रविवार, 30 नवंबर 2014

नौसेना ने चार वर्षों में झेला 24 दुर्घटनाआें का दंश!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

बीते कुछ वर्षों से एक के बाद एक दुर्घटनाआें का शिकार हो रही नौसेना के समक्ष जल्द से जल्द से इन हादसों से निपटने की चुनौती बरकरार है, जिसमें रक्षा मंत्रालय की अहम भूमिका होगी। हाल ही में लोकसभा में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी नौसेना में लगाातार हुए हादसों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2011 से 2014 तक नौसेना के छोटे-बड़े जंगी जहाजों से लेकर पनडुब्बियां हादसे का शिकार हुई। आंकड़ों के हिसाब से 24 दुर्घटनाएं हुई। इसमें कुछ समय पहले विशाखापट्टनम तट से कुछ दूरी पर डूबा नौसेना का टॉरपीडो रिकवरी वेसल (टीआरवी ए-72) भी शामिल है। हादसे की जांच (बीओआई) चल रही है। हादसे के वक्त यह जहाज नियमित अभ्यास पर था। इसमें 29 लोग सवार थे जिसमें 6 नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेबोरेट्री (एनएसटीएल), विशाखापट्टनम के भी थे।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि नौसेना मुख्यालय द्वारा सुधारात्मक कदम उठाए जाते हैं। टीआरवी हादसे के दौरान 24 लोगों को बचाया गया। एक नौसैनिक का शव मिला जबकि चार अन्य अभी तक लापता है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में नौसेना में 3 हादसे हुए। इसके अगले वर्ष 2012 में भी 3 हादसे हुए। इसके बाद वर्ष 2013 में 7 और मौजूदा साल 2014 में 11 जंगी जहाज और पनडुब्बियां हादसों का शिकार हुई हैं।

फेल नहीं करने की नीति की समीक्षा करेगा कैब?

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

देश में शिक्षा के विषय में फैसला करने वाली सर्वोच्च संस्था केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की शिक्षा मामलों की समिति ने प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल ना करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) की समीक्षा करने की सिफारिश की है। अगर समिति की इस सिफारिश को कैब स्वीकार कर लेता है तो प्राथमिक स्कूलों में आगामी शैक्षणिक सत्र (2015-16) से आठवीं कक्षा तक के बच्चों का स्वत: पास होना मुश्किल हो जाएगा। कैब इस सिफारिश पर संसद के शीतकालीन सत्र के बाद होने वाली बैठक में फैसला करेगा।

दरअसल यूपीए सरकार में शिक्षा मंत्री रहे कपिल सिब्बल के कार्यकाल में 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू किया गया। इसमें 8वीं कक्षा तक बच्चों को फेल ना करने की नीति बनाई गई। इसका नतीजा यह देखने को मिला कि कई स्कूलों में तीसरी कक्षा के छात्र पहली की किताबें तक नहीं पढ़ पा रहे और जोड़-घटा के साघारण सवालों को हल करने में उनके पसीने छूटने लगे हैं।

नई शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने अगले वर्ष की शुरूआत तक राष्टीय शिक्षा नीति को अमलीजामा पहनाने से पहले स्कूल और कॉलेजों के बच्चों के साथ एक बैठक कर उनके सुझाव लिए। बच्चों ने कहा कि स्वत: पास हो जाने की प्रक्रिया से शिक्षा को लेकर बेफिक्री और आरामतलबी की भावना आती है। बच्चों ने ईरानी से दसवीं कक्षा में बोर्ड फिर से शुरू करने की भी मांग की। इन मसलों पर कैब की अगली बैठक में निर्णय किया जा सकता है। कर्नाटक समेत कुछ राज्यों ने अगले शैक्षणिक सत्र से कक्षा परीक्षा लेने की बात कही है।

गौरतलब है कि हरियाणा की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की अध्यक्षता में एक उप-समिति को फेल ना करने की नीति पर विचार करने का दायित्व सौंपा गया था। यह पहल अभिभावकों, शिक्षा और कई वर्गों द्वारा कक्षा परीक्षा फिर से शुरू करने की मांग के साथ ही सामने आई थी। मानव संसाधन मंत्रालय का तर्क है कि इस प्रणाली की समीक्षा करने की सिफारिश की है। मानव संसाधन विकास उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा को उप समिति की सिफारिश के बारे में सूचित किया है। समिति ने स्मृति ईरानी को कुछ समय पहले अपनी रिपोर्ट सौंपी है। उप-समिति द्वारा मूल्यांकन किए गए 20 राज्यों ने इस व्यवस्था का विरोध किया और कहा कि इसके प्रावधान अपने उद्देश्यों को हासिल करने में विफल रहे हैं। इससे खासकर 10वीं कक्षा में पहुंचने वाले छात्रों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। उप-समिति ने एचआरडी मंत्रालय की संसदीय समिति की सिफारिशों पर भी विचार किया है।

डीआरडीओ प्रमुख को 18 महीने का अतिरिक्त कार्यकाल

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सरकार ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ.अविनाश चंदर के कार्यकाल को 18 महीने बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। वो रविवार यानि 30 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को इस बाबत दी गई जानकारी के मुताबिक 18 महीनों का उनका यह अतिरिक्त कार्यकाल कांट्रेक्ट पर आधारित होगा और इसकी समाप्ति 31 मई 2016 को होगी। डॉ.चंदर को कांट्रेक्ट कार्यकाल के दौरान दी जाने वाली सुविधाएं वैसी ही रहेंगी जैसी कि उन्हें सचिव ,डीआरडीओ के रूप में दी जाती थी। गौरतलब है कि राष्टपति ने रक्षा मंत्रालय के तहत डीआरडीओ प्रमुख के तौर पर उनकी सेवानिवृति को 30 नवंबर 2014 को स्वीकृति दे दी है।

तो जर्मन राजदूत के सत्संग में नहीं गई ईरानी!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय विद्यालयों से जर्मन को तीसरी भाषा के रूप में ना पढ़ाए जाने के सरकार के फै सले के बाद दोनों देशों के बीच इसे लेकर काफी गहमागहमी बनी हुई है। पहले जर्मन चांसलर एजेंला मार्केल ने जी-20 सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठाया और अब यहां भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टेनर इसे लेकर जद्दोजहद करने में जुटे हैं। इसकी छोटी सी बानगी जर्मन राजदूत द्वारा शुक्रवार शाम ‘सत्संग’ का कार्यक्रम आयोजित करके भी प्रस्तुत की। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शिरकत नहीं की। मंत्रालय में उनके कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मंत्री को इस बाबत कोई निमंत्रण पत्र प्राप्त नहीं हुआ है।

यहां बता दें कि बीते बुधवार को केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन की पढ़ाई को तत्काल रोकने के फैसले की जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने दी थी। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने जर्मन भाषा को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने से संबंधित समझौते का नवीकरण नहीं किया है। सरकार जर्मन की जगह पर तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत भाषा को शामिल करना चाहती है। देश में मौजूद करीब एक हजार केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 8वीं तक तीसरी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा पढ़ाई जा रही है। लेकिन अब नई सरकार ने जर्मन की जगह पर संस्कृत की पढ़ाई कराना चाहती है। मानव संसाधन राज्य मंत्री ने सदन कहा कि वर्ष 2011 में केंद्रीय विद्यालय संगठन और गोइथ इंस्ट्टीट्यूट (मैक्स मूलर भवन) के बीच जर्मन भाषा की पढ़ाई को लेकर जो समझौता हुआ था उसके कुछ बिंदु भारत की वर्ष 1968 की राष्टीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्म्युले से लेकर 2005 के नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क के हिसाब से भी अनुचित है। यह समझौता पुरानी शिक्षा नीति के आदेशों का उल्लंधन करता है।

उधर जर्मन राजदूत का कहना है कि मैंने 28 नवंबर को अपने जन्मदिवस के दिन सत्संग का आयोजन करने का निर्णय बहुत पहले लिया था। यह उस समय की बात है जब मई में नई सरकार का गठन भी नहीं हुआ था। इस कार्यक्रम के लिए हमने कई केंद्रीय मंत्रियों को आमंत्रित किया है। मैं इसमें एक-एक करके नामों का खुलासा नहीं कर सकता। इस आयोजन का मकसद जर्मन भाषा की पढ़ाई पर केंद्र द्वारा रोक लगाने के मसले को आगे बढ़ाने के लिए मौके तशालने से जुड़ा हुआ नहीं है।

गौरतलब है कि केंद्रीय विद्यालयों में बीते तीन वर्षों (2012 से 2015 तक) के दौरान कुल 50 हजार 978 बच्चे जर्मन भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। यह संख्या बीते शैक्षणिक सत्र 2013-14 में 36 हजार 728 थी और उससे पहले 2012-13 में 17 हजार 772 थी। मंत्री ने कहा कि जर्मन भाषा पढ़ाए जाने को लेकर हाईकोर्ट में संस्कृत संगठन ने 2013 में याचिका दायर की है। बीते महीने 27 अक्टूबर को हुई केंद्रीय विद्यालय संगठन के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर (बीओजी) की बैठक से पहले भी इस मसले पर चर्चा हुई थी। इसमें बीओजी ने यह तय किया कि जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के तौर पर पढ़ाया जाए। विदेशी भाषा को छठी से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चों को अतिरिक्त विषय या रूचि वाली भाषा के तौर पर पढ़ाया जाए लेकिन तीसरी भाषा के तौर पर ना पढ़ाया जाए। इससे जर्मन भाषा पढ़ने वाले युवाआें पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो कि वैश्विक आधार पर दुनिया के सामने खुद को पेश करने की तैयारी कर रहे हैं। जर्मन के अलावा कुछ केंद्रीय विद्यालयों में चीनी भाषा (मैंड्रिन) को भी हॉबी क्लासेज के तौर पर पढ़ाया जा रहा है।

पर्रिकर की प्राथमिक्ताआें में शुमार रफाले विमान सौदा

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत के सबसे बड़ा मध्यम लधु बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान सौदा (एमएमआरसीए) रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की प्राथमिक्ताआें में शुमार है। रविवार को भारत के तीन दिवसीय दौरे पर आ रहे फ्रांस के रक्षा मंत्री जीन वेस ली ड्रायन के साथ पर्रिकर 2 दिसंबर को मुलाकात करेंगे जिसमें रफाले लड़ाकू विमान सौदे को अंतिम रूप दिए जाने पर भी चर्चा होगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि फ्रांसिसी रक्षा मंत्री की भारत यात्रा के एजेंडे में रफाले विमान सौदा शीर्ष पर शामिल है, जिसे वो यहां अपने समकक्ष रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ बातचीत में अंतिम रूप देने की पूरी कोशिश करेंगे।

गौरतलब है कि फ्रांसिसी विमान निर्माता कंपनी डेसाल्ट रफाले लड़ाकू विमान बनाएंगी। इसके साथ भारत 126 एमएमआरसीए रफाले लड़ाकू विमानों का सौदा करने जा रहा है, जिसकी कुल कीमत करीब 20 अरब डॉलर है। कंपनी सौदे के तहत लगभग 48 महीनों में वायुसेना को 18 विमानों को सीधे देगी और बाकी बचे 108 विमानों का अगले 7 सात सालों के दौरान यहां तकनीक हस्तांतरण (टीओटी) के तहत हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में उत्पादन किया जाएगा।

मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सौदे से जुड़ी चार अहम समितियों (कांट्रेक्ट नेगोशिएसन समिति, कीमत निर्धारण, तकनीक हस्तांतरण) ने अपना काम पूरा कर लिया है। अब केवल एक समिति का कार्य शेष बचा है, जिसके बाद सौदे को अंतिम मंजूरी देने का रास्ता साफ हो जाएगा। दो साल पहले 2012 में भारत ने इस प्रक्रिया में शामिल पांच प्रतिभागियों में से रफाले विमानों के लिए डेसाल्ट का चयन किया। सौदे से जुड़ी विमानों की परीक्षण प्रक्रिया में दूसरे स्थान पर यूरोपियन यूनियन का यूरोफाइटर टाइफून रहा। कुछ दिन पहले भारत आए ब्रिटेन के रक्षा मंत्री माइकल फलॉन ने कहा था कि अगर इस सौदे को लेकर डेसाल्ट के साथ बातचीत अंतिम स्तर तक नहीं पहुंचती है तो वो अब भी भारत को यूरोफाइटर देने को पूरी तरह से तैयार है।

द.कश्मीर और आईबी आतंकियों के निशाने पर!

कविता जोशी.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान हो चुका है, जिसमें आम कश्मीरियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मतदान का आंकड़ा सूबे के इतिहास में पहली बार 71 फीसदी के पार जा पहुंचा। इससे सबसे ज्यादा खीजे हुए आतंकियों का चुनाव के दौरान सूबे की शांति भंग करने के लिए द.कश्मीर और आईबी को अपना नया टारगेट बना लिया है। यह वो दोनों इलाके हैं जहां बाकी बचे चरणों में मतदान होना है। खुफिया ब्यूरो के सूत्रों के अनुसार उत्तरी कश्मीर की ज्यादातर सीटों पर पहले चरण में मतदान हो चुका है और इनसे जुड़े ज्यादातर रास्ते बर्फ की मोटी चादरों से ढक चुके हैं। द.कश्मीर और आईबी में मोटी बर्फ नवंबर के अंत और दिसंबर तक पड़ती है। इसलिए अब आतंकवादियों का अगला टारगेट द.कश्मीर से लेकर अंतरराष्टीय सीमा (आईबी) बन गया है। इसकी बानगी आतंकियों ने गुरुवार को आईबी पर अरनिया में बीएसएफ की पिंड़ी पोस्ट पर कब्जा करके पेश भी कर दी है। इसका इशारा बिलकुल साफ है कि आने वाले दिन भी शांति से भरे नहीं रहने वाले हैं।

हरिभूमि की पड़ताल में मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में 2, 9, 14 और 20 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं, जिनमें दौरान द.कश्मीर से लेकर आईबी के ज्यादातर संवेदनशील इलाकों में मतदान होगा। खास बात यह है यह इलाके राजधानी श्रीनगर से सटे हुए हैं। ऐसे में यहां किसी बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देंगे तो उसका सीधा संदेश देश की राजधानी दिल्ली तक जाएगा। सेना ने सूत्रों ने कहा कि आगामी चरणों में द.कश्मीर की बारामुला, कुपवाड़ा, श्रीनगर जिला, गांदरबल, शोपियां, बड़गाम, पुलवामा, कुलगाम, बांदीपुरा, अंनतनाग, पूंछ, राजौरी के अलावा आईबी के सांबा व अन्य संवदेनशील जगहों पर मतदान होगा। यह इलाके जनसंख्या और संचार साधनों के मामले में संपन्न होने के अलावा उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित भी माने जाते हैं। यहां आतंकी वारदात बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। सेना के सामने चुनौती ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि इनमें अंनतनाग, अवंतीपुर, तराल जैसे इलाकों में अलगाववादियों का भी अच्छा-खासा प्रभाव है। चुनाव प्रभावित करने के लिए अलगाववादी हिंसक घटनाआें को हवा देने में पीछे नहीं रहेंगे।

आंकड़ों के हिसाब से राज्य में नवंबर महीने में आतंकी हिंसा की कुल 6 घटनाएं हो चुकी हैं जबकि सालभर के दौरान ऐसी 52 घटनाएं हुई हैं। जम्मू-कश्मीर में 10 हजार 15 पोलिंग स्टेशन हैं। 2 दिसंबर को दूसरे चरण में पूंछ, केरन, हंडवाड़ा, मेंढर, उधमपुर, सुरनकोट, कुलगाम जैसे संवेदनशील इलाकों में वोट डाले जाएंगे। 9 दिसंबर को तीसरे चरण में उरी, सौपोर, बारामूला, बड़गाम, तराल, पुलवामा, गुलमर्ग शामिल हैं, 14 दिसंबर चौथे चरण में अंनतनाग, शोपिया, सांबा, विजयनगर, सोनावर, बटमालू, हजरतबल, 20 दिसंबर यानि पांचवे चरण में हीरानगर (जम्मू), कठुआ, आर.एस.पुरा (जम्मू), नगरोटा, अखनुर (जम्मू), जम्मू पूर्व-पश्चिम शामिल है।

जर्मन भाषा नहीं पढ़ाएंगे केंद्रीय विद्यालय!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन भाषा की पढ़ाई को तत्काल रोकने के फैसले की बुधवार को केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी। लोकसभा में सांसद रवनीत सिंह के सवाल के जवाब में केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि मंत्रालय ने जर्मन भाषा को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने से संबंधित समझौते का नवीकरण नहीं किया है। सरकार जर्मन की जगह पर तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत भाषा को शामिल करना चाहती है।

दरअसल देश में मौजूद करीब एक हजार केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 8वीं तक तीसरी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा पढ़ाई जा रही है। लेकिन अब नई सरकार ने जर्मन को बंद करके संस्कृत की पढ़ाई कराने का फरमान केंद्रीय विद्यालय संगठन को सुना दिया है। मानव संसाधन राज्य मंत्री ने सदन को बताया कि वर्ष 2011 में केंद्रीय विद्यालय संगठन और गोइथ इंस्ट्टीट्यूट (मैक्स मूलर भवन) के बीच जर्मन भाषा की पढ़ाई को लेकर जो समझौता हुआ था उसके कुछ बिंदु भारत की वर्ष 1968 की राष्टीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्म्युले से लेकर 2005 के नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क के हिसाब से भी अनुचित है। यह समझौता पुरानी शिक्षा नीति के आदेशों का उल्लंधन करता है।

गौरतलब है कि केंद्रीय विद्यालयों में बीते तीन वर्षों (2012 से 2015 तक) के दौरान कुल 50 हजार 978 बच्चे जर्मन भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। यह संख्या बीते शैक्षणिक सत्र 2013-14 में 36 हजार 728 थी और उससे पहले 2012-13 में 17 हजार 772 थी। मंत्री ने कहा कि जर्मन भाषा पढ़ाए जाने को लेकर हाईकोर्ट में संस्कृत संगठन ने 2013 में याचिका दायर की है। बीते महीने 27 अक्टूबर को हुई केंद्रीय विद्यालय संगठन के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर (बीओजी) की बैठक से पहले भी इस मसले पर चर्चा हुई थी। इसमें बीओजी ने यह तय किया कि जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के तौर पर पढ़ाया जाए। विदेशी भाषा को छठी से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चों को अतिरिक्त विषय या रूचि वाली भाषा के तौर पर पढ़ाया जाए लेकिन तीसरी भाषा के तौर पर ना पढ़ाया जाए। इससे जर्मन भाषा पढ़ने वाले युवाआें पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो कि वैश्विक आधार पर दुनिया के सामने खुद को पेश करने की तैयारी कर रहे हैं। जर्मन के अलावा कुछ केंद्रीय विद्यालयों में चीनी भाषा (मैंड्रिन) को भी हॉबी क्लासेज के तौर पर पढ़ाया जा रहा है।

अब खुद को आतंकवाद से बचाने में जुटा पाकिस्तान

कविता जोशी.नई दिल्ली

भारत में जम्मू-कश्मीर में दशकों से आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान अब खुद को इससे बचाने की जुगत लगाने में जुटा है। मसला है पाकिस्तान के अफगानिस्तान सीमा से लगे बलूचिस्तान का है जहां इन दिनों अफगान सीमा से लगातार हो रही आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए पाक ने कंटीली तारों की बाड़ लगाने का काम शुरू किया है। सरकार के खुफिया ब्यूरो के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान को डर है कि बलूचिस्तान में लगी अफगान सीमा से आतंकियों की घुसपैठ को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। बलूचिस्तान में पाक विरोधी स्वर लंबे समय से गूंज रहे हैं। पाक अफगानिस्तान के साथ करीब 2 हजार 640 किमी. लंबी सीमा साझा करता है, जिसमें बलूचिस्तान की बड़ी भागीदारी है। सेना के सूत्रों ने भी पाक की इस गतिविधि की पुष्टि की है।

एलओसी पर किया था विरोध
आज अपनी सीमा पर हो रही आतंकी घुसपैठ रोकने के लिए बाड़ लगाने वाले पाकिस्तान ने 90 के दशक में 772 किमी. लंबी एलओसी पर भारत की इसी पहल का कड़ा विरोध किया था। उसके विरोध की वजह से ही भारत को कंटीली तारों की बाड़ वास्तविक एलओसी से हटकर अपने इलाके में लगानी पड़ी। रक्षा संबंधी जानकार कहते हैं, पाक का विरोध इतना भयावह था कि भारतीय सेना व इस काम में लगी अन्य एजेंसियों को अपना ज्यादातर काम रात में पूरा करना पड़ा। दिन के उजाले में पाक सेना विरोध जताने के लिए भारी गोलीबारी करती थी। कंटीली तारों की बाड़ के विरोध में पाक कहता था कि भारत इससे दोनों पक्षों के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते से लेकर इस क्षेत्र के लिए लागू संयुक्त राष्ट के घोषणापत्र का भी उल्लंधन कर रहा है। उस दौरान यूरोपियन यूनियन ने भारत की सीमा पर फेंस लगाने की पहल का समर्थन किया था।

भारत का 2004 में खत्म हुआ कार्य
भारत ने वर्ष 1990 में जम्मू-कश्मीर में पाक संग लगने वाली नियंत्रण रेखा के पास बाड़ लगाने का मसला उठाया, जो 2000 की शुरूआत में जाकर हल हुआ। वर्ष 2003 के सीजफायर समझौते के बाद भारत ने कंटीली तारों की बाड़ लगाने का काम शुरू किया जो कि 2004 के अंत में जाकर पूरा हुआ। सेना के सूत्रों का कहना है कि एलओसी पर कंटीली तारों की बाड़ लगाने से पीओके की तरफ से रोजाना सीमा पार करने वाले आतंकवादियों की गतिविधियों में 80 फीसदी की गिरावट आई है।

ऐसी है पाक की बाड़
पाकिस्तान 6 भागों में बंटा हुआ है। इसमें बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब, फाटा (फैडरली एडमिस्टर्ड ट्राइबल एरिया), एनडब्ल्यूएफपी (नार्थ वेस्ट फ्रंटीयर प्रोविंस), गिलगित-बाल्टिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर शामिल है। पाक ने बलूचिस्तान में अफगानिस्तान से लगी सीमा पर कटीली तार (ट्रेंच) लगाने का काम शुरू किया है। यह 8 फीट गहरी और 10 फीट चौड़ी है। इसके बीच में कंटीली तार लगाई जाएंगी।

गौरतलब है कि बलूचिस्तान में पाक विरोधी स्वर लंबे समय से उठ रहे हैं। इस सीमा पर बाड़ लगाने के पीछे पाक का वो डर है जिसमें उसे लगता है कि अगर विरोध को दबाया नहीं गया तो आगे चलकर बलूचिस्तान भी कहीं दूसरा बांग्लादेश बन जाए। इस इलाके की ज्यादातर आबादी शिया मुसलमानों की है। इनका पाक के बाकी इलाकों में मौजूद सुन्नी मुस्लिम आबादी से छत्तीस का आंकड़ा रहता है। बीते कुछ समय में बलूचिस्तान की सिया मुस्लिम आबादी में 95.5 से 60 फीसदी पर आ गई है।

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

जम्मू-कश्मीर सेनाप्रमुख की शीर्ष वरीयताआें में शुमार

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग की प्राथमिक्ताआें में जम्मू-कश्मीर शीर्ष पर बना हुआ है। नई सरकार के गठन के बाद से लेकर अब तक उन्होंने तीन बार श्रीनगर का दौरा किया है। इसमें जनरल सुहाग का मंगलवार को किया गया दौरा भी शामिल है। इस यात्रा का मकसद सूबे में चल रहे विधानसभा चुनाव के दौरान घाटी में सुरक्षा हालातों की समीक्षा करना था। इसमें सेनाप्रमुख को श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर के कमांडर ले.जनरल एस.साहा ने घाटी में सुरक्षा से जुड़े तमाम कारणों और मौजूदा स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सेनाप्रमुख ने घाटी के सुरक्षा हालातों का जायजा लेने के लिए इलाके का हवाई सर्वे भी किया।

गौरतलब है कि पड़ोसी पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर सीमा को लगातार अशांत बनाए रखने की कोशिश जारी है। लेकिन नई सरकार के एजेंड़े में सीमाओं की प्राथमिक्ता के आधार पर सुरक्षा करने के तथ्य को शामिल किया गया है। उधर आतंकवादियों ने बांदीपुर मतदान केंद्र के बाहर आईईडी से धमाका किया जिसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। इससे मतदान प्रक्रिया पर कोई खास असर नहीं हुआ और लोगों ने बिना किसी खौफ के खुलकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

यहां सेना के सूत्रों ने कहा कि सेनाप्रमुख ने मंगलवार सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर राजधानी से श्रीनगर के लिए उड़ान भरी। करीब साढ़े चार घंटे श्रीनगर में बिताने के बाद दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर वो दिल्ली के लिए रवाना हो गए। यहां बता दें कि 26 मई को नई सरकार के गठन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले जम्मू-कश्मीर के दौरे में भी सेनाप्रमुख उनके साथ श्रीनगर गए थे। इसके बाद राज्य में आई विनाशकारी बाढ़ के वक्त भी उन्होंने श्रीनगर का दौरा किया और अब चुनाव का यह ताजातरीन दौरा भी इस सूची में शामिल हो गया है। इसके अलावा उन्होंने पीएम के साथ सियाचिन का भी दौरा किया था।

सिंधुरत्न हादसे में अधिकारी नोटिस के जरिए देंगे जवाब

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

इस वर्ष की शुरूआत में 26 फरवरी को मुंबई तट से कुछ दूरी पर हादसे का शिकार हुई सिंधुरत्न पनडुब्बी मामले में नौसेना ने 7 अधिकारियों को अलग- अलग कारणों के साथ दोषी पाया है। यह जानकारी मंगलवार को संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राज्यसभा में सांसद विजय गोयल और प्रभात झा के प्रश्न के लिखित जवाब में दी। उन्होंने कहा कि हादसे के बाद गठित बोर्ड आॅफ इंक्वारी (बोओआई) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है, जिसे जांच दल द्वारा यहां राजधानी स्थित नौसेना मुख्यालय को सौंपा गया था। नौसेना की मुंबई स्थित पश्चिमी कमांड द्वारा इन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। रक्षा मंत्री ने कहा कि नौसेना की एक अन्य पनडुब्बी सिंधुरक्षक के हादसे की बीओआई रिपोर्ट आ चुकी है। लेकिन नौसेना मुख्यालय द्वारा अभी इसका विश्लेषण नहीं किया गया है।

एडमिरल जोशी का इस्तीफा
सिंधुरत्न हादसे में नौसेना के दो अधिकारियों लेफिटनेंट कमांडर कपीश मुआल, लेफिटनेंट कमांडर मनोरंजन कुमार की जान चली गई थी और करीब 7 नाविकों को चोटें आई थी। इस हादसे की व्यापक्ता इतनी अधिक थी कि इसके कुछ घंटों बाद ही तत्कालीन नौसेनाप्रमुख एडमिरल डी.के.जोशी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। एडमिरल जोशी ने नौसेना में कुछ समय से एक के बाद एक हो रहे हादसों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया था। उनके बाद नए नौसेनाप्रमुख के रूप में एडमिरल आर.के.धोवन ने कार्यभार संभाला था। सिंधुरत्न से पहले 14 अगस्त 2013 को नौसेना की आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी में आग लगने से धमाका हुआ और यह समुद्र में डूब गई थी जिसमें सवार चालक दल के सभी 18 लोगों की जान चली गई थी।

नौसेना का तर्क
यहां नौसेना के सूत्रों ने कहा कि बोओआई में दोषी करार दिए जाने के बाद अब नौसेना इन सात लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी करेगी जिसका यह लगभग एक महीने के भीतर जवाब देंगे। इनके जवाब का नौसेना के विशेषज्ञ अधिकारी विश्लेषण करेंगे और उसके आधार पर सजा तय की जाएगी। यहां बता दें कि नौसेना में अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत दोष सिद्ध हो जाने के बाद उक्त व्यक्ति को जेल की सजा काटने से लेकर अधिकतम कोर्ट-मार्शल तक की कार्रवाई की जा सकती है। सिंधुरत्न हादसे की जांच कोमोडोर स्तर के अधिकारी रियर एडमिरल बोकरे की अध्यक्षता में की गई।

सिंधुरत्न पनडुब्बी की विशेषताएं
सिंधुरत्न किलो क्लास की रूस से ली गई डीजल चालित पनडुब्बी है। वर्ष 1988 में नौसेना में शामिल होने के बाद करीब 26 वर्षों का सफरनामा इस पनडुब्बी ने तय किया। आमतौर पर एक पनडुब्बी का जीवनकाल 30 वर्षों का होता है। ऐसे में अपने सेवाकाल को पूरा करने से पहले ही इसका हादसे का शिकार होने से नौसेना के सामने कई तरह के सवाल एक साथ उठ खड़े हुए। हादसे से पहले पनडुब्बी मई महीने में रिफिट के लिए गई थी। उसके बाद यह दिसंबर में बाहर आई और जांच (टास्क टू) के लिए समुद्र में भेजा गया जहां यह हादसा हुआ।

हथियारों के बड़ा जखीरा पकड़ा जाने से पस्त आतंकी!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के दौरान मंगलवार को मतदान प्रक्रिया के पहले चरण की शुरूआत से पहले सेना ने आतंकियों का हथियारों का बड़ा जखीरा जब्त किया है। चुनाव से ऐन पहले की गई इस कार्रवाई को सेना बड़ी कामयाबी के रूप में देख रही है और उसका मानना है कि इससे चुनाव के दौरान राज्य में हिंसा और दहशत फैलाने के आतंकियों के मंसूबे पस्त होंगे।

गौरतलब है कि सूबे में चुनावों के दौरान आतंकी हिंसा से जुड़ी वारदातों में इजाफा देखने को मिलता है। लेकिन इस बार के सरकार के खुफिया ब्यूरो की तमाम रिर्पोटों के बावजूद चुनावों के दौरान सूबे की फिजा बदली-बदली सी नजर आ रही है। आतंक से जुड़ी हिंसक वारदातों में कमी देखने को मिल रही है। ताजा मामला सोमवार को जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा से लगे दो इलाकों से हथियारों से बड़े जखीरे के पकड़े जाने का है। बावजूद इसके आतंकी हिंसा से जुड़ी घटनाओं का इसे पूरी तरह से खात्मा नहीं माना जा सकता। मौका मिलते ही आतंकी फिर से अपने तेवर दिखा सकते हैं।

श्रीनगर स्थित सेना की15वीं कोर के कमांडर ले.जनरल एस.साहा ने कहा कि हथियारों का जखीरा पकड़े जाने से साफ है कि आतंकी नियंत्रण रेखा लांघकर घुसपैठ की कवायद में लगे हुए थे लेकिन हमारे प्रयासों ने उनके मंसूबो पर पानी फेर दिया है। पकड़ा गया हथियारों का जखीरा यहां सेना के सूत्रों ने बताया कि राज्य में भारत-पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) से लगे हुए केरन और बारमूला में सेना ने बड़ी मात्रा में हथियार पकड़े हैं। यह वो हथियार हैं जिनका आतंकवादी चुनाव के दौरान प्रयोग करके सूबे की शांति भंग करके दहशत का माहौल बनाने की जुगत लगाए बैठे थे। केरन से सेना ने 18 एके-47 राइफलें, 5 पिस्टल बरामद की हैं और बारामूला से 1 स्नाइपर, 2 रॉकेट लांचर (आरएल), 2 अंडर बैरल ग्राउंड लांचर (यूबीजीएल), 2 पिस्टल, 2 मोर्टार और 100 ग्राम विस्फोटक बरामद किया है। इसके अलावा सेना को एयरटेल के कुछ सिमकार्ड भी मिले हैं।

एक एके-47 में 132 राउंड असला, एक रॉकेट लांचर में 6 राउंड, एक यूबीजीएल में 23 राउंड, पिस्टल में 10 राउंड तक असला होता है। 100 ग्राम विस्फोटक से आईईडी बनाई जा सकती है। हरिभूमि ने इस बाबत हाल में चुनाव के दौरान आतंकी हिंसा की घटनाआें में कमी की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित भी किया था। घटनाओं में कमी का आंकड़ा वर्ष 2008 के नवंबर-दिसंबर महीने में हुए चुनाव के दौरान राज्य में नवंबर में आतंकी हिंसा की 15 और दिसंबर महीने में 7 घटनाएं हुई।

मौजूदा चुनावों के दौरान नवंबर में आतंकी हिंसा की 5 घटनाएं ही हुई हैं। इसके अलावा इस साल जनवरी से लेकर नवंबर तक कुल 51 हिंसक घटनाओं को आतंकियों ने अंजाम दिया है। बीते दो महीने के दौरान सेना ने राज्य में 7 एके-47, 6 पिस्टल, एक 303, एक 12बोर और 25 ग्रेनेड बरामद किए हैं। बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष सेना ने ज्यादा आतंकियों को मार गिराया है। इस वर्ष 89 आतंकी मारे गए जबकि पिछले साल 62 आतंकी मारे गए थे।  

शनिवार, 22 नवंबर 2014

डीएसी ने दी 22 हजार करोड़ के रक्षा सौदों को मंजूरी

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में शनिवार को हुई रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में 22 हजार 910 करोड़ रुपए के खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इसमें थलसेना के लिए 155 एमएम 52 केलिबर की 814 तोपों (बड़ी माउंटेन गन) की खरीद के लिए 15 हजार 750 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई। यहां ध्यान रहे कि वर्ष 1987 में उद्घघाटित हुए बोर्फोस तोप घोटाले के बाद से लेकर अब तक थलसेना के लिए कोई तोप नहीं खरीद जा सकी। नई सरकार ने लंबे समय से तोप खरीद की जमी पड़ी इस प्रक्रिया को गति देने की कोशिश की है। हालांकि सौदे को अंतिम रूप लेने में कुछ समय और लगेगा। थलसेना के प्रस्ताव के लिए अब निविदा (आरएफपी) आमंत्रित की जाएगी। फिर ट्रायल होंगे और उसके बाद तोप प्रस्ताव हकीकत में धरातल पर उतरेगा। 814 तोपों की खरीद रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) की बॉय एंड मेक इंडिया श्रेणी के तहत किया जाएगा। इसमें 100 तोपें सीधे विदेशी खरीददार से ली जाएंगी और बाकी 714 तोपों का यहां देश में उत्पादन किया जाएगा।

इन प्रस्तावों को मिली मंजूरी
रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने कहा कि करीब दो घंटे तक चली इस बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने की। बीते 10 नवंबर को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद यह पर्रिकर की पहली डीएसी की बैठक थी। इसमें थलसेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरुप राहा, नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धवन, रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.सी.पति मौजूद थे। बैठक में थलसेना के लिए तोपों की खरीद के अलावा वायुसेना के लिए इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कट्रोल सिस्टम (एआईसीसीएस) की खरीद के लिए 7 हजार 160 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। दरअसल वायुसेना के लिए एआईसीसीएस की खरीद का यह दूसरा चरण था। वायुसेना के पास 5 एआईसीसीएस सिस्टम पहले से हैं। इस चरण में 4 और के लिए प्रस्ताव दिया गया। इन 9 सिस्टम वायुसेना को जमीन से लेकर द्वीपों तक मदद पहुंचाएंगे।

अगली बैठक में होगी चर्चा
डीएसी की बैठक में कुछ ऐसे प्रस्ताव भी रहे जिन पर डीएसी की अगली बैठक में विचार किया जा सकता है। इनमें वायुसेना के लिए 56 एवरो विमानों के एवज में नए विमानों की खरीद का सौदा और पिलाटस प्रशिक्षु विमानों की खरीद का सौदा शामिल है। 181 पिलाटस विमानों की खरीद की जानी है, जिसमें 75 विदेशी कंपनी से सीधे खरीदे जाने हैं और 106 का निर्माण बॉय एंड मेक इन इंडिया श्रेणी के तहत किया जाएगा। 75 में से 53 विमान वायुसेना में शामिल किए जा चुके हैं।

डीएसी की बैठकों की संख्या में इजाफा
बैठक में रक्षा मंत्री ने कहा हमारी नीति तेज और पारदर्शी रक्षा खरीद की होगी। उन्होंने डीएसी की बैठकों की संख्या में इजाफा करने का भी निर्देंश दिया। पहले अरुण जेटली के समय में महीने में एक बार डीएसी की बैठक बुलाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन अब नए रक्षा मंत्री ने बैठक के लिए प्रस्तावों की ज्यादा संख्या होने का इंतजार ना करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर आपके पास एक-दो प्रस्ताव भी हैं तो उन्हें मंजूरी के लिए लेकर आए। बैठक में मैक इन इंडिया नीति पर भी चर्चा हुई। इसमें स्वदेशी प्रक्रिया पर जोर देने को कहा लेकिन उसमें स्पष्टता होनी चाहिए। साथ ही इसे निवेश के लिए आकर्षक बनाना चाहिए। निवेशकों के लिए सुविधाजनक बनाना होगा।

छोटी नौकाओं को पकड़ने की चुनौती बरकरार?

कविता जोशी.नई दिल्ली

26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा मुंबई पर किए गए आतंकी हमले के करीब 6 साल बीत जाने के बाद भी केंद्र की तटीय सुरक्षा को चाक-चौबंद करने की पहल खासी रंग लाती हुई दिखाई नहीं पड़ती। उस समय आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार 20 मीटर से छोटे आकार की नौकाआें को दूर समुद्र में टैक करने यानि पकड़ने की तकनीक से आज भी हम कोसो दूर हैं। यहां इस मुद्दे पर चर्चा इसलिए जरूरी हो जाती है क्योंकि रविवार को गुडगांव में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर नौसेना के सूचना प्रबंधन विश्लेषण केंद्र (आईएमएंडएसी) का उद्घघाटन करेंगे जिसमें भी 20 मीटर से छोटी आकार की नौकाओं को पकड़ने की क्षमता नहीं है। 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले में लगभग 164 लोगों की जान गई और 600 के करीब लोग घायल हुए थे। हमले के पीछे लश्करे तैयबा संगठन का हाथ था। हमले के बाद एकमात्र जीवित आतंकी अजमल आमिर कसाब को फांसी पर लटकाया जा चुका है।

नौसेना ने माना चुनौती
आईएमएंडएसी को लेकर यहां शुक्रवार को रक्षा मंत्रालय में आयोजित एक अनौपचारिक पत्रकार वार्ता में नौसेना के अस्सिटेंट चीफ आॅफ नेवल स्टाफ(कम्युनिकेशन, स्पेस, नेटवर्क सेंट्रिक आॅपरेशंस) रियर एडमिरल के.के.पांडे ने संवाददाताआें के सवाल के जवाब में कहा कि इस केंद्र की मदद से समुद्र में घूमने वाले बड़े जहाजों की गतिविधियों की जानकारी को आसानी से एकत्रित किया जा सकेगा। लेकिन 20 मीटर से छोटी आकार वाली नौकाओं को इस सिस्टम के जरिए पकड़ना असंभव है। यह मुद्दा हमारे लिए आज भी चुनौती बना हुआ है।

तटरक्षक-बल ने भी खड़े किए हाथ
तटीय सुरक्षा की जिम्मेदारी नौसेना और तटरक्षक-बल दोनों की है। लेकिन मुंबई आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार 20मी. से छोटे आकार की नौकाआें को हमारे तटों की ओर बढ़ते वक्त रोकना फिलहाल टेढ़ी खीर बना हुआ है। तटरक्षक-बल इसके लिए एक प्रायोगिक परियोजना पर काम कर रहा है, लेकिन अभी वो धरातल पर नहीं उतरी है। कुछ समय पहले तटरक्षकबल के महानिदेशक अनुराग जी थपलियाल ने भी कहा था कि 20 मीटर से छोटे आकार की नौकाआें को पकड़ने के लिए हम एक परियोजना पर काम कर रहे हैं। यह बेहद मुश्किल कार्य है कि ऐसी नौकाआें को पकड़ने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाए जिनमें आटोमैटिक आईडेंटिफिकेशन सिस्टम (एआईएस) तक लगे हुए नहीं होते हैं। गौरतलब है कि एआईएस से लैस किसी नौका को तटीय रडॉरों की मदद से आसानी से पकड़ा जा सकता है।

भारत की लंबी तटरेखा
भारत की 7 हजार 516.16 किमी. लंबी तटरेखा है जो कि पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिम में अरब सागर से लगती है। तट रेखा के दायरे में देश की पूर्वी ओर पश्चिमी सीमा मिलाकर कुल 9 राज्य और 4 केंद्रशासित प्रदेश आते हैं। इसमें गुजरात, महाराष्ट, गोवा, कर्नाटक, केरल,तमिलनाडु, आंध्र-प्रदेश, पश्चिम-बंगाल और दमन और दीव, लक्षद्वीप, पुड्डुचेरी, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह शामिल है।

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

शारिरिक विकलांगता के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगा यूनेस्को

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

अगले सप्ताह की शुरूआत में 24 से 26 नवंबर को राजधानी दिल्ली में होने जा रहे यूनाइटेड नेशंस एजूकेशनल, साइंटिफिक, कल्चरल आर्गेनाइजेशन(यूनेस्को) के अंतरराष्टीय सम्मेलन में इस बार ‘शारिरिक विकलांगता’ मुख्य मुद्दा बनने जा रहा है। यूनेस्को को कोशिश होगी कि दुनियाभर में फैली इस समस्या को लेकर आने वाले तमाम हितधारकों से इसपर विस्तार से चर्चा कर इसका उचित समाधान ढूंढा जाए। कार्यक्रम की थीम ‘फ्रॉम एक्सक्लूजन टू एमपावरमेंट: द रोल आॅफ इंर्फोमेशन एंड कम्युनिकेशन टेकनोलॉजीज फॉर पर्सन विद डिसेबिलिटीज’ रखी गई है।

शारिरिक विकलांगता का वैश्विक आंकड़ा
यूनेस्को के आंकड़ों के हिसाब से दुनिया की कुल आबादी का 15 फीसदी यानि 1 अरब लोग अलग-अलग प्रकार की शारिरिक विकलांगता का शिकार हैं। इसलिए इन लोगों को दुनिया की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी कहा जाता है। विकलांगता की वजह से इन्हें शिक्षा और रोजगार के समान अवसर नहीं मिल पाते। ऐसे में यूनेस्को द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा किया जाना जरूरी हो जाता है। इस मसले के समाधान के बिना दुनिया के देश सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीएम) और वर्ष 2015 के बाद समानता आधारित विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते।

केंद्र सरकार ही पहल
भारत की नई सरकार ने शारिरिक विकलांगता पर काम करना शुरू कर दिया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तैयार की जा रही राष्टीय शिक्षा नीति के ड्राफट में भी शरिरिक विकलांगता के मुद्दे को शामिल किए जाने की पूरी संभावना है। इतना ही नहीं सरकार देश के तमाम विश्वविद्यालयों में शारिरिक विकलांगता के शिकार छात्रों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की दिशा में कोई बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रही है।

सम्मेलन की विशेषताएं
सम्मेलन में दुनियाभर के 500 अंतरराष्टÑीय, क्षेत्रीय और राष्टÑीय भागीदार शामिल होंगे। इसकी अध्यक्षता यूनेस्को के महानिदेशक ईरीना बोकोवा करेंगी। अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, थाइलैंड, नेपाल, इक्वाडोर, कुवैत जैसे देश सम्मेलन में शामिल होंगे। इसके अलावा यूनेस्को के मालद्वीप-भूटान के प्रतिनिधि,राज्यसभा सांसद डॉ.कर्ण सिंह, प्रसार भारती के सीईओ जवाहर सरकार भी कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी सम्मेलन में मुख्य अतिथि होंगी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव स्तुति कक्कड़ और सूचना एवं आईटी मंत्रालय भी सम्मेलन में भाग
लेंगे। सम्मेलन का समापन यूनेस्को के निदेशक शिगेरु आईओबी के संबोधन से होगा।

जम्मू-कश्मीर में बड़े हमले की तैयारी में खामोश आतंकी?

कविता जोशी.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में जारी चुनावी समर में कुछ दिनों से आतंकी हिंसा में गिरावट देखने को मिल रही है। बीते लगभग सप्ताह भर से राज्य के अंदर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में बैठे आतंकवादियों ने हिंसा की किसी वारदात को अंजाम नहीं दिया है। इसके बावजूद सुरक्षा एजेंसियां पूरी तरह से अलर्ट पर हैं। उनका कहना है कि चंद रोज की यह खामोशी आने वाले दिनों में किसी बड़ी वारदात का सबब भी बन सकती है। थलसेना का कहना है कि हमारी तैयारी पक्की है, जिसमें हम किसी भी आतंकी घटना और हिंसक वारदात से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

आखिर क्यों खामोश हैं आतंकी?
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि बीते 1 से 16 नवंबर तक राज्य में आतंकवादियों ने लगातार हिंसक वारदातों को अंजाम दिया। लेकिन इसके बाद करीब सप्ताहभर से कहीं से किसी अनहोनी की खबर नहीं मिली है। इस खामोशी के पीछे सेना की सूबे में बढ़ी गश्त, सूबे में हालिया आई बाढ़ से परेशान स्थानीय ग्रामीणों का आतंकियों को समर्थन ना मिलना, एलओसी के उस पार से आतंकियों की घुसपैठ की कोशिशों का नाकाम होना, उनके हथियारों, आईईडी का पकड़ा जाना, योजनाओं का पहले खुलासा होना, प्रशिक्षित आतंकियों का अभाव जैसे कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। सुरक्षा एजेंसियों को जम्मू-कश्मीर में 20 आईईडी का पता चला है, जिसमें से 7 को सेना ने जब्त किया है। इसमें 2 आईईडी फट गए थे और 5 सुरक्षित हैं। बीते दो महीने में सेना ने 7 एके-47, 6 बंदूकें, एक 303बंदूक , एक 12बोर, 25 ग्रेनेड बरामद किए हैं।

आतंकी हिंसा की पिछली वारदातें
जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2008 के चुनावों में तैनात रहे सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चुनावों के दौरान वहां आतंकवादियों द्वारा ज्यादा संख्या में रोजाना हिंसक वारदातें की जाती थी। इसकी तुलना में इस साल विधानसभा चुनावों में कुछ दिनों से राज्य में शांति बनी हुई है। आंकड़ों के हिसाब से साल 2008 के नवंबर-दिसंबर में हुए लोकसभा चुनाव में आतंकियों ने नवंबर महीने में हिंसा की कुल 15 वारदातें की और दिसंबर में 7 घटनाएं हुई। इस वर्ष 2014 में 1 से 16 नवंबर के बीच आतंकियों ने हिंसा की 16 वारदातों को अंजाम दिया है। 

अरूणाचल में जापान बनाएगा भारत की सड़कें

कविता जोशी.नई दिल्ली

केंद्र सरकार द्वारा पूर्वोत्तर में भारत-चीन नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ-साथ उसके इलाके में सामरिक सड़कों का निर्माण करने का ठेका जापान को दे दिया है। अब जापान यहां सेना द्वारा प्रस्तावित कुल 22 सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण करेगा। हरिभूमि की पड़ताल में मिली जानकारी के मुताबिक हाल ही में भारत सरकार ने जापान की जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जेआईसीए) के साथ इस बाबत समझौता किया है। जल्द ही जेआईसीए सड़कों का निर्माण कार्य शुरू कर सकती है। भारत-चीन के साथ करीब 3 हजार 488 किमी. लंबी सीमा साझा करता है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सेना ने अरूणाचल-प्रदेश में कुल 22 सामरिक सड़कों का प्राथमिक्ता के आधार पर निर्माण करने का प्रस्तााव मंत्रालय को सौंपा था। बीते दिनों हुई रक्षा मामलों की संसद की सलाहकार समिति की बैठक में भी पूर्वोत्तर सीमा के करीब होने वाले सड़कों के इस निमार्ण कार्य के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। अरूणाचल में इन 22 सड़कों में कुल 2 हजार किमी. का भूभाग शामिल होगा। इसकी शुरूआत राज्य की भूटान से लगी पश्चिमी-सीमा पर स्थित तवांग से होगी और इसका समापन अरूणाचल के पूर्व में हवाई के करीब होगा। याद रहे कि पूर्व में अरूणाचल की सीमा म्यांमार से लगी हुई है।

दो हजार किमी. के इस लंबे स्ट्रेच में यह सड़क अरूणाचल-प्रदेश के एलएसी से सटे हुए 11 महत्वपूर्ण इलाकों से गुजरेगी। इसमें पश्चिमी में तंवाग से लेकर पूर्वी कामिंग, अपर सुबानसीरी, पश्चिमी शियांग, अपर शियांग, दियाबांग वैली, देशाली, चागलागम, किबूथु, डोंग और हवाई से लगी पूर्वी सीमा के करीब होगा।

गौरतलब है कि बीते मई महीने में केंद्र में सत्तासीन हुई भाजपा सरकार चुनाव के समय और इसके बाद देश की पश्चिमी से लेकर पूर्वी सीमा तक सड़कों और अन्य जरूरी सामरिक ढांचे के निर्माण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करती रही है। यह उसके शीर्ष एजेंडे में भी शामिल है। चीन, अरूणाचल में सड़क बनाने के भारत के फैसले का विरोध कर रहा है। उसका तर्क है कि अरूणाचल-प्रदेश का उत्तरी इलाका उसके तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) का हिस्सा है। यहां दोनों देशों के बीच अंतरराष्टीय सीमा का निर्धारण नहीं है इसलिए वो इसे विवादित इलाका कहता है। विवादित इलाके में भारत कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकता। लेकिन भारत की दलील है कि यह सड़कें एलएसी के साथ-साथ लगे उसके अपने इलाके में बनाई जाएंगी जो कि सीमाओं की सुरक्षा के लिहाज से बेहद जरूरी है। कुछ दिन पहले भी चीन ने बयान दिया था कि उसे जापान द्वारा भारत में मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में सड़कें बनाने की सूचना मिली है लेकिन अरूणाचल के बारे में जानकारी नहीं है। 1997-98 में सीमाआें पर सामरिक ढांचे का निर्माण तत्कालीन एनडीए सरकार की प्राथमिक्ताओं में शामिल था।

पहली डीएसी की बैठक की अध्यक्षता करेंगे पर्रिकर

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर शनिवार को होने वाली रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की पहली बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस बैठक में रक्षा खरीद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण समझौतों को हरीझंडी दी जा सकती है। 10 नवंबर को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने पत्रकारों को दिए अपने पहले संबोधन में कहा था कि सशस्त्र सेनाआें की भावी आवश्यकताआें को पारदर्शिता और तेज गति के साथ पूरा किया जाएगा। इसके अलावा सेनाआें के लिए जरूरी आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाने और उसमें गति लाने की बात पर्रिकर ने की थी। रविवार को रक्षा मंत्री गुडगांव में इंफॉरमेंशन मैनेजमेंट एंड एनॉलिसिस सेंटर (आईएमएसी) को कमीशन करेंगे। डीएसी की बैठक में रक्षा मंत्री के अलावा तीनों सेनाओं के प्रमुख, राष्टीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए), रक्षा मंत्रालय में सचिव, रक्षा मंत्रालय में सचिव (उत्पादन) के अलावा अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे।

रक्षा मंत्रालय के विश्वसनीय सूत्रों ने कहा कि सोमवार को गोवा से लौटने के बाद रक्षा मंत्री ने थलसेनाध्यक्ष, वायुसेनाध्यक्ष और नौसेनाध्यक्ष से मुलाकात की और उनसे अपनी-अपनी मांगों की प्राथमिक्ता के आधार पर जानकारी देने को कहा। रक्षा मंत्री का अपने मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत का यह सिलसिला आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा। सूत्रों का कहना है कि डीएसी की बैठक में कई अहम प्रस्तावों को मंजूरी दी जा सकती है, जिसमें द.कोरियाई कंपनी से नौसेना के लिए 8 माइनस्वीपर जहाजों की खरीद का सौदा भी शालिम है।

गौरतलब है कि नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर.के.धोवन ने बीते सप्ताह कहा था कि अभी उनके पास मौजूद माइनस्वीपर जहाज बेहद पुराने हो चुके हैं। अब उन्हें नए जहाजों की नितांत आवश्यकता है। हालांकि इस सौदे में मध्यस्थ के शामिल होने के आरोपों के चलते यह लंबे समय से अटका पड़ा है। अटार्नी जनरल मुकूल रोहतगी ने भी इस बाबत रक्षा मंत्रालय को नकारात्मक टिप्पणी की है। इन तमाम तथ्यों को नए रक्षा मंत्री को ध्यान में रखकर इस सौदे पर विचार करना होगा। हालांकि रक्षा मंत्री पहले यह साफ कर चुके हैं कि वो रक्षा खरीद प्रक्रिया बेहद पारदर्शी और तेज बनाएंगे। यूपीए सरकार में रक्षा खरीद प्रक्रिया बेहद सुस्त रफतार से आगे बढ़ी जिसकी वजह से कई सौदे अभी केवल बातचीत के स्तर पर ही हैं।

कॉलेजों में समय पर पूरी हो दाखिला प्रक्रिया

कविता जोशी.नई दिल्ली

केंद्र सरकार द्वारा अगले साल की शुरूआत तक लाई जा रही राष्टÑीय शिक्षा नीति से पहले केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी इससे जुड़े तमाम हितधारकों से विस्तार से चर्चाएं कर रही हैं। इसमें विभिन्न कॉलेजों से आए छात्रों ने उन्हें दाखिला प्रक्रिया और परीक्षाएं समय पर पूरा करने का सुझाव दिया। छात्रों ने कहा कि देर तक चलने वाली दाखिला प्रक्रिया से कई बार उन्हें शैक्षणिक वर्ष के अंत में जाकर कॉलेज में एडमिशन मिलता है, जिससे उन्हें उस दौरान पूरे हो चुके एक या उससे अधिक सेमिस्टर को समझने में बेहद मुश्किल होती है। दरअसल एचआरडी मंत्री ने सोमवार को यहां मंत्रालय में देर शाम देशभर के कॉलेजों से आए करीब 30 छात्रों से सीधे बातचीत की। यह पहला मौका है जब वो छात्रों से इस तरह से सीधे मुखातिब हुई हैं। छात्रों की इन समस्याआेंं और सुझावों को मंत्री ने मंत्रालय को ई-मेल के जरिए भेजने को कहा जिससे संबंधित अधिकारी उन्हें देखकर उनका निदान निकाल सके।

छात्रों ने मंत्री को कहा कि डीयू से लेकर अन्य विश्वविद्यालयों में दाखिला प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे समय पर पूरा किया जाना चाहिए। कई बार कॉलेजों में आने वाली कई कटआॅफ सूचियों की वजह से एडमिशन मिलने में काफी देरी होती है और सिलेबस बीच में से शुरू करना पड़ता है। छात्रों ने परीक्षाआें के परिणाम भी समय पर जारी करने का सुझाव स्मृति ईरानी को देते हुए कहा कि इससे उन्हें आगे की तैयारी समय पर करने का मौका मिल जाएगा।

केंद्रीय मंत्री से छात्रों की करीब एक घंटे से अधिक चली इस वार्ता में शिक्षा से जुड़े 12 बेहद महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। इसमें दाखिला प्रक्रिया को समय पर पूरा किए जाने, उच्च-शिक्षा में स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने, रोजगार के अवसरों में इजाफा, विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करना, पाठ्यक्रम सुधार, छात्रवृतियां, शोध-कार्य, शारिरिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए कॉलेजों में ढांचागत सुविधाआें को बेहतर करना, सेमिस्टर सिस्टम समय पर पूरा करने, बीच में पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को दूसरे संस्थान से दोबारा पढ़ाई शुरू करने का मौका देना जैसे मुद्दे शामिल थे। इस बातचीत में राजधानी दिल्ली से लेकर राजस्थान, त्रिपुरा से आए छात्रों ने भाग लिया। इसमें दिल्ली काएलएसआर, आईपी, इग्नु, सेंट स्टीफन और अम्बेडकर कॉलेज, इंडियन इंस्ट्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट एंड टेक्निकल एजूकेशन (जनकपुरी) के छात्र-छात्राआें ने भाग लिया। इसके अलावा एनआईटी अगरतला और राजस्थान से आए कॉलेज के छात्रों ने भी अपनी समस्याएं और सुझाव मंत्री के सामने रखे।

हादसे से जुड़ी सुखोई की स्क्वाड्रन का दौरा करेंगे रूसी वायुसेनाध्यक्ष

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली
बीते महीने 14 अक्टूबर को पुणे के पास दुर्घटनाग्रस्त हुए सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान की स्क्वाड्रन (बेड़े) का जल्द ही रूस के वायुसेनाध्यक्ष कर्नल जनरल विक्टर निकोलविच बांड्रिव दौरा करेंगे। पुणे में वायुसेना का महत्वपूर्ण लोहेगांव वायुसैन्य अड्डा है और हाल में दुर्घटनाग्रस्त हुआ विमान भी यहां तैनात सुखोई-30एमकेआई विमानों की स्क्वाड्रन का ही हिस्सा था। हादसे के वक्त यह विमान लोहेगांव से अपनी निधार्रित प्रशिक्षण उड़ान पर था। एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 विमान होते हैं। अभी वायुसेना के पास 200 सुखोई विमान हैं। हादसे के बाद ग्राउंड हुए सुखोई विमानों के देश में तैनात बेड़ों में शामिल सभी विमानों को बीते सप्ताह शुक्रवार को ही वायुसेना ने उनकी नियमित उड़ान भरने की अनुमति दी है।

गौरतलब है कि भारत ने रूस से ही सुखोई विमान खरीदे हैं, जिनमें 272 सुखोई30एमकेआई विमानों की खेप भारत को भेजने के लिए समझौता किया गया है, जिसमें से 200 विमान इस साल अगस्त तक वायुसेना में शामिल हो चुके हैं और 72 विमान आने बाकी हैं। हादसे के बाद रूस से भी अधिकारियों का एक बड़ा दल भारत में था और उन्होंने भी वायुसेना और अन्य भागीदार एजेंसियों द्वारा चलाई जा रही जांच में पूरा सहयोग किया। रूसी वायुसेनाध्यक्ष भारत के चार दिवसीय दौरे पर हैं। जिसमें वो एयरफोर्स अकादमी, हैदराबाद जाएंगे और वहां इंस्ट्रक्टर और प्रशिक्षुआें से मुलाकात करेंगे। इसके अलावा उनका नेशनल डिफेंस अकादमी जाने का भी कार्यक्रम हैं। इसके अलावा वो पंजाब के हलवारा वायुसैन्य अड्डे पर चल रहे इंद्रा अभ्यास फेज-2 में भी
शिरकत करेंगे।

उधर रूसी वायुसेनाध्यक्ष ने सोमवार को रक्षा मंत्री और वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा से मुलाकात की। अगले महीने दिसंबर में भारत और रूस के बीच सामरिक भागीदारी को लेकर अहम बातचीत होगी जिसमें रूसी राष्टÑपति ब्लादिमिर पुतिन समेत रूस से अधिकारियों का बड़ा प्रतिनिधिमंडल भारत आएगा। रूस के साथ भारत को आने वाले दिनों में कई अहम समझौते करने हैं, जिनमें आईजेटी इंजन, मिग-29 अपग्रेड, मी-17वी5 और मिडियम लिफट हेलिकॉप्टर (एमएलएच) शामिल हैं। इसके अलावा पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों (एफजीएफए) का संयुक्त रूप से निर्माण करने का समझौता और मल्टीरोल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफट पर भी बातचीत होनी है।

सीसीई से त्रस्त बच्चों की मदद को आगे आई शिक्षा मंत्री

कविता जोशी.नई दिल्ली

पिछली यूपीए सरकार द्वारा तैयार किए गए कॉनटीन्यूअस एंड काम्प्रीहेंसिव ऐवेल्युशन सिस्टम (सीसीई) को लेकर बच्चों को खासी नाराजगी है। वो इस सिस्टम को अपने ऊपर एक तरह के दवाब के रूप में देखते हैं और उन्हें लगता है कि इससे उनके विकास में कोई योगदान नहीं हो रहा है। यहां जानकारी यहां सोमवार को अंतरराष्टÑीय विद्यार्थी दिवस के अवसर पर दिल्ली और एनसीआर के कुछ चुनिंदा स्कूलों के बच्चों से सीधे मुखातिब हुई केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की बातचीत के दौरान सामने आई। बातचीत के अंत में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बच्चों को विश्वास दिलाया कि वो उनके सुझावों को जल्द होने वाली केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की बैठक में शिक्षा संबंधी मामलों के हितधारकों के सामने रखेंगी। बैठक में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, राजनीतिक दलों के सांसद, शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञ, सलाहकर, तकनीकी शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों समेत मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे।

बच्चों ने सीसीई सिस्टम को निराशा पैदा करने वाले बताया। उनका सामूहिक रूप से यह कहना था कि इसके जरिए बच्चों को दिए जा रहे ग्रेड्स मार्क्स केवल 10वीं कक्षा तक ही होते हैं उसके बाद हमें कॉलेज की पढ़ाई यानि दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिए बड़ी-बड़ी परसेंटेज लाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। बच्चों का तर्क था कि ग्रेडिंग सिस्टम से बच्चों में आपस में हीन भावना पैदा हो रही है जैसे एक बच्चा जिसके 80 फीसदी नंबर आए उसे भी ए1 ग्रेड दिया गया और जिसके 90 फीसदी नंबर आए उसे भी ए1 ग्रेड मिला। ऐसे में आपस में दोनों के बीच का भेद समाप्त हो गया। 11वीं कक्षा के बच्चों ने शिक्षा मंत्री को बच्चों ने कहा कि पढ़ाई के साथ प्रैक्टिलों की बड़ी संख्या उनकी किताबी पढ़ाई में बाधक है। प्रैक्टिल में बच्चे केवल इंटरनेट से केवल कट एंड पेस्ट करते हैं सीखते कुछ नहीं हैं। लेकिन फिर भी वो सिलेबस का हिस्सा हैं। एनसीईआरटी की किताबों को लेकर भी बच्चे नाराज नजर आए। उनका कहना था कि कई किताबों में तथ्यात्मक गलती है और कई बार टीचर एनसीईआरटी छोड़कर बाकी किताबों को पढ़ने के लिए कहते हैं।

इस संवाद में शिक्षा मंत्री ने बच्चों से प्रैक्टिकलों की समस्या, एनसीईआरटी की किताबों, मूल्य आधारित शिक्षा, कोचिंग संस्थानों की जरूरत, वोकेशनल विषयों पर उनकी राय पूछी। बच्चों ने लगभग सभी मसलों पर बारीकी से अपने अनुभव मंत्री के साथ साझा किए। जिसके अंत में मंत्री ने एचआरडी मंत्रालय में उनकी अतिरिक्त सचिव नुपूर को यह जिम्मेदारी दी कि वो बच्चों द्वारा इन मुद्दों पर आए सुझावों का विश्लेषण करें। साथ ही मंत्रालय में संयुक्त शिक्षा सचिव को भी इस बाबत विश्लेषण करने को कहा। उन्होंने बच्चों से एक नया विषय हाईस्कूल और सैकेंडरी शिक्षा के स्तर पर शामिल करने के लिए भी सुझाव देने को कहा। बैठक में डीपीए द्वारका और इंद्रापुरम, मॉर्डन स्कूल बाराखंबा रोड, टयुलिप इंटरनेशनल स्कूल, कमल मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल के बच्चे शामिल थे।

रविवार, 16 नवंबर 2014

गाड़ियों के बढ़ती संख्या से गंभीर खतरा बनता वायु-प्रदूषण

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

देश में तेजी से बढ़ रही वाहनों की रफतार से वायु प्रदूषण चौंकाने वाले हानिकारक स्तर तक जा पहुंचा है। इससे वातावरण से लेकर मानव स्वास्थ्य, खेती और ग्लेशियरों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। बीते दिनों द एनर्जी एंड रिर्सोस इंस्ट्टीट्यूट (टेरी) ने ‘आॅप्शन टू रिडियूज रोड ट्रांसपोर्ट पॉल्यूशन इन इंडिया’ नामक एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की जिसमें भारत में तेजी से बढ़ रही वाहनों की रμतार और उनसे निकलने वाले हानिकारक धुंए से होते हुए वायु-प्रदूषण में कमी लाने के लिए उपाए सुझाए गए। टेरी के महानिदेशक डॉ.आर.के.पचौरी ने नई सरकार से आग्रह किया है कि वो उनकी रिपोर्ट को स्वीकार करें और इसके हिसाब से वाहनों के लिए एक व्यापक स्वच्छ ईंधन के मानकों का खाका देश के सामने जल्द प्रस्तुत करें। इससे वायु-प्रदूषण की बढ़ती रफतार पर लगाम लगाई जा सके।

रिपोर्ट में वैज्ञानिक आधार पर वाहनों से बढ़ रहे हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने पर जोर दिया गया है। देश में इससे निपटने की तकनीक मौजूद है केवल आवश्यकता उसे तत्काल प्रशासन द्वारा देश के शहरों में लागू करने की है। वायु-प्रदूषण से लड़ने के लिए भारत और केलिर्फोनिया ने द इंडिया-केलिफोर्निया एयर पॉल्यूशन मीटिगेशन कार्यक्रम तैयार किया है। इसमें विश्व बैंक वित्तीय भागीदार होगा। आंकड़ों के हिसाब से भारत में वाहनों की संख्या 1991 में 20 मिलियन, 2011 में 140 मिलियन हो गई है। वर्ष 2030 तक वाहनों की संख्या 400 मिलियन हो जाने की संभावना है। वाहनों की बढ़ी हुई संख्या से पर्यावरण के लिए हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में बहुत इजाफा होगा। ट्रक उत्सर्जन की रμतार को बढ़ाने में ज्यादा योगदान करेंगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक लोगों में बीमारियां बढ़ाने वाले कारकों में मृत्युकारक के रूप में वायु-प्रदूषण 5वें स्थान पर और स्वास्थ्य बोझ में इसका नबंर 7वां है। इसकी वजह से करीब 4 लाख 27 हजार लोगों की जान जा सकती है। दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारत के हैं और इसमें राजधानी दिल्ली शीर्ष पर है। केलिफोर्निया में इस तरह की समस्या 1940 और 50 के दशक में थी। बदलाव के लिए उन्होंने स्वच्छ वाहन मानकों का निर्धारण किया और इससे र्इंधन को कई गुना साफ किया गया। आज हालत यह है कि केलिफोर्निया में गडियां 99 फीसदी स्वच्छ र्इंधन के मानक पर चल रही हैं और डीजल चालित वाहनों में यह पैमाना 98 फीसदी है। साथ ही वहां वाहन उद्योग निरंतर प्रगति कर रहा है। भारत को भी स्वच्छ र्इंधन मानकों को जल्द ही लागू करना चाहिए।

जल, थल, नभ हर तरफ से रहना होगा अलर्ट

कविता जोशी
दक्षिण-एशिया में तेजी से बदल रहे भू-राजनैतिक परिदृश्य ने भारत के सामने अपनी सीमाओं की सुरक्षा को हर स्तर पर मजबूत बनाए रखने की चुनौती खड़ी कर दी है। दुश्मन यह जानता है कि भारत में दहश्त फैलाने की सीधी और आसान कड़ी जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरती है। यहां चलने वाली एक गोली हर हिंदुस्तानी के खून में उबाल लाने के लिए काफी है। राज्य में कुछ रोज बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में पाक सेना समेत आतंकियों को चुनाव के दौरान सूबे समेत देश के बाकी इलाकों की आबोहवा में जहर घोलने का सुनहरा अवसर मिल गया है, जिसे वो किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहते। पाक फौज और आतंकियों की खीज के पीछे बीते 7 महीनों से भारत की सत्ता पर काबिज हुई नई सरकार की रणनीति भी है, जिसमें उसने बंदूक के साए में कोई भी बात करने से साफ इंकार कर दिया है। इसकी ताजातरीन मिसाल बीते अगस्त महीने में पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द करके पेश की गई। इससे बौखलाए पाक ने जम्मू- कश्मीर सीमा पर कई दिनों तक गोलीबारी की,कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्‍ट की दहलीज पर ले जाकर उसका अंतरराष्टीयकरण किया लेकिन उसके साथ खिसयानी बिल्ली खंबा नौचे वाले किस्से के अलावा और कुछ नहीं हुआ। इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तानी सेना ने अपने रेंजरों और पाक समर्थित आतंकियों को जम्मू-कश्मीर से लेकर भारत के बाकी इलाकों में हिंसा की चिंगारी भड़काने का हुक्म सुना दिया है। पाक फौज ने इसका आगाज जम्मू-कश्मीर से लगी 984 किमी.लंबी भारत-पाक सीमा के हर कौने पर बंदूकों और मोटार्रों से गोले बरसाकर करना शुरू कर दिया है।

राज्य में कई जगहों पर आतंक का नया पर्याय बने आईएसआईएस को समर्थन देते युवाओं के प्रदर्शन और इसके बाद कई राज्यों से युवाआें का आईएसआईएस संगठन में भर्ती के लिए इराक और सीरिया की ओर रूख करना पाक के लिए खुशी तो भारत सरकार के माथे पर चिंता की लंकीरें खींचने के लिए काफी हैं। खौफ पैदा करने वाली यह घटनाएं यहीं नहीं रूकी बल्कि यह सिलसिला देश की बाकी हिस्सों में भी निबार्ध गति से जारी है। भारत के पूर्वी तट पर बसे कोलकात्ता बंदरगाह से अक्टूबर में नौसेना सप्ताह के सामान्य कार्यक्रम के लिए वहां पहुंचे नौसेना के दो जंगी युद्धपोतों को तालिबान समर्थित आतंकी हमले की आशंका के चलते तुरंत हटा लिया गया, कोलकात्ता में ही बांग्लादेश सीमा से सटे सुदूर इलाकोंं में बांग्लादेश समर्थित आतंकियों द्वारा बम बनाए जाने की घटनाआें का बड़ा खुलासा भी सुरक्षा एजेंसियों समेत सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। असम से लेकर पूर्वोत्तर में जारी हिंसक घअनाओं में इजाफा भी सिरदर्द बढ़ा रहा है। यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि करीब छह साल पहले 2008 में देश की संप्रभुता को तार-तार करने वाला बड़ा आतंकवादी हमला मुंबई के रास्ते जल मार्ग से किया गया था। इन सबके बीच अफगानिस्तान में बदल रहे हालात भी भारत की सीमाओं के बाहर बन रही गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं। इस साल के अंत तक वहां से अमेरिका समर्थित नाटो देशों की सेनाओं की वापसी होनी है, जिसके बाद अफगानिस्तान की धरती पर सालों से अपनी लड़ाका प्रवृतियों के लिए बदनाम तालिबान आतंकवादियों के रडार पर सबसे पहले कश्मीर और फिर पूरा भारत आ जाएगा। यह मसला भारतीय सेना से लेकर सरकार के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। सामरिक मामलोंं के जानकार कहते हैं कि ओसामा बिन लादेन के खिलाफ करीब 80 हजार नाटो देशों फौज अफगानिस्तान में डेरा डाले हुए थी जिसमें से दिसंबर 2014 तक 60 हजार फौज की वापसी की जाएगी और बाकी बची 40 हजार फौज अफगानिस्तान और उसकी राजधानी काबुल के आसपास मौजूद सामरिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए कुछ समय तक फिलहाल वहीं तैनात रहेगी।

कुछ दिन पहले जमात-उद-दावा का मुखिया और मुंबई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड हाफिज सईद राजस्थान सीमा से सटे पाक के गांवों से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चुनावों से पहले हिंसा बढ़ाने की आतंकियों से अपील करता नजर आया। कश्मीर में 25 नवंबर से चुनाव होने हैं और उससे पहले आतंकी और पाक फौज का आतंक का नापाक खेल शुरू हो चुका है जिसका मकसद राज्य के माहौल को खौफजदा करके शांतिपूर्ण चुनाव ना होने देना और जम्मू-कश्मीर की आवाम को चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने से रोकना है। सीमा पर सीजफायर उल्लंधन और चुनावों से पहले हिंसात्मक धटनाएं बढ़ाने की तस्दीक यह आंकड़ें आसानी से कर देते हैं। इनमें इस वर्ष पाकिस्तानी सेना की ओर से जम्मू-कश्मीर में पड़ने वाली 924 किमी. लंबी सीमा पर जनवरी से लेकर अक्टूबर तक 236 बार सीजफायर समझौते का उल्लंधन कर भारतीय सेनाआें की चौकियों समेत घनी आबादी वाले आरएस पुरा, सांबा, तंगदार, केरन, नौगाम, उरी, पूंछ, मेंढर के इलाकों पर भारी भरकम र्मोटार और गोलियां बरसाई गई। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन करना पड़ा। गोलीबारी की आड़ में आतंकियों की घुसपैठ भी जम्मू-कश्मीर में जारी थी। खुफिया ब्यूरो की रिर्पोट की माने तो राज्य में चुनाव से पहले करीब 194 विदेशी आतंकी और 268 स्थानीय आतंकी मौजूद हैं। आतंकियों द्वारा हिंसा की करीब 46 घटनाएं हो चुकी हैं।

सेना ने अपने अभियान में 79 आतंकवादियों को मार गिराया है। चुनाव से पहले राज्य का माहौल खराब करने में आतंकवादियों ने बीते 12 नवंबर को कुलगाम से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी गुलाम हसन जरगर को रात में उनके घर पहुंचने पर जानलेवा हमला किया जिसमें वो बाल बाल बचे। आतंकियों की धरपकड़ के लिए सेना ने इसके अगले दिन 13 नवंबर से कुलगाम में अभियान चला रहा है। इतना ही नहीं कुलगाम के आसपास के गांवों में आतंकियों ने ग्रामीणों से चुनाव में वोट ना डालने के धमकी भरे पोस्टर भी चस्पा कर दिए हैं जिन्हें सेना ने हटा दिया है लेकिन लोगों में खौफ पैदा करने के लिए यह काफी है। इन सबके उलट 3 नवंबर को अमृतसर में अटारी-वाघा सीमा पर ध्वज उतारने (फलैग लोवरिंग) के समारोह के दौरान वाघा बार्डर पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें पाक के निर्दोंष 61 नागरिक मारे गए। हमले में 10 महिलाएं, 8 बच्चे और 3 सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे। कश्मीर समेत देश के बाकी हिस्सों से धधक रही आतंक की इस चिंगारी के बीच कश्मीर समेत जल, नभ और थल की सुरक्षा को चाक-चौबंद बनाए रखना बेहद जरूरी है जिससे आतंकियों के मंसूबे किसी भी हाल में कामयाब ना हो सके।

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

गोवा में रक्षा मंत्री ने लिया पहला ‘गार्ड आॅफ आॅनर’

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शुक्रवार को नौसेना के आईएनएस हंसा हवाईअड्डे पर अपना पहला गार्ड आॅफ आॅनर का सम्मान लिया। पर्रिकर बीते 12 नवंबर यानि बुधवार से गोवा के दौरे पर हैं, जिसमें वो नौसेना और तटरक्षकबल के सामरिक और रणनीतिक ठिकानों का दौरा कर मंत्रालय की कार्यप्रणाली को विस्तार से समझने की कोशिशों में लगे हुए हैं। रक्षा मंत्री का यह दौरा रविवार 16 नवंबर को समाप्त होगा और रविवार की रात को ही वो राजधानी दिल्ली लौटेंगे।

यहां रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक सुबह करीब 11 बजे रक्षा मंत्री आईएनएस हंसा अड्डे पर पहुंचे। यहां नौसेना की पश्चिमी कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल अनिल चौपड़ा और रियर एडमिरल बी.एस परहार (एनएम, फलैग आॅफिसर कमांडिंग गोवा एरिया) ने उनका स्वागत किया। इसके बाद उन्हें हंसा नौसैन्य अड्डे पर गार्ड आॅफ आॅनर का सम्मान दिया गया। रक्षा मंत्री बनने के बाद पर्रिकर का यह पहला गार्ड आॅफ आर्नर था जो कि उनके अपने ही गृह राज्य गोवा में लिया। रक्षा मंत्री बनने के बाद गोवा में पर्रिकर बीते 15 वर्षों से मुख्यमंत्री थे।

गोवा में रक्षा मंत्री ने नौसैन्य अड्डे आईएनएस हंसा का भ्रमण करने से पहले तटरक्षकबल के अधिकारियों के साथ भी बातचीत की। इसके अलावा गोवा में रक्षा मंत्री का गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) देखने और उसकी कार्यप्रणाली का गहन अध्ययन विश्लेषण करने की योजना है। पश्चिमी नौसेना की कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल अनिल चौपड़ा ने रक्षा मंत्री को नौसैन्य अभियानों और उनकी गति, तटीय सुरक्षा से जुड़े मामलों से लेकर गोवा में नौसेना की भावी विकास योजनाओं के बारे में अवगत कराया।

देश के 36वें रक्षा मंत्री के तौर पर हाल में कार्यभार संभालने वाले पर्रिकर ने कहा कि सशस्त्र सेनाओं के लिए सैन्य सामग्री के अधिग्रहण को लेकर तेज फैसले करने का सरकार ने फैसला किया है। वो इस तेज गति और खरीद से लेकर अधिग्रहण प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर पारदर्शिता को बनाए रखेंगे।

सुखोई विमानों के बेड़े ने किया उड़ान का आगाज

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान सुखोई-30एमकेआई विमान के बेड़े में शामिल जहाजों ने शुक्रवार से अपनी उड़ान की शुरूआत कर दी है। बीते महीने 14 अक्टूबर को पुणे के पास एक सुखोई-30 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद वायुसेना ने अपने बेड़े में शामिल सभी सुखोई विमानों के उड़ान भरने (फलीट ग्राउंड करना) पर रोक लगा दी थी। गौरतलब है कि अभी वायुसेना के पास कुल 180 सुखोई-30एमकेआई विमानों का बेड़ा है जो कि सुखोई विमानों की 10 स्क्वाड्रन से मिलकर बनता है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में 18 विमान होते हैं।

यहां राजधानी में आयोजित दो दिवसीय ‘इंडियन एयर फोर्स प्लेसमेंट फेयर 2014’ कार्यक्रम से इतर पत्रकारों के सवालों के जबाव में वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा कि पुणे में हुए हादसे के बाद सुखोई विमानों के उड़ान भरने पर लगी रोक अब हट गई है। विमानों ने आधिकारिक रूप से उड़ान भरना शुरू कर दिया है। वायुसेनाप्रमुख ने कहा कि इस हादसे के बाद वायुसेना, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और रूस के विशेषज्ञों के संयुक्त जांच दल ने बेड़े में शामिल प्रत्येक विमान की बारीकी से जांच की। यह जांच पूरी तरह से संतोषजनक है, जिसके बाद ही हमने विमानों को उड़ान भरने की अनुमति दी है। हालांकि इस बाबत वायुसेना की ओर से गठित की गई जांच यानि कोर्ट आॅफ इंक्वारी (सीओआई) की रिपोर्ट आगामी एक सप्ताह के भीतर आएगी जिसमें उक्त हादसे से जुड़े कारणों का पूरी तरह से खुलासा हो जाएगा।

गौरतलब है कि हादसे के बाद कोर्ट आॅफ इंक्वारी की शुरूआती जांच में यह बात सामने आई थी कि यह हादसा विमान में आई गंभीर तकनीकी खामी की वजह से हुआ है। इसमें मानव त्रृटि जैसी कोई बात नहीं है। वर्ष 2009 ने लेकर अब तक 5 सुखोई विमान हादसे का शिकार हुए हैं। पहला हादसा 30 अप्रैल 2009 को राजस्थान के पोखरण रीजन में हुआ था। जिसमें एक पायलट की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद वायुसेना ने सुखोई विमानों के बेड़े पर तीन सप्ताह तक उड़ान भरने पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद 30 नवंबर 2009 को जैसलमेर से 40 किमी. की दूरी पर स्थित जाटेगांव में एक सुखोई विमान हादसे का शिकार हुआ जिसके बाद सुखोई विमानों के पूरे बेड़े के उड़ान भरने पर रोक लगा दी गई। तीसरा हादसा 13 दिसंबर 2011 को पुणे से 20 किमी. दूर वाड़ी भोलाई गांव के पास हुआ। चौथा हादसा 19 फरवरी 2013 को राजस्थान की पोखरण रेंज में आयरन फिस्ट अभ्यास के पूर्वाभ्यास के दौरान हुआ। इसके बाद बीते 14 अक्टूबर 2014 को पुणे के पास पांचवा सुखोई विमान हादसे का शिकार हुआ जिसकी जांच रिपोर्ट आनी बाकी है।

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

मच्छल एकांउटर पर अंतिम फैसला आने में समय लगेगा!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

बीते तीन नवंबर को जम्मू-कश्मीर के छत्तरगाम में सेना द्वारा दो निर्दोष युवकों को मारने की घटना का आक्रोश अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि राज्य में सेना द्वारा किए गए एक पुराने एकांउटर का मामला गरमा गया है। चार साल पहले 2010 में राज्य के मच्छल के रहने वाले तीन युवकों का सेना ने पाकिस्तानी आतंकवादी बताकर एकांउटर किया था जिसपर सैन्य अदालत (समरी जनरल कोर्ट-मार्शल) ने सेना के 2 अधिकारियों और तीन जवानों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा की सिफारिश की है। गौरतलब है कि छत्तरगाम आॅपरेशन के बाद राज्य में सेना के खिलाफ हुए कड़े विरोध-प्रदर्शन के बाद जम्मू-कश्मीर स्थित सेना की उत्तरी कमांड के मुखिया लेफिटनेंट जनरल डी.एस.हुड्डा ने इस आॅपरेशन को लेकर खेद प्रकृट किया था और दो निर्दोष युवकों की मौत के मामले की नैतिक जिम्मेदारी ली थी।

यहां सेना मुख्यालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि एकांउटर के बाद हुई जांच में सेना के पांच लोगों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा की सिफारिश की है। लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला आने में कुछ समय और लगेगा। उम्रकैद की सिफारिश को सेना की उत्तरी कमांड के प्रमुख लेंफिनेंट जनरल डी.एस.हुड्डा के पास अंतिम निर्णय लेने के लिए भेजा जाएगा। सूत्र बताते हैं कि सेना को इस मामले में अंतिम फैसला लेने में करीब दो महीने का समय और लग सकता है। दरअसल कमांड के मुखिया को यह अधिकार होता है कि वो सैन्य अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रख सकते हैं या फिर उसे कम भी सकते हैं। सेना के जिन पांच कर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है उनमें कर्नल दिनेश पठानिया, कैप्टन उपेंद्र, हवलदार देवेंद्र, लांसनायक लखमी,लांसनायक अरून कुमार शामिल हैं।

2010 में जब यह एकांउटर हुआ था तब सेना ने कहा कि उसने मच्छल सेक्टर में तीन आतंकवादियों को मारा है जो कि भारत-पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करके राज्य में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे। बाद में इन लोगों की पहचान शहजाद अहमद खान, रियाज अहमद लोन और मोहम्मद शफी लोन के रूप में हुई थी। यह तीनों बारामूला जिले के निवासी थे। मारे गए लोगों के परिजनों ने दावा किया था कि सेना तीनों युवकों को नौकरी और धन का प्रलोभन देकर सीमावर्ती क्षेत्र में ले गई थी और बाद में उन्हें आतंकवादी बताकर मारा डाला।

घटना के बाद कश्मीर घाटी में व्यापक प्रदर्शन हुए थे, जो 2010 में अक्टूबर के मध्य तक चले थे। मच्छल घटना के बाद के पांच महीनों में सेना की कार्रवाई में करीब 120 लोग मारे गए थे।

फ्रांसिसी नौसेनाप्रमुख का भारत दौरा शुरू

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

फ्रांसिसी नौसेनाप्रमुख एडमिरल बनॉर्ड रोगल के पांच दिवसीय भारत दौरे की गुरुवार से शुरूआत होगी। सुबह फ्रांसिसी नौसेनाध्यक्ष इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर पुष्पगुच्छ अर्पित करेंगे और इसके बाद उन्हें साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के लाउंज में गार्ड आॅफ आॅर्नर का सम्मान दिया जाएगा। यहां नौसेना मुख्यालय में मौजूद नौसेना के सूत्रों ने कहा कि यहां फ्रांसिसी नौसेनाध्यक्ष रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर समेत नौसेनाप्रमुख एडमिरल आरके धोवन, वायुसेनाप्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा और थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग से मुलाकात करेंगे।

फ्रांसिसी नौसेनाध्यक्ष अपनी भारत यात्रा के दौरान गोवा और मुंबई का दौरा भी करेंगे। मुंबई में एडमिरल रोगल मुंबई डाकयार्ड लिमिटेड (एमडीएल)जाएंगे। इसके अलावा वो रक्षा मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुखातिब होंगे। फ्रांसिसी नौसेनाप्रमुख का भारत दौरा 17 नवंबर को समाप्त हो जाएगा।

पाकिस्तान-चीन सीमा पर मौजूद रणनीतिक ठिकानों का दौरा करेंगे पर्रिकर

कविता जोशी.नई दिल्ली

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सोमवार को मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद तूफानी रफतार से मंत्रालय से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी का गहन अध्ययन-विश्लेषण करना शुरू कर दिया है। जल्द ही रक्षा मंत्री पाकिस्तान और चीन से लगी भारत की बेहद संवेदनशील मानी जानी वाली पश्चिमी और पूर्वी सीमा का दौरा करेंगे। इसमें पाक संग लगी पश्चिमी सीमा पर सियाचिन और करगिल जैसे दो बेहद अहम सामारिक ठिकानों का दौरा शामिल होगा और पूर्वोत्तर में चीन के साथ लगी सीमा पर अरूणाचल-प्रदेश और उससे लगे अन्य सामरिक ठिकानों का जायजा रक्षा मंत्री लेेंगे। गौरतलब है कि बीते 23 अक्टूबर को दीवाली के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियाचिन का दौरा किया था और वहां तैनात जवानों की हौसलाअफजाई की थी। गोवा से रक्षा मंत्री रविवार 16 नवंबर को राजधानी लौटेंगे।

रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार रोजाना सुबह साढ़े आठ बजे मंत्रालय पहुंचकर रक्षा मंत्री अपने काम में लग जाते हैं। इसी कड़ी में बुधवार को उन्होंने कोस्टगार्ड के अधिकारियों के साथ सुबह एक मैराथन बैठक की और उसके तुरंत बाद वो गोवा के लिए रवाना हो गए। यहां वो गोवा शिपयार्ड जाएंगे और राज्य में नौसेना और कोस्टगार्ड के तमाम महत्वपूर्ण ठिकानों का भी दौरा करेंगे।

सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद रक्षा मंत्री की योजना देश के हर हिस्से में थलसेना, वायुसेना, नौसेना और कोस्टगार्ड के मौजूदा रक्षात्मक और रणनीतिक ठिकानों का दौरा करने है। इससे उन्हें मंत्रालय और उसकी कार्यप्रणाली को समझने आसानी होगी। इसके अलावा वो अंडमान-निकोबार में मौजूद सशस्त्र सेनाआें की संयुक्त कमांड का भी दौरा करेंगे। गौरतलब है कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने मंगलवार को थलसेना के सैन्य अभियान महानिदेशक कार्यालय (डीजीएमओ), नौसेना के वॉररूम और वायुसेना के वायुभवन स्थित मुख्यालय का दौरा कर अधिकारियों से सेनाआें से जुड़े रणनीतिक और सामरिक मसलों पर विस्तार से चर्चा की। गोवा में नौसेना का हंसा नौसैन्य अड्डा है, जिसमें नौसेना की शोर बेस्ड टेस्ट फैसेलिटी है। इसके अलावा हंसा अड्डे पर नौसेना की मिग-29के लड़ाकू विमानों का बेड़ा, कामोव हेलिकॉप्टरों की स्क्वाड्रन समेत कुछ ट्रेनिंग विमान भी मौजूद हैं। गोवा में कोस्टगार्ड के हेलिकॉप्टरों की 800 स्क्वाड्रन भी तैनात है जिसका रक्षा मंत्री दौरा करेंगे। 

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

एक बटन के क्लिक पर मिलेगी कॉलेज की पूरी जानकारी

कविता जोशी.नई दिल्ली

बारहवीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद छात्रों के मन में स्कूल से निकलकर कॉलेज में एडमिशन लेने के सपने तैरने लगते हैं। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) द्वारा एडमिशन की प्रक्रिया के आगाज के साथ ही शुरू हो जाती है छात्रों की अपने पंसदीदा कॉलेज के प्रोस्पैक्टस को स्टडी करने की मशक्कत। लेकिन अब इस मशक्कत से छात्रों को निजात मिलेगी क्योंकि 11 नवंबर को राष्‍टीय शिक्षा दिवस के अवसर पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ‘नो आॅफ योर कॉलेज र्पोटल’ नामक योजना की शुरूआत करने जा रहा है। इसमें एडमिशन लेने से पहले छात्रों को कंप्युटर पर सिर्फ एक बटन की क्लिक पर अपने पंसदीदा कॉलेज के बारे पूरी जानकारी विस्तार से दी जाएगी।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया के ‘नो आॅफ योर कॉलेज र्पोटल’ नामक योजना से छात्रों को कंप्युटर पर सिर्फ एक बटन की क्लिक पर पूरी जानकारी मिल जाएगी। इसमें कॉलेज की फैकेल्टी के सदस्यों, पुस्कालय सहित तमाम जरूरी बिंदुआें के बारे में जानकारी दी जाएगी। राष्‍टीय शिक्षा दिवस के मौके पर एचआरडी मंत्रालय तीन और योजनाआें की भी शुरूआत करने जा रहा है, जिसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानि एआईसीटीई द्वारा तैयार की गई स्क्लिस क्रेडिट फ्रेमवर्क योजना, सक्षम और प्रगति नामक दो छात्रवृति योजनाएं शुरू की जाएंगी। इसके अलावा 5 मिनट की लघु फिल्म उन्नत भारत भी दिखाई जाएगी।

कार्यक्रम का उद्घघाटन राष्‍टपति प्रणब मुखर्जी करेंगे और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जूबिन ईरानी करेंगी। कार्यक्रम में एचआरडी मंत्रालय में उच्च-शिक्षा सचिव सत्यनारायण मोहंती, स्कूली शिक्षा सचिव डॉ.आर.भट्टाचार्या समेत मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे।

रक्षा खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी और तेज बनाएंगे: पर्रिकर

कविता जोशी नई दिल्ली

रक्षा मंत्रालय को आखिरकार छह महीने बाद मनोहर पर्रिकर के रूप में पूर्णकालिक रक्षा मंत्री मिल गया है। सोमवार को उन्होंने लखनऊ से राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र भरने के बाद करीब शाम चार बजे पर्रिकर ने रक्षा मंत्री के तौर पर कार्यभार संभाला और पत्रकारों को दी अपनी पहली प्रतिक्रिया में सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने मुझपर विश्वास जताया और इस बेहद संवेदनशील मंत्रालय की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। गाौरतलब है कि पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार था। बीते तीन दशकों से गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी ईमानदार छवि और एक कुशल प्रशासक माने जाने वाले पर्रिकर ने सशस्त्र सेनाआें के प्रमुखों को आश्वस्त करते हुए कहा कि रक्षा उपकरणों की खरीद प्रक्रिया न केवल पारदर्शी होगी बल्कि वो तेज भी होगी।

नए रक्षा मंत्री ने मंत्रालय में कार्यभार संभालने के बाद थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग,नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन और वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल अरूप राहा और मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मुलाकात की। बीते दिनों विशाखापट्टनम में डूबे नौसेना के टॉरपीडो रिकवरी वेसल टीआरवी अल्फा-72 जहाज को लेकर रक्षा मंत्री ने कहा कि मुझे भी इस मामले को लेकर बराबर चिंता है। इससे पहले नौसेनाप्रमुख एडमिरल धोवन का कहना है कि टीआरवी ए-72 हादसे में लापता चार लोगों को ढूंढने का अभियान सप्ताह भर और चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जहाज में पानी भरने से क्यों नहीं रोका जा सका इसकी गहन पड़ताल की जाएगी।

रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ संबंधों को लेकर पूछे गए सवाल के जबाव में कहा कि पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बनाए रखना एक बेहद संवेदनशील मामला है। देश की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे और दुश्मनों के खिलाफ हम रक्षाविहीन नहीं रहेंगे। रक्षा मंत्री ने कहा कि मैं रक्षा मंत्री बन रहा हूं की जानकारी मुझे रविवार रात 11 बजकर 35 मिनट पर मिली। मुझे कुछ समय दीजिए। इससे पहले मैं न तो रक्षा मंत्री था और न ही केंद्र में मंत्री। इसलिए मुझे सप्ताह भर का समय दीजिए ताकि मैं मंत्रालय को भली भांति समझ सकूं। मैं प्रधानमंत्री से इस बारे में बातचीत करने के बाद ही जबाव दूंगा। सशस्त्र सेनाआें के जरिए देश को मजबूत करने के लिए जो आवश्यक होगा किया जाएगा।

शनिवार, 8 नवंबर 2014

विशाखापट्टनम के जंगलों की आग बुझाने में जुटी वायुसेना

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

विशाखापट्टनम बीते कुछ दिनों से बुरी खबरों को लेकर चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। पहले हुदहुद तूफान आया। इसके बाद फिर नौसैन्य जहाज टीआरवी ए-72 डूबा जिसमें 4 लोग लापता हैं और अब शहर से 30 किमी. पूर्व में जंगलों में लगी आग ने मुश्किलें बढ़ा दी है। यहां मौजूद वायुसेना के सूत्रों ने कहा कि राज्य प्रशासन के आग्रह पर वायुसेना की ओर से अपने बेड़े में हालिया शामिल किए गए 4 मी-17वी5 हेलिकॉप्टर आग बुझाने के काम में जुट गए हैं।

शुक्रवार को विशाखापट्टनम से अपनी पहली उड़ान में मी-17वी5 हेलिकॉप्टर ने आग प्रभावित इलाके और इसके फैलाव का हवाई सर्वेंक्षण किया। शुरूआत में आग की व्यापक्ता कुछ कम थी। लेकिन बाद में शुक्रवार दोपहर करीब डेढ़ बजे तेज हवाएं चलने की वजह से आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। हेलिकॉप्टरों द्वारा करीब 44 उड़ानों (शटल) से 1 लाख लीटर पानी गिराया जा चुका है। आग फिलहाल काबू में है और वन विभाग के अलावा जिला स्तर के अधिकारी घटना स्थल का दौरा कर हालात का निगरानी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि एक हेलिकॉप्टर में 3500 लीटर पानी ले जाने की क्षमता है। इस वर्ष आग बुझाने के काम में तीसरी बार वायुसेना के हेलिकॉप्टरों का प्रयोग किया गया है। बीते वर्ष उत्तराखंड में आई जलप्रलय, इस वर्ष जम्मू-कश्मीर की बाढ़ में भी वायुसेना ने युद्धस्तर पर राहत एवं बचाव अभियान चलाया था।

टीआरवी ए-72 के लापता नौसैनिकों का कोई सुराग नहीं

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

नौसेना के विशाखापट्टनम तट से दक्षिण में 35 नाटिकल माइल की दूरी पर गुरूवार रात 8 बजे डूबे टॉरपीडो रिकवरी वेसल (टीआरवी अल्फा-72) जहाज से लापता 4 लोगों का 48 घंटे बीतने के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला है। नौसेना की ओर से कैप्टन रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में बोर्ड आॅफ इंक्वारी (बीओआई) गठित की गई है जो इस हादसे से जुड़े कारणों का गंभीरता से पता लगाने में लगी हुई है। यहां नौसेना मुख्यालय में मौजूद नौसेना के सूत्रों ने कहा कि हादसे में लापता हुए एक अधिकारी और 3 नाविकों को गहरे समुद्र में ढूंढने के लिए नौसेना ने शनिवार को अपना खोजी अभियान विशाखापट्टनम तट से 80 नॉटिकल माइल की दूरी पर दक्षिण दक्षिण पश्चिम (एसएसडब्ल्यू) में चलाया हुआ है, जिसमें नौसेना के करीब 4 हजार लोगों को शामिल किया गया है। इसके अलावा 9 जंगी जहाज, 4 विमान समुद्री लहरों के बीच बिना रूके दिन-रात अपने 4 जाबांज सिपाहियों को ढूंढने में लगे हुए हैं।

सूत्रों ने कहा कि बचाव अभियान में लगे जंगी जहाजों में नौसेना के आईएनएस रंजीत, शिवालिक, सहयाद्रि, शक्ति, विनाश, निर्भीक, सुमित्रा, संधायक, कारमुक, निरीक्षक शामिल हैं। साथ ही 4 विमानों में पी8आई, डार्नियर, सीकिंग 42चार्ली और चेतक हेलिकॉप्टरों को लगाया गया है। शनिवार दोपहर तक बचाव अभियान दल को घटना स्थल से लापता लोगों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला। गौरतलब है कि शुक्रवार को घटना स्थल से टीआरवी अल्फा-72 जहाज का एक वीडियो कैमरा (हैंडीकैम) और दो लाइफ जैकेट बरामद हुई थी।

गौरतलब है कि बीते एक वर्ष से नौसैन्य उपकरण हादसे का शिकार हो रहे हैं। इन हादसों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल डी.के.जोशी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद अप्रैल 2014 को एडमिरल आर.के.धवन ने नौसेनाप्रमुख का पद संभाला था। बीते 31 अक्टूबर को नौसेना का आईएनएस कोरा पोत विशाखापट्टनम तट से कुछ दूरी एक व्यापारिक कंटेनर से रगड़ खाकर हादसे का शिकार हुआ था जिसमें जहाज को मामूली नुकसान पहुंचा था।

गोवा शिपयार्ड में बनाए गए टीआरवी अल्फा-72 जैसे नौसेना के पास कुल 3 (अस्त्रावाहिनी, टीआरवी अल्फा-71, टीआरवी अल्फा-72) जहाज हैं। इनका इस्तेमाल अभियानों के दौरान नहीं किया जाता है बल्कि इन्हें अभ्यास के बाद सहायक कार्य में लगाया जाता है। वर्ष 1983 में कमीशन हुआ टीआरवी अल्फा-72 जहाज बीते 31 सालों से नौसेना में प्रयोग किया जा रहा था। अब तक लगभग 3 बार इसकी मरम्मत की जा चुकी है। प्रत्येक 10 साल में इसका मरम्मत कार्य किया जाता है। नौसेना की शुरूआती जांच कहती है कि जहाज में कुल 3 कपार्टमेंट हैं, जिसमें 2 (इंजन, स्टोरेज) में पानी भरने की वजह से यह हादसा हुआ। तीसरा कंपार्टमेंट स्टियरिंग गेयर होता है। जहाज 112 टन ले जा सकता है। इसकी लंबाई 28.6 मीटर और 6.1 मीटर
बीम है।

पूर्वोत्तर सीमा पर जारी रहेगा सड़कों का निर्माण कार्य: जेटली

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

चीन के कड़े विरोध के बावजूद भारत ने एक बार फिर शुक्रवार को पूर्वोत्तर से लगे अपने सीमाई इलाकों में सड़क निर्माण कार्य को हर हाल में पूरी करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। यहां शुक्रवार को हुई रक्षा मामलों की संसद की मंत्रणा समिति की पहली बैठक में यह निर्णय लिया गया जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने की। बैठक में रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारे पड़ोसी चीन द्वारा सीमा से लगे इलाकों में संस्थागत ढांचे का जिस तरह से निर्माण किया गया है। चीन की सामरिक हकीकत को पहचानते हुए हम भी अपने इलाके में निर्माण को करने के लिए तमाम जरूरी कदम उठाएंगे।

गौरतलब है कि भारत द्वारा हाल में अरूणाचल-प्रदेश में करीब 2 हजार किमी. लंबी सड़कों के जाल बिछाने की घोषणा का चीन द्वारा कड़ा विरोध दर्ज कराया गया था। उसका कहना था कि अरूणाचल उसके तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) का दक्षिणी हिस्सा है, जिसकी वजह से यह इलाका विवादित है। ऐसे में भारत यहां सीमा के करीब कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकता। भारत का कहना है कि अरूणाचल उसका अभिन्न अंग है इसलिए उसे यहां निर्माण करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि इस मामले पर सरकार द्वारा कुछ अहम क दम उठाए गए हैं, जिसकी वजह से सड़क निर्माण कार्य को लेकर आने वाली आधिकारिक स्तर की बाधाओं को दूर किया जा सके। इसमें परियोजना से जुड़ी पर्यावरण एवं वनीय मंजूरी से लेकर उच्च श्रेणी के तकनीकी उपकरणों की कमी का मसला शामिल है। भारत-चीन सीमा पर पूर्वोत्तर में होने वाले इस निर्माण कार्य के लिए सरकार ने 3 हजार 12 किमी. की 73 सड़कों का चयन किया है। इसमें से 61 सड़कों को जिनकी लंबाई 3 हजार 410 किमी. है सीमा सड़क सगठन (बीआरओ) को बनाना है। बीआरओ ने चरणबद्ध ढंग से 17 सड़कों के 590 किमी. लंबे भाग पर निर्माण कार्य पूरा कर लिया है। सेना ने 2 हजार किमी. लंबी 22 सामरिक सड़कों का प्राथमिक्ता के आधार पर खाका खींचा है। बीआरओ ही इनका निर्माण करेगा और मंत्रालय निर्माण कार्य के समय पर पूरा होने के लिए उसकी पूरी निगरानी करेगा।

बैठक में मौजूद बीआरओ के महानिदेशक लेफिटनेंट जनरल ए.टी.परनाइक ने कहा कि निर्माण कार्य को पूरा करने में पर्यावरण-वनीय मंजूरी, भौगोलिक लिहाज से मुश्किल इलाका, सड़कों का जटिल आकार, कठिन मौसम जैसी चुनौतियां मुख्य हैं। कार्य की रफतार धीमा पड़ने के पीछे निर्माण कार्य में लगे उपकरणों का अन्य जगहों पर लगातार इस्तेमालशामिल है। इसमें लेह में 2010 में आई बाढ़, 2011 में सिक्किम में आए भूकंप, उत्तराखंड में 2013 में आई बाढ़ और जम्मू-कश्मीर में 2014 में आई बाढ़ मुख्य हैं। इनसे निपटने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ लगातार समन्वय बिठाया जा रहा है। इसके अलावा बीआरओ के आधुनिकीकरण की कवायद भी चल रही है।

बैठक में मौजूद सांसदों ने 1960 से सड़क निर्माण कार्य में लगे बीआरओ के कार्यों की सराहना की। उन्होंने एकमत से कहा कि बीआरओ को सरकार के बजट कटौती जैसे अभियान से दूर रखा जाना चाहिए। बैठक में सांसदों में चौधरी बाबूलाल, विजय शाम्पला, मलिकार्जुन खड़गे, राजकुमार सिंह, प्रो.सौगत राय, राजीव चंद्रशेखर, डॉ.महेंद्र प्रसाद, टी.आर.रंगराजन, एच.के.दुआ शामिल थे। मंत्रालय की ओर से रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.मोहन.कुमार, रक्षा सचिव (वित्त) वंदना श्रीवास्तव शामिल हुए।

लापता लोगों को ढूंढ़ने में नौसेना ने झोंकी ताकत

बीच में ही सेसल्स दौरा छोड़कर स्वदेश लौट रहे हैं नौसेनाप्रमुख
कविता जोशी नई दिल्ली

नौसेना की पूर्वी कमांड के मुख्यालय विशाखापट्टनम के तट से दक्षिण में 35 नॉटिकल माइल की दूरी पर गुरूवार रात 8 बजे डूबे टीआरवी ए-72 जहाज हादसे में लापता 4 लोगों को ढूढंने के लिए नौसेना ने युद्धस्तर पर अभियान छेड़ दिया है, जिसमें कुल 4 हजार लोगों को लगाया गया है। यहां नौसेना मुख्यालय में मौजूद नौसेना के सूत्रों ने शुक्रवार को कहा कि हादसे की वजह से नौसेनाध्यक्ष एडमिरल राबिन धवन अपना सेशेल्स का 3 से 9 नवंबर का आधिकारिक दौरा बीच में ही छोड़कर शनिवार को स्वदेश लौट रहे हैं और इसके बाद रविवार सुबह वो विशाखापट्टनम में घटना स्थल की ओर रवाना होंगे। विशाखापट्टनम में नौसेनाप्रमुख हादसे में सुरक्षित बचे अधिकारियों, नाविकों और पूर्वी कमांड के अधिकारियों से विस्तार से इस हादसे के बारे में जानकारी लेंगे।

हादसे की जांच, बोर्ड आफ इंक्वारी (बीओआई) के आदेश दे दिए गए हैं। जहाज में कुल 29 लोग सवार थे जिसमें 1 की मौत हो गई, 24 सुरक्षित हैं और 4 लापता हैं। नौसेना ने अपने बयान में कहा है कि टॉरपीडो रिकवरी वेसल (टीआरवी ए-72) जहाज गुरूवार रात 8 बजे डूबा। उस समय जहाज बेड़े के जहाजों द्वारा दागे गए नकली टॉरपीडो को एकत्रित करके विशाखापट्टन की ओर लौट रहा था। टीआरवी-72 में लापता 4 लोगों में 1 अधिकारी और 3 नाविक हैं। अधिकारी कमांडर रैंक का हैं और उसे हथियार विशेषज्ञ बताया जा रहा है। इन लोगों को ढूंढने के लिए 4 हजार लोगों के साथ नौसेना के 10 जंगी जहाजों आईएनएस रंजीत, शिवालिक, सहयाद्रि, शक्ति, विनाश, निर्भीक, सुमित्रा, संधायक, कारमुक, निरीक्षक, 4 विमानों पी8आई, डार्नियर, सीकिंग 42चार्ली, चेतक हेलिकॉप्टरों को लगाया गया है। हादसे में मारे गए एक अधिकारी का नाम पेट्टी आफिसर मैकेनिकल इंजीनियर (पीओएमई) जेम्स जैकब है। इसे बचाव दल ने बचा लिया गया था लेकिन बाद में इसकी मौत हो गई। अन्य लोगों के नामों का खुलासा नौसेना ने नहीं किया है।

इस जहाज का कैप्टन लेफिटनेंट कमांडर रोहन कुलकर्णी हैं, जो सुरक्षित है। गौरतलब है कि बीते एक वर्ष से नौसैन्य उपकरण हादसे का शिकार हो रहे हैं। इन हादसों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल डी.के.जोशी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद अप्रैल 2014 को एडमिरल आर.के.धवन ने नौसेनाप्रमुख का पद संभाला था। बीते 31 अक्टूबर को नौसेना का आईएनएस कोरा पोत विशाखापट्टनम तट से कुछ दूरी एक व्यापारिक कंटेनर से रगड़ खाकर हादसे का शिकार हुआ था। गोवा शिपयार्ड में बनाए गए टीआरवी-72 जैसे नौसेना के पास कुल 3 (अस्त्रावाहिनी, टीआरवी-71, टीआरवी-72) जहाज हैं। इनका इस्तेमाल अभियानों के दौरान नहीं किया जाता है बल्कि इन्हें अभ्यास के बाद सहायक कार्य में लगाया जाता है।

वर्ष 1983 में कमीशन हुआ टीआरवी-72 जहाज बीते 31 सालों से नौसेना में प्रयोग किया जा रहा था। अब तक लगभग 3 बार इसकी मरम्मत की जा चुकी है। प्रत्येक 10 साल में इसका मरम्मत कार्य किया जाता है। नौसेना की शुरूआती जांच कहती है कि जहाज में कुल 3 कपार्टमेंट हैं, जिसमें 2 (इंजन, स्टोरेज) में पानी भरने की वजह से यह हादसा हुआ। तीसरा कंपार्टमेंट स्टियरिंग गेयर होता है। जहाज का भार 112 टन, लंबाई 28.6 मीटर और 6.1 मीटर बीम है।

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

सेना के छत्तरगाम आपरेशन की जल्द आएगी रिपोर्ट!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर के छत्तरगाम (बडगाम) में बीते 3 नवंबर को सेना द्वारा मारे गए दो युवकों की मौत के मामले पर बिठाई गई जांच (कोर्ट आफ इंक्वारी)की जल्द ही रिपोर्ट आ जाएगी जिसमें उन तमाम तथ्यों का खुलासा हो जाएगा जिसकी वजह से सेना द्वारा इस अभियान का अंजाम दिया गया। गौरतलब है कि इस घटना में मारे गए फैजल अहमद भट्ट और मेहराजूद्दीन दर की मौत के बाद से राज्य में कई जगहों पर सेना की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हुए विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। उधर रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा है कि इस अभियान की निष्पक्ष जांच की जाएगी और तथ्यों का जल्द ही खुलासा किया जाएगा। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर की पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुμती ने भी इस अभियान की निंदा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जम्मू-कश्मीर में आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (आफस्पा) को हटाने की मांग की थी।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस अभियान के बाद से गठित की गई कोर्ट आफ इंक्वारी में सेना के इस आपरेशन की वैधता से जुड़े हर पहलू की बारीकी से पड़ताल करेगी। आपरेशन की वैधता का सीधा संबंध उसके कानूनी पहलू से जुड़ा हुआ है। इसमें छत्तरगाम (बडगाम) के उस नाके पर तैनात सेना के जवानों से लेकर जेसीओ तक की भूमिका की गहन समीक्षा की जाएगी।

हरिभूमि को मिली जानकारी के मुताबिक 3 नवंबर को जब यह घटना हुई थी। उस वक्त छत्तरगाम नाके पर मौजूद सेना के जेसीओ जवानों की टुकड़ी को राज्य के खुफिया ब्यूरो की ओर से यह जानकारी मिली थी कि एक सफेद रंग की मारूति कार कुछ दूरी से आ रही है जिसमें चार लोग सवार हैं। इन चारों की गतिविधियां संदिग्ध नजर आ रही हैं, ये आतंकवादी हो सकते हैं। छत्तरगाम के उस नाके पर पहुंचने से पहले कार में सवार इन लोगों ने पीछे के दो नाको को तोड़ दिया था और उसके बाद यह छत्तरगाम की ओर आगे बढ़ रहे थे। सेना द्वारा चलाई गई गोली को लेकर यह तर्क दिया जा रहा है कि उन्होंने पीछे से गोलियों की आवाज सुनी थी जिसके बाद उनकी तरफ से इन लोगों पर गोलियां चलाई गई जिसमें दो युवक मारे गए और दो अन्य घायल हुए।

बुधवार, 5 नवंबर 2014

नई नीति के तहत दोबारा पढ़ाई शुरू कर सकेंगे

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

देश की शिक्षा प्रणाली में बड़ी सुधार करने की दिशा में सरकार एक ऐसा निर्णय करने जा रही है, जिससे रोजगार के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ने वाला व्यक्ति किसी दूसरे संस्थान से दोबारा पढ़ाई शुरू कर सकेगा और उसे पूर्व में की गई पढ़ाई का लाभ भी मिलेगा। यहां भारत आर्थिक शिखर बैठक में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पूर्व में समकक्ष पाठ्यक्रम में अर्जित साख के अंतरण की व्यवस्था की जाएगी। सरकार अगले वर्ष तक एक नई शिक्षा नीति लाने की संभावनाओं को भी तलाश रही है।

बैठक का आयोजन जिनीवा स्थित विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) और उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा किया गया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती उस व्यवस्था की है जिसमें अपनी पढ़ाई पूर्व में छोड़ चुके लोग बाद में उसे जारी रख सकें। इससे खासकर उन लोगों के लिए समस्या खड़ी हो गई है जो पढ़ाई बीच में छोड़कर नौकरी में चले गए और इसकी वजह से अपना अध्ययन जारी रखने में असमर्थ हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैं एक कामकाजी पेशेवर थी और मुझे अपना काम जारी रखने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी थी। सरकार 11 नवंबर को इस तरह की व्यवस्था की शुरूआत करने जा रही है। इससे एक संस्थान में की गई अधूरी पढ़ाई को किसी दूसरे संस्थान से पूरा करने में मदद मिलेगी। साख की अंतरण की व्यवस्था 9वीं और उससे ऊपर की कक्षा के पाठ्यक्रमों के लिए होगी। जनवरी 2015 में यह पीएचडी कार्यक्रमों तक के लिए उपलब्ध होगी। देश के तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों को इसके लिए व्यवस्था करने के लिए कहा गया है।

किससे बात करनी है पहले तय करे पाक: जेटली

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

भारत द्वारा बीते सितंबर महीने में विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द किए जाने से बौखलाए पाक को बुधवार को रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने दो टूक शब्दों में कहा कि पहले पाकिस्तान यह तय करे कि उसे किससे बात करनी है, भारत से या उन लोगों से जो देश तोड़ना चाहते हैं। यहां ‘भारत आर्थिक शिखर बैठक’ में अपने संबोधन में रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत, पाकिस्तान के साथ बातचीत का इच्छुक है। हमने सितंबर में विदेश सचिव स्तर की बातचीत के लिए सहमति दी। हमारे अधिकारी पाकिस्तान जाने वाले थे लेकिन इसके ठीक कुछ घंटे पहले पाक के नई दिल्ली स्थित दूतावास में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए बुला लिया।

उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच बातचीत के इस सवाल को लेकर पाकिस्तान को एक लक्ष्मण रेखा खींचने की जरूरत है कि वो किससे बात करना चाहता है? जब तक पाकिस्तान इस बारे में कोई ठोस निर्णय नहीं करता है तब तक पाक के साथ कोई बातचीत संभव नहीं है। अगस्त में वार्ता से ऐन पहले कश्मीरी अलगाववादियों से बातचीत करने को लेकर भारत ने पाक के साथ बात करने से मना कर दिया था। पाक की ओर से नियंत्रण रेखा पर किया जाने वाला संघर्षविराम का उल्लंधन और सीमा से सटे सघन नागरिक आबादी वाले इलाकों में फायरिंग को लेकर जेटली ने कहा कि यह दुस्साहस पाकिस्तान के लिए भारी कीमत चुकाने वाला साबित होगा।

भारत, बातचीत का इच्छुक है जिसे लेकर तीन संदेश पाक को साफ तौर पर भेजे जा चुके हैं। इसमें पहला यह कि हम वार्ता करना चाहते हैं। इसलिए हमने उन्हें निमंत्रण भेजा है। दूसरा यह कि हमने वहां अपने विदेश सचिव को भेजा। अब यह उसे तय करना है कि वो हमसे बात करने को तैयार है या फिर उनसे जो देश तोड़ना चाहते हैं। तीसरा यह कि इस तरह की स्थिति को अंतरराष्टीय सीमा पर चलने नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत,रिश्तों को सामान्य बनाना चाहता है। लेकिन क्या पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने का इच्छुक है, यह पाक पर निर्भर करता है।

जम्मू-कश्मीर चुनाव में आतंक का खूनी खेलेगा हाफिज सईद!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ दिनों के दौरान आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ से लेकर अमृतसर में वाघा सीमा पर हुए फिदायीन हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने एक बार फिर राज्य में आतंकी गतिविधियों में इजाफा होने का संकेत दे दिया है। हरिभूमि ने इस बाबत 3 नवंबर को ‘चुनावों में बड़ी वारदात की फिराक में आतंकी’ नामक शीषर्क से खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसमें आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान आतंकवादी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की तैयारी कर रहे हैं का विस्तार से खुलासा किया गया था। इसके तुरंत बाद वाघा पर हुआ फिदायीन हमला और अब सुरक्षा एजेंसियों की ओर से एक बार फिर यह सूचना आ रही है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले होने वाली राजनैतिक दलों की रैलियों में पाक समर्थित आतंकी और जमात-उद-दावा का मुखिया हाफिज सईद बड़ी वारदातें करने की योजना बना रहा है।

गौरतलब है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड भी हाफिज सईद ही है।
सईद के इस ऐलान के पीछे मकसद राज्य में जल्द शुरू होने वाली चुनाव प्रक्रिया को बाधित करना है। खुफिया एजेंसियों की माने तो सईद को पाकिस्तानी सेना और उनकी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) का पूरा समर्थन है। खुफिया एजेंसियों के कान उस वक्त खड़े हो गए जब उन्हें जानकारी मिली कि 26/11 हमलों का मास्टरमाइंड हाफिज सईद ने पाक अधिकृत कश्मीर(पीओके) में लश्करे तैयबा के आतंकी शिविरों को अपना नया ठिकाना बना लिया है। यहां से वो जम्मू-कश्मीर में कुछ दिन बाद शुरू होने वाली विभिन्न दलों की रैलियों को आसानी से टारगेट बना सकेगा। इससे घाटी समेत समूचे राज्य में लोगों के मन में चुनाव को लेकर दहशत फैलेगी और चुनाव प्रक्रिया सीधे तौर पर बाधित होगी।

सईद ने इस वक्त पीओके में अपना नया ठिकाना बना लिया है, जिससे वो अपनी रणनीति को बिना किसी बाधा के आसानी से संचालित कर सकता है। खुफिया एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक आतंकवादी हाफिज सईद ने लश्करे तैयबा से 7 सितंबर के बाद जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ से प्रभावित और बेरोजगार युवाओं को भारी तादाद में भर्ती करने को कहा है। विधानसभा चुनाव राज्य में पांच चरणों में होने वाले हैं, जिसकी शुरूआत 25 नवंबर को होनी है और मतगणना का काम 23 दिसंबर को होगा।

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

अरूणाचल में भारत की सड़क से बिगड़ता चीनी मिजाज!

कविता जोशी

भारत का अपने दो निकट प्रतिद्वंद्वी देशों चीन और पाकिस्तान के साथ अंतरराष्टीय सीमाओं के स्पष्ट निर्धारण ना होने की वजह से दशकों से विवाद चल रहा है। पश्चिम में जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल-प्रदेश तक गदर ही गदर है। पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) का निर्धारण होने जाने के बावजूद भी एलओसी से लेकर आईबी तक फैला समूचा जम्मू-कश्मीर गोलियों और मोटार्रों की दिल दहला देने वाली आवाज से गूंजता रहता है, जिससे एलओसी के पास बसे सघन आबादी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों का जीना दुभर हो गया है। वहीं पूर्वोत्तर में प्रत्यक्ष नजर आने वाली खामोशी के पीछे चीन का भारत पर डाला जाने वाला अप्रत्याशित दबाव और वास्तवित नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कहीं भी ड्रैगन की पीएलए सेना की घुसपैठ दोनों के बीच बनी इस तनातनी का गाहे-बगाहे साक्षात कराती रहती है। ताजा मामला अरूणाचल में भारत द्वारा हालिया घोषित लगभग 2 हजार किमी. लंबे सड़क मार्ग के निर्माण को लेकर चीन द्वारा उठाई जा रही आपत्ति से पैदा हुआ है।

चीन कहता है कि अरूणाचल-प्रदेश उसके तिब्बत क्षेत्र का दक्षिणा हिस्सा है। ऐसे में चीन का यह तर्क कि अरूणाचल उसका भाग है, विवादित इलाका घोषित करता है। जबकि भारत 1962 की भारत-चीन की लड़ाई और उससे पहले से यह स्पष्ट कर चुका है कि अरूणाचल-प्रदेश उसका अभिन्न अंग है और इस इलाके को लेकर भारत में किसी तरह का संदेह नहीं है। ऐसे में चीन, अरूणाचल के सुदूर इलाके में भारत द्वारा बनायी जा रही सड़क का लाख विरोध करे लेकिन भारत को उसे बनाने में कोई शंका नहीं है। पांच महीने पहले देश की सत्ता पर काबिज हुई नई एनडीए सरकार द्वारा की गई हालिया सड़क निर्माण की घोषण से चीन लाख तिलमिलाए लेकिन भारत के लिए पूर्वोत्तर के इस पिछड़े इलाके के विकास से और यहां के बाशिंदो को एक आम भारतीय होने का अहसास कराने के लिहाज से भी यह बेहद मुफीद साबित होगा। उधर प्रस्तावित सड़क मार्ग के बन जाने से अरूणाचल में प्रवेश के लिए पश्चिमी सीमा यानि असम के रास्तों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा बल्कि अब सीधे इन सड़क मार्गों के जरिए अरूणाचल-प्रदेश में प्रवेश किया जा सकेगा। मिसाल के तौर पर अभी तेजपुर से तवांग और डिब्रूगढ़ से वलांग के रास्ते को ही पश्चिमी से पूर्व का प्रवेश द्वार कहा जाता है लेकिन अब इस सड़क मार्ग के बन जाने से पूर्व से ही पूर्व में प्रवेश का रास्ता खुलेगा। इसके अलावा इन इलाकों में रहने वाले लोगों को ऊंचे पहाड़ी इलाकों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को निचले इलाके के बाजारों में बेचने और असम तक पहुंचाने में भी सुविधा होगी जिससे उनका जीवीकोपार्जन आसान बनेगा।

भारत के चीन के साथ सीमा विवाद को बड़े पैमाने पर देखें तो लद्दाख में पश्चिमी सीमा से लेकर उत्तर-पूर्व में अरूणाचल-प्रदेश तक अंतरराष्टीय सीमा का स्पष्ट विभाजन नहीं है। दोनों जगहों पर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि एलएसी को मानने से इंकार करता है। कुछ समय पहले सेंट्रल सेक्टर यानि हिमाचल-प्रदेश और उत्तराखंड के इलाके में दोनों सेनाओं के बीच सीमाओं को लेकर नक्शों का आदान-प्रदान किया गया था लेकिन अभी तक उस पर धरातल पर कोई आधिकारिक निर्णय नहीं हुआ है। अरूणाचल में हालत और भी खराब है क्योंकि वहां अग्रेंजों (ब्रिटिश काल) के समय में खींची गई और देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 62 की लड़ाई के बाद प्रस्तावित मैकमोहन लाइन (पूर्वोत्तर में अंतरराष्टीय सीमा) को भी चीन मानने से साफ इंकार करता है। भारत द्वारा सड़क बनाने के ताजा ऐलान के बाद चीन की ओर से किए जा रहे विरोध के पीछे तर्क यह दिए जा रहे हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब सड़क या इस तरह का कोई भी निर्माण नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह विवादित इलाका है जब तक सीमाआें का स्पष्ट विभाजन ना हो जाए तब तक भारत यहां किसी तरह का निर्माण नहीं कर सकता। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन ने अपने प्रभुत्व वाले इलाके में एलएसी के करीब बड़े पैमाने पर सड़क और रेल नेटवर्क का निर्माण किया है। यह निर्माण आज का नहीं है बल्कि दशकों से चला आ रहा है।

भारत से लगी सीमाआें पर अपने इलाके में दशकों पहले रेल-रोड़ जैसी ढांचागत सुविधाआें का निर्माण चीन की विस्तारवादी नीति को बल देने में काफी मददगार रहा लेकिन दूसरी ओर भारत की 1962 की लड़ाई से पहले की सोच कि अंतरराष्टीय सीमाओं के करीब ढांचागत सुविधाओं का विकास करने से युद्ध की स्थिति में दुश्मन को हमारे इलाके में आसानी से घुसने में कामयाब हो जाएगा जैसे तर्कों ने भारत को चीन से इस मामले में काफी पिछड़ा दिया। लेकिन इतिहास में की गई भूलों से सबक लेकर अब वर्तमान में भारत पश्चिम से लेकर पूर्वोंत्तर की अपनी सीमाओं के पास सड़क और रेल नेटवर्क का तेजी से विकास कर रहा है। लेकिन सीमाओं की चाक-चौबंदी के साथ ही मौजूद दौर में बदली हुई परिस्थितियों में विकास की नई परिभाषा गढ़ने के लिए हमें अपने अन्य हितों को भी ध्यान में रखना हितकारी होगा।


लंका गठजोड़ से हिंद महासागर में हेकड़ी दिखाता चीन

पूर्वोत्तर के बाद अब दक्षिणी छोर पर जारी हलचल से बढ़ती भारत की चिंता
कविता जोशी

बीते दिनों भारत द्वारा पूर्वोत्तर में अरूणाचल-प्रदेश में सीमा से सटे इलाकों में करीब 2 हजार किमी. के सड़क निर्माण कार्य करने का ऐलान क्या हुआ पड़ोस में बैठा चीन बौखलाया और इस निर्माण का विरोध करने लगा लेकिन भारत ने चीन के विरोध की परवाह किए बिना सड़क निर्माण के अपने दृढ़ इरादे का इजहार कर दिया। अपने पड़ोसी के इस बुलंद हौसले के बीच अब ड्रैगन यानि चीन ने भारत के सड़क निर्माण कार्य की एकाग्रता में खलल डालने के लिए दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप देश श्रीलंका में अपनी धमक दिखाना शुरू कर दिया है। इसका आगाज बीते सितंबर महीने में राष्टपति प्रणब मुखर्जी की वियतनाम यात्रा से हो चुका है। यात्रा के दौरान ही चीन ने लंका के कोलंबो और त्रिनकोमाली बंदरगाहों पर चीनी पनडुब्बी को पानी से सतह पर आने के बाद मदद की। एक ओर जहां भारत प्रशांत महासागर के अशांत इलाके दक्षिणी चीन सागर में पड़ने वाले तेल ब्लॉकों के खनन के कार्य के लिए वियतनाम के साथ समझौता कर रहा है। इस इलाके को लेकर चीन के साथ वियतनाम का सीमाई विवाद चल रहा है, जिसकी वजह से बीते लगभग दो साल में करोड़ों डॉलर की राशि खर्च करने के बाद भी यहां काम शुरू नहीं सका है। इसके कुछ दिन बाद वितयनामी पीएम नगुयेन तान डुंग ने भारत की यात्रा की और दोनों के बीच कुछ महत्‍वपूर्ण सामरिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत-वियतनाम की बढ़ती निकटता चीन को नाग्वार गुजर रही है। इसलिए अब वो भारत की पश्चिमी-पूर्वी सीमा के अलावा दक्षिणी सीमा या हिंद महासागर में अपना वर्चस्व दिखाकर भारत को आंख दिखाने की कोशिश कर रहा है।

वियतनामी पीएम जब भारत की यात्रा पर थे तब चीन की च्यांगझियांग-2 पनडुब्बी कोलंबो बंदरगाह पर पानी से सतह पर आई थी। इसके बाद हाल ही में एक बार फिर चीनी पनडुब्बी च्यांगझियांग-2 और युद्धपोत चांग शिंग दाओ कोलंबो तट पर साथ-साथ नजर आए। भारत के विरोध के बाद लंकाई अधिकारियों का बयान आया कि तट पर किसी भी देश की पनडुब्बियों और युद्धपोतों का नजर आना अंतरराष्टीय स्तर पर की जाने वाली सामान्य गतिविधि का हिस्सा है। इससे पहले 2010 से कोलंबो तट पर दुनिया के कई देशों के करीब 230 युद्धपोत र्इंधन भरने के लिए, खाने-पीने के लिए और गुडविल विजिट के लिए रूकते रहे हैं। भारत का तर्क है कि श्रीलंका ने जुलाई 1987 के समझौते का उल्लंधन किया है, जिसके हिसाब से श्रीलंका के त्रिंकोमाली से लेकर अन्य बंदरगाह पर दूसरे देशों को सैन्य उपयोग से जुड़ी कोई मदद नहीं करेगा। इससे भारत की सुरक्षा और अखंडता को गहरा आघात पहुंचता है।

श्रीलंका में 2005 में राष्टपति महिंदा राजपक्षे के चुनाव के बाद चीन की ओर से मिलने वाली सहायता राशि में कई गुना का इजाफा देखने को मिला है। इसमें भी इंफ्रास्टक्चर निर्माण में चीन ज्यादा निवेश कर रहा है। चीन ने बीते कुछ समय में श्रीलंका के हबनटोटा बंदरगाह से लेकर मतारा इंटरनेशनल हवाईअड्डे का निर्माण किया है। इसके अलावा चीन लंका के 1.35 बिलियन डॉलर के नोरोचलाई कोयला चालित परियोजना का कामकाज भी संभाल रहा है। इसे चलाने मेंं लंकाई अधिकारी असमर्थ रहे जिसके बाद उन्होंने इसे पुन:दुरूस्त कर चलाने के लिए चीनी अधिकारियों से मदद मांगी। खराब गुणवत्ता के उपकरणों की वजह से इस प्लांट में दिक्कत आई है। चीन ने लगातार श्रीलंका में अपने निवेश बढ़ा लिया है। बीते दो सालों में चीन ने श्रीलंका में 2.1 बिलियन डॉलर के निवेश का वाद किया है। यह निवेश ऊंची ब्याज दरों के साथ चीन करेगा। श्रीलंका में चीन की बढ़ते दखल से आधिकारिक तौर पर अब यह स्पष्ट हो गया है कि वो जापान की जगह पर श्रीलंका का नंबर वन डोनर देश बन गया है।

सोमवार, 3 नवंबर 2014


आईपीसीसी की पांचवी रिपोर्ट ने बजाया अलार्म!

कविता जोशी.नई दिल्ली

जलवायु परिवर्तन को लेकर गठित ख्याति प्राप्त अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी रिपोर्ट ने दुनिया भर के देशों के लिए खतरे का अलार्म बजा दिया है। यह चेतावनी साफ इशारा कर रही है कि अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक पृथ्वी के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है। धरती का तापमान बढ़ने से जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बाढ़, सूखा, बेमौसम बरसात और हिमपात जैसी घटनाआें से काफी नुकसान होगा।

रविवार को जारी की गई यह रिपोर्ट विश्वभर के 800 वैज्ञानिकों के बीते 13 महीनों के दौरान किए गए अध्ययन और सर्वेंक्षण पर आधारित है, जिन्होंने इस दौरान जलवायु परिवर्तन का व्यापक अध्ययन किया है। रिपोर्ट में विकासशील देशों जिसमें भारत भी शामिल है के लिए स्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण हैं। क्योंकि इन देशों के पास जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए सीमित साधन मौजूद हैं। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, संस्थागत रूप से सीमित एवं वंचित समुदायों के लोग इस लिहाज से अधिक संवेदनशील हैं। इस वर्ग का भारत में अच्छा-खासा आंकड़ा मौजूद है।

आईपीसीसी के अध्यक्ष और भारत के जाने माने गैर सरकारी संगठन द एनर्जी एंड रिर्सोस इंस्‍टटीटयूट, टेरी के महानिदेशक डॉ.आर.के.पचौरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर स्पष्ट और प्रभावशाली नियंत्रण रखना जरूरी है। हमारे पास समय बहुत कम है क्योंकि वार्मिंग यानि तापमान में हो रही वृद्धि 2 डिग्री से अधिक होने के कगार पर पहुंच चुकी है। इसे 2 डिग्री से नीचे रखने के लिए हमें वातावरण के लिए हानिकारक जीएचजी गैसों के स्तर को 2010 से 2050 के बीच 40 से 70 फीसदी तक कम करना होगा और 2100 तक इसे शून्य के स्तर तक लाना होगा। उन्होंने कहा कि अभी स्थिति हमारे हाथ में है और हम ऐसा कर सकते हैं।

आईपीसीसी कार्यदल के सह-अध्यक्ष विसेन्टे बैरोस ने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के बढ़ते हुए स्तर में कमी लाना बेहद जरूरी है। जीएचजी गैसों के बढ़े हुए उत्सर्जन स्तर की वजह से तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसे देखते हुए इसे कम करने के प्रयास तेजी से करने होंगे। आईपीसीसी के कार्य-दल के सह-अध्यक्ष यूबा सोकोना ने बताया कि कम कार्बन (लो-कार्बन) की अर्थव्यवस्थाओं की ओर रूख करना फायदेमंद साबित होगा। लेकिन इसके लिए उचित नीतियों का अभाव है, जिसके लिए तेजी से काम करना होगा। हम कार्रवाई करने में जितनी देरी करेंगे उतना ही परिणामों को नियंत्रित करने में दिक्कत होगी।

भूटान के साथ भारत के पुराने मैत्रीपूर्ण संबंध हैं: सेनाप्रमुख

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

सेनाप्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का रविवार को तीन दिवसीय भूटान दौरा समाप्त हो गया। इस दौरे की आधिकारिक शुरूआत 31 अक्टूबर को हुई थी। सेना के सूत्रों ने बताया कि अपनी यात्रा में जनरल सुहाग ने 1 नवंबर को भूटान के चौथे नरेश (राजा) जिग्मे सिंगये वांगचुक से मुलाकात की। जनरल के इस दौरे में उनकी पत्नी नमिता सुहाग भी उनके साथ थी। सेनाप्रमुख ने भूटान नरेश द्वारा दिए गए बेहतरीन अतिथि सत्कार की सराहना करते हुए भूटान हमारे सबसे निकटतम पड़ोसी देशों में से एक हैं। भारत के भूटान के साथ सालों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। गौरतलब है कि सेनाप्रमुख बनने के बाद जनरल सुहाग का यह पहला भूटान दौरा है।

चुनाव के दौरान बड़ी वारदात की फिराक में आतंकी!

कविता जोशी.नई दिल्ली

अक्टूबर के महीने में जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्टीय सीमा (आईबी) से लेकर नियंत्रण रेखा (एलओसी) तक पाक सेना की ओर से भारतीय सैन्य चौकियों से लेकर आबादी वाले इलाकों में की गई भीषण गोलीबारी के बाद अब आतंकवादी सूबे की आबोहवा को बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देकर खराब करने की तैयारी में जुटे हुए हैं। केंद्र सरकार की खुफिया एजेंसियों के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 25 नवंबर से शुरू हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य के भीतर मौजूद स्थानीय और पीओके में प्रशिक्षण ले रहे आतंकवादी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देकर सूबे की शांति भंग करके लोगों में दहशत फैला सकते हैं। लोगों में खौफ पैदा करने के पीछे आतंकियों की मंशा उन्हें चुनाव में वोट डालने से रोकना है। इस दौरान आतंकी हमलों की तीव्रता पहले के मुकाबले ज्यादा हो सकती है। राज्य में पांच चरणों में होने वाले चुनाव की प्रक्रिया 25 नवंबर से लेकर 20 दिसंबर तक चलेगी।

चुनाव के दौरान ही भारत-पाकिस्तान के बीच पड़ने वाली 772 किमी. लंबी नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निचले इलाकों में आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ की बड़े पैमाने पर कोशिश की जा सकती है। घुसपैठ के साथ-साथ एलओसी से लेकर राज्य में पड़ने वाली 215 किमी. लंबी आईबी तक पाक रेंजरों की ओर भीषण गोलीबारी का भी अंदेशा है। पाक सेना की फायरिंग आतंकियों को घाटी में प्रवेश करते वक्त ठोस सुरक्षा कवच प्रदान करने का काम करती है। एजेंसियों का कहना है इस बार घुसपैठ के सीजन में चुनाव हो रहे हैं, जिनका आतंकी संगठन फायदा उठा सकते हैं इसलिए इस दौरान राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसक घटनाएं हो सकती हैं।

एलओसी के निचले इलाकों में बींबरगली, कृष्णाघाटी और पूंछ का इलाका आता है। इन जगहों पर आमतौर पर नवंबर तक ही बर्फ पड़ती है, जिसके मद्देनजर सुरक्षा एजेंसियों को लगता है कि इस समय इन जगहों से पाकिस्ताान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चल रहे आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण ले रहे आतंकी एलओसी लांघकर कश्मीर घाटी में घुसने का प्रयास जरूर करेंगे। घाटी में आतंकियों का सबसे बड़ा टारगेट श्रीनगर होगा। राजधानी में बड़ी वारदात की गूंज दिल्ली में काबिज नई नरेंद्र मोदी सरकार तक सीधे पहुंचेगी। उधर इसी दौरान जम्मू में अंतरराष्टीय सीमा पर संघर्षविराम उल्लंधन या फिदायीन हमले जैसी घटनाएं भी हो सकती हैं, जिसकी चपेट में जम्मू-श्रीनगर राष्टीय राजमार्ग (एनएच-1ए और अब एनएच-44) और आएबी से सटे इलाके आ सकते हैं।

गौरतलब है कि बीते कुछ दिनों से भी राज्य में कई इलाकों में सेना और पुलिस की आतंकियों से मुठभेड़ की घटनाएं भी हुई हैं, जिसमें 29 अक्टूबर को हंडवारा में लश्करे तैयबा के तीन आतंकियों को सेना ने मारा गिराया। इसके अलावा अफगानिस्‍ताान से नाटो देशाें की सेनाओं की इस वर्ष के अंत तक होने वाली वापसी और उसके बाद आईएसआईएस जैसे तेजी से बढ़ते आतंकी संगठन और अफगान समर्थित तालिबान द्वारा दक्षिण एशिया में आतंक की नई शाखाएं खोलने की अपनी योजना जगजाहिर हो चुकी है जो कि भारत के लिए नई चुनौती बन सकती है। 

रविवार, 2 नवंबर 2014

एचआरडी मंत्रालय के उच्च-शिक्षा विभाग ने पकड़ी रफतार, उच्च-शिक्षा सचिव संग 4 वरिष्ठ अधिकारियों ने संभाला कार्यभार

कविता जोशी.नई दिल्ली

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च-शिक्षा विभाग ने धीरे-धीरे रμतार पकड़ना शुरू कर दिया है। मंत्रालय के बेहद अहम समझे जाने वाले उच्च-शिक्षा विभाग में नव नियुक्त सचिव सत्यनारायण मोहंती समेत चार अन्य आईएएस अधिकारियों ने अपना कामकाज संभाल लिया है। पहले रिक्त पड़े पदों की वजह से उच्च-शिक्षा विभाग में कामकाज की रμतार कुछ समय के लिए धीमी पड़ गई थी। एचआरडी मंत्रालय के वरिष्ठ सूत्रों ने बताया कि बीते कुछ समय से खाली पड़े उच्च-शिक्षा विभाग के बड़े और महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारियों की नियुक्तियां पूरी हो गई हैं और नवनियुक्त अधिकारियों ने मंत्रालय में अपना कामकाज संभाल लिया है। यह नियुक्तियां सितंबर से अक्टूबर महीने के दौरान हुई हैं।

उच्च-शिक्षा विभाग के नए सचिव के रूप में सत्यनारायण मोहंती ने इस महीने की शुरूआत यानि 1 अक्टूबर को मंत्रालय का कार्यभार संभाला है। इससे पहले 30 सितंबर को सेवानिवृत हुए अशोक ठाकुर उच्च-शिक्षा विभाग के सचिव पद पर थे। वर्तमान में नवनियुक्त सचिव आंध्र-प्रदेश कैडर के 1980 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं और एचआरडी मंत्रालय से पहले वो राष्टीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) में सचिव के पद पर कार्यरत थे। इसके अलावा बीते दिनों उच्च-शिक्षा विभाग में अतिरिक्त सचिव अमरजीत सिन्हा की भी तैनाती हुई है। पहले वो बिहार सरकार के स्कूली शिक्षा विभाग में प्रधान सचिव के पद पर कार्यरत थे। उच्च-शिक्षा में संयुक्त सचिव के पद पर राकेश रंजन भी नियुक्त हुए हैं। इससे पहले वो संस्कृति मंत्रालय में थे।

राकेश रंजन 1992 बैच के मणिपुर-त्रिपुरा बैच के आईएएस अधिकारी हैं। एक अन्य संयुक्त सचिव सुखबीर सिंह संधु ने भी उच्च-शिक्षा विभाग में कामकाज संभाला है। वे 1988 बैच के उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। इसी विभाग में एक अन्य संयुक्त सचिव शशि प्रकाश गोयल की नियुक्ति भी की गई है जो कि 1989 बैच के उत्तर-प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं।

गौरतलब है कि इसी वर्ष 26 मई को नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बनी नई सरकार के गठन के कुछ समय बाद ही एचआरडी मंत्रालय के सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक उच्च-शिक्षा विभाग में अधिकारियों की कमी को लेकर जोर-शोर से चर्चाएं शुरू हो गई थीं। पूर्व सरकार में काम कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों में कुछ की सेवानिवृति को लेकर कयास लग रहे थे तो कुछ का तबादला मीडिया की सुर्खियों में था। इतना ही नहीं सितंबर महीने के अंत में मंत्रालय से सेवानिवृत हुए उच्च-शिक्षा विभाग के पूर्व सचिव के साथ केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का विवाद भी इन चर्चाओं का हिस्सा बना।  

डीएसी ने दी 80 हजार करोड़ के रक्षा खरीद सौदों को मंजूरी: 25 नवंबर को हुई बैठक

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की तीसरी बैठक में सरकार ने लगभग 80 हजार करोड़ रुपए के रक्षा खरीद सौदों को मंजूरी दी है। यहां रक्षा मंत्रालय में शनिवार को रक्षा मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई डीएसी की बैठक में जिन दो बड़े प्रस्तावों को मंजूरी दी गई उसमें नौसेना के लिए 6 पनडुब्बियों के देश में निर्माण और थलसेना के लिए एंटी टैंक नाशक स्पाइक मिसाइल (एटीजीएम) की खरीद का प्रस्ताव शामिल है। गौरतलब है कि डीएसी की इस तीसरी बैठक में भी रक्षा मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लालकिले की प्राचीर से दिए गए ‘मेक इन इंडिया’ के नारे को काफी हद तक चरितार्थ करते हुए कई रक्षा उपकरणों का स्वदेश में निर्माण करने के प्रस्तावों को मंजूरी दी है। मई में नई सरकार के गठन के बाद डीएसी की दो बैठकें हो चुकी हैं।

बैठक के बाद रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि राष्टीय सुरक्षा का मुद्दा सरकार की प्राथमिक्ताआें में शीर्ष पर शामिल है। रक्षा खरीद के दौरान आने वाली तमाम समस्याआें और बाधाआें पर तुरंत चर्चा की जानी चाहिए जिससे खरीद से जुड़ी प्रक्रिया की रफतार धीमी ना पड़े। बैठक में रक्षा मंत्री के अलावा रक्षा सचिव आर.के.माथुर, थलसेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग, वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल अरुप राहा, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन, पीएम के वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ प्रमुख डॉ.अविनाश चंदर समेत मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

बैठक के बाद रक्षा मंत्रालय के उच्चपदस्थ आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि नौसेना के लिए इन 6 पनडुब्बियों का निर्माण देश में ही किया जाएगा। इस परियोजना की कुल लागत 50 हजार करोड़ रूपए है, जिसके लिए जल्द ही रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का एक दल देश के अलग-अलग भागों में जाकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विभिन्न शिपयार्डों का दौरा करेंगे और उनकी क्षमता को परखेंगे। इसके बाद ये अधिकारी लगभग 8 सप्ताह में शिपयार्ड का चयन कर मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौपेंगे जिसके बाद मंत्रालय चयनित शिपयार्ड के लिए निविदा आमंत्रित (आरएफपी) करेगा। यहां बता दें कि मंत्रालय का यह दल कुल 7 शिपयार्डों का दौरा करेगा जिसमें दो निजी (लार्सन एंड ट्युब्रो, पीपावेव) और 5 सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड (एमडीएल, एचएसएल, जीएसएल, जीआरएसी, कोचिन) शामिल हैं। थलसेना के लिए मंजूर किए गए स्पाइक एटीजीएम मिसाइल के प्रस्ताव के लिए मंत्रालय ने 300 करोड़ रूपए की मंजूरी दी है, जिसमें 8 हजार से अधिक मिसाइलों और 300 से ज्यादा लांचरों की खरीद की जाएगी।

बैठक में नौसेना के लिए 12 डार्नियर विमानों की खरीद से जुड़े 1850 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई है। एचएएल इनका निर्माण करेगा जिसमें डीआरडीओ भी तकनीकी रूप से मदद करेगा। यहां बता देंं कि नौसेना के पास अभी 40 से अधिक डार्नियर विमान हैं। इसके अलावा थलसेना के लिए भारी वाहनों, टैंकों को दुर्गम इलाकों में आसानी से पहुंचाने के लिए 740 करोड़ रूपए के रोलिंग स्टॉक्स के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई है। इस राशि से कुल 1768 रोलिंग स्टॉक्स की खरीद की जाएगी। गौरतलब है कि अभी सेना के पास जो रोलिंग स्टॉक्स हैं वो लगभग 40 साल पुराने हो चुके हैं इसलिए उन्हें बदलने की बेहद आवश्यकता है।

सेना के लिए 363 बीएमपी2 वाहनों की खरीद से जुड़े 1800 करोड़ रूपए के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इनका उत्पादन आंध्र-प्रदेश के मेंढक स्थित आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) में किया जाएगा। 5.75 टन भार के 1761 रेडियो रिले कंटेनरों के प्रस्ताव को भी डीएसी ने हरीझंडी दी है। इनकी कीमत 6 हजार 62 करोड़ रूपए है। गौरतलब है कि रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने हाल में राजधानी में आयोजित सशस्त्र सेनाआें के संयुक्त कमांडर सम्मेलन में भी सैन्य खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए डीएसी की हर महीने बैठक करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि इस प्रक्रिया में कुछ विवादों की वजह से देरी होती है।