शनिवार, 13 जून 2015

गए थे एवरेस्ट फतह करने, हो गई अच्छी-खासी मानव सेवा

नेपाल में आए भूकंप से एक अप्रैल को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतेह करने निकली भारतीय सेना क ी 30 पर्वतरोहियों की टुकड़ी को नेपाल जाकर चोटी फतह करना तो नसीब नहीं हुआ। लेकिन भूकंप से इस ऊंची चोटी के बेस कैंप में मची तबाही ने टीम को मानव सेवा का सुनहरा अवसरा मुहैया करा दिया। मंगलवार 19 मई को यह दल नेपाल से वापस भारत पहुंचा है।

यहां राजधानी में मौजूद थलसेना के सूत्रों ने बताया कि 26 अपै्रल को जब नेपाल में 7.9 तीव्रता का भूकंप आया तो उसके बाद एवरेस्ट के बेस कैंप पर एक के बाद एक कई बर्फील तूफान आए। जिसने कैंप को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। इस तरह की आपदा से निपटने में सक्षम सैन्य पर्वतारोहियों के दल ने अपने आप को सुरक्षित बचा लिया और जैसे ही तूफान थमा तो यह लोग कैंप में मौजूद लोगों की तीमारदारी में जुट गए। टीम की अगुवाई कर रहे मेजर रनवीर सिंह जामवल ने कहा कि बर्फीले तूफान के वक्त स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई थी। क्योंकि एक ओर बर्फ पश्चिम में और दूसरी ओर नुप्त्से की ओर से सीधे बेस कैंप की ओर तेजी से आ रही थी। ऐसे में हमारी टीम के लिए सुरक्षित जगह पर जाना मुश्किल हो रहा था। यहां तक कि बर्फ की परत लगातार हिल रही थी। जिसमें सीधे खड़ा होना भी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

बेस कैंप में दर्दनाक नजारा था। चारों ओर टूटे हुए टेंट, मदद को पुकारते घायल लोग दिखायी दे रहे थे। इतना ही नहीं कुछ कैंप तो पूरी तरह से तूफान के साथ बह गए थे। सेना का कैंप उसमें शामिल था। बर्फ का जो हिस्सा टूटकर बेस कैंप की ओर आया था उसने करीब दो-तिहाई बेस कैंप को अपनी जद में लेकर उसे पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था। इसमें करीब 19 पर्वतारोहियों की मौत हो गई और करीब 80 पर्वतारोही और शेरपा घायल हुए।

मुश्किल घड़ी में सेना के पर्वतारोही दल में शामिल मेडिकल अधिकारी मेजर रितेश गोयल ने पीड़ितों की प्राण रक्षा का जिम्मा उठाया। उन्होंने न केवल घायलों का प्राथमिक उपचार किया। बल्कि 70 पर्वतारोहियों का उपचार कर उन्हें नॉर्मल किया। कुछ के पांव टूटे हुए थे तो कुछ के हाथ। इसके अलावा कुछ लोगों को सिर पर गंभीर चोटें आयी थीं। राहत कार्य खत्म होने के बाद टीम ने निर्णय लिया कि वो चोटी पर चढ़ाई नहीं करेगी। लेकिन उसे साफ करने का जिम्मा उठाएगी।

 एक बार फिर मेजर जांमवाल के नेतृत्व में टीम ने चार दिनों तक एवरेस्ट के पूर्वी ओर खुंबू ग्लेशियर को साफ किया। इसमें नुप्त्से बेस तक बड़ी मात्रा में इकट्टा हुए मलबे को हटाया। दल ने 3 हजार किग्रा. कचरा एकट्टा करके नेपाल की सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति को सौंपा। 4 मई को सेना का यह दल अंतिम दल था जिसने बेस कैंप छोड़ा। लेकिन इसके बाद यह लोग नामचे बाजार में रूके और वहां के नामचे डेंटल क्लिनिक को बचाने और स्थानांतरित करने में मदद पहुंचाई। 12 मई को जब नेपाल में भूकंप के दुबारा झटके आए तो सेना का यह दल वहां स्थानीय लोगों का मानसिक मनोबल बढ़ाने में जुटा रहा।

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