मोदी केबिनेट की हिस्सा और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी इस सालाना जश्न में शामिल होंगी या नहीं इस पर सस्पेंस बना हुआ है। शुक्रवार को सरकार के वार्षिक जश्न को लेकर आमजन को जागरूक करने का आगाज केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर दिया है। लेकिन अब तक एचआरडी मंत्रालय की ओर से स्मृति ईरानी की मौजूदगी को लेकर कोई आधिकारिक सहमति केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईएनबी) को नहीं भेजी गई है। दरअसल सूचना-प्रसारण मंत्रालय इस पूरे कार्यक्रम का खाका तैयार करने से लेकर इसकी निगरानी भी कर रहा है।

क्यों नहीं जाएंगी ईरानी?
इस बाबत जब हरिभूमि ने एचआरडी मंत्रालय में पड़ताल की तो पता चला कि मई महीने की शुरूआत में सालाना जश्न के कार्यक्रम को लेकर जब आईएनबी मंत्रालय द्वारा केंद्रीय मंत्रियों की जो सूची तैयार की गई थी उसमें ईरानी का नाम केंद्रीय उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन के साथ 28 मई टाकथॉन के लिए शामिल किया गया था। इसमें दोनों मंत्रियों को सोशल मीडिया के ट्विटर और यू-ट्यूब जैसे माध्यमों के जरिए सरकार की सालाना उपलब्धियों के बारे में लोगों को बताना था। लेकिन बाद में ईरानी का नाम सूची से हटाने की भी बात सामने आई थी। लेकिन कुछ दिन पहले फिर से आईएनबी मंत्रालय ने एचआरडी मंत्रालय के अधिकारियों को फोन करके ईरानी का नाम सूची में बरकरार होने की बात कही है और उन्हें मंत्री की उपस्थिति को आधिकारिक मंजूरी देने को कहा गया है।

विदेश में हैं स्मृति
इस वक्त मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी यूनेस्को के एक अंतरराष्टÑीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन और दक्षिण.कोरिया के दौरे पर हैं। उनकी इस यात्रा की शुरूआत 18 मई से हुई थी और इसका समापन 25 मई को होगा। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि 25 मई को जब मंत्री स्वदेश वापस लौटेंगी तो उन्हें आईआईटी खड़गपुर के दौरे पर भी जाना है। ऐसे में सालाना जश्न में उनकी उपस्थिति होगी या नहीं पर संदेह बना हुआ है। लेकिन सूची में उनका नाम तो बना हुआ है।

विवाद तो नहीं वजह
मंत्रालय में यह चर्चा भी चल रही है कि सरकार सालाना जलसे के मौके पर अपनी कामकाजी यानि विकासवादी छवि और प्रमुख उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाना चाहती है। जिन केंद्रीय मंत्रियों को इस कार्य का जिम्मां सौंपा गया है उनके मंत्रालयों की छवि, कामकाज विकास और उपलब्धियों दोनों के पैमाने पर खरा उतरना चाहिए। इस पैमाने पर एचआरडी मंत्रालय की स्थिति संदेहपूर्ण है। मंत्रालय आए दिन कुछ न कुछ विवादों को लेकर चर्चा में रहता है।

गए थे एवरेस्ट फतह करने, हो गई अच्छी-खासी मानव सेवा

नेपाल में आए भूकंप से एक अप्रैल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतेह करने निकली भारतीय सेना क ी 30 पर्वतरोहियों की टुकड़ी को नेपाल जाकर चोटी फतह करना तो नसीब नहीं हुआ। लेकिन भूकंप से इस ऊंची चोटी के बेस कैंप में मची तबाही ने टीम को मानव सेवा का सुनहरा अवसरा मुहैया करा दिया। मंगलवार 19 मई को यह दल नेपाल से वापस भारत पहुंचा है।

यहां राजधानी में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने बताया कि 26 अपै्रल को जब नेपाल में 7.9 तीव्रता का भूकंप आया तो उसके बाद एवरेस्ट के बेस कैंप पर एक के बाद एक कई बर्फील तूफान आए। जिसने कैंप को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। इस तरह की आपदा से निपटने में सक्षम सैन्य पर्वतारोहियों के दल ने अपने आप को सुरक्षित बचा लिया और जैसे ही तूफान थमा तो यह लोग कैंप में मौजूद लोगों की तीमारदारी में जुट गए। टीम की अगुवाई कर रहे मेजर रनवीर सिंह जामवल ने कहा कि बर्फीले तूफान के वक्त स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई थी। क्योंकि एक ओर बर्फ पश्चिम में और दूसरी ओर नुप्त्से की ओर से सीधे बेस कैंप की ओर तेजी से आ रही थी। ऐसे में हमारी टीम के लिए सुरक्षित जगह पर जाना मुश्किल हो रहा था। यहां तक कि बर्फ की परत लगातार हिल रही थी। जिसमें सीधे खड़ा होना भी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

बेस कैंप में दर्दनाक नजारा था। चारों ओर टूटे हुए टेंट, मदद को पुकारते घायल लोग दिखायी दे रहे थे। इतना ही नहीं कुछ कैंप तो पूरी तरह से तूफान के साथ बह गए थे। सेना का कैंप उसमें शामिल था। बर्फ का जो हिस्सा टूटकर बेस कैंप की ओर आया था उसने करीब दो-तिहाई बेस कैंप को अपनी जद में लेकर उसे पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। इसमें करीब 19 पर्वतारोहियों की मौत हो गई और करीब 80 पर्वतारोही और शेरपा घायल हुए।

मुश्किल घड़ी में सेना के पर्वतारोही दल में शामिल मेडिकल अधिकारी मेजर रितेश गोयल ने पीड़ितों की प्राण रक्षा का जिम्मा उठाया। उन्होंने न केवल घायलों का प्राथमिक उपचार किया। बल्कि 70 पर्वतारोहियों का उपचार कर उन्हें नॉर्मल किया। कुछ के पांव टूटे हुए थे तो कुछ के हाथ। इसके अलावा कुछ लोगों को सिर पर गंभीर चोटें आयी थीं। राहत कार्य खत्म होने के बाद टीम ने निर्णय लिया कि वो चोटी पर चढ़ाई नहीं करेगी। लेकिन उसे साफ करने का जिम्मा उठाएगी।

 एक बार फिर मेजर जांमवाल के नेतृत्व में टीम ने चार दिनों तक एवरेस्ट के पूर्वी ओर खुंबू ग्लेशियर को साफ किया। इसमें नुप्त्से बेस तक बड़ी मात्रा में इकट्टा हुए मलबे को हटाया। दल ने 3 हजार किग्रा. कचरा एकट्टा करके नेपाल की सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति को सौंपा। 4 मई को सेना का यह दल अंतिम दल था जिसने बेस कैंप छोड़ा। लेकिन इसके बाद यह लोग नामचे बाजार में रूके और वहां के नामचे डेंटल क्लिनिक को बचाने और स्थानांतरित करने में मदद पहुंचाई। 12 मई को जब नेपाल में भूकंप के दुबारा झटके आए तो सेना का यह दल वहां स्थानीय लोगों का मानसिक मनोबल बढ़ाने में जुटा रहा।

जम्मू-कश्मीर में सेना की तैयारियों की समीक्षा करेंगे पर्रिकर

कविता जोशी.नई दिल्ली

एक ओर भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उस पार पाक समर्थित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर को दहलाने की साजिश रच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर सूबे में सेना की सैन्य-रणनीतिक तैयारियों की समीक्षा करने जा रहे हैं। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि रक्षा मंत्री 22 मई से जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर जाएंगे। इसमें सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी उनके साथ जाएंगे।

सूत्र ने कहा कि रक्षा मंत्री के दौरे की शुरूआत भारत की सरहदों से चीन की निगरानी करने वाली 14वीं कोर के दौरे से होगी। इसके लिए 22 मई को पर्रिकर लेह जाएंगे। लेह में रक्षा मंत्री को 14वीं कोर के मुखिया (कोर कमांडर) ले.जनरल बी.एस.नेगी सैन्य तैयारियों के बारे में जानकारी देंगे। इसके बाद पर्रिकर श्रीनगर के लिए रवाना होंंगे। यहां सेना की 15वीं कोर के कमांडर ले.जनरल सुब्रत साहा कोर की सैन्य और रणनीतिक तैयारियों के बारे में रक्षा मंत्री को अवगत कराएंगे। अंत में रक्षा मंत्री नगरोटा स्थित सेना की 16वीं कोर का दौरा करेंगे जहां उन्हें राज्य में फैली सेना उत्तरी-कमांड के मुखिया ले.जनरल डी.एस.हुड्डा और 16 कोर के कमांडर ले.जनरल के.एच.सिंह सेना की तैयारियों से जुड़े छोटे-बड़े पहलू के बारे में बताएंगे। रक्षा मंत्री की योजना इस दौरे में जम्मू जाने की भी है।

सूत्र ने कहा कि पर्रिकर अपने दौरे में सेना की तीनों कोरों के अलावा दुर्गम जगहों पर स्थित सेना की कुछ फॉरवर्ड पोस्ट भी देखेंगे और जवानों से मुलाकात कर उनका उत्साहवर्धन करेंगे। यह भी जानकारी मिल रही है कि रक्षा मंत्री की सूबे के मुख्यमंत्री मुμती मोहम्मद सईद से मुलाकात हो सकती है। बीते वर्ष नवंबर में रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के दौरे पर जा रहे हैं।

सेना की तैनाती के लिहाज से जम्मू-कश्मीर बेहद संवेदनशील राज्य माना जाता है। यहां सेना की 3 कोर लगभग ढाई लाख फौज के साथ पाकिस्तानी और चीनी खतरे से मुकाबला करने के लिए दिन-रात मुस्तैद है। गौरतलब है कि रक्षा मंत्री का यह दौरा हाल में खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट आने के तुरंत बाद हो रहा है, जिसमें यह कहा गया था कि पाक अधिकृत कश्मीर में लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन के लगभग 200 आतंकी विशेष प्रशिक्षण ले रहे हैं। आतंकियों को राज्य में आतंक मचाने के लिए प्रमुख सरकारी और सैन्य प्रतिष्ठानों के नक्शों और वीडियो दिखाकर ट्रेंड किया जा रहा है। आतंकी आने वाले दिनों में किन जगहों से घुसपैठ कर सूबे की शांति भंग करेंगे उसका ब्लूप्रिंट भी उन्होंने तैयार कर लिया गया है। यहां बता दें कि इस बाबत ‘दो सौ आतंकी ले रहे ट्रेनिंग’ शीर्षक से खबर को हरिभूमि ने 20 मई को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

.....तो अब हाइवे पर भी लैंड करेंगे लड़ाकू विमान

कविता जोशी.नई दिल्ली

अब तक आपने वायुसेना के लड़ाकू विमानों को अपने हवाईअड्डों से उड़ान भरने और लैंड करने की खबरें सुनी होगी। लेकिन बृहस्पतिवार को बल के एक लड़ाकू विमान मिराज-2000 ने यमुना एक्सप्रेस-वे पर सफलतापूर्वक लैंड कर एक नया इतिहास रच दिया। यहां राजधानी में मौजूद वायुसेना के सूत्रों ने बताया कि मिराज विमान के साथ पायलट विंग कमांडर प्रशांत अरोड़ा ने वायुसेना के ग्वालियर एयरबेस (वायुसेना की केंद्रीय कमांड का हिस्सा) से सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर उड़ान भरी और इसके ठीक 15 मिनट बाद विमान ने 6 बजकर 40 मिनट पर यमुनाएक्सप्रेस-वे पर लैंड किया।

लैडिंग से पूर्व ली अनुमति
एक्सप्रेस-वे पर मिराज विमान की लैडिंग के लिए वायुसेना ने उत्तर-प्रदेश सरकार के अलावा आगरा और मथुरा के जिलाधिकारी, एसपी, यमुना एक्सप्रेस- वे प्राधिकरण, स्थानीय पुलिस और जेपी एंफ्राटेक से अनमुति ली थी। वायुसेना की योजना भविष्य में अन्य हाइवे की पट्टियों को भी इस तरह से विकसित करने की है, जिसके बाद वहां से भी लड़ाकू विमानों को लैंड कराया जा सके।

ऐसे हुई लैंडिंग
मिराज-2000 विमान ने यमुना एक्सप्रेस-वे पर लैंड करने से पहले अपनी ऊंचाई को करके 100 मीटर पर ला दिया और उसके बाद हाइवे पर तैयार की गई पट्टी पर इसे उतारा गया। यह विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल पुराने मिराज-2000 विमानों में से ही एक है। हाल ही में वायुसेना को फ्रांस से 2 उन्नत मिराज-2000 विमान भी मिले हैं, जिनकी तैनाती भी ग्वालियर एयरबेस में ही है। इस वक्त वायुसेना के पास करीब 64 मिराज-2000 विमान हैं, जिनका उन्नतीकरण किया जाना है। लैडिंग से पहले एहतियात जरूरी मिराज या ऐसे अन्य लड़ाकू विमान उतारने से पहले कई एहतियाती कदम वायुसेना को उठाने पड़ते हैं। इसमें हाइवे का लगभग 5 किमी. का इलाका आगे और पीछे पूरी तरह से खाली कर दिया जाता है। इस दौरान लड़ाकू विमान की लैडिंग के समय गति करीब 200 किमी. होती है। वायुसेना लैडिंग साइट यानि हाइवे की पट्टी की चौड़ाई सीधी होनी चाहिए। इसके आसपास किसी तरह की कोई रिहाइश, बिल्डिंग या आबादी न हो, कोई खंबा, पेड़ और साइकिल लेन नहीं होनी चाहिए। वायुसेना के आगरा हवाईअड्डे से मिराज विमान की लैडिंग के लिए तमाम सुरक्षा संबंधी इंतजाम किए गए। विभिन्न स्थानीय एजेंसियों से अनुमति ली गई।

कई देश हैं ऐसी लैडिंग में सक्षम
भारत में लड़ाकू विमानों को हाइवे पर लैंड कराने की शुरूआत आज हुई है। लेकिन दुनिया के विकसित और विकासशील देशों में यह प्रक्रिया लंबे समय से प्रयोग में लायी जाती रही है। इस क्लब में अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, चीन, पाकिस्तान, सिंगापुर, ताइवान जैसे देश शामिल हैं। रक्षा संबंधी जानकार कहते हैं कि इस तरह की लैडिंग की सुविधा युद्ध जैसी आपात स्थिति में खासकर तब बेहद मददगार होती है, जब दुश्मन हवाई हमलों के जरिए हमारे हवाईअड्डों को नष्ट कर दें या उन्हें गंभीर नुकसान पहुंचाए।

तो सतबीर बेदी ही होंगी सीबीएसई की चेयरमैन!

बीते कुछ महीनों से खाली केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को उसका नया चेयरमैन जल्द ही मिल सकता है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सीबीएसई चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर जरूरी सारी प्रक्रिया पूरी कर ली है। अब अधिकारी के नामभर का ऐलान होना ही बाकी है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सीबीएसई चेयरमैन के पद को लेकर कई लोगों ने आवेदन किया था। लेकिन इस दौड़ में सबसे आगे डॉ.सतबीर बेदी का नाम चल रहा है। इस बात पुख्ता संभावना जताई जा रही है कि डॉ.बेदी को ही सीबीएसई का अगला चेयरमैन नियुक्त किया जाएगा। मंत्रालय की ओर से डॉ.बेदी का नाम जल्द ही कै बिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को भेजा जा सकता है।

डॉ.बेदी फ्रंटरनर
सीबीएसई चेयरमैन को लेकर एचआरडी मंत्रालय ने बीते अप्रैल महीने में नियुक्ति प्रक्रिया की शुरूआत की थी। मंत्रालय के पास इसे लेकर 59 आवेदन आए थे। इसमें से कुल 18 प्रत्याशियों के नामों को शार्टलिस्ट किया गया। इस दौड़ में डॉ.बेदी का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। यहां बता दें कि डॉ.बेदी अभी एचआरडी मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में संयुक्त सचिव हैं और सीबीएसई चेयरमैन का कामकाज अस्थायी तौर पर संभाल भी रही हैं। डॉ.बेदी 1986 बैच की यूटी कैडर की आईएएस अधिकारी हैं।

बीते दिसंबर से खाली है पद
सीबीएसई चेयरमैन का पद बीते वर्ष दिसंबर महीने से खाली है। दिसंबर में ही विनीत जोशी ने सीबीएसई चेयरमैन के रूप में अपना बढ़ा हुआ कार्यकाल पूरा किया था। उसके बाद नए चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर सरकार के स्तर पर कवायद तेज हुई। दिसंबर में ही मंत्रालय की ओर से डॉ.बेदी को सीबीएसई का कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया था।

हमारी कार्रवाई से डरकर प्रतिक्रिया दे रहा पाक: पर्रिकर


रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि पाकिस्तान, भारतीय सेना द्वारा म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकी कैंपों को तबाह करने की कार्रवाई से डर गया है, इसलिए ऐसी प्रतिक्रिया दे रहा है। यहां राजधानी में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि जब सोच के तरीके में बदलाव आता है, तब कई चीजें बदल जाती हैं। आपने पिछले दो-तीन दिनों में ऐसा देखा है। म्यांमार में उग्रवादियों के खिलाफ की गई हमारी सेना की एक कार्रवाई ने पूरे देश में सुरक्षा परिदृश्य के बारे में सोच को बदल दिया है। रक्षा खरीद प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए पर्रिकर ने कहा कि इस बारे में सोच में बदलाव की जरूरत है।

म्यांमार में सेना द्वारा चलाए अभियान का विस्तृत ब्यौरा देने से इंकार करते हुए कहा कि जो लोग हमारे रुख से भयभीत हुए हैं उन्होंने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि भारतीय सेना ने म्यांमार के अधिकारियों की जानकारी में सफल कार्रवाई में करीब 40 उग्रवादियों को मार गिराया। यह वही आतंकी थे जो 4 जून को मणिपुर के चंदेल में भारतीय सेना के काफिले पर हमला करने के लिए जिम्मेदार थे। चार जून को किए गए हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे।

भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस अभियान के बाद पाकिस्तान के गृह मंत्री निसार अली खान ने कहा था कि पाकिस्तान, म्यांमार की तरह नहीं है। भारत हमें म्यांमार समझने की गलती न करे। इसके अलावा उन्होंने धमकी भरे लहजे में कहा कि उनका देश सीमापार से आ रही धमकी से न ही डरेगा और न ही उसके सामने झुकेगा। पाकिस्तानी मंत्री का यह बयान सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के उस बयान के बाद आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि मणिपुर में 18 सैनिकों को मारने वाले उग्रवादियों के खिलाफ म्यांमार में की गई कार्रवाई अन्य पड़ोसी देशों के लिए संदेश है। राठौर की यह टिप्पणी पाकिस्तान को चेतावनी के लहजे में कही गई। खान ने कहा कि भारत के सामने यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान, म्यांमार जैसा देश नहीं है। जिनकी पाक के खिलाफ बुरी सोच है, उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि पाकिस्तानी सेना इस तरह की किसी भी कार्रवाई का उसी अंदाज में जवाब देने में सक्षम है।

रविवार, 17 मई 2015

पर्रिकर ने तेजपुर में सेना की रणनीतिक तैयारियों की समीक्षा की

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के उत्तर-पूर्व के दौरे की शुक्रवार को आधिकारिक शुरूआत हो गई। वहां पहुंचने पर सबसे पहले उन्होंने थलसेना की पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टीनेंट जनरल एमएमएस राय और तेजपुर में पड़ने वाली चौथी कोर के कमांडर ले जनरल शरत चंद से मुलाकात की। दोनों अधिकारियों ने रक्षा मंत्री को पूर्वोत्तर में सेना की सैन्य-रणनीतिक तैयारियों और चुनौतियों के बारे में विस्तार से रूबरू कराया। रक्षा  मंत्री के साथ उनके दो दिवसीय पूर्वोत्तर दौरे में गृह राज्य मंत्री किरिन रिजिजू भी गए हैं। शुक्रवार को ही चीन से लगी पश्चिमी-सीमा के चुशूल पर चीनी सेना के अधिकारियों ने सेना के अधिकारियों के साथ अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के मौके पर मुलाकात की।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि शनिवार को रक्षा मंत्री अरूणाचल-प्रदेश के तवांग के लिए रवाना होंगे। तवांग उनके दौरे का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। क्योंकि सामरिक-रणनीतिक लिहाज यह सेना के लिए बेहद महत्वपूर्ण ठिकाना है। पर्रिकर तवांग युद्ध स्मारक देखेंगे और सेना की वास्तविक नियंत्रण रेखा के बेहद करीब पड़ने वाली फॉरवर्ड पोस्ट भी जाकर जवानों से मुलाकात करेंगे। रक्षा मंत्री का बूमला जाने का भी कार्यक्रम है।

यहां बता दें कि बूमला भारत और चीन के बीच उत्तर-पूर्व में पड़ने वाला बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) करने का स्थान है। यहां सालाना मौकों से लेकर सीमा पर एक-दूसरे के साथ विवाद की स्थिति में भी बैठक की जाती है। यहां से रक्षा मंत्री ईटानगर के लिए रवाना होंगे और वहां अरूणाचल-प्रदेश के गर्वनर से लेफटीनेंट जनरल निर्भय शर्मा से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वो जोरहाट होते हुए दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे। उधर लद्दाख के चुशूल में दोनों सेनाओं के बीच हुई बीपीएम की बैठक में सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने पर जोर दिया गया। विवादपूर्ण स्थितियों का हल बातचीत से निकालने पर जोर दिया गया। बैठक में भारत की ओर से ब्रिगेडियर जेके.एस विजिसविक्र के नेतृत्व में सैन्य अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने अपने चीनी समकक्ष वरिष्ठ कर्नल फैं्र नजुन की अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की।

पूर्वोत्तर में सेना-वायुसेना के ठिकाने
पूर्वोत्तर में थलसेना की पूर्वी कमांड है, जिसका मुख्यालय पश्चिम-बंगाल में है। इस कमांड के तहत तीन अहम रणनीतिक कोर आती हैं। इनमें 3, 4 और 33 कोर चीनी खतरे से सीधे मुकाबले के लिए तैनात की गई हैं। आंकड़ों के हिसाब से यह करीब ढाई लाख फौज होती है। 3 कोर का मुख्यालय नागालैंड के दीमापुर में है, 4 कोर का मुख्यालय असम के तेजपुर में और 33 कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के सिलिगुड़ी में है। पूर्वोत्तर में वायुसेना की पूर्वी कमांड भी तैनात है। इसमें तवांग में हेलिकॉप्टरों के उतरने के लिए हैलीपैड है। तेजपुर, जोरहाट में एयरफील्ड है और रंगिया में हैलिपैड है। यह वो इलाके हैं जहां रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान जाएंगे।

पूर्वोत्तर में कमजोर है भारत?
पूर्वोत्तर में चीन से लगी सीमा पर अगर दोनों देशों के बीच सैन्य-रणनीतिक स्तर पर तुलना की जाए तो भारत के मुकाबले चीन बेहतर स्थिति में है। भारत की यहां सेना की 3 कोर और 10 डिवीजन तैनात हैं। इस आंकड़ें में लद्दाख की एक डिवीजन भी शामिल है। इसकी तुलना में अगर लड़ाई के हालात बनते हैं तो चीन एकसाथ लद्दाख से लेकर अरूणाचल सीमा तक अपनी सेना की कुल 32 डिवीजन ला सकता है। चीन का रेल-रोड़ संपर्क भारत की मुकाबले कई गुना सुदृढ़ है। जबकि हमारा निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है।
बारामूला-त्राल में बड़े हमले की तैयारी में आतंकी
एलओसी के उस पर से घुसपैठ की फिराक में आतंकी
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
अप्रैल के खत्म होते-होते जम्मू-कश्मीर की फिजा धीरे-धीरे अशांत होने की ओर बढ़ने लगी है। इसके पीछे पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने को एक बड़ी वजह माना जाता है। यह आतंकियों के लिए सीमा पार कर सूबे में घुसने का सुनहरा समय होता है। सरकार के खुफिया ब्यूरो के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर के बारामुला और त्राल में बड़े आतंकवादी हमले हो सकते हैं। इसके लिए घाटी के अंदर और बाहर मौजूद आतंकियों ने रणनीति बनाना शुरू कर दिया है।

यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि आने वाला समय कश्मीरियों के लिए घाटी के अंदर से लेकर बाहर से संकटभरा रह सकता है। एक ओर आतंकवादी बारामूला और त्राल में बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर भारत और पाकिस्तान के बीच पड़ने वाली नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सटे इलाकों से बड़ी तादाद में आतंकी राज्य में प्रवेश कर बड़े हमले की जुगत लगाए बैठे हैं।

सूत्र ने कहा कि एलओसी के उस पार (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका) से आतंकवादी कृष्णा घाटी, बींबर गली और छंब-जरिया जैसे राज्य के इलाकों में घुसपैठ करने के लिए घात लगाए बैठे हैं। इन जगहों पर आतंकियों के करीब 3 समुह मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक में 8 से 10 लोग शामिल हैं। यह संख्या आतंकियों और उनके सहायकों को मिलाकर है। समुह में 5 आतंकी और 1 हैंडलर, 1 गाइड, 1 सामान उठाने वाला व्यक्ति होता है। त्राल में आतंकी हमले के पीछे मंशा हाल ही में सेना द्वारा मारे गए युवक की मौत का बदला लेना हो सकता है। इस युवक को सेना ने आतंकवादी बताकर मारा था। जिसके बाद घाटी में हालात काफी तनावपूर्ण हो गए थे। कई जगहों पर पत्थरबाजी की घटनाएं भी हुई थीं।

गौरतलब है इस साल आतंकवादियों ने बीते तीन महीने के दौरान एलओसी पार कर राज्य में घुसपैठ करने की 3 बार कोशिश की है। इसमें वो नाकाम रहे। सुरक्षाबलों ने उन्हें वापस खदेड़ दिया। वर्ष 2010 से लेकर 2014 तक कुल 425 आतंकी घुसपैठ के दौरान सफल हुए हैं। इस दौरान सुरक्षाबलों ने कुल 536 आतंकियों को मार गिराया। इसी दौरान आतंकियों से मुकाबला करते हुए कुल 127 सुरक्षाबलों की मौत हुई है। पश्चिमी-सीमा पर भारत और चीनी सेना की अहम बैठक होगी। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री पूर्वोत्तर से पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी-सीमा का दौरा कर चुके हैं। वहां वो श्रीनगर गए थे।


चीन से लगी पश्चिमी-पूर्वी सीमा पर हलचलों भरा रहेगा शुक्रवार

कविता जोशी.नई दिल्ली

दक्षिण-एशिया में भारत के मुख्य प्रतिद्वंदी चीन से लगी पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर शुक्रवार तेज हलचलों वाला दिन रहेगा। एक ओर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल से लगी चीनी सीमा पर चल रही सैन्य-सामरिक तैयारियों का जायजा लेंगे तो दूसरी ओर लद्दाख के चुशूल में चीन से लगी पश्चिमी-सीमा पर भारत और चीनी सेना की अहम बैठक होगी। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री पूर्वोत्तर से पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी-सीमा का दौरा कर चुके हैं। वहां वो श्रीनगर गए थे।

ऐसा होगा पूर्वोत्तर का दौरा
रक्षा मंत्रालय के उच्चदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि रक्षा मंत्री का यह पहला दो दिवसीय (1-2 मई) पूर्वोत्तर का दौरा है। इसकी शुरूआत वो अरूणाचल-प्रदेश के सामरिक लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण ठिकाने तवांग से करेंगे। तवांग के बाद रक्षा मंत्री रंगिया भी जाएंगे और अंत में जोरहाट होते हुए 2 मई को दिल्ली लौटेंगे। तवांग जाने से पहले रक्षा मंत्री असम के तेजपुर में 1 मई की रात को रुकेंगे। अगले दिन तवांग के लिए रवाना होंगे। चीन के साथ भारत 3 हजार किमी. से ज्यादा लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) साझा करता है। बीते वर्ष नवंबर में रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद उनका यह पहला पूर्वोत्तर का दौरा है।
पूर्वोत्तर में सेना-वायुसेना के ठिकाने पूर्वोत्तर में थलसेना की पूर्वी कमांड है, जिसका मुख्यालय पश्चिम-बंगाल में है। इस कमांड के तहत तीन अहम रणनीतिक कोर आती हैं। इनमें 3, 4 और 33 कोर चीनी खतरे से सीधे मुकाबले के लिए तैनात की गई हैं।

आंकड़ों के हिसाब से यह करीब ढाई लाख फौज होती है। 3 कोर का मुख्यालय नागालैंड के दीमापुर में है, 4 कोर का मुख्यालय असम के तेजपुर में और 33 कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के सिलिगुड़ी में है। पूर्वोत्तर में वायुसेना की पूर्वी कमांड भी तैनात है। इसमें तवांग में हेलिकॉप्टरों के उतरने के लिए हैलीपैड है। तेजपुर, जोरहाट में एयरफील्ड है और रंगिया में हैलिपैड है। यह वो इलाके हैं जहां रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान जाएंगे।

चुशूल में होगी सेनाओं की बैठक
लद्दाख के चुशूल में भारत और चीनी सेनाओं की 1 मई को अंतरराष्टÑीय मजदूर दिवस के मौके पर बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) होगी। इस बार बैठक का आयोजन चीन की ओर से किया गया है। इसमें भारत की ओर से करीब 12 सैन्य अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल बैठक में शरीक होगा। जिसकी अगुआई बिग्रेडियर स्तर के सैन्य अधिकारी करेंगे। उधर बैठक में चीन की ओर से आने वाले प्रतिनिधिमंडल की अगुआई वरिष्ठ कर्नल स्तर के अधिकारी करेंगे। यहां बता दें कि बीपीएम बैठकों का आयोजन भारत और चीन द्वारा सालाना कई मौकों पर किया जाता है। इसमें भारत 26 जनवरी,15 अगस्त को बीपीएम बैठकों का आयोजन करता है। जबकि चीन 1 मई को बीपीएम का आयोजन करता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई महीने के दूसरे सप्ताह में चीन के दौरे पर जाने वाले हैं। इससे पहले रक्षा मंत्री अरूणाचल-प्रदेश से लगी पूर्वोत्तर की सीमा का जायजा लेंगे।

पूर्वोत्तर में कमजोर है भारत?
पूर्वोत्तर में चीन से लगी सीमा पर अगर दोनों देशों के बीच सैन्य-रणनीतिक स्तर पर तुलना की जाए तो भारत के मुकाबले चीन बेहतर स्थिति में है। भारत की यहां सेना की 3 कोर और 10 डिवीजन तैनात हैं। इस आंकड़ें में लद्दाख की एक डिवीजन भी शामिल है। इसकी तुलना में अगर लड़ाई के हालात बनते हैं तो चीन एकसाथ लद्दाख से लेकर अरूणाचल सीमा तक अपनी सेना की कुल 32 डिवीजन ला सकता है। चीन का रेल-रोड़ संपर्क भारत की मुकाबले कई गुना सुदृढ़ है। जबकि हमारा निर्माण कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है।

‘वन स्टॉप सेंटर योजना’ को लेकर जारी हुई गाइडलाइंस

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए जाने वाले आपराधिक मामलों का त्वरित निपटान करने के लिए देश में खोले जाने वाले वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर योजना का क्रियान्वयन तेज हो गया है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस बाबत दिशानिर्देंशों का खाका तैयार कर लिया है। इन्हीं के मार्फत अब देशभर में इन केंद्रों को खोलने से लेकर इनसे जुड़ा हर छोटा-बड़ा काम किया जाएगा। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि इन दिशानिर्देंशों के हिसाब से राज्य सरकार मंत्रालय के पास केंद्र खोलने को लेकर अपने प्रस्ताव भेजेंगी। इन प्रस्तावों का मूल्यांकन प्रोग्राम अपूवल बोर्ड (पैब) करेगा जिसकी अध्यक्षता मंत्रालय के सचिव स्तर के अधिकारी करेंगे।

पैब की स्वीकृति के बाद ही किसी प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। पैब में सचिव के अलावा मंत्रालय से वित्तीय सलाहकार, विभाग के अतिरिक्त सचिव/संयुक्त सचिव, विभाग के निदेशक, राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसके अलावा कोई अन्य विशेषज्ञ/ सांविधिक निकाय या आमंत्रित व्यक्ति बोर्ड का अध्यक्ष हो सकता है। यहां बता दें कि देश में कुल 36 क्राइसिस मैनेजमेंट केंद्र खोले जाने हैं। इस योजना का क्रियान्वयन 1 अप्रैल से शुरू हो गया है।

वन स्टॉप क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर एक ऐसा केंद्र होगा जहां पर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं से लेकर यौन उत्पीड़न, मारपीट, अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर प्रताड़ित करने के अलावा महिलाआें से जुड़े हुए हर तरह के अपराधों की एक छत के नीचे पड़ताल की जाएगी। केंद्र की खास बात यह है कि इसमें दूर-दराज के इलाकों से आने वाली महिलाओं के लिए इस केंद्र में कुछ समय तक रुकने की भी व्यवस्था होगी। यहां पर पीड़ित महिला मनोचिकित्सक, डॉक्टर, वकील और पुलिस की सुविधा एकसाथ मिलेंगी।

गाइडलाइंस के हिसाब से ही केंद्र-राज्य सरकारें और तमाम सहयोगी एजेंसियां, विभाग मिलकर काम करेंगे। इनमें योजना के तहत दी जाने वाली सुविधाआें, अलग-अलग स्तरों पर क्रियान्वयन की निगरानी के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया, अनुदान राशि के वितरण की व्यवस्था, रिर्पोटिंग के अलावा केंद्र में न्याय पाने की उम्मीद लेकर पहुंची पीड़ित महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाना है को लेकर मानकों (स्टैंडर्ड आॅपरेंटिंग प्रोसिजर) का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

गौरतलब है कि मंत्रालय की योजना हर राज्य में एक वन स्टॉप सेंटर खोलने की है। इसकी शुरूआत छत्तीसगढ़ के रायपुर से की जाएगी। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने हाल ही में पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि शुरूआत में हर राज्य में एक केंद्र खोला जाएगा। लेकिन बाद में इनकी संख्या में इजाफा किया जाएगा। हम चाहते हैं कि हर ब्लॉक में एक केंद्र हो। दिशानिर्देंशों में स्पष्ट है कि निर्भया फंड की धनराशि का इस्तेमाल इन केंद्रों के लिए किया जाएगा।

भूकंप प्रभावित पूर्व सैनिकों का दिल्ली में होगा मुफ्त इलाज

नेपाल में अभी 1.25 लाख पूर्व सैनिक परिवार सहित रह रहे हैं।
दिल्ली में आरआर और बेस अस्पतालों में होगा इलाज
कविता जोशी.नई दिल्ली

नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद बुधवार को सेना ने ऐलान किया कि वो इस आपदा में प्रभावित हुए अपने पूर्व-सैनिकों और गोरखाआें को यहां दिल्ली लाकर मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान करेंगे। अभी नेपाल में 1.25 लाख पूर्व सैनिक और 38 हजार गोरखा अपने परिवारों के साथ रहते हैं। भूकंप में ये इन्हें भी काफी नुकसान हुआ है। यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने बताया कि हमने यह निर्णय लिया है कि इस प्राकृतिक आपदा में प्रभावित हुए थलसेना के पूर्व सैनिकों यानि रणबांकुरों और गोरखाआें को यहां राजधानी दिल्ली लाकर सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल (आरआर) और बेस अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा दी जाएगी। इससे इन लोगों को बड़े निजी अस्पतालों के चक्कर लगाने से भी निजात मिल जाएगी।

सेना ने बचाई 82 भारतीयों की जान
सेना की एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए गए पर्वतारोहियों में 82 भारतीयों की जान बचाई है। सेना के हेलिकॉप्टरों की मदद से इन्हें बुधवार को इन लोगों को कैंप 1 और 2 से निकालकर बेस कैंप से नीचे लुकला में सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। अब सेना अपने संचार माध्यमों जैसे फेसबुक और ट्विटर हैंडल के जरिए इनके अपनों को इनकी सलामती की सूचना देगी। जिसके बाद वो इनसे संपर्क कर सकेंगे। गौरतलब है कि बेस कैंप, पर्वतारोही द्वारा एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के दौरान पड़ने वाला सबसे पहला पड़ाव है। इसके बाद कैंप 1 और 2 आते हैं। इसके बाद अंत में सीधे चोटी तक चढ़ाई की जाती है।

सेना के सूत्रों का कहना है कि इन लोगों को हमने कैंप 1, 2 से सुरक्षित निकाला है। भूकंप के बाद आए बर्फीले तूफान के बाद यहां अब तक पहुंचना असंभव बना हुआ था। बर्फील तूफान का सबसे ज्यादा प्रभाव बेस कैंप 1 और 2 पर ही पड़ा था। इनके नीचे मौजूद बेस कैंप से आपदा के शुरूआत में ही प्रभावितों को निकालने का सिलसिला चल रहा है। लुकला लाने के बाद इन लोगों की इनके परिजनों से बात नहीं हो पाई। क्योंकि संचार संपर्क नेपाल में भूकंप आने के बाद से ठप पड़ा हुआ है। ऐसे में इन लोगों ने सेना से गुहार लगाई कि वो अपने संचार सूत्रों के जरिए इनकी इनके परिजनों से बात कराएं और इनके सुरक्षित होने की सूचना दें। सेना ने इन लोगों के परिजनों तक इनकी सलामती की सूचना देने के लिए अपने फेसबुक और ट्विटर हैंडल का प्रयोग करने का निर्णय लिया है।

सोशल-मीडिया के इन सबसे तेज माध्यमों पर इन लोगों की जानकारी डाली जाएगी जिसके बाद इनके परिजन इनसे संपर्क कर सकेंगे। उधर सेना का अभियान आॅपरेशन मैत्री बेरोकटोक जारी है। अब सड़क मार्ग खुलने के बाद इसके जरिए लोगों को निकालने और प्रभावितों तक मदद पहुंचाने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है।

जल्द खुलेंगे 5 नए आईआईटी और 6 आईआईएम!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्र की सत्ता पर बीते वर्ष मई महीने में काबिज हुई नई सरकार द्वारा खोले जाने वाले 5 आईआईटी और 6 आईआईएम संस्थानों के जल्द खुलने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकारों ने इनके लिए जमीन की व्यवस्था कर ली है। अब उस पर केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि 5 आईआईटी संस्थान छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू, आंध्र-प्रदेश और केरल में खोले जाने हैं। इसके अलावा 6 आईआईएम हिमाचल-प्रदेश, पंजाब, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र में खोले में जाने हैं। तकनीकी शिक्षा के इन शीर्ष संस्थानों के लिए राज्य-सरकारों ने 500-600 एकड़ जमीन की व्यवस्था की है। संस्थानों के जमीन का चयन करने से पहले राज्य सरकारों को इन बिंदुआें पर खास ध्यान पड़ता है जैसे जमीन ऐसी जगह पर होनी चाहिए जिस पर कोई विवाद न हो, पहले से अदालती मामला न चल रहा हो, जगह हर तरह के यातायात मार्गों से जुड़ी हुई हो।

मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में सरकार ने इन संस्थानों के लिए 1 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। सूत्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने आईआईटी के स्थाई कैंपस के लिए दुर्ग (भिलाई) और अस्थाई कैंपस के लिए नया रायपुर में जमीन की व्यवस्था की है।

आईआईटी छत्तीसगढ़ का सलाहकार संस्थान (मैंटोर) आईआईटी हैदराबाद होगा। जम्मू में राज्य सरकार ने आईआईटी के स्थाई कैंपस के लिए सांबा और कठुआ में संस्थान खोलने के लिए जमीन दी है। साइट सलेक्शन कमिटी (एसएससी) ने साइट का दौरा कर लिया है। अब केवल उनकी रिपोर्ट आनी बाकी है। आंध्र सरकार ने चित्तूर जिले के मरलापक्का में जमीन दी है। साइट की पड़ताल कर एसएससी ने उसके लिए केंद्र को सिफारिश कर दी है। केरल ने पलाकड़ जिले के पुडुसरी में जमीन दी है और गोवा ने दारगालिम में जमीन की व्यस्था की है।

बिहार आईआईएम के लिए बोधगया, ओडिशा ने भुवनेश्वर, महाराष्टÑ ने नागपुर, पंजाब ने अमृतसर, हिप्र ने सिरमौर और आंध्र-प्रदेश ने विशाखापट्टनम में कैंपस खोलने के लिए जमीन की व्यवस्था की है। विशाखापट्टनम, सिरमौर और नागपुर में ली गई जमीन पर केंद्र सरकार ने अपनी सहमति दे दी है। इसी वर्ष 17 जनवरी को विशाखापट्टनम का शिलान्यास किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि साइट सलेक्शन समिति की सिफारिश के बाद ही इन्हें अंतिम मंजूरी दी जाएगी।

नेपाल में बेरोकटोक चलता रहेगा राहत-बचाव अभियान

हरियाणा सरकार ने भेजी प्रभावितों को राहत सामग्री
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सशस्त्र सेनाओं का कहना है कि नेपाल में आम-जनजीवन सामान्य होने तक उनके द्वारा चलाया जा रहा राहत एवं बचाव अभियान बेरोकटोक गति से चलता रहेगा। हरियाणा सरकार की ओर से भी भूकंप प्रभावितों के लिए राहत सामग्री भेजी गई है। इसमें खाने-पीने का सामान और जरूरी राशन शामिल है। यहां बता दें कि नेपाल में बीते शनिवार को 7.9 तीव्रता का भूकंप आया था। इससे जानमाल का काफी नुकसान हुआ है। नेपाल के साथ-साथ भूकंप के झटके भारत के आधे से ज्यादा राज्यों में महसूस किए गए। कई लोग मारे भी गए हैं। सेना के अतिरिक्त महानिदेशक (मिलिट्री आॅपरेशन) मेजर जनरल रनबीर सिंह ने मंगलवार को यहां राजधानी में पत्रकारों से बातचीत में कहा हमने इस राहत अभियान को लेकर कोई समय सीमा निधार्रित नहीं की है। लेकिन जब तक नेपाल चाहेगा हम उनकी मदद करते रहेंगे।

उन्होंने कहा कि सेना, नेपाल के दूरदराज के इलाकों में पहुंचकर भूकंप प्रभावितों की मदद कर रही है। एक 45 बेड का अस्पताल, 3 फील्ड अस्पताल 18 लोगों की मेडिकल टीम राहत कार्य में लगी हुई है। सेना के डॉक्टर नेपाल के सिविल अस्पतालों में पीड़ितों के इलाज में मदद पहुंचा रहे हैं। सेना के 12 इंजीनियरिंग कार्यबलों को नेपाल में सड़कों को खोलने के लिए रवाना किया गया है। प्रत्येक कार्यबल में कुल 70 लोग हैं। सेना नेपाल में भूकंप के केंद्र रहे बारपाक में भी पहुंच गई है और प्रभावितों को हर संभव मदद पहुंचा रही है।

एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ाई के लिए गए 70 पर्वतारोहियों को सेना के रितेश गोयल ने काफी मदद पहुंचाई। यह सभी भूकंप के बाद हिमालय पर आए बर्फील तूफान की चपेट में आ गए थे। 28 वर्षीय रितेश ने इन सभी क ा प्राथमिक उपचार कर इनके जीवन की रक्षा की। इनमें से कुछ के हाथ-पांव टूटे हुए थे तो करीब 8 पर्वतारोहियों को सिर में गंभीर चोटें लगी थीं। इन्हें हेलिकॉप्टर की मदद से बेस कैंप से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। दरअसल रितेश सेना के उस 30 सदस्यीय पर्वतारोहियों के दल में शामिल थे जो एवरेस्ट की चोटी फतह करने के लिए निकले थे। इससे पहले वो सियाचिन में भी तैनात रह चुके हैं। बेस कैंप की ऊंचाई 17 हजार 500 फीट है।

वायुसेना के विमानों उड़ान जारी
वायुसेना के करीब 7 विमानों के जरिए 41 टन खाद्य सामग्री, पानी,1100 कंबल और टेंट नेपाल भेजे गए हैं। इसके अलावा टूटे-फूटे सड़क मार्ग को दुरुस्त करने के लिए सेना के 2 इंजीनियर्स कार्यबलों को भी वायुसेना ने अपने विमानों से भेजा है। विमानों में 2 सी-17 ग्लोबमास्टर-3, 2 सी-130 जे सुपर हरक्युर्लिस, 2 आई-76 और 1 एएन-32 परिवहन विमान के जरिए राहत सामग्री भेजी जा रही है। नेपाल से वापसी में यह विमान वहां मौजूद प्रभावितों को भारत लाने के काम में भी जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि 25 अप्रैल से राहत अभियान में जुटी वायुसेना ने अब तक कुल 2 हजार 865 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है। वायुसेना के विमानों द्वारा 36 बार भरी गई उड़ानों में 238.5 किग्रा वजन सामान नेपाल पहुंचाया गया। इस समय वायुसेना के 8 हेलिकॉप्टर नेपाल में तैनात हैं। इनमें 6 काठमांडू और 2 पोखरा में हैं। हेलिकॉप्टर के जरिए 250 लोगों को बचाया जा चुका है और 25 टन राहत सामग्री पहुंचाई गई है। मेडिकल और इंजीनियर कार्यबल के 100 लोगों को नेपाल में उतारा जा चुका है। 350 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।

नौसेना भी अभियान में शामिल
नौसेना भी नेपाल में भूकंप प्रभावितों की मदद को लेकर चलाए जा रहे अभियान में शामिल हो गई है। नौसेना की 16 सदस्यीय मेडिकल टीम मंगलवार रात को नेपाल के लिए रवाना होगी। इसमें 6 डॉक्टर और 10 मेडिकल स्टॉफ शामिल होगा। नौसेना के सूत्रों ने कहा कि इस दल में शामिल 6 डॉक्टरों में एक सर्जन, 1 एनस्थिसिया का डॉक्टर, 1 मेडिकल स्पेशलिस्ट, 2 ग्राउंड ड्यूटी मेडिकल आॅफिसर, 1 कम्युनिटी मेडिकल आॅफिसर शामिल हैं। इसके अलावा 10 मेडिकल अस्सिटेंट में 1 आॅपरेशन रूम अस्सिटेंट, 6 लैब एंड ग्राउंड ड्यूटी अस्सिटेंट, 2 हाइजीन स्पेशलिस्ट, 1 बीटीए शामिल है।

21 जाली विश्वविद्यालयों को लेकर यूजीसी सख्त, छात्र न लें दाखिला

कविता जोशी.नई दिल्ली

देश में चल रहे 21 जाली विश्वविद्यालयों को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सख्त हो गया है और उसने छात्रों से इनमें दाखिला न लेने को कहा है। उच्च-शिक्षा देने के मकसद से खोले गए इन संस्थानों को लेकर यूजीसी का कहना है कि ये विश्वविद्यालय यूजीसी के वर्ष 1956 के कानून का सीधा उल्लंधन कर रहे हैं। इसके अलावा ये स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों के जरिए छात्र-छात्राओं को डिग्रियां भी जारी कर रहे हैं। वास्तक में इन संस्थानों को डिग्री जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि इनकी स्थापना केंद्र-राज्य के कानून के अलावा यूजीसी के कानून के तहत नहीं की गई है।

यूजीसी की वेबसाइट पर मौजूद इस सूची में मध्य-प्रदेश का केसरवानी विद्यापीठ, जबलपुर भी शामिल है। इस सूची में दिल्ली के 5 विश्वविद्यालय भी हैं, जिनमें कर्मशियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर-सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्ट्टीट्यूट आॅफ साइंस एंड इंजीनियरिंग शामिल है। उत्तर-प्रदेश के सर्वाधिक 9 जाली विश्वविद्यालय भी यूजीसी की सूची में हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, पश्चिम-बंगाल, तमिलनाडु, केरल और बिहार का एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय इसमें शामिल है। यहां बता दें कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी इस मामले पर काफी सख्त है। हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस बाबत राज्यसभा में सांसदों को अवगत कराया था।

यूजीसी ने इस मामले पर छात्रों/ अभिभावकों और पब्लिक को इस बारे में अवगत कराने के लिए जारी विश्वविद्यालयों की सूची अपनी वेबसाइट पर जारी की है। इस तरह के विश्वविद्यालयों के खिलाफ यूजीसी कानून और भारतीय दंड संहित के तहत कार्रवाई की जाएगी। कुछ विश्वविद्यालयों और संस्थानों को लेकर यूजीसी ने न्यायालयों में मामले भी दर्ज कराए हैं। जहां तक इस तरह के संस्थानों को बंद करने का मामला है तो इसके लिए संबंधित राज्य सरकार को कार्रवाई करने का अधिकार है। आयोग ने इन 21 विश्वविद्यालयों के कुलपति, निदेशकों और प्रमुखों को इन्हें बंद करने को लेकर लिखित में जानकारी दे दी है। राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिवों को उनके एकाधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले विश्वविद्यालयों-संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर रिमांडर भेजे जा चुके हैं।

भूकंप के समय जाम हुई टेलिफोन लाइनें!

वायुसेना ने शुरू किया बचाव अभियान
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

राजधानी दिल्ली समेत समूचे देश में शनिवार सुबह महसूस किए गए भूकंप के तेज झटकों से हर तरफ अफरातफरी का माहौल बन गया। जो जहां था वहीं थम गया। कुछ देर के लिए टेलिफोन और मोबाइल फोन की लाइनें जाम हो गई। हर कोई एक-दूसरे के अपनों के सुरक्षित होने के बारे में जानकारी लेने लगा। भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर 7.9 आंकी गई और इसका केंद्र नेपाल के काठमांडु में था। भूकंप का प्रभाव नेपाल समेत भारत के उत्तर, केंद्रीय और पूर्वी भारत के राज्य में देखने को मिला। नेपाल में भूकंप से मरने वालों का आंकड़ा 876 तक पहुंच गया है।

उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोपहर 3 बजे हुई आपात बैठक के बाद आए निर्देंश के तुरंत बाद वायुसेना ने युद्धस्तर पर राहत एवं बचाव अभियान शुरू कर दिया। रक्षा मंत्रालय द्वारा ट्विटर पर दी गई जानकारी के मुताबिक नेपाल में राहत एवं बचाव अभियान मेंदोपहर बाद राजधानी दिल्ली से सटे हिंडन वायुसैनिक अड्डे से रवाना हुआ वायुसेना का विशालकाय मालवाहक विमान सी-130जे सुपर हरक्यूर्लिस 39 लोगों की राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) की टीम और 3.5 टन वजनी राहत सामग्री के साथ काठमांडु पहुंच चुका है। इसके अलावा शाम में वायुसेना के 2 मालवाहक मी-17 हेलिकॉप्टरों ने उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर से नेपाल के लिए उड़ान भरी। इसके अलावा वायुसेना भूकंप के दौरान मदद पहुंचाने के लिए 2 विशालकाय परिवहन विमानों सी-17 को हिंडन से और 1 आईएल-76 परिवहन विमान को पंजाब के भटिंडा से नेपाल भेजा गया है। उधर थलसेना नेपाल में राहत एवं बचाव अभियान में मदद पहुंचाने के लिए स्टैंडबॉय की स्थिति में है। जैसे की सरकार की ओर से ग्रीन सिग्नल मिलेगा सेना शामिल हो जाएगी।

गौरतलब है कि दिल्ली भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन-4 में आती है। इसके ज्यादातर इलाकों में ऊंची बिल्डिंगों और भवनों का निर्माण बिना किसी पूर्व योजना के किया गया है। खासकर पूर्वी दिल्ली में यमुना नदी के तट के आस-पास काफी कंस्ट्रक्शन हुआ है। इसे भूकंप का तेज झटका एक बार ही तहस-नहस कर सकता है।

तो प्रथम विश्वयुद्ध में साथ लड़े थे आॅस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड!

एनजेक डे पर दोनों के उच्चायुक्तों के साथ सेनाप्रमुख देंगे श्रद्धांजलि
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

वर्तमान में भारत-पाकिस्तान की तरह एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी कभी एक राष्ट्र ‘आॅस्टेलिया’ की रक्षा के लिए एकजुट होकर लड़े थे। मौका था प्रथम विश्व युद्ध का जिसमें एक राष्ट्र के रूप में इन दोंनो के सैनिक केवल एक आॅस्ट्रेलियाई योद्धा के रूप में शामिल हुए थे। 25 अप्रैल को आॅस्ट्रेलिया ने तुर्की में विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए अपनी सेनाओं को उतारा था। शनिवार को इसकी वर्षगांठ के मौके पर यहां राजधानी स्थित वॉर सिमेट्री में आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त, तुर्की के राजदूत और थलसेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग उन अमर शहीदों को पौ फटते ही (सुर्योदय के साथ) श्रंद्वाजलि देंगे। गौरतलब है कि न्यूजीलैंड इस दिन को तुर्की में सैनिकों को उतारने की घटना के तौर पर याद करता है तो आस्ट्रेलिया उन सभी न्यूजीलैंड के वीर योद्धाओं को याद करता है, जिन्होंने एकजुट होकर उनके राष्ट्र के लिए युद्ध में अतुलनीय योगदान दिया।

 प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने ब्रिटिश सेना के हिस्से के तौर पर बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसमें फ्रांस, जर्मनी, से लेकर तुर्की और कई अन्य जगहों पर लड़ाई के लिए सैनिक भारत से शामिल हुए। मौजूदा वर्ष प्रथम विश् व युद्ध के शताब्दी वर्ष के रूप में दुनिया भर में मनाया जा रहा है। भारत में बीते मार्च महीने में इसे लेकर कई आयोजन कर शहीदों को याद किया गया था।

क्या है एनजेक डे
एनजेक डे को वर्ष 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के समय जब आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सेनाआें ने एकसाथ तुर्की के गेलीपोली में कदम रखा था की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल इन दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां भी उस संयुक्त दस्ते का हिस्सा थी जिसे गेलीपोली प्रायद्वीप पर कब्जा करना था। 8 महीने तक इस अभियान में न्यूजीलैंड के करीब 3 हजार सैनिक मारे गए थे। एनजेक डे पर न्यूजीलैंंड में वर्ष 1921 से पब्लिक हालिडे रहता था। लेकिन 1921 आते-आते न्यूजीलैंड की सरकार ने इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने के लिए एक बिल संसद से पास करवाया।

पाकिस्तान की नाक के नीचे राजस्थान में सेना का अभ्यास शुरू

25 अप्रैल से 27 अप्रैल तक चलेगा ब्रह्मशिरा अभ्यास।
थलसेना के साथ वायुसेना भी होगी शामिल।
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा से महज 20 किमी. की दूरी पर सूरतगढ़ में थलसेना अपने सबसे प्रचंड युद्ध अभ्यास ब्रह्मशिरा का शनिवार से आगाज करने जा रही है। इसमें खरगा स्ट्राइक कोर के 20 हजार जवान अपने पूरी विध्वंसक क्षमता के साथ दुश्मन के दांत खट्टे करने का हर दांव आजमाते हुए नजर आएंगे। यहां बता दें कि यह अभ्यास राजस्थान में पड़ने वाली भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्‍ट्रीय सीमा से मात्र 20 किमी. की दूरी पर यानि सीधे पाक की नाक के नीचे होगा। खरगा स्ट्राइक कोर को 2 कोर के नाम से भी जाना जाता है। यहां राजधानी में मौजूद सेना के सूत्रों ने बताया कि यह अभ्यास से 25 अप्रैल से 27 तक चलेगा। अभ्यास को देखने के लिए सेना की पश्चिमी कमांड के मुखिया (जीओसी-इन-सी) लेफ्टीनेंट जनरल केजे सिंह भी आएंगे। खरगा कोर सेना की पश्चिमी कमांड का हिस्सा है।

थलसेना के इस अभ्यास में वायुसेना भी शामिल होगी। वायुसेना के इसमें शामिल होने से इस अभ्यास में ज्यादा पैनापन आ जाएगा। एक ओर राजस्थान के रेतीले रण में सेना के जवानों के पैदल दस्ते से लेकर टी-72 और टी-90 टैंकों की युद्ध की रणभेरी बजाने वाली वाली भरभराहट का नजारा होगा तो दूसरी ओर आसमान में वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर और यूएवी अपनी युद्धक क्षमता से दुश्मन को चारों खाने चित करने की अपनी कुशल रणनीति के साथ खुले आसमान में उड़ान का आगाज करेंगे। अभ्यास के दौरान दोनों सेनाएं मिलक र बुद्धिमानी, निगरानी और सूचना तंत्र की परखेंगे।

ब्रह्मशिरा अभ्यास में सेना का बड़ा लाव-लशकर भाग लेगा। इसमें आॅमर्ड से लेकर सेना का इंफेंट्री, मैकेनाइज, एवीऐशन और यूएवी दस्ता शामिल होगा। इसमें टैंकों में टी-90, टी-72 टैंक शमिल होंगे, हेलिकॉप्टरों में मी-35, चीता, चेतक और धु्रव हेलिकॉप्टर भी अपनी क्षमता के जलवे बिखेरेंगे। गौरतलब है कि इस अभ्यास का आयोजन हर दो साल में किया जाता है। इससे पहले इस अभ्यास को पंजाब और गुजरात में किया गया था। लेकिन इस बार राजस्थान का अभ्यास के लिए चयन किया गया है।

शुक्रवार, 15 मई 2015

आम आदमी के विचारों के समावेश से बनती राष्ट्रीय शिक्षा नीति

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का निर्माण आम-जन की भागीदारी के साथ किया जा रहा है। हम चाहते हैं कि इसे अंतिम रूप देने से पहले ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य-राष्ट्रीय स्तर पर लोग अपने-अपने विचार शिक्षा के बारे में रखें। उसके बाद सरकार उस पर अपनी रजामंदी की मुहर लगाएगी। वे आज यहां राष्ट्रीय शिक्षा के लोगो, स्लोगन और टैगलॉइन को जारी करते हुए पत्रकारों से मुखातिब हुई। केंद्रीय मंत्री ने कहा हम चाहते हैं नीति बनाने से पहले हम लोगों की राय लें। इसमें किसी नौकरशाह, पीआर कंपनी, विज्ञापन एजेंसी की कोई भूमिका नहीं है। यह सीधे लोगों की सहभागिता से तैयार की जा रही है।

बीते 21 मार्च को इस बाबत हमने सभी राज्यों के साथ बैठक कर उनकी राय ली थी। इसे
एक आम नागरिक ने बनाया है। इसमें सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। नवाज की सराहना करते हुए ईरानी ने कहा कि इन्होंने अपने प्रयास से सिस्टम में रहते हुए सिस्टम को बदलने का प्रयास किया है। यह अपनी तरह का एक युद्ध है, जिसे इन्होंने लड़ा है। नीति को लेकर एचआरडी मंत्रालय ने डब्ल्यूसीडी, सामाजिक-न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय के साथ भी मंथन किया और उद्योग जगत के लोगों के साथ भी बातचीत की है।

एचआरडी मंत्रालय के पास एनईपी के लोगो, स्लोगन और टैगलाइन के लिए कुल 3 हजार आवेदन आए थे। इसमें से तीन विजेताआें का चयन करके उन्हें पुरस्कृत किया गया है। इसमें से स्लोगन के लिए पुरस्कार पाने वाले विजेता महाराष्ट्र (पुणे) के नवाज शेख ने कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए व्यक्ति का वास्तविक विकास होता है। शिक्षा नीति बनाने के लिए शिक्षक और माता-पिता की भागीदारी होनी चाहिए, गांव से शहर तक लोग इससे जुड़े, शिक्षा के लिए माहौल देना बेहद जरुरी है। एक साधारण ग्रामीण परिवार में पैदा होने के बाद नवाज पीएचडी की डिग्री हासिल करने जा रहे हैं,जिसमें उनका कहना है कि शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। पढ़ाई के अलावा अपनी रूचि के मुताबिक तालीम हासिल करने पर नवाज खास जोर देते हैं
और बच्चों को शिक्षा लेते वक्त अपने परिवार के सभी सदस्यों का साथ मिलना चाहिए। पुरस्कार की राशि 10 हजार रुपए है। शिक्षा नीति के लिए चयन किए गए स्लोगन के लिए हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले विनोद कुमार महेश्वरी को 10 हजार रुपए का पुरस्कार दिया गया।

उनका बनाया स्लोगन है ‘नई शिक्षा नीति करे साकार’, ‘ज्ञान, योग्यता और रोजगार’। इसके अलावा ‘एजूकेट, एनकरेज, एनलॉइटन’ नामक टैगलॉइन बनाने के लिए केरल के विपिथा देवी, परावरूर को 10 हजार रुपए का पुरस्कार दिया गया है। लोगो के केंद्र में बच्चे का चित्र है जिसके बारे में बताते हुए नवाज कहते हैं कि यह लड़का-लड़का दोनों पर केंद्रित है। इसके नीचे खुली किताब कह रही है कि अगर अपनी शिक्षा हासिल करते है तो आपका जीवन भी इसी किताब की तरह खुल जाएगा और उसका विकास होगा। इसके अलावा लोगो में बनाए गए छोटे-छोटे स्टार एचआरडी मंत्रालय की चुंनिदा नीतियों के बारे में दर्शाने के लिए बनाए गए हैं।

उन्नत मिराज विमान ग्वालियर बेस पर पहुंचेंगे आज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
फ्रांस द्वारा उन्नत किए गए 2 मिराज-2000 लड़ाकू विमान शुक्रवार को अपने आधिकारिक वायुसैनिक अड्डे ग्वालियर पहुंचेंगे। अभी यह दोनों विमानगुजरात के जामनगर वायुसैनिक अड्डे पर हैं। यहां राजधानी में मौजूद वायुसेना के सूत्रों ने कहा कि 17 अप्रैल को इन दोनों विमानों ने फ्रांस से भारत पहुंचने की यात्रा की शुरूआत की थी।

सात दिन में पहुंचे भारत
भारत पहुंचने में दोनों को सात दिन का समय लगा। उड़ान के दौरान दोनों विमान ग्रीस, इजिप्ट और कतर होते हुए 22 अप्रैल को गुजरात के जामनगर वायुसैनिक अड्डे पर पहुंचे। यहां से यह दोनों अपनी ग्वालियर यात्रा की शुरूआत करेंगे। यहां बता दें कि मिराज-2000 विमानों की आधिकारिक तैनाती वायुसेना के ग्वालियर एयरबेस पर ही है। यही से देश के भीतर और बाहर अपनी तमाम आॅपरेशनल-सामरिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

उड़ान को लेकर विमानों का अच्छा रिकॉर्ड
मिराज-2000 विमान वायुसेना में 1980 के दशक में शामिल हुए थे। तब से इनका उड़ान और सुरक्षा का रिकॉर्ड अच्छा रहा है। वर्ष 2012 में मिराज विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की दूसरी घटना हुई थी। पहला हादसा 30 जनवरी 2012 को चेन्नई में हुआ था। भारत ने फ्रांसीसी कंपनियों से मिराज विमानों के उन्नतीकरण के लिए दो सौदे किए थे। इसमें क रीब 3.2 अरब में विमानों का अपग्रेडेशन किया जाना शामिल है।

विमानों बने आधुनिक-तकनीक संपन्न
दोनों विमानों के उन्नतीकरण का कार्य फ्रांस में थेल्स एयरोपोटर्स सिस्टम्स एंड डेसाल्ट एवीऐशन ने मिलकर किया है। इसमें विमान में लगी तमाम सामग्री को आधुनिक्ता प्रदान की गई है। हथियार प्रणाली दुरुस्त की गई है। अब विमान मारक क्षमता व आधुनिक्ता के लिहाज से पहले से ज्यादा उन्नत हो गया है। आंकड़ों के हिसाब से कुल 43 मिराज विमान हो सकते हैं।

दो और विमान एचएएल में होंगे उन्नत
वायुसेना ने शुरूआत में दो विमानों का उन्न्नतीकरण फ्रांस में कराया है। यह दोनों विमान अपने तय समय से भारत पहुंचे हैं। अब दो और मिराज विमानों को यहां भारत में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में फ्रांसीसी कंपनियों की निगरानी (ओईएम, ओरिजनल इक्यूपमेंट मैन्युफैक्चर) में उन्नत किया जा रहा है। इस कार्य के पूरा होने के बाद एचएएल बिना मिराज विमान निर्माता कंपनियों की निगरानी के विमानों का उन्नतीकरण कार्य करेगी।

सामान्य से कम बारिश का अनुमान, लेकिन सरकार पूरी तैयार

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अप्रैल के महीने में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से त्रस्त किसानों को अब मानसून की बेरुखी का सामना भी करना पड़ सकता है। लेकिन सरकार का कहना है कि इसे लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है। क्योंकि कम मानसून से निपटने के लिए हमारी तैयारी पूरी है। यहां राजधानी में बुधवार को जून से सितंबर महीने के दौरान होने वाली मानसूनी बारिश का दीर्धावधि पूर्वानुमान (एलटीए) जारी करते हुए केंद्रीय विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने कहा कि इस साल मानसून सामान्य से कम रहेगा। लेकिन इसे लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि सरकार ने मानसून की कमी से निपटने के लिए पूरे इंतजाम कर रखे हैं। उन्होंने कहा कि मानसून सीजन में औसत से कम बारिश होने के पीछे अल-नीनो का कारक जिम्मेदार हो सकता है।

मानसून का मिजाज
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस बार सामान्य की तुलना में 93 (एलटीए) फीसदी बारिश होने की संभावना है। आंकड़ों के हिसाब से यह 35 फीसदी रहेगी। सामान्य बारिश होने की उम्मीद 28 फीसदी है। इस अनुमान में 5 फीसदी कम या ज्यादा रहने की संभावना रहती है। गौरतलब है कि मौसम विभाग ने बीते वर्ष 2014 में मौसम विभाग ने मानसून में सामान्य से 95 फीसदी कम बारिश होने का पूर्वानुमान लगाया गया था। लेकिन वास्तविक बारिश 88 फीसदी के करीब रही।

क्या है अल-नीनो?
वैज्ञानिक अल-नीनो के दौरान समुद्र की सतह पर होने वाली गतिविधि को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि इसमें समुद्र की सतह का पानी काफी गर्म हो जाता है। दूसरे शब्दों में सतही जल का तामपान बढ़ने लगता है, जिससे पानी समुद्र की सतह पर ही रह जाता है इस क्रम में समुद्र के नीचे का पानी ऊपर आने के प्राकृतिक क्रम में भी रूकावट पैदा होती है। यहां बता दें कि अल-नीनो दस साल में दो बार आता है। कभी-कभी यह प्रक्रिया तीन बार भी घटित होती है। अल-नीनो का एक प्रभाव यह भी देखा गया है कि इससे बारिश के पैटर्न में बदलाव देखने को मिलता है, जिसमें कम बारिश वाले क्षेत्रों में ज्यादा बारिश और ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम बारिश देखने को मिलती है। कभी-कभार परिस्थितियां बिलकुल बदली हुई नजर आती हैं।

अगला अनुमान जून में
मानसून को लेकर मौसम विभाग की ओर से अगला अनुमान जून महीने में जारी किया जाएगा। इसमें केरल में मानसून की दस्तक से लेकर इसकी आगे की दिशा के बारे में जानकारी दी जाएगी। विभाग मानसून से संबंधित एक व्यापक रिपोर्ट को अगले महीने 15 मई को जारी करेगा।

जम्मू-कश्मीर में बढ़ सकते हैं आतंकी हमले

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी मसर्रत आलम की गिरμतारी से उपजे तनाव और पत्थरबाजी की लगातर जारी घटनाओं के बीच सेना ने यह अलर्ट जारी किया है कि आने वाले दिनों में आतंकी सूबे की शांति भंग करने को लेकर जी-जान से जुट सकते हैं। इसमें बीते मार्च महीने के दौरान सांबा में हुए आतंकी हमलों की पुनरावृति हो सकती है। सेना की श्रीनगर स्थित 16 वीं कोर के मुखिया ले.जनरल के.एच.सिंह ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि इन हमलों में आतंकी सैन्य प्रतिष्ठानों के अलावा सुरक्षा बलों के ठिकानों को निशाना बना सकते हैं।

यहां बता दें कि मसर्रत की गिरफ्तारी के बाद से घाटी में तनाव पसरा हुआ है। उधर सीमा के उस पार मौजूद आतंकियों के सरगना और 26/11 आतंकी हमलों के मास्टरमांइड हाफिज सईद ने राज्य में आतंक का खूनी खेल खेलने के प्रपंच में आतंकियों के साथ पाक सरकार और सेना की खुली मिलीभगत का एेलान किया है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस वर्ष आतंकियों द्वारा भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर राज्य में प्रवेश करने की 3 बार जनवरी में कोशिश की गई। लेकिन हर बार उन्हें मूंह की खानी पड़ी और अपने नापाक इरादों के साथ ही वापस लौटना पड़ा। वहीं कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे सेना के आतंकवाद रोधी अभियानों में जनवरी में 10 आतंकवादी मारे गए। फरवरी में 6 और मार्च में 4 आतंकियों को सेना ने मार गिराया।

16वीं कोर के मुखिया (जीओसी) ने तराल में हुई हालिया घटना को लेकर कहा कि सेना द्वारा मारे गए युवक के पास से जांच के दौरान हथियार मिले हैं, जिससे यह साफ हो जाता है कि वो आतंकवादी ही होगा। आॅर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (आॅफस्पा) को लेकर उन्होंने कहा कि घाटी के इलाकों में शांति स्थापित हो रही है, लेकिन अभी भी कुछ अराजक तत्व मौजूद हैं।

आतंकवादी वर्ष 2012 में संख्याबल के हिसाब से सबसे अधिक घुसपैठ करने में सफल हुए हैं। 2012 में 121 आतंकियों ने घुसपैठ की। 2013 में यह संख्या 97, 2014 में 60 हो गई। घसपैठ के प्रयासों के दौरान सबसे ज्यादा 238 आतंकी 2010 में मारे गए। 2014 में यह आंकड़ा 65 था। इन अभियानों में 2010 से लेकर 2014 तक कुल 127 सुरक्षाबल शहीद हुए हैं।

....तो पाकिस्तान पर फिर मेहरबान हुआ चीन!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
यूं तो चीन और पाकिस्तान की दोस्ती जगजाहिर है। लेकिन भारत में बीते वर्ष 26 मई को नई सरकार के गठन के बाद तेजी से बदल रहे भू-राजनैतिक परिदृश्य में दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने की चर्चाएं ज्यादा होने लगी हैं। सोमवार 20 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग पाकिस्तान के दो दिवसीय दौरे पर जाने वाले हैं, जिसमें चीन की ओर से पाकिस्तान को करीब 51 अरब डॉलर की आर्थिक मदद की सौगात दी जाएगी।

पाक पर चीनी मेहरबानियां
सरकार के आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति पाकिस्तान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में मदद का भारी-भरकम पिटारा खोलने वाले हैं। इसमें रक्षा क्षेत्र में खासतौर से पाकिस्तान को चीन 8 डीजल चालित परंपरागत पनडुब्बियां देगा। इनकी कुल अनुमानित कीमत 5 बिलियन डॉलर होगी। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में ड्रैगन 12 बिलियन डॉलर की मदद पाकिस्तान को करेगा। ऊर्जा के लिए 34 बिलियन डॉलर की धनराशि दी जाएगी।

भारत से ज्यादा पाक के पास परमाणु हथियार कुछ समय पहले आई स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्ट्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा परमाणु हथियारों का जखीरा है। आंकड़ों के हिसाब से पाकिस्तान के पास 100 से 120 परमाणु हथियार होने की संभावना है। इसकी तुलना में भारत के पास 90 से 100 परमाणु हथियार हैं। सिपरी की रिपोर्ट के हिसाब से भारत-पाक की तुलना में चीन के परमाणु हथियारों का जखीरा दोगुना यानि करीब 250 होने का अनुमान है। वहीं अमेरिका और रूस 7 हजार से 9 हजार परमाणु हथियारों के साथ शीर्ष पर हैं। सिपरी दुनिया के नौ
परमाणु हथियार संपन्न देशों के हथियारों के आधुनिकीकरण और उनके भंडारण पर नजर रखती है।

कुछ महीने से जारी है ये जुगलबंदी
चीन के पाकिस्तान की ओर बढ़ते झुकाव के पीछे बीते कुछ समय से तेजी से विस्तारित हो रहे भारत-अमेरिका संबंध भी हैं। अमेरिका की भारत के जरिए समूचे दक्षिण-एशिया में बढ़ती दखलंदाजी की काट चीन, पाकिस्तान में बढ़-चढ़कर निवेश के जरिए निकालने की ओर बढ़ रहा है। इसमें एक रोचक तथ्य यह है कि चीन ने पाक के साथ रूस को अपने गुट में मिलाने के लिए कवायदें तेज कर दी हैं। हाल में रूस ने चीन को मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 दिया है।

पाक दिवस पर गए जिनपिंग
बीते महीने 23 मार्च को पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को मुख्य अतिथि बनाया गया था। इस मौके पर पाकिस्तान ने एक भव्य सैन्य परेड का आयोजन भी किया था। इस परेड का आयोजन पाकिस्तान की ओर से सात साल बाद किया गया। उधर हाल ही में पाकिस्तान के सेनाप्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने भी चीन का दौरा कर वहां की सरकार के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की थी।

...तो सरकार के साथ बदल गर्इं देश की सामरिक जरूरतें!

कविता जोशी.नई दिल्ली
केंद्र की सत्ता पर नई सरकार को काबिज हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है। लेकिन उसके एक ताजातरीन फैसले से ऐसा लगता है कि सरकार बदलते ही देश की सामरिक जरूरतें भी बदल गईं हैं। मामला यूपीए सरकार के कार्यकाल में पूर्वोत्तर सीमा पर चीन से दो-दो हाथ करने के लिए तैनात की जाने वाली माउंटेन स्ट्राइक कोर (पहाड़ी इलाकों में लड़ाई में सक्षम) के गठन का है। इसके आकार में नई सरकार ने फंड की कमी का हवाला देकर कटौती करने का फरमान सुना दिया है। सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग इस मामले को सोमवार से राजधानी में शुरू हो रहे साप्ताहिक सैन्य कमांडर सम्मेलन में जोर-शोर से उठाने वाले हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सेनाप्रमुख इस मसले पर सेना की सभी कमांडों के प्रमुखों के साथ विस्तार से चर्चा करेंगे। सेना की कुल 6 कोर हैं, जिसमें शिमला स्थित ट्रेनिंग कमांड भी शामिल है। इन सभी का मुख्यालय राजधानी में स्थित है। सम्मेलन का उद्घघाटन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर करेंगे।

पुराने प्रस्ताव में कटौती
यूपीए के पुराने प्रस्ताव के हिसाब से 88 हजार करोड़ रुपए क ी लागत से माउंटेन स्ट्रॉइक कोर के भारी-भरकम ढांचे को खड़ा किया जाना था। इस कोर में 70 हजार जवानों की तैनाती भी प्रस्तावित थी। लेकिन कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री ने यह ऐलान किया कि सरकार कोर के आकार में कटौती करने जा रही है। इसमें कोर पर आने वाली कुल लागत को 88 हजार करोड़ रुपए से घटाकर 38 हजार करोड़ रुपए और जवानों की संख्या को 70 हजार से घटाकर 35 हजार किया जाएगा। गौरतलब है कि नई सरकार के गठन से पहले अपनी चुनावी रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की रक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहते थे कि उसके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। सत्ता संभालने के बाद भी देश की सामरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की कोई कमी न होने देने के बयान दिए जाते थे।

पूर्वोत्तर में भारत की ताकत
इस कोर के गठन के पीछे योजना यह थी कि इसके जरिए अरूणाचल से लगी पूर्वोत्तर सीमा में चीन की चुनौती का आसानी से मुकाबला किया जा सकेगा। रक्षा संबंधी जानकारों के मुताबिक पूर्वाेत्तर में ड्रैगन भारत को आंख दिखाने के लिए या युद्ध जैसी स्थिति में अपनी 30 सैन्य डिवीजन एक साथ लद्दाख से अरूणाचल-प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब ला सकता है। ऐसे में उसकी चुनौती का जवाब देने के लिए भारत के पास भी बराबरी की न सही बल्कि ठीक-ठाक सैन्य ताकत होनी चाहिए। भारत की पूर्वोत्तर में अभी केवल तीन सैन्य कोर तैनात हैं, जिसमें 6 डिवीजन भी शामिल हैं। इसके अलावा लद्दाख में 1 सैन्य डिवीजन है। एक डिवीजन में करीब 15 हजार जवान होते हैं। अभी स्ट्रॉइक कोर की दो डिवीजन गठित की
जा चुकी हैं। कोर का मुख्यालय पश्चिम-बंगाल के पानागढ़ में बनाया जाना है।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

ईरानी के ओएसडी संजय कचरू को लेकर बढ़ा विवाद

कविता जोशी.नई दिल्ली

26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तासीन हुई नई सरकार के गठन के बाद से केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय सबसे चर्चित रहा है। अब नई चर्चा मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के ओएसडी संजय कचरू को लेकर हो रही है। विवाद ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि संजय कचरू की नियुक्ति को नियमित करने से डीओपीटी विभाग ने इंकार कर दिया है। हरिभूमि द्वारा इस मामले को लेकर मंत्रालय में पड़ताल करने पर जानकारी मिली कि संजय कचरू अगले सप्ताह की शुरूआत में सोमवार से आॅफिस जॉइन करेंगे। अभी फिलहाल वो कुछ दिनों से छुट्टी पर हैं।

क्या है पूरा मामला?
पिछले साल 26 मई को नई सरकार बनने के बाद संजय कचरू मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के ओएसडी के रूप में मंत्रालय में नियुक्त किए गए। मंत्रालय में आने से पहले वो एक निजी कॉरपोरेट घराने में किसी बड़े पद पर आसीन थे। डीओपीटी से बिना नियमित नियुक्ति के कचरू मंत्रालय से जुड़ी हर  फाइल देख रहे थे। जबकि आधिकारिक रूप से वो ऐसा नहीं कर सकते हैं। हाल ही में मंत्रालय की ओर से संजय कचरू की नियुक्ति को नियमित करने के लिए डीओपीटी विभाग के पास फाइल भेजी गई। लेकिन डीओपीटी ने इसे मंजूरी देने से इंकार कर दिया है।

बिना अधिकार के फाइलों तक पहुंच गलत
एचआरडी मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी नियुक्ति इतने जिम्मेदारी वाले पद पर की जाती है। वो बिना डीओपीटी के नियुक्ति को नियमित कराए विभाग से संबंधित कोई भी फाइल नहीं दे सकते। जबकि एचआरडी मंत्रालय में स्थिति इसके बिलकुल उलट है। वहां कचरू बिना डीओपीटी से नियमित नियुक्ति पाए मंंत्रालय की सभी फाइलें और कामकाज देख रहे थे। सरकारी नियमों के हिसाब से कोई भ्‍ाी गैर सरकारी अधिकारी जिसकी नियुक्ति को डीओपीटी विभाग ने नियमित न किया हो। वो बिना आरटीआई लगाए मंत्रालय से जुड़ी कोई भी फाइल या सूचना प्राप्त नहीं कर सकता। चर्चाएं यहां तक हैं कि मंत्री के पास जाने वाली और वहां से आने वाली हर फाइल संजय कचरू देखते थे।

हितों में टकराव का मामला
संजय कचरू एचआरडी मंत्रालय जॉइन करने से पहले जिस कोरपोरेट घराने के साथ जुड़े हुए थे उनके साथ वो आज भी जुड़े हैं। ऐसे में हितों के टकराव का भी मामला बनता हुआ नजर आ रहा है। कचरू की नियुक्ति को डीओपीटी द्वारा नियमित न किए जाने को लेकर यह भी चर्चाएं जोरो पर हैं कि ऐसा करने से लोगों के बीच मोदी सरकार की छवि खराब हो रही है। इससे यह भ्‍ाी संकेत जा सकता है कि कॉरपोरेट घरानों पर सरकार हर तरह से मेहरबान बनी हुई है। गौरतलब है कि सरकारों में इस तरह के गैर-प्रशासनिक लोगों की नियुक्ति तो पहले भी की जाती रही है। लेकिन उन्हें उस विभाग का मुखिया यानि मंत्री डीओपीटी से नियमित कराता है। ऐसे ही एक गैर प्रशासनिक अधिकारी की ओएसडी के रूप में नियुक्ति का मामला यूपीए सरकार में एचआरडी मंत्री रहे पल्लम राजू के कार्यकाल में भी देखने को मिला था। लेकिन राजू ने बाद में उन्हें डीओपीटी से नियमित करा लिया था।            
     

       

जल्द ही एयर डिफेंस सिस्टम से लैस होगा ‘विक्रमादित्य’

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
भारत के विमानवाहक युद्धपोत को जल्द ही उसका अपना एयर डिफेंस सिस्टम मिलेगा। इसके लिए नौसेना अपने गोदावरी श्रेणी के पोत से इजराइली बराक मिसाइल सिस्टम को लेकर विक्रमादित्य पर लगाने की योजना बना रही है। यह पोत जल्द ही नौसेना की सेवा से बाहर (डिकमीशंड) होने वाला है। यहां बृहस्पतिवार को नौसेना के एक कार्यक्रम से इतर वाइस एडमिरल ए.वी.सूबेदार (कंट्रोलर आॅफ वॉरशिप प्रोडक्शन एंड एक्युजिशन) ने कहा कि हमारी योजना के मुताबिक हम अपने एक पोत में लगे सिस्टम को विक्रमादित्य में स्थानांतरित कर लगाना चाहते हैं। अभी यह सिस्टम पूरी तरह से कार्य कर रहा (आॅपरेशनल) है। दो साल पहले रूस से भारत पहुंचने के बाद अब तक विक्रमादित्य में अपना आत्मरक्षक हथियार तंत्र नहीं लगाया गया है। जब यह रूस से भारत पहुंचने की समुद्री यात्रा मार्ग पर था तब इसे भारत से गए दो जंगी जहाजों और विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विराट ने सुरक्षा कवच प्रदान किया था।

इस एयर डिफेंस सिस्टम को एक छोटी मरम्मत के साथ नौसेना के नवनिर्मित अड्डे कारवार में लगाया जाएगा। यहां बता दें कि विक्रमादित्य पर कम दूरी पर आने हवाई हमलों का जवाब देने की भी क्षमता मौजूद नहीं है। क्योंकि विमानवाहक युद्धपोत में अपना क्लोज इन वेपन सिस्टम (सीआईडब्ल्यूएस) नहीं है। इस मरम्मत कार्य के दौरान ही गोदावरी श्रेणी के पोत सीआईडब्ल्यूएस सिस्टम विक्रमादित्य में लगाया जाएगा।

गौरतलब है कि विक्रमादित्य की लंबाई 284 मी., बीम 60 मी. है। जहाज में कुल 1600 लोग काम कर रहे हैं। संचालन क्षमता भ्‍ाी विक्रमादित्य की काफी ज्यादा है। इसे रोजाना लाखों में अंडे, 20 हजार लीटर दूध और 16 टन चावल की हर महीने जरूरत होती है। अपने राशन के पूरे स्टॉक के साथ विक्रमादित्य समुद्र में करीब 45 दिन देश की तटीय सीमाओं की मुस्तैदी से सुरक्षा कर सकता है। 

शिथिल पड़ रहे भारत-रूसी रिश्तों में बढ़ेगी गर्मजोशी

मॉस्को विक्ट्री डे परेड में पहली बार मार्च करेगी भारतीय सैन्य टुकड़ी
कविता जोशी.नई दिल्ली

बीते कुछ समय से तेजी से बढ़ रहे भारत-अमेरिका संबंधों के बीच शिथिल पड़ते दिखाई दे रहे भारत और रूस के रिश्तों में एक बार फिर गर्माहट लौटने वाली है। इसके लिए मौका होगा अगले महीने की 9 तारीख को रूस के लाल चौक पर होने वाली ‘मॉस्को विक्ट्री डे परेड’ का। इसमें पहली बार भारतीय सेना की टुकड़ी रूसी रणबांकुरों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए मार्च करती हुई नजर आएगी।

यहां रक्षा मंत्रालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि यह पहला मौका है जब रूसी विक्ट्री डे परेड 2015 में भारतीय सेना की टुकड़ी भाग लेगी। यह टुकड़ी थलसेना की ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट की होगी, जिसके करीब 70 जवान परेड में हिस्सा लेंगे। यहां बता दें कि वर्ष 1779 में बनी ग्रेनेडियर्स ने आजादी से पहले तीन विक्टोरिया क्रॉस जीते थे और आजादी के बाद इस रेजीमेंट के नाम तीन परमवीर चक्र दर्ज हैं। गौरतलब है कि इसी वर्ष के मध्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी रूस का दौरा करेंगे।

राष्ट्रपति भी जाएंगे रूस
परेड में हिस्सा लेने के लिए भारत की ओर से खासतौर पर भारतीय सेनाओं के शीर्ष कमांडर प्रणब मुखर्जी भी रूस के लाल चौक जाएंगे। वर्ष 2010 से पहली बार किसी विदेशी टुकड़ी के इस परेड में हिस्सा लेने की शुरूआत हुई। अब तक इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाड़ा और पोलैंड जैसे देशों की सैन्य टुकड़ियां शामिल हो चुकी हैं। 2015 में यह सम्मान भारतीय सेना को मिलेगा।

नाजी जर्मनी पर जीत का उत्सव
रूस हर साल 9 मई को विक्ट्री डे परेड का आयोजन नाजी जर्मनी पर दूसरे विश्व युद्ध में अपनी जीत के जश्न के रूप में मनाता है। विक्ट्री डे परेड का पहला समारोह 1945 में आयोजित हुआ था। 1945 में 9 मई को ही जर्मन सेना ने रूस के सामने अपने हथियार डाले थे। 20वें (वर्ष 1965) और 40वें (वर्ष 1985) समारोह का छोड़कर बाकी समय कभी भी सैन्य परेड का आयोजन नहीं किया गया था। इस परंपरा की शुरूआत वर्ष 1995 से हुई।

क्रीमिया विवाद से पश्चिमी देशों ने बनाई दूरी
परेड में दुनिया के करीब 26 शीर्ष नेताआें के शिरकत करने की संभावना है। वर्ष 2015 की यह परेड रूस के इतिहास में हुई सबसे भव्य परेड हो सकती है। रूस द्वारा क्रीमिया पर किए गए हमले से नाराज पश्चिम देश इस बार परेड में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं। इन देशों ने वर्ष 2010 में हुई परेड में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल का 10 मई को मॉस्को का पहले से प्रस्तावित दौरा है। लेकिन वो भी विक्ट्री डे परेड के अगले दिन ही मॉस्को पहुंचेंगी।

यूएन शांति मिशन में भारत को हो निर्णय का अधिकार: सुहाग

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

संयुक्त राष्ट्र के तहत दुनिया के हिंसाग्रस्त इलाकों में तनाव खत्म करने के लिए भेजी जाने वाली शांति सेनाओं के मुद्दे पर अब भारत को भी निर्णय लेने का अधिकार मिल सकता है। इस बाबत भारत सरकार की ओर से तैयार एक वृहद प्रस्ताव को हाल ही में सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के समक्ष पेश कर दिया है। जल्द ही यूएन की ओर से इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।

निर्णय में हो भागीदारी
यहां रक्षा मंत्रालय में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने कहा कि बीते मार्च महीने में सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग के न्यूयार्क दौरे में इस बारे में जरूरी तथ्य यूएन के साथ साझा किए गए। जनरल सुहाग ‘चीफ्स आॅफ डिफेंस कांफ्रेंस’ में भाग लेने के लिए 26 और 27 मार्च को यूएन मुख्यालय न्यूयार्क गए थे। उन्होंने सम्मेलन में दिए अपने संबोधन की शुरूआत में ही यूएन शांति मिशन सेना से जुड़े निर्णय संबंधी मामलों से जुड़े विभिन्न मंचों पर भारत की भागीदारी किए जाने का मुद्दा पुरजोर ढंग से उठाया। गौरतलब है कि भारत की एशियाई देशों में संख्याबल के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र शांति सेना मिशन के तहत तेजी जाने वाली फौज के मामले में बड़ी भागीदारी है। लेकिन सेनाओं से जुड़े तमाम मुद्दों पर निर्णय लेने के मामले में बातचीत या इस तरह की अन्य प्रक्रिया में भारत को कोई भागीदारी यूएन की ओर से नहीं दी गई है। अब भारत की ओर से इसकी साफ तौर पर वकालत कर दी गई है।

110 देशों के सेनाप्रमुख हुए शामिल
सूत्र ने कहा कि सम्मेलन में दुनिया के करीब 110 देशों के सेनाप्रमुख शामिल हुए। इसमें अमेरिका, चीन, जर्मनी, फ्रांस, कनाड़ा, रूस शामिल हैं। सम्मेलन में पाकिस्तान के सेनाप्रमुख शामिल नहीं हुए थे। उनकी ओर से ले.जनरल रैंक के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को सम्मेलन में भेजा गया था। भारत इस मिशन के तहत भेजी जाने वाली सेना में सर्वाधिक योगदान करता है। आंकड़ों के हिसाब से भारत ने इन मिशनों के लिए 1 लाख 80 हजार फौज की रवानगी की हुई है। यह लोग यूएन के करीब 12 शांति अभियानों में मुस्तैदी से तैनात हैं। सेनाप्रमुख ने कहा कि भारत, यूएन के सिद्धांतों का पूरी ईमानदारी से पालन करता है। इसमें हिंसाग्रस्त इलाके की गहन पड़ताल के बाद आत्मरक्षा में फौज का इस्तेमाल करना भी शामिल है।

भारत का योगदान
भारत का योगदान पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाद तीसरी सबसे बड़ी फौज के रूप में है। भारत के यूएन शांति मिशन में अभी 7 हजार 200 जवान तैनात हैं। इनमें कांगो, दक्षिणी-सूडान, लेबनान, गोलान हॉइट्स में भारतीय सैनिकों की टुकड़ियां लगी हैं। इराक, आॅइवरी-कोस्ट, सूडान, सोमालिया और पश्चिमी-सहारा में पर्यवेक्षक (आॅब्जर्वर) और स्टॉफ अधिकारी तैनात हैं।


राफेल विमान से जुड़ा पुराना सौदा रद्द

देश की सामरिक जरूरतों को तत्काल पूरा करेंगे 36 राफेल विमान
कविता जोशी.नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर किए गए समझौते के ऐलान के बाद उनकी अपनी ही पार्टी के अंदर मचे घमासान पर सोमवार को रक्षा मंत्री मनोहर ने यह कहकर पूरी तरह से विराम लगा दिया कि प्रधानमंत्री ने यह सौदा देश की सामरिक जरूरतों को तत्काल पूरा करने के तर्क को ध्यान में रखकर किया है जो कि बिलकुल ठीक है। यहां रक्षा मंत्रालय में रक्षा संवाददाताआें से हुई औपचारिक बातचीत में रक्षा मंत्री ने कहा कि इन 36 राफेल विमानों की खरीद का समझौता भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच किया गया है। लेकिन यह सभी विमान वायुसेना के लड़ाकू विमानों के मौजूदा मारक बेड़े की लगातार कुंद पड़ रही रफ्तार को धार देने में सक्षम होंगे। यहां बता दें कि बीते दिनों पीएम मोदी ने जब अपनी फ्रांस यात्रा में 36 राफेल विमान सीधे फ्रांस सरकार से खरीदने की घोषणा की तो उसके तुरंत बाद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राफेल विमानों की गुणवत्ता और मारक क्षमता पर गंभीर सवालिया निशान लगाए। स्वामी की टिप्पणी प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली और रक्षा मंत्रालय द्वारा वायुसेना की जरूरतों को लेकर किए जा रहे फैसलों पर सीधे प्रश्नचिन्ह लगा रही थी। इसका जवाब रक्षा मंत्री ने पत्रकारों से हुई बातचीत के दौरान दिया।  

पर्रिकर ने कहा कि फ्रांसीसी कंपनी डेसाल्ट एवीऐशन से खरीदे जाने वाले 126 एमएमआरसीए विमानों के पूर्ववर्ती सौदे का अब कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि हम किसी एक ठोस विकल्प को लेकर ही आगे बढ़ सकते हैं। दो रास्तों की ओर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। वहीं दूसरी ओर पीएम द्वारा 36 विमानों की सीधी खरीद का निर्णय सौदे की पुरानी प्रक्रिया की धीमा रफ्तार, लगातार दोनों पक्षों के बीच बातचीत का किसी नतीजे पर न पहुंचने और सौदे से जुड़ी अन्य पेचीदिगियों की वजह से उत्पन्न हुआ। सभी 126 विमानों की खरीद वित्तीय आधार पर भी काफी बड़ा सौदा होती। उन्होंने प्रधानमंत्री के इस निर्णय को साहसिक बताते हुए कहा कि इससे देश की रणनीतिक-सामरिक आवश्यकताएं तुरंत पूरी होंगी। 36 राफेल विमानों की ये 2 स्क्वॉड्रन भारतीय वायुसेना को करीब चार सालों में मिल जाएगी।

36 विमानों के बाद मेक इन इंडिया कार्यक्रम के भविष्य को लेकर पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा कि अभी मेक इन इंडिया और शेष विमानों को लेकर रक्षा मंत्रालय की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती। अब यह मामला भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच का है। इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर भी आने वाले समय में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल बातचीत करेंगे। जहां तक वायुसेना के लड़ाकू विमानों के मारक बेड़ें की कुल क्षमता यानि 42 स्क्वॉड्रन का मसला है तो उसकी काफी हद तक भरपाई इस सौदे के अलावा वायुसेना को आगामी 6 वर्षों में मिलने वाले लघु (एलसीए-तेजस) और बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों (सुखोई-30, उन्नत मिग-21 लड़ाकू विमान) की बड़ी खेप की आवक से हो जाएगी। रक्षा मंत्री ने कहा कि बीते छह महीने के दौरान वायुसेना के मारक बेड़ें की लगातार गिर रही क्षमता में 7 फीसदी तक का सुधार हुआ है। उन्होंने मंत्रालय द्वारा सशस्त्र सेनाओं के लिए की जाने वाली हथियारों की खरीद से इतर दुनिया की तमाम सरकारों के बीच किए जाने वाले समझौते को एक बेहतर विकल्प बताया।         

साक्षर भारत अभियान के विस्तार में यूपी-बिहार कायम करेंगे मिसाल

कविता जोशी.नई दिल्ली
देश में महिलाओं में साक्षरता की दर को बढ़ाने के लिए शुरू किए गए साक्षर भारत अभियान का वृहद जनसंख्या वाले राज्य उत्तर-प्रदेश और बिहार में बहुत अच्छा रिस्पांस देखने को मिल रहा है। इसमें एक खास बात यह है इन दोनों राज्यों की सरकारों ने अपने यहां योजना को लागू करने को लेकर जमीनी स्तर पर काफी प्रयास किए हैं, जिसकी वजह से यह अभियान तेजी से उनके यहां सफल हुआ। यहां बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि उत्तर-भारत के इन दोनों राज्यों के प्रयास दूसरे राज्यों के लिए भी क्‍या मिसाल कायम कर पाएंगे? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिल जाएगा।

यहां केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में साक्षर भारत अभियान के तहत राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण (एनएलएमए) के महानिदेशक और संयुक्त सचिव डॉ. वाई.एस.के.शेषु कुमार ने कहा कि इस अभियान के तहत साक्षरता का प्रमाणपत्र जारी करने को लेकर शुरू की गई साक्षरता परीक्षा को लेकर उत्तर-प्रदेश और बिहार की सरकारों की ओर से ग्राउंड लेवल पर कई प्रयास किए गए। इन राज्यों में इस कार्यक्रम के सफल होने के पीछे सरकारों की यही सक्रिय भूमिका एक बड़ी वजह बनी।

उत्तर-प्रदेश सरकार इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले परीक्षार्थियों की पेंशन में हर महीने 50 रूपए जमा करवाती है। सरकार को लगता है कि यह आसान तरीका है इस योजना को लोगों के बीच चर्चित कराने का। वहीं बिहार सरकार इस अभियान को बढ़ाने के लिए स्कूली युवाआें को उनकी वार्षिक परीक्षा के रिजल्ट में 10 अतिरिक्त नंबर दे रही है। ये वो युवा हैं जो खाली समय में इस कार्यक्रम के तहत परीक्षा देने के इच्छुक लोगों को पढ़ा रहे हैं।

गौरतलब है कि इस परीक्षा को ग्रामीण भागों में रहने वाले ज्यादातर वो लोग देते हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। या फिर कुछ कक्षाएं पढ़कर बीच में ही स्कूल छोड़ दिया। परीक्षा में बैठने वाले लोगों की उम्र 14 वर्ष से अधिक होती है। साल में दो बार (मार्च-अगस्त महीने में) इस परीक्षा का आयोजन किया जाता है। बीते 15 मार्च को हुई परीक्षा में देश में कुल 85 लाख लोगों ने यह परीक्षा दी। इसमें सबसे ज्यादा 26 लाख लोग यूपी से शामिल हुए। बिहार से 12 लाख लोग परीक्षा देने आए। जल्द ही राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) परीक्षा के परिणाम की जानकारी एचआरडी मंत्रालय को सौंपेगा जिसके बाद परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले लोगों का वास्तविक आंकड़ा मिल पाएगा।

इस कार्यक्रम के जरिए मंत्रालय की योजना साक्षरता की दर को 2017 तक 80 फीसदी करना और साक्षरता में लैंगिग अंतर को कम करके 10 फीसदी तक करना है। खासकर महिलाओं पर केंद्रित इस कार्यक्रम को खासकर उन इलाकों में लागू किया जा रहा है जहां 2001 की जनगणना के हिसाब से वयस्क महिला साक्षरता की दर 50 फीसदी से कम है।   

वायुसेना के इन हवाईअड्डों से कैसे होंगे दुश्मन से दो-दो हाथ

वायुसेना के हवाईअड्डों के पुर्ननिर्माण कार्य पर आॅडिट बम का धमाका

कविता जोशी.नई दिल्ली
देश की हवाई सीमाओं की सुरक्षा में सदैव तत्पर रहने वाली भारतीय वायुसेना के हवाईअड्डों (एयरबेस) की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि अगर आज की तारीख में दुश्मन हमला कर दें तो उससे दो-दो हाथ करना मुश्किल हो जाए। इस तथ्य का खुलासा रक्षा मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2014-15 में उद्घघाटित किए गए आॅडिट के अंशों में हुआ है। आॅडिट के तथ्यों की पड़ताल के दौरान पता चलता है कि वायुसेना के 10 हवाईअड्डों के पुर्ननिर्माण के लिए कार्य का वितरण देरी से हुआ। इसमें खासकर हवाईअड्डों के सबसे महत्वपूर्ण अंग माने जाने वाले रनवे के पुर्ननिर्माण कार्य और ब्लास्ट पैन (यह वो स्थान है जहां लड़ाकू या अन्य विमानों को दुश्मन की पैनी निगाहों से सुरक्षित रखा जाता है) से जुड़े कार्य में बहुत विलंब हुआ। इससे समय की बर्बादी और लागत में कई गुना इजाफा हुआ।  

आॅडिट की टिप्पणियां
रिपोर्ट में वायुसेना के हवाईअड्डों की पुर्ननिर्माण कार्यप्रणाली की सुस्त रफ्तार पर कड़ा प्रहार किया गया है। कार्य के वितरण के बाद अचानक हवाईपट्टी के डिजाइन में बदलाव किए गए जिससे समय और कीमत यानि लागत में सीधे इजाफा हुआ।

तीन हवाईअड्डों के रनवे मरणासन्न
वायुसेना के तीन हवाईअड्डों के रनवे मरणासन्न हालत में हैं। इनकी स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि यहां से लड़ाकू विमानों का आॅपरेट करना नामुकिन हो गया है। यहां बता दें कि वायुसेना के सभी हवाईअड्डों में रनवे की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रनवे से ही वायुसेना के विमान (लड़ाकू, परिवहन, हेलिकॉप्टर) शांतिकाल और युद्धकाल में अपने सभी अभियान चलाते हैं।

वायुसेना की 7 कमांड और 60 हवाईअड्डे
वायुसेना की देश में कुल 7 आॅपरेशनल कमांड हैं, जिनमें से नई दिल्ली स्थित पश्चिमी कमांड सबसे बड़ी कमांड है। इसमें कुल 16 हवाईअड्डे आते हैं। पूर्वी कमांड में वायुसेना के 15 हवाईअड्डे आते हैं। केंद्रीय कमांड में 7 हवाईअड्डे, दक्षिणी-कमांड में 9 हवाई अड्डे और दक्षिणी-पश्चिमी कमांड में 12 हवाईअड्डे आते हैं। पश्चिमी-कमांड में जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिप्र और यूपी का कुछ इलाका आता है। पूर्वी कमांड में पूर्वोत्तर के राज्य आतें हैं। केंद्रीय कमांड में यूपी, मप्र और केंद्रीय भारत के आस-पास का कुछ इलाका आता है। दक्षिणी-कमांड में द.भारतीय राज्यों के अलावा अंडमान-निकोबार के दो हवाईअड्डे भ्‍ाी आते हैं। द.पश्चिमी कमांड में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्य आते हैं। द.कमांड में पड़ने वाले हवाईअड्डों की सामरिक महत्ता अन्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। क्योंकि भारत के शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान की नाक के नीचे से सीधे आॅपरेट करते हैं।  
   
गुणवत्ता की कमियों से भरा कार्य
रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि वायुसेना ने रनवे पुननिर्माण कार्य के दौरान जिस कांट्रेक्टर को कार्य वितरित किया गया उसके कार्य की गुणवत्ता दोयम दर्जे की थी। साथ ही इस तमाम कार्य की निगरानी में भी ढिलाई बरती गई।         

पुराने पीएचडी धारकों को एक और मौके की तैयारी

यूजीसी ने एचआरडी मंत्रालय को भेजा सुझाव
मंत्रालय इस दिशा में एक पखवाड़ें में उठाएगा बड़ा कदम 
2009 तक 10 लाख लोगों ने कराया पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन  

कविता जोशी.नई दिल्ली
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय वर्ष 2009 से पहले पीएचडी करने वालों की भविष्य सुरक्षा करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2012 में दिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाने को लेकर फैसला किया जा सकता है। यहां बता दें कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिन लोगों ने 2009 से पहले पीएचडी की है उन्हें लेक्चरर या अस्सिटेंट प्रोफेसर बनने से पहले नेट या जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा।

एचआरडी मंत्रालय के उच्चदस्थ सूत्र ने हरिभूमि से खास बातचीत में कहा कि हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। लेकिन साथ ही मंत्रालय के लिए उन तमाम लोगों की भविष्य की सुरक्षा करना की जिम्मेदारी बनता है जिन्होंने 2009 से पहले पीएचडी की है। सूत्र ने कहा यूजीसी ने इस बाबत एक सुझाव मंत्रालय को कुछ महीने पहले सौंपा है। मंत्रालय में उस पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस बात की संभावना है कि आगामी एक पखवाड़े के अंदर मंत्रालय इस संबंध में कोई फैसला करे।

यूजीसी के एक वरिष्ठ सूत्र ने हरिभूमि से कहा कि कोर्ट का इस बाबत 2012 में आदेश दिया गया था। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2009 में 10 लाख लोगों ने पीएचडी के लिए रजिस्टर कराया था। ऐसे में कोर्ट के फैसले को लागू कर देने से इन तमाम लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। इन लोगों को मौका दिया जाना चाहिए। यूजीसी ने मंत्रालय को भेजे अपने सुझाव में इस तथ्य का जिक्र किया है। साथ ही यह भी कहा है कि जिन लोगों ने 2009 तक पीएचडी की है। अब 6 साल बीते जाने के बाद 2015 में उनके लिए नेट या जेआरएफ की परीक्षा उत्तीर्ण करना तर्कहीन नजर आता है। इसके पीछे कारण इस आंकड़ें में कई महिलाओं का शामिल होना भी है जिन पर अब घरेलू जिम्मेदारियों का भार भी हो सकता है। साथ ही कई लोगों उम्र की अधिकता की वजह से भ्‍ाी परीक्षा देने में समर्थ नहीं हो सकते।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वर्ष 2012 में आया था। उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी। लेकिन उनका रवैया इस मुद्दे पर काफी ढीलाढाला रहा। लेकिन नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सत्ता पर काबिज नई सरकार इस मामले को लेकर बेहद संजीदा है और वो इन तमाम लोगों की भविष्य सुरक्षा की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने की ओर बढ़ रही है।

पर्यावरणीय मुद्दों का हल निकालने में बजट नाकाफी

केंद्र सरकार द्वारा बीते शनिवार को लोकसभा में पेश किए गए बजट-2015 में पर्यावरणीय मुद्दों का गंभीरता से निदान निकालने के  कोई उपाय नहीं किए गए। यह कहना है देश के प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठन केंद्रीय विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) का। सीएसई के उप-महानिदेशक चंद्रभूषण का कहना है कि सरकार का पानी की गुणवत्ता, मृदा स्वास्थ्य और आर्गेनिक खेती की ओर ध्यान केंद्रित करना एक अच्छा कदम है। आर्गेनिक खेती और पानी की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए सरकार ने 5 हजार 300 करोड़ रूपए की योजना को मंजूरी दी है। लेकिन इस तरह के कार्यक्रमों की अर्थव्वयस्था के हर क्षेत्र के लिए जरूरत है, जिससे विकास सही मायनों में स्वच्छ और ग्रीन हो।

सीएसई ने अपने एक बयान में कहा कि सरकार द्वारा बजट में कोयले पर सेस लगाने का एलान किया गया है। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए पर्याप्त नहीं है। बढ़ते हुए वायु प्रदूषण के मसले पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। डीजल और एसयूवी कारों पर ना तो कोई अतिरिक्त टैक्स लगाया गया। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से कम से कम 10 साल तक प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। क्लीन गंगा फंड और स्वच्छ भारत अभियान के लिए कोई स्पष्ट रणनीति नहीं बनाई गई। पर्यावरण-वन, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के फंड नहीं बढ़ाए। यह तमाम मुद्दे पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

बजट में नदियों की सफाई के लिए कोई मजबूत प्रस्ताव नहीं रखा गया। इसमें गंगा नदी भी शामिल है। आंकड़ों के हिसाब से हमारी नदियों में शहरों से निकलने वाले 90 फीसदी सीवेज सीधे डाला जाता है। यह प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है। इस काम को करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश की आवश्यकता है। दूसरी ओर स्वच्छ भारत अभियान में 2 फीसदी के हिसाब से स्वच्छ भारत सेस लगाया गया है। शौचालय निर्माण कार्य को बढ़ावा देने की बात कही गई है। लेकिन भारत को शौचालयों के अलावा और भी बहुत कुछ की दरकार है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की बात करें तो इस बार बीते तीन वर्षों में मंत्रालय को सबसे कम बजट दिया गया। यह कटौती ऐसे वक्त में की गई है जब कई गांवों में माइग्रेशन का उलटा चक्र चल रहा है और मनरेगा के तहत ज्यादातर ग्रामीणों को पैसा नहीं मिलने का बैकलॉग भी बना हुआ है।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

आॅपरेशन राहत के नाम से चलेगा यमन अभियान

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

यमन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत की ओर से अभियान तेज कर दिया गया है। सरकार ने इस अभियान को आॅपरेशन राहत का नाम दिया है। नौसेना के दो जंगी जहाज आईएनएस मुंबई (डिस्ट्रायर) और तरकस (स्टेल्थ फ्रिगेट) सोमवार शाम जिबूती बंदरगाह के लिए रवाना हो गए हैं। इसके अलावा नौसेना का एक अन्य जहाज आईएनएस सुमित्रा अदन की खाड़ी में दाखिल होने के लिए वहां के स्थानीय स्तर पर मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहा है। इसके बाद वो अदन के बंदरगाह से होते हुए जिबूती पहुंचकर वहां मौजूद भारतीयों की सुरक्षित वापसी के अभियान का आगाज करेगा। इसके अलावा दो यात्री जहाज कवाराती और कोर्रल्स ने 30 मार्च को कोचीन से अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। यह सभी जहाज अरब सागर में एक जगह पर इकट्टा होकर जिबूती बंदरगाह की ओर संयुक्त अभियान के तहत आगे बढ़ेंगे। यहां बता दें कि बाकी चार जहाज 4 अप्रैल को जिबूती पहुंचेंगे।

योजना के मुताबिक सुमित्रा अदन से करीब 400 लोगों को लेकर जिबूती पहुंचाएगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि नौसेना के आईएनएस मुंबई और तरकस इस बेड़े को सुरक्षा कवच भी प्रदान करेगा। अब तक इस अभियान में कुल 5 जहाज शामिल हो चुके हैं। नौसेना के दो जहाजों आईएनएस मुंबई और तरकस की रवानगी की पुष्टि मंगलवार को उप-नौसेनाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने वाले वाइस एडमिरल पी.मुरूगेशन ने भी पुष्टि की है। यह दोनों जहाज दल में शामिल तीन अन्य जहाजों की समुद्री डाकुआें से भी सुरक्षा करेंगे।

वायुसेना भी यमन में जारी हिंसा के बीच फंसे भारतीयों की सकुशल वापसी के अभियान में शामिल होने को पूरी तरह से मुस्तैद है। उसके दो विशालकाय अत्याधुनिक परिवहन विमान सी-17 ग्लोबमास्टर पालम हवाईअड्डे पर स्टैंडबॉय स्थिति में तैनात है। सरकार की ओर से उड़ान भरने का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद वो जिबूती की ओर अपनी उड़ान शुरू कर देंगे। गौरतलब है कि यमन में करीब 4 हजार भारतीय फंसे हुए हैं। इसमें यमन की राजधानी सना में 3 हजार 500 लोग, अदन में करीब 500 लोग मुसीबत में हैं। फंसे हुए लोगों में आधी संख्या यानि 50 फीसदी महिलाएं हैं। इसके अलावा कुछ लोग यमन के अस्पतालों में भी शरणागत हैं। मुंबई से रवाना दोनों नौसैन्य जहाजों को जिबूती पहुंचने में करीब 4 दिन का समय लगेगा। नौसेना का यह अभियान करीब 4 हजार किमी. के इलाके में चल रहा है।

एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति-सुरक्षा के लिए जापान-भारत दोस्ती जरूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत और जापान के मजबूत संबंधों का लाभ दोनों देशों के राष्ट्रीय हित के लिए ही नहीं बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र से लेकर हिंद महासागर में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह बातें सोमवार को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात के दौरान कही। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के तीन दिवसीय जापान दौरे की शुरूआत हो चुकी है। इसमें सोमवार को पहले दिन उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे और जापान के रक्षा मंत्री जनरल नकातानी से भी मुलाकात की। रक्षा मंत्री 1 अप्रैल को भारत वापस लौटेंगे। यहां बता दें कि भारत, जापान से करीब 12 यूएस-2 एंफीबियस जहाज (जमीन और जल में कार्य करने में सक्षम) खरीदने का सौदा कर सकता है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि रक्षा मंत्री अपनी यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर भी जापानी अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे।

रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जापानी पीएम ने कहा कि वो भारत के साथ आर्थिक क्षेत्र के अलावा रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भी मजबूत संबंध बनाने के इच्छुक हैं। साथ ही उन्होंने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति-सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी दोनों देशों के संबंधों को महत्वपूर्ण बताया। उधर दोनों रक्षा मंत्रियों ने अपनी मुलाकात के दौरान एक-दूसरे को अपने आसपास की सुरक्षा परिस्थितियों और रक्षा नीतियों से वाकिफ करवाया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिस्थिति के मद्देनजर एशिया-प्रशांत क्षेत्र और हिंद महासागर क्षेत्र के सामरिक परिदृश्य की भी समीक्षा की।

गौरतलब है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के दो महत्वपूर्ण छोरों दक्षिणी-चीन सागर और पूर्वी-चीन सागर में तेजी से बढ़ती चीनी गतिविधियों को लेकर भी जापान बेहद चिंतित है। एक ओर चीन ने द.चीन सागर के सभी द्वीपों पर नौ लघु रेखाएं खींचकर (नाइन डैश लाइंस) अपनी अकेली संप्रभुत्ता घोषित कर दी है, जिससे उसका बू्रनेई, फिलीपींस और ताइवान जैसे देशों के साथ उसका विवाद चल रहा है। वहीं पूर्वी चीन सागर में सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर जापान और चीन के बीच तनातनी चल रही है। इन दोनों इलाकों की सामरिक महत्ता बहुत ज्यादा है। क्योंकि इन जगहों से होकर दुनिया का आधे से अधिक व्यापार होता है। दोनों रक्षा मंत्रियों ने बीते वर्ष सितंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान रक्षा के क्षेत्र में हुए सहयोग
समझौते का भी स्वागत किया। जापानी रक्षा मंत्री अगले वर्ष 2016 में भारत का दौरा करेंगे।

मुलाकात के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद जापान पहला देश है, जिसका उन्होंने दौरा किया है। उन्होंने कहा कि वो रक्षा उपकरणों और तकनीक के मामले में जापान के साथ सशक्त साझेदारी बनाने के इच्छुक हैं।

नौसेना की शीर्ष रणनीतिक पश्चिमी कमांड का दौरा करेंगे पर्रिकर

कविता जोशी.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर जापान से लौटने के बाद इस सप्ताह के अंत में रविवार को नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी-कमांड का दौरा करेंगे। उनका यह दौरा एक दिन होगा और वो रविवार शाम को ही दिल्ली वापस लौट आएंगे। यहां बता दें कि रक्षा मंत्री ने बीते वर्ष नवंबर में मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद सबसे पहले पाकिस्तान से लगी पश्चिमी सीमा में पड़ने वाले श्रीनगर का दौरा किया था। यहां थलसेना की महत्वपूर्ण रणनीतिक 15वीं कोर तैनात है जो घाटी के अंदर और बाहर आतंकवादियों के नापाक इरादों को ध्वस्त करने में लगी हुई है। श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी के नाम से भी चर्चित है।

दौरे की खास बातें
यहां रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि रक्षा मंत्री पर्रिकर का नौसेना की किसी कमांड का यह पहला दौरा होगा। इसमें वो इसके मुंबई स्थित हेडक्वार्टर जाकर समूची कमांड और वहां जारी तमाम गतिविधियों का गहराई से निरीक्षण करेंगे। इस दौरे में रक्षा मंत्री रक्षात्मक और सामरिक उपकरण बनाने वाले मुंबई के मझगांव डाकयार्ड लिमिटेड (एमडीएल) भी जाएंगे। एमडीएल में नौसेना की कई अहम परियोजनाआें पर काम चल रहा है। इसमें 14 अल्फा प्रोजेक्ट के तहत 4 जंगी जहाज बनाए जा रहे हैं, 15 ब्रावो प्रोजेक्ट के तहत दो जहाज बनाए जा रहे हैं। इसमें से एक जहाज आईएनएस कोलकात्ता नौसेना को सौंपा जा चुका है। 6 स्कॉर्पीन पनडुब्बियों पर भी एमडीएल में ही काम चल रहा है।

पश्चिमी कमांड का महत्व
देश की सामरिक सुरक्षा और रणनीतिक लिहाज से नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी-कमांड को उसकी बाकी कमांडों की तुलना में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां नौसेना के विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विराट से लेकर नौसेना का विशालकाय जंगी बेड़ा चौबीसों घंटे देश की सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहता है। इसमें दिल्ली क्लास के डिस्ट्रायर (जंगी जहाज) से लेकर तलवार-गोदावरी क्लास के फ्रिगेट समेत बेतवा क्लास का गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट और टेंकर शामिल है। पश्चिमी कमांड में ही नौसेना की एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियां भी तैनात हैं।

नौसेना की कुल कमांड
नौसेना की कुल तीन कमांड हैं। इसमें पश्चिमी कमांड का मुख्यालय मुंबई है। पूर्वी कमांड का मुख्यालय विशाखापट्टनम में और दक्षिणी कमांड का मुख्यालय कोच्चि में है। इनमें रणनीतिक लिहाज से मुंबई स्थित पश्चिमी कमांड को शीर्ष में रखा जाता है।

डीएसी ने दी 8 हजार 365 करोड़ रूपए के रक्षा सौदों को मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की शनिवार को हुई बैठक में 8 हजार 365 करोड़ रूपए के रक्षा सौदों को मंजूरी दी गई। इसमें सबसे बड़ा प्रस्ताव वायुसेना के लिए 2 अवॉक्स टोही विमान ए-330 (एवॉक्स) की खरीद का था जिसे मंजूरी दी गई। इस प्रस्ताव की कुल लागत 5 हजार 113 करोड़ रूपए है। वायुसेना के लिए कुल 6 अवॉक्स टोही ए-330 खरीदे जाएंगे। करीब दो घंटे तक चली यह डीएसी की बैठक सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुई, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने की। बैठक में नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन, वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल अरुप राहा, रक्षा सचिव आर.के.माथुर समेत मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

बैठक के बाद रक्षा मंत्री शाम को अपने तीन दिवसीय जापान दौरे पर रवाना हो जाएंगे। रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने कहा कि बैठक में थलसेना के लिए जमीनी बारूदी सुरंगें हटाने वाले ट्रैक माउंटेड लिफटेड डिवाइस (माइन प्लाऊ) की खरीद के प्रस्ताव को भी स्वीकृति दी गई है। कुल 1 हजार 512 डिवाइस खरीदे जाएंगे जिनकी कुल लागत 710 करोड़ रूपए होगी। यहां बता दें कि अभी तक बीईएमएल से बॉय एंड मेक श्रेणी के तहत इनकी खरीद की जाती थी। लेकिन इस बार मेक इन इंडिया अभियान के तहत इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाए जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

सेना के एक अन्य प्रस्ताव को भी बैठक में मंजूर किया गया है, जिसमें बीईएल द्वारा 30 वैपन लोकेटिंग रडॉर ‘स्वाति’ बनाएगा। इनकी कुल कीमत 1 हजार 605 करोड़ रूपए होगी। भारी वाहनों पर इस रडॉर सिस्टम को लगाया जाएगा। डीएसी ने सेना के लिए 24 करोड़ रूपए की लागत वाले ट्रक माउंटेड लिफटेड डिवाइस (टीएमएलडी) की खरीद के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। यह कुल 220 डिवाइस खरीदे जाएंगे। यहां बता दें कि यह डिवाइस लगभग 1 टन वजनी भार तक उठा सकेगा। डीएसी की बैठक में नौसेना के लिए 22 हारपून (एचडीडब्ल्यू) मिसाइलों की खरीद के प्रस्ताव को भी स्वीकृति दी गई। इस प्रोजेक्ट की कुल कीमत 913 करोड़ रूपए है। डीएसी ने मिसाइलों की खरीद से जुड़े आॅफसेट संबंधी दिशानिर्देंश को भी स्वीकृति दे दी है।