मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

अब कश्मीर से पूर्वोत्तर तक गूंजेगा ‘डिजिटल आर्मी’ का नारा

कविता जोशी.नई दिल्ली

चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगे दो प्रमुख युद्धक मोर्चों पर जल्द ही थलसेना अनोखे डिजिटल अंदाज में नजर आएगी। इसमें इन दोनों जगहों पर लगाए जा रहे संचार के आधुनिक मोबाइन सेल्युलर कम्युनिकेशन सिस्टम (एमसीसीएस) की अहम भूमिका होगी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि को बताया कि एमसीसीएस देश में बनाया गया है, जिसमें किसी भी परिस्थिति में सेना के बीच आपसी संवाद से लेकर फोटो और वीडियो को तत्काल भेजा जा सकेगा। सेना का यह सिस्टम स्वदेशी होने के साथ ही संचार की आधुनिक्ता लिए हुए हैं, जिससे यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ की पहल को पूरी तरह से चरितार्थ करता हुआ नजर आता है।

एलओसी के करीब लग चुका है सिस्टम
सेना ने इस सिस्टम को सबसे पहले जम्मू-कश्मीर से लगाने की शुरूआत की है। क्योंकि यहां पाक संग लगने वाली नियंत्रण रेखा है और आए दिन आतंकी घुसपैठ और हिंसा से जुड़ी घटनाएं होती रहती हैं। यहां भारत- पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब तैनात थलसेना की 16वीं कोर में यह सिस्टम पूरी तरह से लगा दिया गया है। इस कोर का मुख्यालय नगरोटा में है। इस सिस्टम को लगाने में करीब 300 करोड़ रूपए का खर्च आया है। श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर में सिस्टम लगाने का 70 फीसदी काम पूरा कर लिया गया है।

एमसीसीएस की खूबियां
सेना ने एमसीसीएस को ऊंची पहाड़ियों पर लगाया है, जिससे बाढ़ के वक्त इसे नुकसान न पहुंचे। यह देखने में एक मोबाइल फोन के आकार का है और सीडीएमए सिस्टम पर काम करता है। इसके जरिए सेना घटना स्थल से अपने मुख्यालय से लेकर अन्य जरूरी जगहों तक आतंकी अभियानों से लेकर घुसपैठ, प्राकृतिक आपदा की तत्काल सूचना भेज सकेगी। जिससे वक्त रहते मदद पहुंचाने में आसानी होगी। इससे पहले सेना में बड़े आकार के मोबाइल सेटों और साधारण मोबाइल-लैंडलाइन फोन का प्रयोग किया जाता था। मोबाइल सेट वजन में काफी भारी होते थे और उनमें केवल बातचीत की ही सुविधा थी।

जम्मू-कश्मीर के बाद पूर्वोत्तर की बारी
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने इस सिस्टम को तैयार किया है। एक कोर में इसे लगाने में 5 साल का समय लगता है। जम्मू-कश्मीर के बाद सेना की तैयारी इसे पूर्वोत्तर में लगाने की है। यहां ध्यान रहे कि पूर्वोत्तर की सीमा भारत के सबसे बड़े प्रतिद्धंदी चीन के साथ लगती है। यहां तैनात सेना की 3, 4 और 33 कोर के लिए बजटीय प्रावधानों के लिए रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिल गई है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी सेना के इसी सिस्टम की मदद से राज्य का अन्य भागों के साथ संचार संपर्क कायम रहा था। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों के पास ज्यादा उन्नत सिस्टम हैं क्योंकि उनकी भौगोलिक स्थिति भारत से काफी अलग है। इसके अलावा उनके पास पूर्ण समर्पित रक्षा संबंधी सेटेलाइट हैं जो किसी भी घटना
का सूचना तत्काल ग्राउंड से सीधे भेज देते हैं।

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