शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की भारत से नेतृत्व की दरकार

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

जलवायु परिवर्तन की समस्या से दुनिया परेशान है। लेकिन इस मुद्दे का बेहतर हल निकालने की भारत के पास पूरी क्षमता है और उसे इस मामले पर नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए। यह बातें यहां गुरुवार को राजधानी में शुरू हुए तीन दिवसीय 15 वें दिल्ली सतत विकास सम्मेलन (डीएसडीएस) में फ्रांस के विदेश और अंतरराष्ट्रीय मामलों के मंत्री लॉरेंट फेबियस ने कही। उन्होंने कहा कि बीते वर्ष नवंबर 2014 में जलवायु परिवर्तन पर आई अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिर्पोट में इसे बड़ी चुनौती बताया गया। इस समस्या का हल करने में भारत मुख्य भूमिका निभा सकता है। फ्रांस, भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर उठाए गए कदमों से भली-भांति परिचित हैं। 100 गीगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन करने से लेकर भारत का 2025 तक एक बड़ा परमाणु कार्यक्रम भी है। इस मसले पर हमें एक कोष की आवश्यकता है और इसमें भारत बड़ी या कहें कि मुख्य भूमिका निभा सकता है। अर्थव्यस्थाआें में तेजी से बदलाव हो रहा है। वाणिज्यक समुदाय से लेकर गैर-सरकारी संगठनों को मदद के लिए आगे आना चाहिए।

बिना बाध्यता के भारत प्रयासरत 
फ्रांस के विदेश मंत्री की जलवायु परिवर्तन पर भारत को दी गई सलाह का जवाब देते हुए केंद्रीय पर्यावरण-वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत एक विकासशील देश है। हमारा विकास बीते कुछ वर्ष पहले ही शुरू हुआ है। विकसित देशों से हमें सतत विकास के एजेंडें को आगे बढ़ने के लिए तकनीक और वित्तीय सहायता की दरकार है। उन्होंने पीएम मोदी द्वारा गुजरात में उनके मुख्यमंत्री वाले कार्यकाल के दौरान सौर ऊर्जा के क्षेत्र में किए गए कार्य का जिक्र किया और कहा अब हम इसका देश में विस्तार करने जा रहे हैं। जावड़ेकर ने पीएम का एक संदेश भी कार्यक्रम में सुनाया। पर्यावरण के लिए खतरनाक ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के अलावा जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर बनाई गई प्राचीन संधि क्योटो प्रोटोकाल के तहत भी भारत किसी तरह से बाध्य नहीं है। लेकिन फिर भी हमने स्वत: इस मामले में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। टेरी अगली बार इस कार्यक्रम को किसी ग्रामीण इलाके में करे।

साल 2015 जलवायु परिवर्तन पर चर्चाओं का साल रहेगा। पहले जुलाई में वित्तीय प्रोटोकाल की समयसीमा खत्म होगी, सस्टनेबल डेवलपमेंट गोल(एसडीएम) सितंबर में और न्यू यूएन क्लाइमेट प्रोटोकाल दिसंबर में खत्म होगा। तमाम मसलों पर बदलाव करने की जरूरत है और सभी देशों को इसमें भागीदार होना पड़ेगा।

नवीकरण ऊर्जा स्रोतों पर जोर
कार्यक्रम में मौजूद रेल मंत्री सुरेश प्रभू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का हल निकालने के लिए ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों को बढ़ाना देना बेहतर विकल्प हो सकता है। पीएम के गुजरात मॉडल का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ऐसा देश है जहां सौर, पवन ऊर्जा बाकी देशों की तुलना में लगभग सालभर रहती है। ऐसे में इसका उपयोग करके ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा रहा बल्कि इससे पर्यटन, रोजगार समेत हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए सभी देशों को एक एकीकृत नीति बनानी होगी और सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

कार्यक्रम में मौजूद केलिफोर्निया के पूर्व गवर्नर आरनोल्ड सोवॉजनेगर ने कहा पीएम मोदी ने जो काम मुख्यमंत्री के तौर पर किया है। हम उनसे उम्मीद करते हैं कि वो इसे देश के स्तर पर निरंतर आगे बढ़ाएंगे। जलवायु परिवर्तन के मामले में हम अब किसी का इंतजार नहीं कर सकते। भारत भी इस मामले में एक बड़ा भागीदार है। मैं इस मुद्दे पर रूकूंगा नहीं लगातार चलता रहूंगा। कार्यक्रम में टेरी के महानिदेशक डॉ.आर.के.पचौरी, टेरी की निदेशक, सस्टनेबल डेवलपमेंट आॅउटरीच डिविजन डॉ.अनपूर्णना वंचेसवरन के अलावा तमाम देशी-विदेशी मेहमान मौजूद थे।

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