मंगलवार, 4 नवंबर 2014

लंका गठजोड़ से हिंद महासागर में हेकड़ी दिखाता चीन

पूर्वोत्तर के बाद अब दक्षिणी छोर पर जारी हलचल से बढ़ती भारत की चिंता
कविता जोशी

बीते दिनों भारत द्वारा पूर्वोत्तर में अरूणाचल-प्रदेश में सीमा से सटे इलाकों में करीब 2 हजार किमी. के सड़क निर्माण कार्य करने का ऐलान क्या हुआ पड़ोस में बैठा चीन बौखलाया और इस निर्माण का विरोध करने लगा लेकिन भारत ने चीन के विरोध की परवाह किए बिना सड़क निर्माण के अपने दृढ़ इरादे का इजहार कर दिया। अपने पड़ोसी के इस बुलंद हौसले के बीच अब ड्रैगन यानि चीन ने भारत के सड़क निर्माण कार्य की एकाग्रता में खलल डालने के लिए दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप देश श्रीलंका में अपनी धमक दिखाना शुरू कर दिया है। इसका आगाज बीते सितंबर महीने में राष्टपति प्रणब मुखर्जी की वियतनाम यात्रा से हो चुका है। यात्रा के दौरान ही चीन ने लंका के कोलंबो और त्रिनकोमाली बंदरगाहों पर चीनी पनडुब्बी को पानी से सतह पर आने के बाद मदद की। एक ओर जहां भारत प्रशांत महासागर के अशांत इलाके दक्षिणी चीन सागर में पड़ने वाले तेल ब्लॉकों के खनन के कार्य के लिए वियतनाम के साथ समझौता कर रहा है। इस इलाके को लेकर चीन के साथ वियतनाम का सीमाई विवाद चल रहा है, जिसकी वजह से बीते लगभग दो साल में करोड़ों डॉलर की राशि खर्च करने के बाद भी यहां काम शुरू नहीं सका है। इसके कुछ दिन बाद वितयनामी पीएम नगुयेन तान डुंग ने भारत की यात्रा की और दोनों के बीच कुछ महत्‍वपूर्ण सामरिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत-वियतनाम की बढ़ती निकटता चीन को नाग्वार गुजर रही है। इसलिए अब वो भारत की पश्चिमी-पूर्वी सीमा के अलावा दक्षिणी सीमा या हिंद महासागर में अपना वर्चस्व दिखाकर भारत को आंख दिखाने की कोशिश कर रहा है।

वियतनामी पीएम जब भारत की यात्रा पर थे तब चीन की च्यांगझियांग-2 पनडुब्बी कोलंबो बंदरगाह पर पानी से सतह पर आई थी। इसके बाद हाल ही में एक बार फिर चीनी पनडुब्बी च्यांगझियांग-2 और युद्धपोत चांग शिंग दाओ कोलंबो तट पर साथ-साथ नजर आए। भारत के विरोध के बाद लंकाई अधिकारियों का बयान आया कि तट पर किसी भी देश की पनडुब्बियों और युद्धपोतों का नजर आना अंतरराष्टीय स्तर पर की जाने वाली सामान्य गतिविधि का हिस्सा है। इससे पहले 2010 से कोलंबो तट पर दुनिया के कई देशों के करीब 230 युद्धपोत र्इंधन भरने के लिए, खाने-पीने के लिए और गुडविल विजिट के लिए रूकते रहे हैं। भारत का तर्क है कि श्रीलंका ने जुलाई 1987 के समझौते का उल्लंधन किया है, जिसके हिसाब से श्रीलंका के त्रिंकोमाली से लेकर अन्य बंदरगाह पर दूसरे देशों को सैन्य उपयोग से जुड़ी कोई मदद नहीं करेगा। इससे भारत की सुरक्षा और अखंडता को गहरा आघात पहुंचता है।

श्रीलंका में 2005 में राष्टपति महिंदा राजपक्षे के चुनाव के बाद चीन की ओर से मिलने वाली सहायता राशि में कई गुना का इजाफा देखने को मिला है। इसमें भी इंफ्रास्टक्चर निर्माण में चीन ज्यादा निवेश कर रहा है। चीन ने बीते कुछ समय में श्रीलंका के हबनटोटा बंदरगाह से लेकर मतारा इंटरनेशनल हवाईअड्डे का निर्माण किया है। इसके अलावा चीन लंका के 1.35 बिलियन डॉलर के नोरोचलाई कोयला चालित परियोजना का कामकाज भी संभाल रहा है। इसे चलाने मेंं लंकाई अधिकारी असमर्थ रहे जिसके बाद उन्होंने इसे पुन:दुरूस्त कर चलाने के लिए चीनी अधिकारियों से मदद मांगी। खराब गुणवत्ता के उपकरणों की वजह से इस प्लांट में दिक्कत आई है। चीन ने लगातार श्रीलंका में अपने निवेश बढ़ा लिया है। बीते दो सालों में चीन ने श्रीलंका में 2.1 बिलियन डॉलर के निवेश का वाद किया है। यह निवेश ऊंची ब्याज दरों के साथ चीन करेगा। श्रीलंका में चीन की बढ़ते दखल से आधिकारिक तौर पर अब यह स्पष्ट हो गया है कि वो जापान की जगह पर श्रीलंका का नंबर वन डोनर देश बन गया है।

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