गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

आने वाली पीढ़ियों के जहन में जिंदा रहे शहीदों की शहादत

कविता जोशी.नई दिल्ली

वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद लड़े गए युद्धों में जिन वीरों ने अपनी शहादत दी है के बारे में वर्तमान और भावी पीढ़ी को जानकारी होनी चाहिए। इस दिशा में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ‘वॉर हिस्ट्री यानि युद्ध इतिहास’ नामक किताब तैयार करने की योजना बनाकर एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम उठा लिया है। यह जानकारी यहां शुक्रवार को राजधानी के महिला प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर ने हरिभूमि द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में दी।

‘वॉर हिस्ट्री’ की आवश्यकता
कर्नल राठौर ने कहा कि वॉर हिस्ट्री नामक किताब पर सूचना-प्रसारण मंत्रालय काम कर रहा है। इस बारे में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरूण जेटली ने मुझसे चर्चा की है। इस किताब को लाने के पीछे हमारी मंशा यह है कि अभी तक भारत के पास अपना कोई युद्ध इतिहास नहीं है। जबकि दुनिया के सभी देशों के पास उनकी अपनी वॉर हिस्ट्री मौजूद है। इस किताब के जरिए हम आजादी के बाद लड़े गए युद्धों और उनमें हुई वीरों की शहादत के बारे में लोगों को बताएंगे। यहां बता दें कि भारत ने आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ चार युद्ध (1947, 1965, 1971, 1999 का युद्ध) और चीन के साथ एक युद्ध (1962) लड़ा है।

भावी पीढ़ियों का पे्ररणास्रोत
युद्ध इतिहास किताब के जरिए मंत्रालय की योजना वर्तमान और भावी पीढ़ियों को देश में लड़े गए युद्धों के बारे में विस्तार से जानकारी देने की है। इसे स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा।

डिजीटल फॉर्मेट होगा तैयार
वॉर हिस्ट्री पुस्तक को तैयार करने के बाद इसका डिजीटलीकरण भी किया जाएगा। क्योंकि आजकल संचार माध्यमों में सोशल मीडिया का अच्छा-खासा प्रयोग किया जा रहा है। इसलिए हम इस किताब के बारे में यूट्यूब से लेकर टिविटर पर भी जानकारी देंगे। हो सकता है कि जल्द ही इसके लिए एक लेखागार भी तैयार किया जाए।

युद्धक भूमिका में आए महिलाएं
हरिभूमि के एक अन्य प्रश्न के जवाब में सूचना-प्रसारण राज्य मंत्री ने कहा कि सशस्त्र सेनाआें में महिलाआें को युद्धक भूमिका में शामिल किया जाना चाहिए। देश में जो महिला अधिकारी सेना में तैनात हैं और जो शामिल होना चाहती हैं। उन्हें वायुसेना के लड़ाकू विमानों से लेकर नौसेना के जंगी जहाजों तक में तैनात किया जाना चाहिए। जहां तक थलसेना में युद्ध के समय मुख्य पंक्ति में महिलाआें की तैनाती का सवाल है तो इसमें कुछ वक्त और लग सकता है।

महिलाआें में ज्ञान, क्षमता का कोई अभाव नहीं है। लेकिन एक दिक्कत जो मुझे लगती है वो है कि महिलाआें को लेकर आज भी सेनाओं के पास जरूरी संस्थागत ढांचागत सुविधाएं नहीं हैं। साथ ही हमारी पुरानी सोच भी इसके लिए जिम्मेदार है। इन मामलों में धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है। इस तरह की दिक्कतें दुनिया के बाकी देशों में भी है। यहां में खाड़ी युद्ध का जिक्र करना चाहूंगा जहां अमेरिकी सेना की महिला अधिकारियों को भी जरूरी ढांचागत सुविधाआें के चलते कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें