शनिवार, 13 जून 2015

अब धरातल पर नजर नहीं आएगा ‘राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय’!

कविता जोशी.नई दिल्ली
बीते लोकसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले 23 मई 2013 को यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा हरियाणा के बिनौला (गुडगांव)में ‘भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (इंदु)’ की जो नींव रखी गई थी अब वोे हकीकत में तब्दील नहीं हो सकेगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित नई सरकार के पीएमओ विभाग की ओर से रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर इंदु विश्वविद्यालय के गठन के लिए एक व्यापक कानून बनाने को कहा गया है, जिसके बाद ऐसी किसी परियोजना को हकीकत में अमलीजामा पहनाया जाएगा। पीएमओ की इस टिप्पणी से साफ है अब इंदु विश्वविद्यालय की परियोजना फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है।

ये कहता है पीएमओ का पत्र?
हरिभूमि की पड़ताल में यह जानकारी मिली है कि रक्षा मंत्रालय को भेजे गए पत्र में पीएम ने साफ कहा है कि रक्षा ही नहीं सरकार के किसी भी मंत्रालय को उच्च-शिक्षा से जुड़े किसी भी संस्थान को खोलने के लिए एक व्यापक कानून होना चाहिए। जिसके बाद इस तरह की कोई भी प्रक्रिया आगे बढ़ायी जानी चाहिए। जब तक यह व्यापक-विस्तृत कानून बनता है तब तक विभिन्न मंत्रालयों के ऐसे प्रस्तावों को जिन्हें संसद द्वारा कानून बनाकर स्थापित किया जाना है पर रोक लगी रहेगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि पीएमओ की ओर से यह पत्र मंत्रालय को बीते अप्रैल महीने में प्राप्त हुआ है।

साल के शुरूआत में अलग माहौल
इस वर्ष की शुरूआत यानि मार्च महीने में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज थीं कि इंदु विश्वविद्यालय में इसी साल की शुरूआत से ही पहले शैक्षणिक सत्र 2015-16 की शुरूआत हो जाएगी। लेकिन इसके बाद अप्रैल महीने में पीएमओ की टिप्पणी के बाद अब परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। पीएमओ की टिप्पणी से स्पष्ट है कि अब इंदु की स्थापना और संचालन फिलहाल दूर की कौड़ी बन गया है।

ऐसा होता इंदु का नक्शा
यूपीए सरकार द्वारा स्वीकार किए गए इस प्रस्ताव के मुताबिक गुड़गांव के बिनौला में 200 एकड़ में इंदु विश्वविद्यालय की नींव रखी जानी थी। इसमें देश की रक्षा-सुरक्षा को केंद्र में रखकर पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने थे। डिफेंस मैनेजमेंट, डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एमरजिंग सिक्योरिटी चैलेंजिज जैसे कोर्सेज शामिल किए गए थे। इसके अलावा रक्षा व सामारिक विषयों पर शोध कार्यों का भी खाका खींचा गया था।

प्रस्ताव के मुताबिक वॉर गैमिंग एंड स्मियुलेशन, नेबरहुड स्टडीज, काउंटर इंसरजेंसी एंड काउंटर टेरररिजम, चाइनीज स्टडीज, इवॉलुशन आॅफ स्ट्रेजिक थॉट, इंटरनेशनल सिक्योरिटी इशूज, मेरीटाइम सिक्योरिटी स्टडीज, साइथ ईस्ट एशियन स्टडीज, मैटीरियल एक्यूजीशन, जाइंट लॉजिस्टिक्स एंड नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी इन पीस एंड वॉर जैसे कोर्सेज शामिल थे। विश्वविद्यालय ने पोस्ट ग्रेजुएट और पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च भी छात्रों को कराने की योजना भी बनायी थी।

स्कूली शिक्षा की योजनाआें को लेकर सरकार प्रतिबद्ध

एमडीएम में बजट कटौती को लेकर केंद्र का स्पष्टीकरण
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि वो स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से जुड़ी μलैगशिप योजनाआें को लेकर प्रतिबद्ध है, जिसमें मिड डे मील (एमडीएम) योजना भी शामिल है। मंत्रालय की तरफ से यह बयान बीते दिनों कुछ अखबारों में एमडीएम को लेकर छपी खबरों के बाद आया है, जिनमें योजना के बजट में केंद्र द्वारा कटौती को लेकर खबरें प्रकाशित की गई थीं। यहां बता दें कि इस योजना पर हरिभूमि ने भी 28 मई को ‘एमडीएम योजना में कटौती का भार उठाएंगे राज्य’ शीर्षक से एक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक एमडीएम योजना के तहत 10.33 करोड़ प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों और स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने वाले विशेष प्रशिक्षण केंद्रों शामिल हैं। राज्य और केंद्र-शासित प्रदेशों में योजना को लेकर समय-समय पर केंद्र द्वारा अनुदान राशि जारी के ढांचे के तहत कार्य किया जाता है। इसके अलावा 14वें वित्त आयोग में राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले केंद्रीय राजस्व में 42 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह आंकड़ा पहले 32 फीसदी था। इसके अलावा योजना के लिए केंद्र सरकार की ओर से मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में 9 हजार 236 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसमें आवश्यकता के हिसाब से इजाफा किया जा सकता है।

केंद्र की ओर से राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों को योजना के उचित क्रियान्वयन के लिए संशोधित दिशानिर्देंश भी जारी किए गए हैं। इसके अलावा केंद्र ने योजना के तहत सूखा प्रभावित राज्यों को 466.70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि देने का निर्णय लिया है। इसका उपयोग एमडीएम योजना के तहत गर्मी की छुट्टियों में प्राथमिक स्कूलों के स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों को मध्याहन भोजन परोसने के लिए किया जाएगा।

दक्षिणी सूडान में भारतीय सैन्य अधिक ारी को लगी गोली, हालत स्थिर

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

दक्षिणी-सूडान के मुल्लाकल इलाके में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में चलाए जा रहे शांति मिशन में बृहस्पतिवार को एक भारतीय सैन्य अधिकारी लेμिटनेंट कर्नल के.दिनाकर गोली लगने से घायल हो गए। लेकिन अब उसकी हालत स्थिर बतायी जा रही है। दरअसल यह घटना 29 मई को संयुक्त राष्टÑ के तत्वाधान में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस से ठीक एक दिन पहले बृहस्पतिवार शाम 6 बजे हुई। यहां रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस अधिकारी का संबंध भारतीय सेना की जैकलाई बटालियन से है।

सूत्र ने कहा कि यह घटना उस समय हुई जब यह अधिकारी अपने कमरे में था। तभी बाहर से दरवाजे से होते हुए गोली अंदर आयी और इनके सिर को छूकर निकल गई, जिससे सिर पर जख्म बन गया। यह गोली सूडानी सेना द्वारा विद्रोहियों के खिलाफ रोजाना हवा में की जाने वाली फायरिंग के दौरान अधिकारी के कमरे में घुसी थी। घटना के तुरंत बाद अधिकारी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब उनकी हालत फिलहाल स्थिर बतायी जा रही है।

भारतीय सेना की मौजूदगी
यूएन के शांति मिशनों में भारतीय सेना ने वर्ष 1950 से भाग लेना शुरू किया। सबसे पहले 1950 में कोरिया के लिए अभियान में सेना शामिल हुई जिसमें करीब 2 लाख भारतीय सैनिकों शामिल हुए। अब तक संयुक्त राष्टÑ के बैनर तले कुल 16 अभियान चल रहे हैं, जिसमें भारतीय सेना 12 अभियानों में शामिल है। इन 12 अभियानों में कुल 158 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है। सूडान और दक्षिणी सूडान में कुल 1 हजार 950 सैनिक मारे जा चुके हैं।

यूएन के अंतरराष्ट्रीय मिशन 
यूएन के मातहत अब तक 71 शांति अभियान चलाए जा चुके हैं, जिसमें 1 मिलियन से अधिक सैनिकों ने भाग लिया। यह आंकड़ा सेना और पुलिस को मिलाकर है। वर्तमान में जारी 16 अभियान में 1 लाख 25 हजार सैनिक लगे हुए हैं। यूएन के इन शांति अभियानों में 3 हजार 300 लोग मारे जा चुके हैं। इसमें बीते वर्ष 126 सैनिक मारे जा चुके हैं।

राज्य उठाएंगे एमडीएम योजना में कटौती का भार!

कविता जोशी.नई दिल्ली

स्कूल को लेकर बच्चों में रूचि बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) के बजट में कटौती करने के बाद अब केंद्र सरकार का यह कहना है कि इस कटौती का भार राज्यों को खुद उठाना पड़ेगा। मसलन अगर कोई राज्य या केंद्रशासित प्रदेश अपने यहां योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और हेल्परों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय में इजाफा करना चाहते हैं तो इस बढ़ी हुई धनराशि का भुगतान उन्हें खुद ही करना होगा, केंद्र इसमें कोई मदद नहीं करेगा। केंद्र अब केवल एमडीएम योजना की निगरानी और सुरक्षा दिशानिर्देंशों पर ध्यान केंद्रित करेगा जिससे मध्याहन भोजन को लेकर राज्य स्तर पर बरती जाने वाली अनियमितताआें और दुर्घटनाओं पर लगाम लगायी जा सकेगी।

यह जानकारी यहां मंगलवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर वर्ष की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए मंत्रालय में उच्च-शिक्षा विभाग में सचिव एस.एन.मोहंती ने दी। उन्होंने कहा कि मध्याहन भोजन योजना नियमित रूप से चलती रहेगी। बजट में कटौती का इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस योजना को केंद्र का संरक्षण लगातार जारी रहेगा। सरकार किसी भी कीमत पर इस योजना को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

आम बजट के आंकड़ों पर नजर डाले तो मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16 में केंद्र की ओर से एमडीएम के बजट में करीब 30 फीसदी की कटौती की गई है। इस बार योजना के लिए सरकार ने 9 हजार 236.40 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। बीते वर्ष 2014-15 में बजट में एमडीएम को 13 हजार 215 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।

उच्च-शिक्षा सचिव ने कहा कि कई राज्यों की ओर से रसोइयों और हेल्परों को बढ़ाकर मानदेय दिया जा रहा है। बाकी राज्य भी इन राज्यों की तर्ज पर अपने यहां मानदेय बढ़ा सकते हैं। अभी केंद्र और राज्यों के बीच योजना को लेकर धनराशि का आवंटन उत्तर-पूर्व के राज्यों में 90 अनुपात 10 और बाकी राज्यों में 75 अनुपात 25 है। गौरतलब है कि एमडीएम योजना सर्व शिक्षा अभियान का ही हिस्सा है। देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईयों और हेल्परों को इससे रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

मिड-डे-मील की निगरानी को शिक्षकों को जाएगा फोन!

कविता जोशी.नई दिल्ली

देशभर के स्कूलों में चर्चित मध्याहन भोजन योजना (एमडीएम) की रियल टाइम मॉनीटरिंग के लिए केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना से जुड़े शिक्षकों को रोजाना फोन करके जानकारी एकत्रित करेगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एमडीएम मामलों की देखरेख कर रही समिति ने बीते 5 मई को हुई बैठक में यह निर्णय किया है।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2012 से शुरू हुई एमडीएम योजना की रियल टाइम निगरानी को लेकर अब मंत्रालय ने सख्त रूख अख्तियार कर लिया है। इसकी जद में खासतौर पर वो राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के अध्यापक आएंगे जिनके यहां योजना से क्रियान्वयन से जुड़ा इंट्रेक्टिव वाइस रिस्पांस सिस्टम (आईवीआरएस) क्रियान्वित नहीं किया गया है। गौरतलब है कि उत्तर भारत के दो बड़े जनसंख्या वाले राज्यों बिहार और उत्तर-प्रदेश ही देश में ऐसे दो राज्य हैं जिन्होंने आईवीआरएस को लागू किया है।

बैठक की अध्यक्षता करते हुए मंत्रालय में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में सचिव वृंदा स्वरूप ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को सुझाव देते हुए कहा कि एमडीएम योजना के बारे में सही जानकारी इकट्टा करने और इसकी उचित निगरानी के लिए संबंधित स्कूलों के सभी शिक्षकों और योजना से जुड़ी अन्य एजेसिंयों के नंबर एकत्रित कि ए जाएं। इन नंबरों पर रोजाना फोन करके शिक्षकों से मध्याहन भोजन बनाने और परोसने के बारे में जानकारी ली जाएगी। उन्होंने राज्यों को कहा कि जुलाई 2015 तक इसका क्रियान्वयन किया जाए। एमडीएम योजना के सर्विस प्रदाता के लिए मंत्रालय ने परामर्श एजेंसी का नाम तय कर लिया है। इसके जरिए अब रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) की पुनरीक्षण किया जाएगा। यहां बता दें कि परामर्श एजेंसी ने पहले 31 मार्च को अपना पहला पुन: संशोधित ड्राμट मंत्रालय को भेजा था।

यहां बता दें कि देश में मिड-डे-मील योजना के तहत 10.45 करोड़ बच्चों को शामिल किया जा चुका है। 25.70 लाख रसोईए और हेल्परों को इस योजना से रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा 6.70 लाख किचन और स्टोरों का निर्माण एमडीएम योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।

ओआरओपी: सरकार के रूख से नाखुश हैं पूर्व-सैनिक, तेज होगी आंदोलन की धार

कविता जोशी.नई दिल्ली

वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी)के मुद्दे पर राजग सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी और बैचनी उत्पन्न हो रही है और उनका कहना है कि अगर इस मामले में जल्द ही केंद्र की ओर से किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो अगले महीने के पहले सप्ताह के तुरंत बाद पूर्व सैनिक बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरेंगे और ओआरओपी की मांग को लेकर अपने आंदोलन को तेज करेंगे। इस मामले पर पूर्व उप-सेनाप्रमुख और इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) के अध्यक्ष लेμिटनेंट जनरल राज कादयान ने हरिभूमि से खास बातचीत की।

सवाल-ओआरओपी के मामले पर अब आपका अगला कदम क्या होगा?
जवाब- साल 2009 से लेकर 2014 के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ओआरओपी को पूरा करने की बात कहती रही है। लेकिन आज की बात की जाए तो जमीन पर कुछ होता हुआ दिखायी नहीं दे रहा है। सरकार के मौजूदा रूख से पूर्व सैनिकों में खासी नाराजगी पनप रही है। अगर जल्द ही केंद्र की ओर से इस मुद्दे पर किसी तारीख का ऐलान नहीं किया गया तो आईईएसएम की ओर से फिर से आंदोलन तेज किया जाएगा। अगले महीने 6 तारीख को हम अपने आंदोलन की पूरी रणनीति पर चर्चा करेंगे।

सवाल- अपनी नाराजगी जताने के लिए क्या मैडल भी वापस करेंगे?
जवाब- इन सब बातों पर हम सोच विचार के बाद निर्णय करेंगे। अभी सरकार के पास हमारे 20 हजार मैडल्स पहले से हैं। मैंने सबसे पहले अपना मैडल 2008 में सरकार को वापस किया था। हम अपना अभियान पूर्ण अनुशासन के साथ चलाएंगे। जिसमें मैडल वापस करना भी शामिल हैं।

सवाल- सशस्त्र सेनाआें को ही क्यों बकियों को क्यों ना मिले ओआरओपी?
जवाब-सीआरपीएफ हमारी प्रतिद्वंदी नहीं है। प्रजातंत्र में कोई भी मांग कर सकता है। लेकिन फौज द्वारा मांगी गई ओआरओपी की मांग को लेकर सरकार भी सहमत है।

सवाल- ओआरओपी से सरकारी खजाने पर बल पड़ेगा?
जवाब-सवाल 8 हजार या 5 हजार करोड़ का नहीं है। अगर देश को इतनी बड़ी सेना की जरूरत है, तो सरकार को उसका ध्यान भी रखना पड़ेगा। सेना कितनी होनी चाहिए हम तय नहीं करते सरकार तय करती है।

सवाल-क्या ओआरओपी की परिभाषा बदल रही है सरकार?
जवाब-हमने सुना है कि सरकार परिभाषा बदल रही है। परिभाषा को तो सरकार ने संसद के मंच पर पहले स्वीकार किया था। अगर उसे बदला तो ठीक नहीं होेगा। वित्त मंत्रालय परिभाषा बदलने के काम में लगा है। अगर ऐसा हुआ तो हम अपना आंदोलन फिर से शुरू करेंगे।

सवाल-आप अपने वोट बैंक के जरिए सरकार पर दवाब बना रहें हैं?
जवाब-हमने अपना आंदोलन राजनीतिक दलों के साथ मिलकर कभी नहीं लड़ा। हम 25 लाख जरूर हैं, लेकिन 29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में बटे हुए हैं। लेकिन हमारी ताकत आम जनभावनाएं हैं। अगर पूर्व सैनिकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया तो इससे जनभावनाएं भी जरूर प्रभावित होंगी।

निर्णयों में आयी तेजी लेकिन धरातल पर सन्नाटा!

अगले सप्ताह 26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तासीन एनडीए सरकार को एक साल पूरा हो जाएगा। ऐसे में सरकार के एक बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले रक्षा मंत्रालय के रिपोर्ट-कार्ड पर अगर एक नजर डाले तो यह कहा जा सकता है कि नई सरकार के गठन के बाद इसमें कोई शक नहीं कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में काफी तेजी आयी है लेकिन वास्तविक्ता के इस धरातल पर इन निर्णयों का कोई प्रभाव अब तक दिखायी नहीं पड़ रहा है। मंत्रालय के भीतर भी इसे लेकर अच्छी-खासी चर्चा है। कई अधिकारी दबी जुबान में इस तथ्य को स्वीकार भी कर रहे हैं।

रक्षा मंत्रालय के सालाना कामकाज में जिन अहम परियोजनाआें को त्वरित मंजूरी दी गई लेकिन धरातल में उन्हें लेकर खामोशी बनी है, उसमें सशस्त्र सेनाओं के पूर्व अधिकारियों को दी जाने वाली वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को स्वीकृति दिए तो करीब आठ महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक सरकार ने यह घोषणा नहीं की है कि वो कब से इसका वितरण किया जाएगा या फिर ओआरओपी की मद में कितनी धनराशि वितरित की जाएगी को लेकर भी स्पष्टता नहीं है।

बीते कुछ समय से तो यह मामला रक्षा और वित्त मंत्रालय के बीच ही उलझा हुआ था। अब चर्चा है कि एक निश्चित धनराशि पर दोनों के बीच सहमति बन गई है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि ओआरओपी पर काम चल रहा है लेकिन इसकी घोषणा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय के अन्य फैसलों में राष्टÑीय युद्ध स्मारक बनाने को लेकर भी स्पष्टता नहीं बन पाई है। इसकी फाइल भी एक जगह से दूसरी जगह घूम रही है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेनाओं के बीच तमाम मुद्दों को लेकर बेहतर समन्वय बनाने के लिए चीफ आॅफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा तो रक्षा मंत्री काफी समय पहले कर चुके हैं लेकिन कब होगी पर संशय बना हुआ है। इंडियन नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी (इंदू) की स्थापना का मामला भी पेडिंग है।

हालांकि इन 365 दिनों में अगर मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठकों में स्वीकृ त हुए समझौतों की बात करें तो करीब 1 लाख करोड़ रुपए के समझौतों को डीएसी ने मंजूरी दी है। लेकिन हकीकत में इन्हें अमलीजामा कब तक पहनाया जाएगा कहना मुश्किल है। रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि सैन्य-सामरिक समझौतों को मंजूरी मिलने के बाद भी उन्हें हकीकत में पूरा होने लंबा वक्त लगता है।